अभी हाल ही मे देश की अलग अलग अदालतों ने जिस तरह से कुछ देशद्रोहियों को जमानत पर रिहा किया है, उसको देखकर देश की जनता के मन मे यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठने लगा है कि क्या देशद्रोह के कानून को और भी अधिक सख्त बनाये जाने की जरूरत है ? ताकि कोई भी देशद्रोही इस तरीके से जमानत पर ना छूटने पाये क्योंकि जमानत से छूटने के बाद यह लोग देश और समाज के लिये एक बहुत बड़ा खतरा बन जाते हैं और अपने देशद्रोही राजनीतिक आकाओं के इशारे पर इनका नरपिशाची उत्पात 24 घंटे जारी रहता है.
जनता से भारी भरकम टैक्स के रूप मे वसूली गयी रकम से सरकारी खर्च पर देशद्रोह की जो पाठशालाएं, देश के अलग अलग हिस्सों मे चल रही हैं-उनके अध्यापक और छात्र दोनो ही देशद्रोह मे लिप्त हैं-जरूरत इस बात की है कि इन लोगों को तुरंत ही हिरासत मे लेकर इनकी गतिविधियों पर रोक लगाई जाये. लेकिन अगर देशद्रोह का कानून ही इतना ढीला है कि हर किसी को तुरंत म्रत्युदंड के बजाये जमानत मिल रही है तो फिर ऐसे कानून का भला किसे भय होगा ?
देशद्रोह के अपराधियों के लिये कानून को ना सिर्फ सख्त बनाये जाने की जरूरत है, बल्कि उसमे एक निश्चित समय सीमा के अंदर म्रत्युदंड का भी प्रावधान होना चाहिये. यह जरूरी है कि देशद्रोह के मामले अधिकतम 3 महीने के अंदर निपटाये जाएं और इन 3 महीनो तक देशद्रोहियों को जमानत देने की बजाये उन्हे जेल के अंदर ही रखकर, उनकी नियमित रूप से इतनी मरम्मत की जाये, ताकि जेल के बाहर बैठे उनके देशद्रोही साथियों और समर्थकों के मन भी खौफ पैदा हो और वे लोग भी देशद्रोह की हरकतों से बाज आयें.
हाल ही मे जमानत पर रिहा किया गया एक देशद्रोही, विपक्षी राजनीतिक दलों मे मौजूद अपने देशद्रोही आकाओं की शह पर देशद्रोह की अन्य पाठशालाओं मे जाकर अन्य छात्रों को भी देशद्रोह के लिये प्रेरित कर रहा है और वोट बैंक के लिये भूखी सरकारें पूरी तरह बेबस होकर, देशद्रोह की इन वारदातों के आगे नतमस्तक हुई जा रही हैं. सरकार इस बात का बहाना बना रही है कि " पुलिस अगर देशद्रोहियों को पकड़ती है तो अदालत उन्हे जमानत पर रिहा कर देती है -तो हम क्या करें ?" सरकार अगर देशद्रोहियों के आगे अपने घुटने टेक देगी तो देश की क्या हालत होगी, इसका अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है.
आज जरूरत इस बात की है कि देश के दुश्मनों के इशारे पर देशद्रोह की वारदातों मे लिप्त सभी देशद्रोहियों को जल्द से जल्द फांसी पर लटकाने के लिये "अध्यादेश" के जरिये एक सख्त कानून लाया जाये. जो भी देशद्रोही इस तरह के अध्यादेश के विरोध मे खड़ा दिखाई दे, उसे भी हिरासत मे लेकर उसकी इस कानून के तहत पहले मरम्मत और फिर म्रत्युदंड की उचित व्यवस्था की जाये. कुछ मीडिया हाउस देश की आज़ादी के बाद से ही देश के दुश्मनो के इशारे पर चल रहे है और उनका एकमात्र उद्देश्य देशद्रोहियों को महिमामंडित करके, उन्हे खबरों मे बनाये रखना होता है-इन मीडिया घरानो की पहचान करके उनके मालिकों और सम्पादकों को भी देशद्रोह के कानून मे लपेटना सरकार की जिम्मेदारी है. जब तक देशद्रोहियों के खिलाफ सरकार इस तरह से ठोस कार्यवाही करने से परहेज करती रहेगी, भारत माता की यही आवाज़ गूँजती रहेगी-"देशद्रोही जिंदा हैं-देश बहुत शर्मिन्दा है."
(Published on 29/3/2016 )
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