"उड़ता पंजाब" के मसले पर सेंसरबोर्ड,फिल्मकारोंऔरअदालत की दखलंदाज़ी के बाद उड़ती- उड़ती खबर यहआ रही है कि केंद्र सरकार ने सेंसर बोर्ड को हमेशा के लिए समाप्त करने का फैसला कर लिया है. सेंसर बोर्ड के रखरखाव और उसकेअध्यक्षऔर सदस्यों के गैरजरूरी वेतन-भत्तों पर सरकार कोअब तक जो खर्च नाहक ही करना पड़ रहा था, उससे न सिर्फ राजकोषीय घाटे को पूरा करने में मदद मिलेगी, "अभिव्यक्तिकीआज़ादी" का समर्थन करने वालों की भी चांदी हो जाएगी और फिल्मकारों को अपनी फिल्मों में गालीगलौज, फूहड़ता और भौंडापन परोसने के लिए सेंसर बोर्ड जैसी गैरजरूरी संस्थाओं का मोहताज़ नहीं होना पडेगा.
खबर यह भी आ रही है कि "उड़ता-पंजाब" की सफलता से उत्साहित होकर, अब सभी राजनीतिक दलों ने अपने प्रचार-तंत्र को यह हिदायत दे डाली है कि वह चुनावों से पहले जनता को मुफ्त में फिल्में दिखाने कीवजाए ,"प्रचार-फिल्मों" को "उड़ता-पंजाब" की तर्ज़ पर बनायें ताकि राजनीतिक प्रचार भी हो जाए और फिल्म देखने का पैसा जनता से ही वसूला जा सके.
राजनीतिक हलकों में अब जिन नयी आने वाली फिल्मों के नाम सामने आ रहे हैं, उनमे "लुटता- पिटताउत्तरप्रदेश", "डूबता बिहार", "सिसकता केरल", "सुलगता बंगाल", "लुढ़कता उत्तराखंड" आदि कुछ नाम शामिल हैं और बहुत जल्दी ही दर्शकों को इन फिल्मों को देखने के लिए उसी तरह मजबूर होना पड़ेगा, जैसे वे "उड़ता-पंजाब" को देखने के लिए हो रहे हैं. कुछ प्रतिभाशाली फिल्मकारों ने "ठगी जा रही दिल्ली", "दिल्ली के २१ ठग" और "दिल्ली के ६७ ठग" नाम से टेलीविजन सीरियल भी शुरू करने का फैसला किया है क्योंकि दिल्ली के दर्द को किसी एक फिल्म तक सीमित कर देना न सिर्फ दिल्ली के साथ, बल्कि "अभिव्यक्ति की आज़ादी" के साथ भी खासी नाइंसाफी होगी. इन सभी फिल्मों और टी.वी सीरियलों को बनाने के लिए सभी राजनीतिक दलों ने अपनी कमर अच्छी तरह कस ली है -कुछ राजनीतिक पार्टियों में तो पहले से ही काफी नौटंकी करने वाले मौजूद हैं- उनका काम तो मुफ्त में ही हो जाएगा- बाकी के राजनीतिक दल भी नौटंकी करने वालों की जल्द ही भर्ती शुरू करने वाले हैं.
इस सारे मामले में सबसे अहम भूमिका देश की माननीय अदालतों की रहने वाली है, क्योंकि अदालतों ने सेंसर बोर्ड के काम को बड़ी विनम्रता के साथ अपने ऊपर लेकर, अपने पहले से बढे काम को और भी अधिक बढ़ा लिया है. माननीय उच्च्तम न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश ने हालांकि पिछले दिनों अदालतों में कई दशकों से लंबित पड़े मामलों के लिए जजों की कमी का मुद्दा उठाया था,अब उम्मीद यही की जाती है कि सभी मामलों में फैसले उतनी ही तेजी के साथ आएंगे, जितनी तेजी से "उड़ता-पंजाब" पर फैसला आया है।
Published on 15/6/2016
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