Tuesday, June 20, 2017

आम जनता से वसूले गए टैक्स पर हो रही है नेताओं की मौज

समय समय पर सरकार, सरकार के मंत्री और सरकारी विज्ञापन जनता को यह नसीहत देते  नज़र आते हैं कि लोग अपने हिस्से का टैक्स जमा करते रहें. "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" की तर्ज़ पर दी गयी इस नसीहत के पीछे सरकार का तर्क यह होता है कि इस टैक्स के रूप में वसूली हुई रकम से ही सरकार और सरकार की योजनाएं चलती हैं. जहां  एक तरफ सरकार देश की आम जनता से टैक्स वसूली पर जरूरत से ज्यादा जोर देती दिख रही है, वहीं खुद राजनेता बिना कोई टैक्स दिए किस तरह से जनता से वसूले गए टैक्स पर मौज काट रहे हैं, उसे देख-सुनकर आप हैरान हो जाएंगे.

भ्रष्ट राजनेताओं और अफसरों ने देश के टैक्स कानून इस तरह से बनाये हुए हैं, कि मध्यम वर्ग जनता  और व्यापारी हमेशा टैक्स की मार झेलते रहें  और भ्रष्ट नेताओं और अफसरों की हमेशा ही मौज लगी रहे. आइए देखे नेताओं और अफसरों द्वारा रची गयी  इस साज़िश को कानूनी रूप देकर किस तरह से जनता को लगातार लूटा जा रहा है :

[] आयकर कानून की धारा १०() के तहत कृषि से होने वाली आमदनी को पूरी तरह से आयकर कानून के दायरे से बाहर रखा गया है. सरकार दिखावा यह करती है कि वह किसानों की हितैषी है और किसानों को आयकर के दायरे से बाहर रखना चाहती है. लेकिन हकीकत इसके बिलकुल विपरीत है. देश की  ज्यादातर कृषि भूमि पर भ्रष्ट नेताओं और अफसरों ने कब्जा किया हुआ है और वे सब के सब "नकली किसान" बनकर अपने सारे काले धन को "कृषि से होने वाली आमदनी " दिखाकर उसे सफ़ेद धन बनाने में पिछले ७० सालों से लगे हुए हैं. कृषि से होने वाली आमदनी को आयकर के दायरे से बाहर रखने की सिर्फ यही वजह है, और कोई नहीं.

[] आयकर कानून की धारा 10(13A ) के तहत सभी राजनीतिक पार्टियों  को मिलने वाले  सभी तरह के चंदे और सभी तरह की आमदनी पूरी तरह से आयकर के दायरे से बाहर रखी गयी है.
[] आयकर कानून की धारा १०(१७) के तहत सभी विधायकों और संसद सदस्यों को मिलने वाले भत्तों को भी पूरी तरह आयकर के दायरे से बाहर रखा गया है.

गौर करने वाली बात यह है कि जिस आमदनी पर ऊंची दरों पर आयकर लगना चाहिए, उसे तो पूरी तरह से आयकर के दायरे से बाहर कर दिया गया है और जिस मध्यम वर्ग जनता को टैक्स में राहत मिलनी चाहिए, उसके  पीछे सरकार और सरकार के अधिकारी हाथ धोकर पीछे पड़े हुए हैं. सरकार आज की तारीख में जिस तरह से  इनकम टैक्स मध्यम वर्गीय जनता और व्यापारियों से वसूल रही है, अगर उसी तरह से  टैक्स की वसूली नेताओं और अफसरों से भी करनी शुरू कर दे तो टैक्स से होने वाली सरकारी आमदनी में लगभग दस गुना इज़ाफ़ा हो सकता है.

पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि भ्रष्ट नेताओं और अफसरों का यह जो गठजोड़ इस देश में पिछले ७० सालों से चल रहा है, क्या वह कभी ऐसा होने देगा ? सभी राजनीतिक पार्टियां और उनके नेता इस लूट पर पिछले ७० सालों से पूरी तरह खामोश हैं और सब इस बात पर सहमत लगते हैं कि यह लूट आगे भी चलती रहनी चाहिए. काले धन को ख़त्म करने पर ज़ुबानी जमा खर्च करने वाली सरकारें ,आयकर कानून से क्या उन धाराओं को हटाने का साहस कभी कर पाएंगी, जिनकी वजह से देश में सबसे अधिक काला धन पैदा हो रहा है ? अभी तक तो मोदी सरकार ने भी इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है.


(लेखक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और टैक्स मामलों के एक्सपर्ट हैं.)

Wednesday, June 14, 2017

सिर्फ CA की नहीं, वकीलों की भी खबर ले मोदी सरकार

बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया का यह खुद मानना है कि लगभग ३० प्रतिशत से ऊपर वकील जाली डिग्री पर काम कर रहे हैं. बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया की इस टिप्पणी को इस सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए कि ज्यादातर राजनेताओं के पास वकालत की डिग्री ही होती है. आप नेता और आप सरकार में कानून मंत्री जितेंद्र तोमर की डिग्री भी फ़र्ज़ी पायी गयी थी. नोट बंदी के दौरान भी दिल्ली के एक पॉश इलाके में एक नामी वकील के यहां दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के छापे में १२५ करोड़ की अघोषित संपत्ति के खुलासे के साथ साथ १३.६५  करोड़ रुपये के पुराने नोट और २.६ करोड़ ने नए नोट बरामद हुए थे. समय समय पर वकील मोटी और भारी भरकम फीस लेकर देशद्रोहियों, आतंकवादियों और बलात्कारियों के मुक़दमे भी लड़ते रहे हैं. यह सब लिखने का मेरा उद्देश्य वकीलों की छवि खराब करने का नहीं है. यह सब मैंने इसलिए लिखा है कि वर्तमान सरकार हो या फिर पिछली सरकारें, सब की सब सरकारें, वकीलों की सभी हरकतों पर या तो मौन रहती हैं या फिर बेहद नरम रवैया अख्तियार करती हैं, जिसकी सीधी साधी वजह यही है कि ज्यादातर विधायक, संसद सदस्य और मंत्री इसी वकालत के प्रोफेशन से आते हैं और इसीलिए देश में जितने भी कानून बनाये जाते हैं, उनमे इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि किसी को भी कुछ हो जाए, वकीलों के ऊपर जरा से भी आंच न आने पाए.

अब जरा एक नज़र वकालत से काफी मिलते जुलते प्रोफेशन CA यानि चार्टर्ड अकाउंटेंट पर भी डाल लेते हैं. यह सभी को मालूम है कि CA की डिग्री लेना सबसे मुश्किल काम है और १९४९ से  लेकर आज तक एक भी CA की डिग्री फ़र्ज़ी नहीं पायी गयी है. वर्तमान सरकार में मंत्री  पीयूष गोयल और सुरेश प्रभु दोनों ही प्रोफेशन से चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं. CA  और वकील दोनों ही कंपनी कानून और कर कानून से सम्बंधित मामलों में अपनी सेवायें देते हैं. इन दोनों के काम में बस यही समानता है .  एक ऑडिट का काम ऐसा है जो CA  के अलावा और कोई नहीं कर सकता है. उसी तरह अदालतों में भी सिर्फ वकील ही पेश हो सकता है, CA नहीं.  ट्रिब्यूनल में  CA और वकील  दोनों लोग पेश हो सकते हैं. यह सब कुछ लिखने का उद्देश्य भी यही है ताकि यह मालूम हो सके कि सारे नियम, कायदे और कानून देश में राजनेताओं ने इस तरह से बनाये हैं कि वकीलों का हित हर जगह सर्वोपरि रहे. देश में जब  सर्विस टेक्स लगाया गया तो CA पर सबसे पहले लगा दिया गया और वकीलों पर आज भी सर्विस टेक्स नहीं है. CA  को नियंत्रित करने के लिए बहुत सख्त कोड ऑफ़ कंडक्ट है जिसे इंस्टिट्यूट ऑफ़ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ़ इंडिया की अनुशासन समिति बहुत सख्ती से लागू करती है. इस अनुशासन समिति के फैसले इतने सख्त होते हैं, जिन्हे जब हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाती है तो वहां से CA को आम तौर पर राहत मिल जाती है. वकीलों का अगर कोई कोड ऑफ़ कंडक्ट होता तो बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया को यह कहने की जरूरत ही नहीं पड़ती कि लगभग ३० प्रतिशत से ऊपर वकीलों की डिग्रियां फ़र्ज़ी हैं.

अब आते हैं, मुद्दे की बात पर. खबर यह आ रही है कि सरकार प्रीवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्डरिंग एक्ट [PMLA] में संशोधन करके CA के लिए उसमे सजा का प्रावधान करने जा रही है. मनी लॉन्डरिंग को सीधी साधी भाषा में "दो नंबर के पैसे को एक नंबर में बदलने की प्रक्रिया" कहा जाता है. इस बात में कोई शक नहीं है कि हर प्रोफेशन में कुछ न कुछ लोग गलत काम करते हैं. CA प्रोफेशन के कुछ  लोग भी  यह काम जरूर करते होंगे लेकिन इन कारगुजारियों में जितने लोग CA प्रोफेशन से होंगे उससे ज्यादा नहीं तो कम से कम उतने ही लोग वकालत के प्रोफेशन से  भी होंगे.

ध्यान देने वाली बात यह है कि काले धन को सफ़ेद धन बनाने का काम (मनी लॉन्डरिंग का काम) कंपनी कानून और कर कानून की मदद से किया जाता है. इन दोनों कानूनों में अपनी सेवायें CA  भी  देते हैं और वकील भी देते हैं. मनी लॉन्डरिंग करते हुए अगर कोई CA पकड़ा गया है तो वकील भी पकड़ा गया है. एक उदहारण तो मैं इस लेख के आरम्भ में ही दे चुका हूँ. अगर सरकार की मंशा यह है कि मनी लॉन्डरिंग कानून में संसोधन करके सिर्फ CA के लिए सजा का प्रावधान कर दिया जाए, तो उसका सीधा सीधा मतलब यही होगा कि एक ही अपराध अगर CA  करेगा तो उसे सजा मिलेगी और उसी अपराध को अगर वकील करेगा तो उसे सजा नहीं मिलेगी. भेदभाव पर आधारित इस व्यवस्था को पिछली कांग्रेस सरकारों ने पल्ल्वित-पोषित किया था जिसकी वजह से कांग्रेस पार्टी का खुद अपना वजूद खतरे में पड़ा हुआ है. मोदी सरकार अगर कांग्रेस के जमाने में हुयी इन  गलतियों को सुधारने की बजाये,  खुद उसी की तरह काम करेगी तो इसमें कोई शक नहीं है कि आने वाले समय में  मोदी सरकार का हाल कांग्रेस पार्टी से भी बदतर होगा.

(लेखक एक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और टैक्स मामलों के विशेषज्ञ है)












Wednesday, June 7, 2017

किसानों का ऐसा अपमान - नहीं सहेगा हिन्दुस्तान !!!

देश के कई हिस्सों में आजकल किसान आंदोलन या तो चल रहा है, या फिर विपक्षी राजनीतिक दल इस बात के संकेत दे रहे हैं कि जल्द ही अन्य राज्यों में इस तरह के किसान आंदोलन शुरू करके मोदी सरकार को एक बार फिर से घेरने की कवायद शुरू की जाएगी. विपक्ष के नेता पिछले ३ सालों के मोदी सरकार के सफल कार्यकाल से इस कदर बेहाल नज़र आ रहे हैं कि अब उन्हें "नकली दलित छात्र " की तर्ज़ पर "नकली किसान " भी बनाने पड़ रहे हैं ताकि अपने राजनीतिक कार्यकर्ताओं को किसानों का चोला पहनाकर उसे किसान आंदोलन का रूप दिया जा सके और मोदी सरकार को बदनाम करने के साथ साथ किसानों का भी अपमान किया जा सके.

खबर यह आ रही है कि मध्य प्रदेश में किसान आंदोलन में किसानों ने एक मंदिर को भी तोड़ फोड़ करके आंदोलन के हवाले कर दिया. आप खुद सोचिये कि क्या कोई असली किसान ऐसा बेगैरत हो सकता है कि वह मंदिर जैसे धार्मिक स्थल पर हमला कर सके ? अगर मंदसौर में किसी मंदिर में भी आग लगाई जा रही है तो जनता यह समझ सकती है कि इसके पीछे किसका हाथ है. विपक्षी राजनीतिक दल जिस तरह से इन शर्मनाक घटनाओं को अंजाम देकर उसका ठीकरा किसानों के सर फोड़ने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं, उसकी उन्हें आने वाले समय में भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है,

आपको याद होगा कि अख़लाक़ का मामला हो या नकली दलित छात्र रोहिल वेमुला का मामला, विपक्ष ने हर बार मोदी सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार किया है और हर बार मुंह की खाई है. सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी के खिलाफ जो दुष्प्रचार विपक्षी नेताओं ने किया था, उसका नतीजा यह हुआ कि इन लोगों का सूपड़ा ही साफ़ हो गया. लेकिन अपनी इन चालबाज़ियों और उनकी नाकामियों से कोई भी सबक न लेते हुए विपक्षी नेता इस बार नयी नवेली नौटंकी को "किसान आंदोलन" के नाम से पेश करके इस देश के मेहनती किसानों को बदनाम भी कर रहे हैं और उनका घोर अपमान भी कर रहे हैं. विपक्षी नेता पूरे देश की जनता को यह सन्देश देना चाहते हैं कि इस देश के किसान मंदिरों में आग लगा सकते हैं, अपने मेहनत से पैदा किये गए अनाज को सड़कों पर नष्ट कर सकते हैं, भूख हड़ताल कि नौटंकी करके जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर सकते हैं. हमारे देश के किसान ऐसे हरगिज़ नहीं हैं जो भूख हड़ताल पर बैठने की नौटंकी करें और "सागर रत्न" रेस्टोरेंट से अपने लिए लज़ीज खाना और बिसलरी का पानी मंगाए. जिस तरह का चाल, चरित्र और चेहरा इन किसानों का पेश किया जा रहा है, वह भारत के किसी किसान का नहीं हो सकता है, वह किसी हारी हुयी राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्त्ता का ही हो सकता है.

भारत एक कृषि प्रधान देश है और विपक्ष को चाहिए कि वह किसानों का सम्मान  करना सीखे. देश के विपक्षी दलों के राजनेता अगर अब भी अपनी इन छिछोरी हरकतों से बाज़ नहीं आये और किसानों का इसी तरह अपमान करते रहे तो इन्ही किसानों के द्वारा यह लोग इतिहास बना दिए जाएंगे. मोदी सरकार को अगर घेरना भी है तो उसके लिए किसानों की नकली नौटंकी पेश करने की बजाये, यह बताने की हिम्मत करे कि इस देश में ६० सालों तक जब एक ही पार्टी या उसके सहयोगी राजनीतिक दलों का एकछत्र राज चल रहा था तो इन ६० सालों के बाद भी किसानों की हालात में कोई सुधार क्यों नहीं आया ?



Monday, June 5, 2017

क्या NDTV की दुकान अब बंद होने वाली है ?

विवादों में रहने वाले न्यूज़ चैनल NDTV  के मालिक और चेयरपर्सन प्रणय रॉय और राधिका रॉय के दिल्ली और देहरादून स्थित ठिकानों पर  सी बी आई ने एक बैंक धोखाधड़ी के मामले में छापेमारी की है. NDTV द्वारा कानून के साथ खिलवाड़ करने का यह पहला मामला नहीं है. FEMA कानून के उल्लंघन के सिलसिले में प्रवर्तन निदेशालय की २०१५ से ही इस चैनल की कारगुजारियों पर कड़ी नज़र थी. २०१६ में SEBI ने भी टेकओवर नियमों के उल्लंघन के सिलसिले में चैनल को एक नोटिस जारी किया था.

बैंक धोखाधड़ी की जांच सी बी आई ने शुरू कर दी है और यह धोखाधड़ी कितनी बड़ी है, इसका पूरा खुलासा भी जांच पूरी होने के बाद ही पता चलेगा. लेकिन धोखाधड़ी की जांच के नतीजे  सिर्फ यह तय कर सकते हैं कि कुल मिलाकर कितनी बड़ी वित्तीय धोखाधड़ी इस चैनल के मालिकों ने अंजाम दी हैं, यह बात तो पहले ही तय हो चुकी है कि वित्तीय गड़बड़ियां हुईं हैं. किसी और देश में अगर इस तरह का वाकया हुआ होता तो अब तक इस चैनल का लाइसेंस वहां की सरकार ने रद्द कर दिया होता. लेकिन हमारे देश में न्याय की प्रक्रिया इतनी सुस्त, ढीली और लचीली है कि सभी अपराधियों को इससे बच निकलने  का इतना ज्यादा यकीन रहता है, कि वे रात के दो बजे भी सुप्रीम कोर्ट के बाहर जाकर खड़े हो जाते हैं. सलमान खान और जयललिता के मामले में किस तरह के अदालती फैसले आये थे, उसे देश क़ी जनता देख ही चुकी है.

अब सवाल यह भी उठ रहे हैं कि पिछली सरकारों के समय में इस चैनल पर कार्यवाही क्यों नहीं हुईं और किसी आर्थिक घोटाले और गड़बड़ी के चलते यह चैनल अब तक कैसे चल रहा है ? यह सभी जानते हैं कि  इस चैनल पर किस तरह की ख़बरें परोसी जाती रही हैं. संघ, भाजपा और राष्ट्रवादी विचारधारा का जमकर विरोध करना ही इस चैनल का मुख्य उद्देश्य रहा है. इस देश में हर किसी को  मानों इस बात का लाइसेंस मिला हुआ था कि अगर वह संघ,भाजपा,मोदी और राष्ट्रवाद का जमकर विरोध करेगा तो उसके सात क्या सौ खून भी  माफ़ कर दिए जाएंगे और अगर उसके खिलाफ कानून कोई कार्यवाही करेगा तो उसके समर्थक उसे "बदले क़ी कार्यवाही" या फिर "मीडिया की आज़ादी" पर हमला बताकर उसके द्वारा अंजाम दिए गए  वित्तीय घोटाले की गंभीरता को कम करने का भरसक प्रयास करेंगे.

पत्रकारिता क़ी आड़ में चल रहे NDTV  जैसे गोरखधंधों पर अब मोदी सरकार ने नकेल कसनी शुरू क़ी है तो "अभिव्यक्ति क़ी आज़ादी" और "मीडिया क़ी आज़ादी" का शोर मचाने वालों ने अपना झुनझुना बजाना शुरू कर दिया है. इन लोगों क़ी माने तो "पत्रकारिता और मीडिया क़ी आज़ादी": क़ी आड़ में सभी तरह क़ी गड़बड़ियां और घोटाले भी जायज हैं.  लेकिन इन लोगों का दुर्भाग्य है कि समय इनके साथ नहीं है. जैसी मस्ती और आज़ादी इन्होने पिछली सरकारों के दौर में भोगी थी, वह इनसे छिन चुकी है, इनके चैनल का लाइसेंस कब छिनेगा और कब यह "ख़बरों की दुकान" यकायक बंद हो जाएगी, यह आने वाला समय ही बताएगा.



Monday, May 29, 2017

देशद्रोहियों को दण्डित करने के लिए अध्यादेश लाये मोदी सरकार

वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर का हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमे वह हुर्रियत के अलगाववादियों के साथ देशद्रोह की बातों में संलिप्त दिखाए गए हैं. मणिशंकर अय्यर और सलमान खुर्शीद पहले भी सन २०१५ में पाकिस्तान के एक टी वी चैनल तो इंटरव्यू देते वक्त  पाकिस्तान सरकार से यह गुजारिश करते हुए रंगे हाथों पकडे जा चुके हैं कि पाकिस्तान  मोदी सरकार को हटाने में उनकी मदद करे. कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं का देशद्रोह की घटनाओं और बयानों से चोली दामन का साथ रहा है. जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में जब देशद्रोही नारे लगाए गए थे, तब भी नारे लगाने वालों का सबसे पहले समर्थन करने के लिए राहुल गाँधी और केजरीवाल ही वहां पहुंचे थे. केजरीवाल क्योंकि खुद ही कांग्रेस पार्टी के दिखाए गए रास्ते पर चल रहे हैं, इसलिए वह कांग्रेस पार्टी की सोच से हटकर कुछ नया कर पाने में आज तक असमर्थ रहे हैं.

कांग्रेस पार्टी और उसके साथ नकली "सेक्युलरिज्म" का झुनझुना बजाने वालों ने क्योंकि इस देश में लगभग ६० सालों तक एकछत्र राज किया है, उनकी इस सोच को पिछले ६-७ दशकों में आधिकारिक मान्यता मिल चुकी है, जिसमे देश के खिलाफ कुछ भी बोलने या करने को "अभिव्यक्ति की आज़ादी" का नाम दिया जाता है और जो देशभक्त ताकतें देशद्रोह की इन घटनाओं और बयानों के खिलाफ अपनी आवाज़ उठती हैं, उन्हें संघ या भाजपा का समर्थक बताकर, मामले की गंभीरता को कम करने का  प्रयास किया जाता है.

जाहिर सी बात यह है कि देश में देशद्रोहियों को दण्डित करने के लिए अगर कोई कानून नहीं बन सका है, तो उसका मुख्य कारण भी यही है कि जो लोग खुद इन देशद्रोह के दुष्कर्मों में शामिल थे, परोक्ष या अपरोक्ष रूप से देश में उन्ही की विचारधारा वाली पार्टी सत्ता में थी. कोई भी पार्टी ऐसा कोई कानून तो बनाने से रही, जिसके चलते खुद उसी पार्टी के नेता दण्डित कर दिए जाएँ.  वाजपेयी सरकार के जमाने में "पोटा" नाम का कानून लाया भी गया था, जिससे आतंकवादियों और देशद्रोहियों पर लगाम लगाई जा सकती थी, लेकिन देश का दुर्भाग्य कि  वाजपेयी सरकार दुबारा सत्ता में नहीं आयी और कांग्रेस सरकार ने सत्ता में वापसी करते ही जो पहला काम किया था, वह था कि "पोटा" कानून को समाप्त करने का. लिहाज़ा इस बात में कांग्रेस पार्टी ने देश को कभी भी संशय में नहीं रखा कि उसका हाथ सदैव ही देशद्रोहियों ,आतंकवादियों और अलगाववादियों के साथ है, सवा सौ करोड़ देशवासियों के साथ नहीं.

२०१४ के लोकसभा चुनावों में देशवासियों ने कांग्रेस पार्टी और इसके सहयोगियों की इन देशद्रोह समर्थित हरकतों का गंभीरता से संज्ञान लेते हुए, कांग्रेस और इसके सहयोगियों को धूल चटाते  हुए पूर्ण बहुमत से मोदी सरकार बनबाई. सरकार को भारी बहुमत से लोगों ने इसीलिए जिताया था कि जो लोग पिछले ६० सालों से देशद्रोहियों और आतंकवादियों के समर्थन में डटकर खड़े हुए थे, मोदी सरकार  उन्हें सजा दिलाकर उन्हें उनके अंजाम तक पहुंचाएगी.

मोदी सरकार को बने हुए ३ साल हो चुके हैं, लेकिन जनाकांक्षाओं के विपरीत अभी तक ऐसा कोई कदम मोदी सरकार ने नहीं उठाया है, जिसे देखकर जनता को यह लगे कि मोदी सरकार इन देशद्रोहियों को दण्डित करने के लिए लेशमात्र भी गंभीर है. कुछ लोग यह बहाना बनाकर भी भाजपा की इस अकर्मण्यता का बचाव करते हैं कि क्योंकि अभी राजयसभा में भाजपा को बहुमत नहीं है, इसलिए इस तरह का कोई कानून लाना फिलहाल संभव नहीं है. लेकिन इन बातों में कोई दम इसलिए नहीं है कि अगर सरकार की इच्छा शक्ति हो तो वह राजयसभा में बहुमत न होते हुए भी अध्यादेश ला सकती है जिसे संसद के अगले सत्र में पास करना होता है और उस अध्यादेश की अवधि को बढ़ाया भी जा सकता है. लगभग सभी सरकारें तरह तरह के कानूनों को अध्यादेश के जरिये लाकर उन पर अम्ल कर चुकी हैं. खुद वर्तमान सरकार भी कई अध्यादेश ला चुकी है. भूमि अधिग्रहण अध्यादेश भी मोदी सरकार न सिर्फ लाई, बल्कि उसकी अवधि को कई बार बढ़ाया भी गया था.  फिर देशद्रोहियों को दण्डित करने के लिए राजयसभा में बहुमत न होने का बहाना इस देश की जनता के गले आसानी से उतर जाएगा, इसमें संदेह है.

चर्चा को लम्बा न खींचते हुए सीधे इस बात पर आते हैं कि  देशद्रोहियों को दण्डित कर सकने वाले इस प्रस्तावित अध्यादेश का मसौदा क्या होना चाहिए. देशद्रोहियों को आम अपराधी नहीं  समझना चाहिए और  इनके लिए बिना किसी  अदालती  हस्तक्षेप के मृत्युदंड देने की व्यवस्था होनी चाहिए. इस मृत्यु दंड की सजा को माफ़ करने का अधिकार राष्ट्रपति के पास भी नहीं होना चाहिए. इस तरह के कानून का जो हल्का सा भी विरोध करता दिखाई दे, उसे भी इसी कानून के अंतर्गत मृत्युदंड की सजा देनी चाहिए. जैसे ही यह मामला सामने आये कि कोई भी व्यक्ति देशद्रोह की किसी घटना में संलिप्त पाया गया है, उसे हिरासत में ले लेना चाहिए और उसे अधिकतम एक सप्ताह के अंदर मौत के हवाले कर देना चाहिए.


Saturday, May 27, 2017

जब अब्दुल्ला को सेना ने जीप से बांधकर घसीटा

पत्रकार महोदय गर्मियों की छुट्टियां मनाने कश्मीर आये हुए थे, सो सोचा कि क्यों न अब्दुल्ला बाप बेटों से भी मुलाक़ात कर ली जाए.

पत्थरबाजों से डरते डराते पत्रकार अब्दुल्ला निवास पहुँच गया . अब्दुल्ला बाप बेटे तो एकदम तैयार ही थे सो पत्रकार का स्वागत करते हुए बोले-" आइये पत्रकार महोदय. आजकल तो हमें कोई पूछ ही नहीं रहा है. आप दिल्ली से हमारा इंटरव्यू लेने आये हैं, हमारे बड़े भाग्य हैं."

पत्रकार ने इधर उधर की बातें छोड़कर , सीधे मुद्दे पर आते हुए अपना पहला सवाल दाग दिया-" आप दोनों पर यह इलज़ाम लगातार लग रहा है कि आप लोग खाते तो हिंदुस्तान का हैं और गाते पाकिस्तान का हैं. इस बात में कहाँ तक सच्चाई है ?"

पत्रकार की बात सुनते ही अब्दुल्ला का बेटा भड़क गया -" पत्रकार महोदय, यह सरासर गलत आरोप है. हम इसका पूरी तरह से खंडन करते हैं. हम लोग पूरी तरह से पाकिस्तान से आने वाले पैसों पर ही अपना जीवन यापन  कर रहे  हैं - पकिस्तान से आ रहे इसी पैसे में से हमें पत्थरबाजों को भी भुगतान करना होता है. लिहाज़ा हम लोगों पर यह आरोप नहीं लगाया जा सकता. हम लोग खाते भी पाकिस्तान का हैं और गाते भी पकिस्तान का हैं."

पत्रकार ने अपनी दाल न गलते देख अपना दूसरा सवाल किया-" अभी पिछले दिनों  सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल रो रही थी, जिसमे यह दिखाया गया था कि सेना के कुछ जवान तुम्हारे पिताजी को सेना की जीप से बांधकर घसीट रहे हैं. यह क्या मामला था, जरा उसके बारे में भी देश की जनता को कुछ बताएं."
पत्रकार के सवाल को सुनकर अब्दुल्ला बाप बेटे पहले तो एक दूसरे की शक्ल देखने लगे, मानों यह तय कर रहे हों कि इस सवाल का जबाब कौन देगा, लेकिन आखिर में अब्दुल्ला के बेटे ने ही अपनी जुबान खोली और अपनी दुःख भरी कहानी सुनाते हुए कहा-" हुआ ऐसा था कि पिछले महीने पकिस्तान से जो पैसा हमें हर महीने आता था, उसके आने में काफी देरी हो गयी थी, उसके चलते हम लोग पत्थरबाजों को भी समय पर भुगतान  नहीं कर सके थे. पत्थरबाजों के और सभी आमदनी के जरिये तो हम लोगों ने पहले से ही बंद कर रखे हैं. लिहाज़ा उन लोगों के यहां तो भूखों मरने की नौबत आ गयी थी."

पत्रकार ने अब्दुल्ला को बीच में ही रोका और झल्लाते हुए बोला -" आपकी इस राम कहानी का मेरे सवाल से क्या लेना देना है, जो सवाल पूछा गया है, अगर उसका जबाब है तो दो, नहीं तो मैं अपने अगले सवाल की तरफ बढ़ूँ."

अब्दुल्ला ने भी पत्रकार को उसी के अंदाज़ में फटकारा-" अजीब पत्रकार हो, सवाल पूछा है तो जबाब सुनने में इतनी बेसब्री क्यों ? इसी कहानी में तुम्हारे सवाल का जबाब छिपा है. भूखे पत्थरबाजों ने अपनी पूरी टोली लेकर एक दिन हम लोगों को घेर लिया और हम दोनों को ही जान से मारने की धमकी देने लगे. इससे पहले कि हम लोगों पर कोई मुसीबत आती, सेना के जवानों की एक जीप हमें दिखाई दी और हम दोनों जोर जोर से चिल्ला कर  उनसे अपनी हिफाज़त की गुहार लगाने लगे. सेना का अधिकारी काफी भला व्यक्ति था. उसने हमें उन पत्थरबाजों से बचाने के लिए सिर्फ एक ही शर्त  रखी कि वे हम दोनों में से किसी एक को अपनी जीप से बांधकर कम से कम पांच किलोमीटर तक घसीटेंगे. उनका यह भी कहना था कि अगर हम उनकी यह शर्त मान लेंगे तो वे पत्थरबाजों को मार पीट कर भगा देंगे. हम लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए सेना की यह शर्त भी मान ली और फिर आगे जो कुछ भी हुआ, वह तो आप सब जानते ही हैं."
पत्रकार भी काफी ढीठता पर उतर आया था-" लेकिन सेना ने तुम्हे जीप से बांधकर क्यों नहीं घसीटा, तुम्हारे पिताजी को क्यों बांधकर घसीटा ?"

अब्दुल्ला बाप बेटों ने एक बार फिर एक दूसरे की शक्ल देखी और इस बार जबाब अब्दुल्ला के बाप ने दिया, जिसे सेना ने अपनी जीप से बांधकर घसीटा था-" इसमें कोई बहुत बड़ा भेद नहीं है. दरअसल हम दोनों ही यह तय नहीं कर पा रहे थे कि किसे जीप से बांधकर घसीटा जाए तो सेना के एक जवान ने सिक्का उछाल कर यह तय कर दिया कि सेना की जीप से बांधकर ५ किलोमीटर तक मुझे घसीटा जाएगा."

अब्दुल्ला बाप बेटों की यह दर्दनाक दास्तान सुनते सुनते पत्रकार भी लगभग  डरा सहमा सा वहां से चुप चाप खिसक लिया. अब उसे पत्थरबाजों और सेना दोनों से ही डर लगने लगा था .
( इस काल्पनिक रचना में दिए गए सभी पात्र एवं घटनाएं काल्पनिक हैं और उनका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं है.)



Thursday, May 25, 2017

Furnishing of statement of financial transaction.

Furnishing of statement of financial transaction.

114E. (1) The statement of financial transaction required to be furnished under sub-section (1) of section 285BA of the Act shall be furnished in respect of a financial year in Form No. 61A and shall be verified in the manner indicated therein.

(2) The statement referred to in sub-rule (1) shall be furnished by every person mentioned in column (3) of the Table below in respect of all the transactions of the nature and value specified in the corresponding entry in column (2) of the said Table in accordance with the provisions of sub-rule (3), which are registered or recorded by him on or after the 1st day of April, 2016, namely:—

Sl. No./Nature & value of transaction/ Class of person *🐌(reporting person)*


1.(a) Payment made in cash for purchase of bank drafts or pay orders or banker's cheque of an amount aggregating to ten lakh rupees or more in a financial year.

(b) Payments made in cash aggregating to ten lakh rupees or more during the financial year for purchase of pre-paid instruments issued by Reserve Bank of India under section 18 of the Payment and Settlement Systems Act, 2007 (51 of 2007).

(c) Cash deposits or cash withdrawals (including through bearer's cheque) aggregating to fifty lakh rupees or more in a financial year, in or from one or more current account of a person.
🐌 Reporting person
1.     A banking company or a co-operative bank to which the Banking Regulation Act, 1949 (10 of 1949) applies (including any bank or banking institution referred to in section 51 of that Act).

2. Cash deposits aggregating to ten lakh rupees or more in a financial year, in one or more accounts (other than a current account and time deposit) of a person.
🐌 Reporting Person
(i) A banking company or a co-operative bank to which the Banking Regulation Act, 1949 (10 of 1949) applies (including any bank or banking institution referred to in section 51 of that Act);

(ii) Post Master General10 as referred to in clause (j) of section 2 of the Indian Post Office Act, 1898 (6 of 1898).

3. One or more time deposits (other than a time deposit made through renewal of another time deposit) of a person aggregating to ten lakh rupees or more in a financial year of a person.
🐌 Reporting Person
2.      (i) A banking company or a co-operative bank to which the Banking Regulation Act, 1949 (10 of 1949) applies (including any bank or banking institution referred to in section 51 of that Act);

(ii) Post Master General as referred to in clause (j) of section 2 of the Indian Post Office Act, 1898 (6 of 1898);

(iii) Nidhi10referred to in section 406 of the Companies Act, 2013 (18 of 2013);

(iv) Non-banking financial company which holds a certificate of registration under section 45-IA of the Reserve Bank of India Act, 1934 (6 of 1934), to hold or accept deposit from public.

4.Payments made by any person of an amount aggregating to—

(i) one lakh rupees or more in cash; or

(ii) ten lakh rupees or more by any other mode, against bills raised in respect of one or more credit cards issued to that person, in a financial year.
🐌 Reporting Person
A banking company or a co-operative bank to which the Banking Regulation Act, 1949 (10 of 1949) applies (including any bank or banking institution referred to in section 51 of that Act) or any other company or institution issuing credit card.

5.Receipt from any person of an amount aggregating to ten lakh rupees or more in a financial year for acquiring bonds or debentures issued by the company or institution (other than the amount received on account of renewal of the bond or debenture issued by that company).
🐌 Reporting Person
A company or institution issuing bonds or debentures.

6. Receipt from any person of an amount aggregating to ten lakh rupees or more in a financial year for acquiring shares (including share application money) issued by the company.
🐌 Reporting Person
A company issuing shares.
7. Buy back of shares from any person (other than the shares bought in the open market) for an amount or value aggregating to ten lakh rupees or more in a financial year.

🐌 Reporting  Person
A company listed on a recognized stock exchange purchasing its own securities under section 68 of the Companies Act, 2013 (18 of 2013).

8. Receipt from any person of an amount aggregating to ten lakh rupees or more in a financial year for acquiring units of one or more schemes of a Mutual Fund (other than the amount received on account of transfer from one scheme to another scheme of that Mutual Fund).

🐌 Reporting  Person
A trustee of a Mutual Fund or such other person managing the affairs of the Mutual Fund as may be duly authorized by the trustee in this behalf.

9. Receipt from any person for sale of foreign currency including any credit of such currency to foreign exchange card or expense in such currency through a debit or credit card or through issue of travelers cheque or draft or any other instrument of an amount aggregating to ten lakh rupees or more during a financial year.
🐌 Reporting  Person
Authorized person  11 as referred to in clause (c) of section 2 of the Foreign Exchange Management Act, 1999 (42 of 1999).

10. Purchase or sale by any person of immovable property for an amount of thirty lakh rupees or more or valued by the stamp valuation authority referred to in section 50C of the Act at thirty lakh rupees or more.
🐌 Reporting Person
Inspector-General appointed under section 3 of the Registration Act, 1908 or Registrar or Sub-Registrar appointed under section 6 of that Act.

11. Receipt of cash payment exceeding two lakh rupees for sale, by any person, of goods or services of any nature (other than those specified at Sl. Nos. 1 to 10 of this rule, if any.)
🐌 Reporting Person
Any  person who is liable for audit under section 44AB of the Act.

12.Cash deposits during the period 09thNovember, 2016 to 30thDecember, 2016 aggregating to—

(i) twelve lakh fifty thousand rupees or more, in one or more current account of a person; or

(ii) two lakh fifty thousand rupees or more, in one or more accounts (other than a current account) of a person.
🐌 Reporting Person
(i)A banking company or a co-operative bank to which the Banking Regulation Act, 1949 (10 of 1949) applies (including any bank or banking institution referred to in section 51 of that Act);

(ii)Post Master General as referred to in clause (j) of section 2 of the Indian Post Office Act, 1898 (6 of 1898).]

13.Cash deposits during the period 1st of April, 2016 to 9th November, 2016 in respect of accounts that are reportable under Sl.No.12.
🐌 Reporting Person
3.      (i)A banking company or a co-operative bank to which the Banking Regulation Act, 1949 (10 of 1949) applies (including any bank or banking institution referred to in section 51 of that Act);

(ii)Post Master General as referred to in clause (j) of section 2 of the Indian Post Office Act, 1898 (6 of 1898).]

(3) The reporting person mentioned in column (3) of the Table under sub-rule (2)11a[(other than the persons at Sl.No.10 and Sl.No.11)]shall, while aggregating the amounts for determining the threshold amount for reporting in respect of any person as specified in column (2) of the said Table,—

(a)take into account all the accounts of the same nature as specified in column (2) of the said Table maintained in respect of that person during the financial year;

(b) aggregate all the transactions of the same nature as specified in column (2) of the said Table recorded in respect of that person during the financial year;

(c) attribute the entire value of the transaction or the aggregated value of all the transactions to all the persons, in a case where the account is maintained or transaction is recorded in the name of more than one person;

(d) apply the threshold limit separately to deposits and withdrawals in respect of transaction specified in item (c) under column (2), against Sl. No. 1 of the said Table.

(4)(a) The return in Form No 61A  referred to in sub-rule (1) shall be furnished to the Director of Income-tax (Intelligence and Criminal Investigation) or the Joint Director of Income-tax (Intelligence and Criminal Investigation) through online transmission of electronic data to a server designated for this purpose under the digital signature of the person specified in sub-rule (7) and in accordance with the data structure specified in this regard by the Principal Director General of Income-tax (Systems):

Provided that in case of a reporting person, being a Post Master General or a Registrar or an Inspector General referred to in sub-rule (2), the said return in Form 61A may be furnished in a computer readable media, being a Compact Disc or Digital Video Disc (DVD), alongwith the verification in Form-V on paper.

Explanation.—For the purposes of this sub-rule, "digital signature" means a digital signature issued by any Certifying Authority authorised to issue such certificates by the Controller of Certifying Authorities.

(b) Principal Director General of Income-tax (Systems) shall specify the procedures, data structures and standards for ensuring secure capture and transmission of data, evolving and implementing appropriate security, archival and retrieval policies.

(c) The Board may designate an officer as Information Statement Administrator, not below the rank of a Joint Director of Income-tax for the purposes of day to day administration in relation to the furnishing of returns or statements.

(5) The statement of financial transactions referred to in sub-rule (1) shall be furnished *on or before the 31st May, immediately following the financial year* in which the transaction is registered or recorded:

[Provided the statement of financial transaction in respect of the transactions listed at serial number (12)[and serial number (13)]in the Table under sub-rule (2), shall be furnished on or before the 31st day of January, 2017.]

(6) (a) Every reporting person mentioned in column (3) of the Table under sub-rule (2) shall communicate to the Principal Director General of Income-tax (Systems) the name, designation, address and telephone number of the Designated Director and the Principal Officer and obtain a registration number.

(b) It shall be the duty of every person specified in column (3) of the Table under sub-rule (2), its Designated Director, Principal Officer and employees to observe the procedure and the manner of maintaining information as specified by its regulator and ensure compliance with the obligations imposed under section 285BA of the Act and rules 114B to 114D and this rule.

Explanation 1.—"Designated Director" means a person designated by the reporting person to ensure overall compliance with the obligations imposed under section 285BA of the Act and the rules 114B to 114D and this rule and includes—

(i) the Managing Director or a whole-time Director, as defined11aa in the Companies Act, 2013 (18 of 2013), duly authorized by the Board of Directors if the reporting person is a company;

(ii)the managing partner if the reporting person is a partnership firm;

(iii) the proprietor if the reporting person is a proprietorship concern;

(iv) the managing trustee if the reporting person is a trust;

(v)a person or individual, as the case may be, who controls and manages the affairs of the reporting entity if the reporting person is, an unincorporated association or, a body of individuals or, any other person.

Explanation 2.—"Principal Officer" means an officer designated by the reporting person referred to in the Table in sub-rule (2).

Explanation 3.—"Regulator" means a person or an authority or a Government which is vested with the power to license, authorise, register, regulate or supervise the activity of the reporting person referred to in the Table in sub-rule (2).

(7) The statement of financial transaction referred to in sub-rule (1) shall be signed, verified and furnished by the Designated Director specified in sub-rule (6):

Provided that where the reporting person is a non-resident, the statement may be signed, verified and furnished by a person who holds a valid power of attorney from such Designated Director.

25 Key Takeaways of Final GST Rules passed by GST Council

GST Rules:

25 Key Takeaways of Final GST Rules passed by GST Council:
In its 14th meeting in Srinagar on 18th and 19th May,2017 the all-powerful GST council cleared seven rules pertaining to different aspects of GST. These rules relate to Registration, Input Tax Credit, Payment, Refund, Invoice, Valuation and Composition and have paved the way for the rollout of GST from July 1, 2017. The key highlights of these final GST Rules are as follows:

Registration:

1)  PAN is mandatory for taking registration under GST. PAN will be validated by CBDT. After successful validation, registration will be granted.
2)  If a person has a SEZ unit, then he is required to make separate registration application for that unit. Similarly, a separate application of registration is required for becoming Input Service Distributor.
3)  A non- resident seeking registration under Non-Resident Taxable Person has to appoint an authorized signatory who will sign the application of registration. That person must be resident of India having a valid PAN.
4)  A person registered under GST is required to display his certificate of registration at a prominent location at his principal place of business and GST Number on the name board at entry of his principal place of business.
5)  Physical verification of place of business will not be conducted to grant registration under GST. But officer can do physical verification after granting of registration, if he is satisfied that it is necessary to do the same. He must upload verification report on GST Portal within 15 working days after verification.

Invoice:

6)  Tax invoice in case of supply of taxable services must be issued within 30 days of date of supply of services. However, time limit for banking company, insurance company or financial institutions is 45 days.
7)  The invoice shall be in triplicate for Supply of Goods and in duplicate for Supply of Services.
8)  The serial number of invoices issued will be furnished electronically on GST Portal.
9)  On receiving advance, Receipt Voucher will be issued. If rate is not determinable, tax is to be paid at 18%. If nature of supply is not determinable, it will be treated as Inter-State Supply.
10)  If reverse charge is applicable, the recipient will issue Payment Voucher.

Payment:

11)  Electronic Liability Register shall be maintained for each person liable to pay tax on the GST Portal.
12)  Electronic Credit Ledger and Electronic Cash Ledger shall also be maintained on the GST Portal for the person eligible for input tax credit and for person liable to pay tax respectively.
13)  Tax will be paid only through internet banking, RTGS, NEFT or Debit and Credit Cards. However, over the counter payment is allowed through authorized banks for the amount up to Rs.10,000 per challan per tax period.

Refund:

14)  A separate formula is prescribed for Maximum Refund in case of inverted duty structure, i.e., GST rate is higher on Inputs than on Output Supply.
15)  Refund application shall be filed electronically on GST Portal.
16)  The grant of provisional refund shall be made if person clamming refund has not been prosecuted during any period of 5 years preceding the tax period for which refund is claimed. However, the following 2 condition mentioned in Draft Refund rules have been deleted:
a)  The assessee should have a GST compliance rating of not less than 5.
b)  The assessee should not have any pending proceeding or appeal on any issue.

17)  If Commissioner wants to withhold refund, order must be issued along with reasons of withholding refund.

Valuation:

18)  The value of supply made by principal to its agent or made to any related person shall be 90% of price charged for the supply of like kind and quality to unrelated person.
19)  The value of a token, coupon or a voucher shall be equal to the money value of goods redeemable against such token or voucher or coupon.
20)  The expense incurred by a supplier as a pure agent will not form value of supply and shall be excluded. The supplier will be treated as pure agent on complying with following three conditions:
a)  He makes payment to third party on authorization by such recipient.
b)  The payment made by pure agent on behalf of recipient has been shown separately on invoice.
c)  The supplies procured from third party by pure agent on behalf of recipient are in addition to services he supplies on his own account.
Earlier, in draft rules, 8 conditions were prescribed. Now, only these three conditions have to be fulfilled. 

Input Tax Credit:

21)  The person eligible to take credit in respect of input of goods held in stock after registartion is required to file a declaration on GST Portal that he is eligible for input tax credit within 30 days.
22)  ITC would not be available to registered person if tax has been paid by supplier after issuing demand order on account of fraud, wilful misstatement or suppression of facts.
23)  The time limit to claim input tax credit is not applicable to re-claim credit reversed earlier due to non-payment of consideration to supplier.

Composition:

24)  Following persons will not be eligible for composition scheme:
a)  Casual taxable person or non-resident taxable person
b)  Person having goods in stock which were purchased in course of inter-State trade or from unregistered person
25)  Rates of Taxes for Composition Levy
a)  Manufacturers, other than manufacturers of such goods as may be notified by the Government – at 1%
b)  Suppliers making supplies referred to in clause (b) of paragraph 6 of Schedule II – at 2%
c)  Any other supplier – at 0.5%

Monday, May 22, 2017

भ्रष्ट देशद्रोहियों से निपटने में मोदी सरकार नाकाम ?

वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के सुपुत्र कार्ति  चिदंबरम लन्दन भाग गए हैं. लन्दन भागने के बाद कार्ति चिदंबरम पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दर्ज भ्रष्टाचार के मामले के आधार पर उनके खिलाफ मनी लांड्रिंग (धनशोधन) का एक मामला दर्ज किया है.

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि जब कोई व्यक्ति पहली बार देश छोड़कर भागा हो. इससे पहले ललित मोदी और विजय माल्या भी लन्दन भाग चुके हैं और इन दोनों को भी सरकार पकड़कर वापस लाने में पूरी तरह नाकाम रही है.

 कार्ति चिदंबरम पर आपराधिक साजिश रचने, धोखाधड़ी, भ्रष्ट या अवैध तरीके से फायदा उठाने, सरकारी अधिकारी को प्रभावित करने तथा आपराधिक आचरण का आरोप लगाया गया है. सवाल यह उठ रहा है कि पी चिदंबरम, कार्ति  चिदंबरम और लल्लू यादव पर जो हालिया छापेमारी हुई है, क्या उसके मद्देनज़र सरकार और सरकारी एजेंसियों को पहले से ही इस बात का अंदेशा नहीं हो जाना चाहिए था कि यह सब लोग या इनमे से कोई भी व्यक्ति देश छोड़कर भाग सकता है. क्या सरकार ललित मोदी और विजय माल्या के भागने से कोई भी सबक लेने को तैयार नहीं है. जब इतने बड़े पैमाने  पर छापामारी किसी व्यक्ति पर की जा रही है तो जाहिर है कि उसकी पूरी और पक्की खबर सरकारी एजेंसियों के पास पहले से रही होगी. अगर खबर पहले से थी, तो इन लोगों के पासपोर्ट जब्त क्यों नहीं किये गए. क्या हमारी सरकारें छापामारी करके इस बात का इंतज़ार करती रहती हैं कि जब  यह व्यक्ति देश छोड़कर भाग जाएगा, फिर उसके खिलाफ मामला दर्ज़ किया जाएगा, ताकि यह भी लगे कि सरकार कार्यवाही कर रही है और अपराधी का भी बाल-बांका न होने पाए.

हालांकि पी चिदंबरम का यह कहना कि उनके बेटे कार्ति चिदंबरम जल्द ही वापस लौटेंगे, लेकिन खुद पी चिदंबरम कब तक भारत में रहेंगे, फिलहाल तो उसी पर संशय बना हुआ है.

सोनिया, राहुल, लल्लू, चिदंबरम,माया, मुलायम  जैसे लोगों ने कोई नया कारनामा नहीं किया है. इनके किये गए पुराने कारनामे ही वक्त-वेवक्त इन्हे भारी मुसीबत में डालने के लिए काफी हैं. लेकिन वह मुसीबत आने से पहले ही होता यह है कि जब तक भी इन जैसे लोगों पर कोई सरकारी एजेंसी अपना शिकंजा कस्ती है, उससे पहले ही यह देश छोड़कर जा चुके होते हैं. यह सब एक सोची समझी साज़िश के तहत नहीं होता है, इस पर यकीन करना मुश्किल लगता है. अगर सरकार की नीयत साफ़ है तो ऐसे सभी लोगों के पासपोर्ट जब्त क्यों नहीं कर लेती, जिन पर इस तरह के संगीन आरोप लगे हुए हैं, ऐसे लोगों को सिर्फ उन्ही देशों कि यात्रा करने की इज़ाज़त मिलनी चाहिए, जहां से इन्हे वापस बुलाना आसान हो.

सरकार का निकम्मापन सिर्फ इसी मामले में दिखाई नहीं दे रहा है. कश्मीर में सरकार जो कुछ भी कर रही है, वह किसी भी समझदार व्यक्ति के गले नहीं उतर रहा है. हुर्रियत के आतंकवादियों को पाकिस्तान सरकार पैसा भेज रही है, उस पैसे से पत्थर बाज़ों को भुगतान किया जा रहा है. हुर्रियत के इन्ही लोगों पर खुद हमारी सरकार भी करोड़ों रुपया पानी की तरह बहा रही है. जिन लोगों के देशद्रोही होने में किसी को भी संदेह नहीं है, उन्हें हमारी सरकार  जनता से वसूले गए टेक्स के पैसों से ऐयाशी करवा रही है. हुर्रियत,मुफ्ती और अब्दुल्ला बाप बेटे कब तक इस देश की जनता के खून पसीने की कमाई पर गुलछर्रे उड़ाते रहेंगे, इसका जबाब भी मोदी सरकार को जल्द से जल्द देना है.










Tuesday, May 16, 2017

विरोधियों की चाल पर भारी पड़ते मोदी के 3 साल !

मोदी सरकार को बने हुये लगभग तीन साल पूरे हो चुके हैं. 2014 मे जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली थी तो विपक्ष को भाजपा की जीत और अपनी हार दोनो ही हज़म नही हुई थी. एक हारे हुये खिलाड़ी की बौखलाहट विपक्ष के हर नेता मे पिछले 3 सालों से साफ साफ देखी जा सकती है. ऐसा कोई षड्यंत्र नही था, जिसे विपक्षी दलों ने पिछले 3 सालों मे अंज़ाम ना दिया हो. यह ठीक है कि मोदी ने शालीनता के चलते इन षड्यंत्रकारियों पर अभी तक कोई ठोस कार्यवाही नही की है, जिसकी देश की जनता को बेताबी से प्रतीक्षा है, लेकिन विपक्षी दलों के यह सभी षड्यंत्रकारी जनता की नजरों मे पूरी तरह बेनकाब हो चुके हैं और पिछले 3 सालों मे इन विपक्षी दलों की जनता ने इस तरह से ठुकाई की है कि संसद से लेकर विभिन्न राज्यों की सत्ता भी इन षड्यंत्रकारियों  के हाथ से आहिस्ता आहिस्ता खिसकती जा रही है. बिहार और दिल्ली की जनता ने इन षड्यंत्रकारियों के हाथ मे सत्ता सौंपकर जो भयंकर भूल की थी, उसका भारी खामियाजा इन दोनो राज्यों की जनता आज तक चुका रही है.

 मोदी सरकार ने सत्ता संभालते ही काले धन पर ठोस कार्यवाही करने के लिये एस आई टी गठित कर दी और इस क्रांतिकारी फैसले के बाद सरकार ने तीन सालों मे भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐसी ऐतिहासिक जंग छेड़ी कि उन सभी लोगों की सिट्टी पिटी गुम हो गयी जिन्होने पूरे देश मे भ्रष्ट तंत्र का जाल बिछाया हुआ था. भ्रष्टाचार के खिलाफ जो जंग मोदी सरकार ने छेड़ी, वह विपक्षी दलों को बिल्कुल भी रास नही आई, यह लोग खुलकर तो बोल नही पा रहे थे, दबी दबी जुबान से अपनी नाराजगी जाहिर करते रहते थे. नोट बंदी तक आते आते इन लोगो के सब्र का बाँध मानो टूट गया और इन्होने दबी जुबान से नही, बल्कि जोर शोर से भ्रष्टाचार के खिलाफ लिये गये इस फैसले का संसद से लेकर सड़क तक विरोध किया. नोट बंदी एक ऐसा फैसला था, जिससे विपक्षी दल और पाकिस्तान एक बराबर और एक साथ परेशान थे. जनता सोशल मीडिया की बदौलत विपक्ष की इस नालायकी को देख भी रही थी और समझ भी रही थी जिसका फैसला उसने अपने चुनाव परिणामों के जरिये सुना भी दिया लेकिन इसे मोदी या भाजपा का सौभाग्य ही कहा जायेगा कि विपक्ष अपनी गलतियों से सबक लेने की बजाये, हर हार के बाद पहले से भी बड़ी गलती करता जा रहा है जिसका सीधा सीधा फायदा मोदी सरकार को मिल रहा है. हाल के चुनावों के बाद अपनी हार के लिये ई वी एम मशीनों को जिम्मेदार बताना विपक्ष को कितना भारी पड़ने वाला है, यह आने वाला वक्त ही बतायेगा.

पिछले तीन सालों में  अख़लाक़, रोहित वेमुला,कन्हैया, जे एन यू, लव जिहाद, गौ रक्षा. नोट बंदी और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मुद्दों पर विपक्ष ने मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की. अपने चमचों से इन लोगों ने अवॉर्ड वापसी की नौटंकी भी करवाई और याकूब मेमन और अफ़ज़ल गुरु जैसे देशद्रोहियों के साथ भी समय समय पर खड़े नज़र आये. यह लोग समझ रहे थे कि इस देश की जनता का शैक्षणिक स्तर वही है जो आज से 40-50 साल पहले हुआ करता था और यह संसद और सड़क पर शोर शराबा करके मोदी सरकार के बढिया कामों पर पर्दा डाल पाने मे सफल हो पायेंगे. लेकिन अपनी तमाम कोशिशो के बाबजूद इन लोगों से यह हो ना सका-अलबत्ता इस कोशिश मे यह लोग अपनी रही सही जमीन और जनाधार भी गंवा बैठे. मोदी सरकार जिस दिशा मे आज से तीन साल पहले चली थी, उसी रास्ते पर सरपट दौड़ी चली जा रही है और अपनी आदत से मजबूर विपक्ष अपनी गलतियों से कोई सबक लिये बिना महाविनाश के रास्ते पर उससे भी ज्यादा तेजी के साथ दौड़ लगा रहा है. जब कभी मोदी सरकार के कार्यकाल का इतिहास लिखा जायेगा, यह बात प्रमुखता से लिखी जायेगी कि विपक्ष ने अपनी लकीर बड़ी करने के बजाये, लगातार मोदी सरकार की लकीर को छोटा करने का प्रयास किया, जिसे देश की समझदार जनता ने हर बार पूरी विनम्रता के साथ अस्वीकार कर दिया.

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