Thursday, November 24, 2016

विपक्ष पर लागू नहीं होगी नोटबंदी

नोट बंदी के अचानक आये फैसले से जिन राजनेताओं के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गयी थी और जिनकी रातों की नींद और दिन का चैन गायब हो गया था, उनके लिये एक राहत की खबर आ रही है. संसद के शीतकालीन सत्र मे चल रहे गतिरोध को दूर करने के लिये, सरकार ने यह फैसला लिया है कि पी एम मोदी ने जिस नोट बंदी की घोषणा 8 नवंबर 2016 को की थी, उससे देश के सभी विपक्षी राजनेताओं को मुक्त रखा जायेगा. यह सभी नेता अपनी गतिविधियों को पहले की तरह उसी तरह से जारी रखने के लिये आज़ाद होंगे, जिस तरह से यह लोग पिछले 70 सालों से थे.दुश्मन देश पाकिस्तान से जितने नकली नोट 8 नवंबर 2016 तक देश मे आ चुके है, उनके इस्तेमाल की भी पूरी छूट 30 दिसंबर तक रहेगी, ताकि हमारे माननीय नेताओं को उन्हे चलाने मे किसी तरह की तकलीफ ना हो.

सरकार के इस कदम से जहाँ विपक्षी नेताओं की चाँदी हो जायेगी, वहीं जनता के लिये भी इस फैसले से जबरदस्त राहत मिलने की संभावना है, क्योंकि अब जब विपक्षी नेताओं को अपने पुराने नोट बदलवाने या जमा करवाने के लिये अपने कार्यकर्ताओं को या भाड़े पर लिये गये दिहाड़ी के मजदूरों को बैंक की लाइनो मे खड़ा नही करना पड़ेगा. जब यह लाइने छोटी हो जायेंगी तो जनता अपने पुराने नोटों को सहूलियत के साथ बैंको मे जमा करा सकेगी.

विश्वस्त सूत्रों के हवाले से यह खबर भी आ रही है कि आयकर विभाग के उच्च अधिकारियों को यह स्पष्ट रूप से बता दिया गया है कि इन सभी माननीय विपक्षी नेताओं को नोटिस भेजना तो दूर, उनकी तरफ आंख उठाकर भी ना देखें.

जानकर लोग यह बताते हैं कि सरकार को यह फैसला राष्‍ट्रीय पर्यावरण आयोग की उस फटकार के बाद लेना पड़ा जिसमे आयोग ने नोट बंदी के बाद विपक्षी नेताओं के असहनीय शोर शराबे और चीख पुकार के चलते देश मे अचानक बढे ध्वनि प्रदूषण की ओर सरकार का ध्यान खींचा था. राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी सरकार को जमकर फटकार लगाई थी कि सरकार इस बात का जबाब जल्द से जल्द दे कि जो लोग सभी तरह के ऐशो आराम से पिछले 70 सालों से रह रहे थे, वे लोग आज सरकार की गलत नीतियों के चलते, दाने दाने के लिये मोहताज़ क्यों हो गये हैं.

लम्बी लाइनो की वजह से देश मे दंगे होने की संभावना के चलते भी सरकार पर इन लम्बी लाइनो को जल्द से जल्द छोटा करने का दबाब था. सरकार के इस कदम को सभी विपक्षी नेता किसी भी सरकार द्वारा लिया गया स्वतंत्र भारत का सबसे अधिक "क्रांतिकारी" फैसला बता रहे हैं.


(इस काल्पनिक व्यंग्य रचना का किसी वास्तविक घटना,व्यक्ति, संस्था या संगठन से कोई लेना देना नही है.)

Sunday, November 20, 2016

नोटबंदी पर सुप्रीमकोर्ट की दंगों की भविष्यवाणी

नोट बंदी के खिलाफ डाली गयी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट खुद ही रद्द कर चुका है. सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले के मद्दे नज़र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से यह गुहार लगाई थी कि देश की अन्य अदालतों मे इस तरह् की याचिकाएं अभी भी डाली जा रही हैं और उन पर भी रोक लगाई जानी चाहिये. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की यह याचिका यह कहते हुये खारिज़ कर दी कि लोगों को नोट बंदी के चलते भारी परेशानी हो रही है और उन्हे अदालतों मे अपनी याचिका डालने के अधिकार से वंचित नही किया जा सकता है. यहाँ तक तो बात हज़म होने लायक लग रही थी. लेकिन अपनी इस दलील मे सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी टिप्पणी भी जोड़ दी जिसके अनुसार बैंकों के बाहर लगी लम्बी लम्बी लाइनों की वजह से देश मे दंगे भी हो सकते हैं. बैंकों मे लगी लम्बी लाइनो की वजह से दंगे होने की भविष्यवाणी माननीय सुप्रीम कोर्ट ने किस आधार पर की, इसके बारे मे तो मीडिया मे कोई खबर नही आई है, लेकिन सोशल मीडिया मे सुप्रीम कोर्ट की इस अनावश्यक भविष्यवाणी को लेकर काफी चर्चा हो रही है. लोगों का यह मानना है कि सर्वोच्च अदालत का काम फैसला करना है और भविष्यवाणी करने का काम हमे भविष्यवक्ताओं और ज्योतिषियों के लिये ही छोड़ देना चाहिये.

यहाँ यह बात भी गौर करने लायक है कि हमारे देश मे आज से पहले कभी भी लम्बी लाइनो की वजह से दंगे नही हुये है. लोग जियो के सिम लेने के लिये, शराब खरीदने के लिये और राशन की लाइनो मे लगने के आदी हो चुके हैं और लम्बी लाइने कभी भी इस देश मे दंगों की वजह नही बनीं हैं. कश्मीर मे पिछले काफी समय से दंगों से भी बदतर हालात बने हुये थे. जब से नोटबंदी का फैसला आया है, कश्मीर के हालात एकदम सामान्य हो गये है. इसका सीधा सा मतलब यह है कि जितने भी दंगे आज तक देश मे हुये हैं, उनके लिये किसी भी जाति, धर्म या समुदाय से ताल्लुक रखने वाली जनता कभी भी जिम्मेदार नही थी. दंगे हमेशा राजनीति से प्रेरित होते हैं और उन्हे प्रायोजित करने के लिये काला धन और जाली धन की बहुत अधिक जरूरत होती है. अगर इस कसौटी पर आज के हालातों को परखा जाये तो देश मे दंगा होने की कोई सूरत दूर दूर तक नज़र नही आती है. आज ना किसी राजनीतिक दल के पास काला धन है और ना ही जाली धन.

सोशल मीडिया पर तो देश की अदालतों मे लम्बित मामलों की जो लाइन लगी हुई है, उसके आकडे भी आ रहे हैं, जो बेहद चौंकाने वाले हैं. देश की निचली अदालतों मे 2,30,79,723 मामले लंबित पड़े हुये हैं, देश के विभिन्न हाइ कोर्ट मे 38,91,076 मामले लम्बित पड़े हुये हैं और खुद सुप्रीम कोर्ट मे 61,436 मामले ऐसे हैं, जिन पर अभी फैसला आना बाकी है. कुल मिलाकर देखा जाये तो 2,70,00,000 मामलों की विभिन्न अदालतों मे लाइन लगी हुई है और आज तक इतनी लम्बी लाइन लगने के बाबजूद भी इन लाइनो की वजह से देश मे कोई दंगा नही हुआ है.

अच्छा तो यह होता अगर सुप्रीम कोर्ट लम्बी लाइनो के लिये जिम्मेदार भ्रष्ट लोगों के खिलाफ सरकार को कडी कार्यवाही का आदेश देता क्योंकि यह बात धीरे धीरे बिल्कुल साफ होती जा रही है कि लाइनो मे लगे हुये लगभग 90 प्रतिशत लोग भ्रष्ट लोगों द्वारा भाड़े पर लिये हुये लोग हैं जो बाकी के 10 प्रतिशत लोगों के लिये परेशानी का कारण बन रहे हैं. पहले इन लोगों ने अपने काले धन को बदलवाने के लिये अपने कार्यकर्ताओं, दिहाड़ी के मजदूरों और अपने कर्मचारियों को 4000 बदलने की लाइन मे लगाकर लाइनो को लम्बा कर दिया और जब सरकार ने कुछ सख्ती दिखाई तो यह लोग आम जनता के जन धन खातों मे 250000 रुपये यह कहकर डलवा रहे हैं कि इन्हे 200000 रुपये निकालकर वह व्यक्ति एक निश्चित समय सीमा मे वापस कर दे. 50000 रुपये के लालच मे इन सभी लोगों के सामने यह बड़ी भारी चुनौती है कि उन्हे ATM  से या बैंक से निकालकर 200000 रुपये एक निश्चित समय सीमा मे वापस भी करने हैं. बैंकों मे लम्बी होती लाइनो का यही मुख्य कारण भी है. 

Thursday, November 17, 2016

देश आपका है- फैसला आपको करना है !

देश मे एक के बाद एक, लगातार दो अलग अलग "सर्जिकल स्ट्राइक" हुई है. दोनो बार की कार्यवाही मे समानता यही है कि दोनो ही बार इनकी घोषणा अचानक की गयी और दोनो ही बार देश के विपक्षी नेता या कहिये कि गैर-भाजपाई नेताओं की समझ मे यह नही आया कि तत्कालिक रूप से इन "सर्जिकल स्ट्राइक्स" पर क्या प्रतिक्रिया दी जाये.

जब जब इन "सर्जिकल स्ट्राइक्स" की सूचना सेना या सरकार द्वारा मुहैया कराई गयी, देश के सम्पूर्ण विपक्ष की हालत ऐसी हो गयी जैसे काटो तो खून नही. लकवा मारा हुआ विपक्ष जब कुछ सोचने समझने लायक होता है तो फिर कुछ काल्पनिक कहानी गढनी शुरु करता है ताकि वर्तमान सरकार को उसके ऐतिहासिक और क्रांतिकारी फैसले का श्रेय ना मिल पाये. विपक्ष इस गलतफ़हमी मे आज तक है कि देश मे सोशल मीडिया का कोई वजूद नही है और जो कुछ भी "दुष्प्रचार" यह विपक्षी नेता सरकार के खिलाफ करेंगे, उसे जनता सच मान लेगी और यह अपने दुष्प्रचार मे उसी तरह कामयाब होते रहेंगे जैसे कि पिछले 60-70 सालों से हो रहे थे.

पहली सर्जिकल स्ट्राइक तो विपक्ष के नेताओं से हज़म ही नही हुई और उन्होने उसे फर्ज़ी करार दे दिया-पाकिस्तान भी यही चाहता था. इन लोगों का यह कहना था कि या तो "सर्जिकल स्ट्राइक" का वीडियो जारी किया जाये (ताकि पाकिस्तान उस वीडियो को देखकर आगे के लिये सतर्क हो जाये ) और अगर सरकार यह वीडियो नही दिखाती है तो यह "सर्जिकल स्ट्राइक" फर्ज़ी मानी जायेगी. यह फैसला जनता करे कि विपक्षी नेता जो कुछ भी बोल रहे थे, उससे ज्यादा फायदा पाकिस्तान को हो रहा था या भारत को ?

अपनी पहली सर्जिकल स्ट्राइक को ही आगे बढ़ाते हुये मोदी सरकार ने 8 नवंबर 2016 की रात को "काले धन पर भी सर्जिकल स्ट्राइक" कर डाली. यह बात सारी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान एक आतंकवादी देश है और अपने आतंकवाद को पालने पोषने के लिये वह भारत के 500-1000 के नकली नोट भारी मात्रा मे छाप छाप कर, अपने आतंकवादी मनसूबों को अंज़ाम देता रहा है. आज जो लोग विपक्ष मे हैं, वे लोग पहले सत्ता मे थे और उन लोगों ने पाकिस्तान की इस बेज़ा हरकत को रोकने के लिये अगर कोई उपाय किये होते तो हज़ारों सैनिकों और देशवासियों की जान बचाई जा सकती थी. लेकिन पिछली "सेक्युलर" सरकारों का पाकिस्तान-प्रेम, देश-प्रेम पर हमेशा ही भारी पड़ता रहा. इसीलिये जब मोदी सरकार ने अचानक ही पाकिस्तानी-आतंकवाद का "सोर्स ऑफ फंडिंग" ही बंद कर दिया तो हमारे विपक्षी नेताओं को यह बात बहुत नागवार गुज़री.

लेकिन हमारे विपक्षी नेताओं मे थोड़ी बहुत शर्म अभी भी बाकी है या वे लोग जनता को आज भी सन 1950-60 के दशक की जनता समझ रहे हैं, इसलिये उन्होने यह बहाना बनाना शुरु कर दिया कि हम लोग "काले धन पर की गयी सर्जिकल स्ट्राइक" का पुरजोर विरोध इसलिये कर रहे हैं, क्योंकि जनता को उससे बड़ी तकलीफ हो रही है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलावा किसी और विपक्षी नेता ने यह बताने की जरूरत नही समझी, कि जिस जनता के दर्द की चिंता इन लोगों को पिछले 60-70 सालों मे नही हुई, अचानक इनका दिल इतना कैसे पसीज़ गया और यह दयावान होकर "जनता के हमदर्द" बनने की नौटंकी कब से करने लगे ?

गौर करने लायक बात यह है कि दीपावली से पहले लगभग हर घर मे रँगाई-पुताई का काम होता है और इसीके बहाने साफ-सफाई भी हो जाती है. जितने दिन तक यह काम घर मे चलता है, घर की सारी व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है, लेकिन उससे हम लोग हाहाकार मचाना शुरु नही कर देते हैं. ठीक उसी तरह से जब देशहित मे एक ऐसा फैसला लिया गया है, जिससे ना सिर्फ पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का, बल्कि भ्रष्टाचार के लिये जिम्मेदार काले धन का भी सफाया होने वाला है, तो हमारे कुछ मुट्ठी भर विपक्षी नेताओं के पेट मे दर्द क्यों हो रहा है ? कोई विपक्षी नेता अपने पिछले कमाये हुये काले  धन को सफेद करने के लिये बैंक की लाइन मे लगने की नौटंकी कर रहा है और कोई विपक्षी नेता पाकिस्तान से आये नकली नोटों को ठिकाने लगाने के लिये आज़ादपुर सब्जी मंडी जाकर बैठ गया है.

देश इस समय एक ऐसे निर्णायक  मोड पर खड़ा है, जहाँ एक ओर भ्रष्ट लोग पूरी तरह बेनकाब होकर जनता के सामने खड़े हुये हैं-वहीं दूसरी ओर ईंमानदार लोग अपने फैसले पर अडिग और अटल खड़े हुये है और उनके फैसले को सुप्रीम कोर्ट के साथ साथ देश के राष्ट्रपति और 125 करोड़ देशवासियों का भी पूरा समर्थन प्राप्त है.  भ्रष्ट लोगों की संख्या मुट्ठी भर है और वे लोग अपनी पूरी बेशर्मी के साथ इस ऐतिहासिक फैसले का पुरजोर विरोध  संसद के बाहर और संसद के अंदर भी कर रहे हैं.

लेकिन  देश इन नेताओं का नही है !
देश आपका है !!
फैसला आपको करना है !!!

Sunday, November 13, 2016

लगा दिया मोदी ने उनको आज बैंक की लाइन मे

काले धन पर पड़ी चोट तो भ्रष्ट दरिंदे चिल्लाये
जनता का ये करें बहाना, चोट को अपनी सहलाएं

जनता का कर रहे बहाना, परअपनी पीड़ा भारी है
जनता को तो खूब ठग चुके,अब खुद इनकी बारी है

लूट रहे थे 60 साल से, देश को दोनो हाथों से
मोदी ने औकात दिखा दी, इनको अपनी बातों से.

नकली नोटों के सौदागर करते इनकी रखवाली
उनका धंधा बंद हुआ तो ये देते मोदी को गाली

"अन्ना का चेला" बन बैठा, काले धन का सौदागर
इसकी काली करतूतों पर मोदी की है कडी नज़र

धनकुबेर लगते थे जिनके घर पर आकर लाइन मे
लगा दिया मोदी ने उनको आज बैंक की लाइन मे

-राजीव गुप्ता
(C) सर्वाधिकार सुरक्षित

Thursday, November 10, 2016

4000 के नोट बदलने पर तुरंत रोक लगाये सरकार

8 नवंबर की रात को मोदी सरकार ने काले धन को समाप्त करने का जो ऐतिहासिक और क्रांतिकारी फैसला लिया है, उसके तहत कोई भी सड़क चलता व्यक्ति, जिसके पास बैंक खाता नही है, अपना कोई भी पहचान पत्र दिखाकर देश के किसी भी बैंक की किसी भी शाखा से जाकर 4000 रुपये तक के पुराने नोटों के बदले नये नोट ले सकता है. सरकार ने यह नियम इसलिये बनाया था ताकि जिन लोगों ने अभी तक बैंक मे खाते नही खुलवाये हैं, उन्हे इस योजना के चलते किसी परेशानी का सामना ना करना पड़े, लेकिन बड़े बड़े राजनेताओं, व्यापारियों और उद्योगपतियों ने आम आदमी को राहत पहुंचाने वाली इस योजना का भी जमकर दुरुपयोग करना शुरु कर दिया है और इसी दुरुपयोग के चलते बैंकों के बाहर लम्बी लम्बी लाइने लगी हुई हैं.

दरअसल इस योजना का दुरुपयोग करते हुये भ्रष्ट नेता अपने कार्यकर्ताओं को रुपये बदलने का फॉर्म और पहचान पत्र की फोटोकॉपी के सैंकड़ों सेट देकर अलग अलग बैंकों की अलग अलग शाखाओं मे भेज रहे हैं. उदाहरण के लिये, अगर कोई भी व्यक्ति एक दिन मे दस बैंक शाखाओं से भी रुपये बदलने मे कामयाब हो जाता है, तो वह दिन भर मे 40000 रुपये आसानी से बदलवा सकता है. हर राजनीतिक पार्टी और नेता के पास कार्यकर्ताओं की जो फ़ौज़ है, अगर सभी लोग इसी काम पर लग जाएं तो 30 दिसंबर 2016 तक रोजाना 40000 के हिसाब से भी यह लोग करोड़ों रुपये बदलने मे कामयाब हो सकेंगे.

मजे की बात यह है कि जिन लोगों का बैंक मे खाता है, वे तो पूरे सप्ताह मे सिर्फ 20000 रुपये ही निकाल पायेंगे लेकिन जिनका खाता नही है, उनके लिये ऐसी कोई सीमा नही है और वे लोग जितनी मर्ज़ी बैंक शाखाओं मे जाकर 4000 रुपये के हिसाब से जितना चाहे पुराना धन नये धन से बदल सकते हैं. भ्रष्ट राजनेताओं की तर्ज़ पर भ्रष्ट सरकारी अधिकारी और व्यापारी भी इसी रास्ते को अपना रहे हैं. बहुत से व्यवसायिक प्रतिष्ठानो ने तो अपने सभी कर्मचारियों को सिर्फ इसी काम पर लगाया हुआ है और जो दिन भर मे सबसे अधिक रुपये बदलवाकर ला रहा है, उसे कुछ इनाम भी दिया जा रहा है.

इससे पहले कि जनता को दी गयी इस रियायत का और अधिक दुरुपयोग हो, इस योजना को तुरंत प्रभाव से बंद करना चाहिये ताकि बैंकों के आगे लगी हुई लम्बी लाइने खत्म हों और बैंक अपना समय असली खाताधारकों को दे सकें. वैसे भी जिन सड़क चलते लोगों ने (जिनके पास बैंक खाता नही है), अपने नोट बदलवाने थे, अब तक बदलवा ही लिये होंगे. मज़े की बात यह है कि बैंकों के पास यह चेक करने का भी कोई तरीका नही है कि जो लोग लाइन मे लगकर 4000 रुपये यह कहकर बदलवा रहे हैं कि उनके पास कोई बैंक खाता नही है, वे सच बोल रहे हैं या झूठ. आज सुबह कांग्रेस नेता राहुल गाँधी भी ४००० के नोट बदलवाने के लिए एक बैंक की लाइन में खड़े दिखे. क्या राहुल गाँधी का बैंक खाता  नहीं है ? अगर राहुल गाँधी बैंक की लाइन में खड़े होकर बैंक को चकमा देने की कोशिश कर सकते हैं तो कोई और क्यों नहीं कर सकता?

Tuesday, November 8, 2016

काले धन पर पी एम मोदी की "सर्जिकल स्ट्राइक"

500 और 1000 के नोटों का विमुद्रीकरण करते हुये पी एम मोदी ने अपनी सरकार का अब तक का सबसे अधिक साहसी कदम उठाते हुये  काले धन के खिलाफ एक ऐसा प्रहार किया है, जिसके वार से जहाँ एक ओर ईमानदारी से पैसा कमाने वाली जनता खुशी से फूली नही समा रही है,वहीं उन लोगों के चेहरे पर मातम छाया हुआ है, जिन्होने जनता को लूट लूट कर काले धन को अपनी तिजोरियों मे इकट्ठा किया हुआ था. काले धन के खिलाफ छेड़े गये इस युद्ध की मार किस पर सबसे ज्यादा पड़ी है, आइए उन लोगों के बारे मे विचार करते हैं :

1. पाकिस्तान की सरकार खुद 500 रुपये और 1000 रुपये के नकली नोट छाप-छापकर उन्हे आतंकवादियों के मार्फत हमारे देश मे भेज रही थी और पाकिस्तान का सारा का सारा आतंकवादी तामझाम इन्ही नकली नोटों के गोरखधंदे पर चल रहा था. पाकिस्तान सरकार को और उसकी आतंकवादी गतिविधियों को इससे बहुत बड़ा झटका लगा है.

2. जिन राजनेताओं ने पिछले 70 सालों मे जनता को लूट लूटकर प्रचुर मात्रा मे काला धन इकट्ठा किया हुआ था, उनकी हालत सिर्फ देखने लायक है- जिन लोगों ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की "सर्जिकल स्ट्राइक" पर भी सवाल उठा दिये थे, फिलहाल तो वे लोग भी इस बार् की "सर्जिकल स्ट्राइक" पर चुप्पी साधे हुये है और अभी तक कोई बहुत बड़ा हो-हल्ला नही किया है.

3. सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों ने भी पिछले 60-70 सालों मे काफी मात्रा मे जनता को प्रताडित कर करके रिश्वत के माध्यम से काला धन इकट्ठा किया हुआ था, यह सब लोग भी रातों-रात सड़क पर आ गये हैं और अपने दुष्कर्मों का जीते जी फल भुगतने के लिये तैयार हो रहे हैं.

4. काले धन पर की गयी सर्जिकल स्ट्राइक की मार उन व्यापारियों पर भी पड़ी है, जिनका धंधा ही काले धन पर टिका हुआ था. मुम्बई स्टॉक एक्सचेंज का संवेदी सूचकांक आज लगभग 1600 अंक नीचे खुला, यह इस बात का जीता जागता प्रमाण है कि काले धन का हमारी अर्थव्यवस्था पर कितना गहरा प्रभाव है. जिन व्यापारियों और उद्योगपतियों ने काले धन को इकट्ठा किया हुआ था, निश्चित रूप से , उन सब के लिये भी यह संकट की घड़ी है.

आम आदमी और मध्यम वर्ग जो अब तक काले धन की कमाई करने वालों से त्रस्त रहता था, उसे सबसे अधिक खुशी हुई है क्योंकि आज जाकर उसे यह मालूम पड़ा है कि ईमानदारी से धन कमाने का सुख क्या होता है. ऐसा भी नही है कि यह सब कुछ अचानक हो गया है. जब 30 सितंबर 2016 को काले धन को घोषित करने की स्कीम बंद हुई थी, उसके तुरंत बाद सरकार की तरफ से यह वक्तव्य आया था कि जिन लोगों ने अपना काला धन इस स्कीम मे भी घोषित नही किया है, आने वाले दिनो मे उन्हे चैन से सोने नही दिया जायेगा. कल 8 नवंबर 2016 की रात तो काफी ऐसे लोग नही सो पाये होंगे. आगे और कितनी रातें इनकी बिना सोये कटेंगी, यह देखने वाली बात है.

क्या मोदी टिक पायेंगे केजरीवाल के सामने ?

भ्रष्टाचार को खत्म करने की नीयत से राजनीति मे आये और दुनिया के सबसे भ्रष्ट राजनीतिक दल के साथ दिल्ली मे गठबंधन सरकार चला रहे केजरीवाल जी को लोकसभा चुनावों मे जाने की इस कदर हड़बड़ी मची हुई है कि वह सही और गलत का फर्क ही नही कर पा रहे हैं. अब तो उनकी चौकड़ी इतनी शातिर हो चुकी है कि उन्होने जनता से एस एम एस करके राय लेना भी बंद कर दिया है.

आम आदमी पार्टी का आत्मविश्वाश केजरीवाल जी को प्रधान मंत्री बनाने को लेकर किस हद तक बढ़ा हुआ है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि यह पार्टी दूसरी राजनीतिक पार्टियों से अपने आपको कई मायनों मे अलग दिखाने की नाकाम कोशिश कर रही है. दिल्ली विधान सभा के चुनाव नतीजे 8 दिसंबर को घोषित हुये थे जिसमे 28 विधायक आम आदमी पार्टी के भी चुने गये थे-दल बदल कानून के हिसाब से अगर 28 के एक तिहाई विधायक यानी कि 10 विधायक अपने आप को अलग करके किसी दूसरी पार्टी को समर्थन दे देते है तो उनकी विधान सभा की सदस्यता भी बनी रहेगी और आम आदमी पार्टी का कानूनी तरीके से विभाजन भी हो जायेगा.

आम आदमी पार्टी के नेताओं के पस कुछ ऐसी दिव्य शक्ति भी मौजूद है जो उन्हे 8 दिसंबर के पहले ही इस बात का आभास करा देती है कि 8 दिसंबर को नतीजे आयेंगे उसमे उनकी पार्टी को कम ना ज्यादा बिल्कुल 28 सीटें मिलेंगी- इसीलिये उनके विधायक मदन लाल को 7 दिसंबर की रात को ही "विदेश मे बैठे भाजपा के शीर्ष नेताओं"का फोन भी आ जाता है कि मदन लाल जी आप खुद को मिलाकर 10 विधायक लेकर अपनी पार्टी से अलग हो जाओ और भाजपा की सरकार बनबा डालो.

भाजपा मे हालांकि राजनीति के जानकiर तो कई नेता हैं लेकिन इस तरह की दिव्य शक्ति( जो आने वाले चुनाव नतीजों का एकदम सही पूर्वाभास करा सके) से युक्त तो एक भी नेता नही है. मोदी जी तो हर्गिज़ भी यह काम नही कर पायेंगे- लिहाज़ा जहां तक प्रधान मंत्री की कुर्सी की दौड़ का सवाल है, वह यहाँ केजरीवाल जी से पिछड़ते दिखाई दे रहे हैं.

चलिये अब दिव्य शक्तियों के अलावा और योग्यताओं की भी बात कर लेते हैं- हो सकता है यहाँ मोदी जी हाथ मार ले जाएं. लेकिन हमे यहाँ भी निराशा ही हाथ लगी है- दरअसल हमारे केजरीवाल जी तो भारतीय राजस्व सेवा से आये अधिकारी हैं और मोदी जी का बॅकग्राउंड चाय बेचने का रहा है- तो मोदी जी यहाँ भी मात् खा गये. आखिर मोदी जी क्या सोचकर पी एम की दौड़ मे शामिल हुये है ? उन्हे शायद केजरीवाल जी और उनकी पार्टी की दिव्य शक्तियों का अंदाज़ा नही है. क्या खाकर मोदी जी केजरीवाल जी के आगे टिक पायेंगे ?
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rajeevg@hotmail.com
Published on 6/2/2014

बहुत मंहगी पड़ेगी ये "मोदी ब्रांड" चाय !

जी हाँ यहाँ किसी पांच सितारा होटल मे 100-200 रुपये मे एक कप मिलने वाली घटिया चाय की बात नही हो रही है. यहाँ उस चाय की बात हो रही है जिसके सपा नेता नरेश अगरवाल से लेकर कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर तक दीवाने हैं और उस चाय का एक घूँट पीने के लिये ये दोनो नेता और इनकी पार्टियाँ युगों युगों से तरस रही हैं.

कांग्रेस के प्रमुख सहयोगी राजनीतिक दल और उत्तर प्रदेश मे गुंडा राज की स्थापना करने वाली पार्टी सपा के नेता जब यह बोले कि मोदी तो चiय बेचने वाले हैं और वह क्या खाकर पी एम बनेंगे, तो किसी को बहुत ज्यादा हैरानी नही हुई- दरअसल उत्तर प्रदेश को पूरी तरह से जंगल राज मे तब्दील कर चुके सपा के नेताजी की योजना यह थी कि धीरे धीरे इस गुंडा राज और जंगल राज की स्थापना  प़ूरे   भारत मे की जाये क्योंकि सभी देशवासियों का यह पूरा अधिकार है कि उन्हे भी इस अभूतपूर्व गुन्डाराज और जंगलराज का आनन्द मिले-यह आनन्द सिर्फ उत्तर प्रदेश के लोगों की बपौती थोड़े ही है-लेकिन सपा के मनसूबों पर तब पानी फिरने लगा जब सब तरफ से यह चुनाव सर्वे आने लगे कि मोदी जी उत्तर प्रदेश मे भी जंगल और गुंडा राज को समाप्त करने का मन बना चुके है और अभूतपूर्व बहुमत के साथ जीत हासिल करने वाले हैं.

नरेश अगरवाल ने ऐसे तो खिसियाहट मे मोदी को लताड़ने की नीयत से यह बयानबाज़ी की थी लेकिन जब कांग्रेस पार्टी मे बैठे उनके आकाओं को लगा कि मोदी पर उनकी इस लानत मलानत का कोई असर नही पड रहा है और उल्टा मोदी तो इस बयानबाज़ी के बाद और भी अधिक आक्रामक होकर उत्तर प्रदेश की तरफ अपना विजय रथ लेकर बढते जा रहे हैं तो कांग्रेस ने इस काम का जिम्मा अपने ऊपर ही ले लिया और अपने एक वरिष्ठ नेता श्री मणिशंकर अय्यर को इस काम को अंज़ाम देने की जिम्मेदारी सौंपी.

अय्यर भी कोई कच्चे खिलाड़ी तो हैं नही जो इस बात को मामूली तरीके से अंज़ाम देते-उन्होने उस समय बयानबाज़ी की जब उनकी पार्टी का अखिल भारतीय स्तर का जलसा चल रहा था और सारे मीडिया कैमरों की निगाहे उनकी तरफ ही थीं- अय्यर साहब ने आव देखा ना ताव-कह दिया  कि मोदी अगर चाहें तो हम उनके लिये चाय बांटने की व्यवस्था यहाँ पर करवा सकते हैं-दरअसल अय्यर साहब वह काम करना  चाह रहे थे जो उनके चहेते नरेश अग्रवाल नही कर सके थे-यानी कि अपनी खिसियाहट को छिपाने के लिये मोदी को लताड़ने का काम.

अय्यर साहब को लगा होगा कि उनके इस साहसिक कार्य के लिये उनकी पार्टी का आलाकमान बहुत खुश होगा और क्या पता जैसे मनमोहन सिंह की लॉटरी निकल आई, कभी उनके भी अच्छे दिन आ जाएं.

लेकिन हाय इन नेताओं का दुर्भाग्य, मोदी जी ने पलटकर जब इन लोगों को चाय पिलाने की ठान ली और जगह जगह् चाय बांटने और बंटवाने का काम शुरु करवा दिया तो इन लोगो को यकायक लगा कि यह चाय तो इन नेताओ और उनकी पार्टियों के लिये बहुत मंहगी पड़ने वाली है. खबर यह भी है कि जितने भी मोदी विरोधी गद्दार हैं, उन लोगों ने अपने लिये चाय बेचने के लिये खोके वगैरा की जगह का बन्दोबस्त करना शुरु कर दिया है ताकि 2014 के चुनावों के बाद कम से कम चाय बेचकर तो अपना बाकी का जीवन यापन कर सकें.
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rajeevg@hotmail.com
Published on 10/2/2014

तीसरे मोर्चे की अंतिम यात्रा निकलेगी इस बार ?

हिन्दी मे एक बड़ी ही मशहूर कहावत है-धोबी का कुत्ता, न घर का ना घाट का ! हमारे बड़े बुजुर्गों ने पता नही क्या सोचकर यह कहावत बनाई होगी लेकिन उन्हे क्या मालूम था कि उनकी बनाई हुई यह कहावत आज की तथाकथित राजनीति मे समय समय पर बनने वाले "थर्ड फ्रंट " यानि कि तीसरे मोर्चे पर बखूबी लागू हो जायेगी !

पहले तो यह समझने की कोशिश करते हैं कि यह तीसरा मोर्चा है किस चिड़िया का नाम ? दरअसल कुछ ऐसे नेता और राजनीतिक दल हमारी व्यवस्था मे अपने आप पैदा हो गये हैं जिनका मुख्य कार्य ही देश, समाज और सरकार के अंदर "अव्यवस्था" पैदा करना है ! यह वे लोग हैं जो गलती से किसी तरह जीत कर विधान सभा या संसद मे पहुंच तो जाते हैं लेकिन उसके बाद क्या करें, उसका पता ना तो इन्हे होता है और ना ही उस जनता को जो इनको चुनकर भेजती है.

ये वह राजनीतिक दल या नेता होते हैं जो चुनावों से पहले तो जनता से यही कहते रहते हैं कि हम किसी भी दूसरे दल के साथ किसी भी तरह का कोई गठबंधन नही करेंगे और सभी 545 सीटों पर चुनाव लडकर किसी ना किसी तरह प्रधान मंत्री बन जायेंगे, लेकिन जैसे जैसे चुनावों का समय नज़दीक आता है और इन्हे कोई राष्‍ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी अपने मुंह नही लगाती है तो यह अपनी ही खिचडी पकानी शुरु कर देते है और उस खिचडी को यह लोग कभी कभी खुद और कभी कभी मीडिया वाले बड़े चाव से " तीसरा मोर्चा " या फिर अंग्रेज़ी मे थर्ड फ्रंट कहकर संबोधित करते हैं.

चुनाव जीतने के शुरु के चार सालों मे तो यह लोग किसी ऐसी राजनीतिक पार्टी को अपना शिकार बनाने की कोशिश करते है जिसके पास सरकार बनाने के लिये कुछ सदस्यों की सँख्या कम पड रही होती है और अपना "समर्थन" देकर उस पार्टी की सरकार बनबा कर यह अपने आपको धन्य महसूस करते हैं-बदले मे इन्हे क्या मिलता है ? इन्हे एक तो "कांग्रेस बचाओ इन्वेस्टिगेशन" यानि की सी बी आई की तरफ से अभयदान की प्राप्ति हो जाती है और इनके एक आध नेता को भ्रष्टाचार करने के लाइसेंस के साथ मंत्री बना दिया जाता है-इस तरीके से इन लोगों की दुकानदारी बिना किसी खास परेशानी के पिछले कई दशकों से चल रही है

पाँचवे साल मे यह लोग अगले लोकसभा चुनावो की रणनीति बनाने मे लग जाते है और जिस सरकार के साथ चार साल गुजार दिये उसे भी मौका देखकर कोसना शुरु कर देते है.

तीसरे मोर्चे के नाम पर जो नरपिशाची ताकतें समय समय पर इकट्ठा होने की नौटंकी करती हैं, उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि वे उत्तर प्रदेश,बिहार और पश्चिम बंगाल सहित देश के कई राज्यों मे गुन्डाराज और जंगल राज्य की स्थापना करने मे कामयाब रही हैं.

सवाल यह है कि इस बार यानि कि 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले ये लोग काफी घबराये और बौखलाये हुये क्यों हैं ? उसका प्रमुख कारण यही समझ मे आ रहा है कि इस बार इनको लग रहा है कि मोदी के नेत्रत्व मे भाजपा की सरकार बननी लगभग तय है और क्योंकि वह सरकार पूर्ण बहुमत के साथ बनेगी तो इन लोगों का कोई "नामलेवा" और "पानीदेवा" नही होगा. साथ ही इन लोगों ने जो दुष्कर्म आज तक किये है उनके चलते पहले तो जनता इनकी जमानत जब्त कराकर दंडित करेगी- इस दंड को तो ये बेचारे किसी तरह झेल भी जाते लेकिन दुष्कर्मों का कानूनी दंड जो मोदी के द्वारा इन लोगों को दिया जायेगा, बह इन लोगों को दिन रात आतंकित किये जा रहा है !

इस तीसरे मोर्चे के नेताओं की बौखलाहट का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पहले तो यह लोग अपने राज्य मे साम्प्रदायिक दंगों का आयोजन करते है और जब लगता है कि पोल खुल खुलकर जनता के सामने आ रही है तो अपना गम गलत करने के लिये नाच गाने का रंगरेलियों युक्त कार्यक्रम का भी फटाफट आयोजित कर डालते हैं.
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rajeevg@hotmail.com
 Published on 14/2/2014

केजरीवाल को पी एम बनने से कोई नही रोक सकता !

दिल्ली के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के  अभूतपूर्व  नेता अरविन्द केजरीवाल जी को पिछले कुछ दिनो से इस बात का खूब शौक चर्राया हुआ है कि वह बिना मांगे ही लोगों को ईमानदारी और बेईमानी का प्रमाण पत्र दे देकर खुद को धन्य समझ रहे हैं-मीडिया ने भी एकता कपूर के सास बहू के धारावाहिकों को छोड़कर इस चटपटी नौटंकी पर अपना सारा ध्यान केन्द्रित करने मे ही अपनी भलाई समझ ली है.

खबर तो यह भी आ रही है की खुद एकता कपूर ने अपनी बदहाली से परेशान होकर यह फैसला किया है कि अब वह सिर्फ एक ही सीरियल पर अपना ध्यान केन्द्रित करके मनचाहा पैसा कमाएँगी. सीरियल का नाम होगा-"केजरीवाल को पी एम बनने से कोई नही रोक सकता." यह धारावाहिक लोगों को तब तक झेलना पड़ेगा जब तक केजरीवाल जी का पी एम के रूप मे राज्याभिषेक नही हो जाता. इशारा सॉफ है कि या तो केजरीवाल को पी एम बनाओ या फिर 24 घंटे हर चैनल पर यह सीरियल देखो-इस सीरियल को बनाने मे कलाकारों का खर्चा कोई नही आयेगा-यह भी एक बहुत बड़ी बचत होगी,क्योंकि कलाकारों की तो केजरीवाल साहब के पास कोई कमी नही है. सर्वगुण संपन्न और अनोखी प्रतिभा से युक्त ये कलाकार  चारों पहर इतनी रोचक बयानबाजी करते रहते है कि कैमरे उनका पीछा ही नही छोड़ते.

 केजरीवाल जी भी अपनी तरफ से हालांकि पूरी कोशिश कर रहे हैं कि सास बहू के सीरियल बनाने वालों को उनकी वज़ह से जो नुकसान हुआ है, उसकी किसी तरह से भरपाई अपनी जान देकर भी करवा दें-एक निष्ठावान और ईमानदार नेता की यही तो सबसे बड़ी पहचान है कि वह किसी का नुकसान होते नही देख सकता. अब देखो दिल्ली के ऑटो वालों को पुलिस परेशान करके उन्हे नुकसान पहुँचा रही थी तो केजरीवाल जी ने ऐसी व्यवस्था कर दी कि अब पुलिस दिल्ली के ऑटो वालों का बॉल भी बांका नही कर सकती चाहे ये ऑटो वाले दिल्ली की जनता के साथ जितनी मर्ज़ी   बदसलूकी और गुंडागर्दी करे- ईमानदारी का तकाज़ा तो यही कहता है कि जिन ऑटो वालों ने आड़े वक्त पर केजरीवाल जी का मुफ्त का प्रचार करके उनका साथ दिया, उनकी सहायता हर हालत मे की जाये-जनता जहां कांग्रेस के कुशासन को 15 साल झेल गयी, क्या 49 दिनो के कुशासन को याद रख पायेगी ?

कहानी को रोचक और सस्पेन्स से भरपूर बनाने मे तो खुद केजरीवाल जी बहुत माहिर हैं-तभी तो वह मोदी पर आरोप लगाते समय यह बिल्कुल भूल जाते हैं कि पिछले दस साल से प्रधानमंत्री मोदी नही मनमोहन जी हैं- लेकिन अगर दोषी आदमी पर ही दोष  मढ दिया तो सीरियल मे रोचकता  कहाँ से आयेगी- उसके लिये तो यही करना पड़ेगा कि मोदी और भाजपा को इस तरह दिन रात लताड़ो मानो देश मे पिछले दस सालों से मनमोहन की अगुयायी मे कांग्रेस की नही, मोदी की अगुयायी मे भाजपा की सरकार चल रही हो ! जनलोकपाल बिल नही बना तो वह भी मोदी और भाजपा की वजह से नही बना और दिल्ली मे गैरक़ानूनी "जनलोकपाल" उपराज्यपाल ने पास नही होने दिया तो वह भी मोदी और भाजपा की वजह से.


दरअसल मोदी और भाजपा हैं ही इतने शक्तिशाली कि सब लोगों के सारे काम मोदी और भाजपा की वज़ह से रुक जाते हैं- लोग तो राजनीति मे जनसेवा की भावना से आये है और इन बेचारे लल्लू,नीतीश,ममता, माया ,मुलायम,केजरीवाल और मनमोहन जैसे जनसेवकों को मोदी और भाजपा कोई काम ही नही करने देते-अगर मोदी और भाजपा नही होते तो इन सब जनसेवकों ने पिछले 66 सालों मे इस देश को स्वर्ग से भी सुन्दर बना दिया होता,इसमे कोई शक नही है.

"मीठा हप हप, कड़वा थू थू" की तर्ज़ पर, जनसेवकों की यह अनोखी टोली यह साबित करने की भरसक कोशिश कर रही है कि इस देश मे जहां कहीं भी कुछ गलत हो गया तो उसके लिये मोदी और भाजपा जिम्मेदार है, और जो कुछ अच्छा हुआ उसका पूरा श्रेय जनसेवकों की इस अदभुत टोली को जाता है.
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Published on 17/2/2014

चंदा वसूलने के लिये किये जा रहे हैं अंबानी पर हमले ?

मुकेश अंबानी ने देश को लूट लिया-अनिल अंबानी ने भी देश को लूट लिया ! अब हम लुटे पिटे मरे कुचले लोग जाएं तो जाएं कहाँ ? यह लोग सभी राजनीतिक दलों को दिल खोलकर चंदा देते हैं क्योंकि इस चंदे से सभी राजनीतिक दल अपना चुनाव प्रचार करते हैं-लेकिन यह लुटेरे इतने अजीब है कि अभी तक इन लोगों ने राजनीति मे हमारी उपस्थिति का संज्ञान ही नही लिया ! अगर बाकी के राजनीतिक दल राजनीति कर रहे हैं तो हम राजनीति मे क्या जनसेवा करने के लिये आये है
जो चंदा बाकी के राजनीतिक दलों को मिलता है-एक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल होने के नाते उस चंदे पर हमारा भी तो उतना ही हक है- देखा जाये तो हमारा हक कुछ ज्यादा ही है क्योंकि हम राजनीति मे नये नये आये हैं और हमारी जरूरतें भी कुछ ज्यादा ही है क्योंकि चुनाव प्रचार के अलावा हमे एक और भारी खर्चे का सामना भी करना पड सकता है

दरअसल हम लोगों ने अपनी राजनीति चमकाने के लिये लोगों पर भ्रष्टाचार के अनाप शनाप मनगढ़ंत और झूठे आरोप लगा तो दिये है-सब लोगों के पास तो मानहानि का दावा ठोंकने के लिये समय नही है लेकिन अगर कुछ लोगों ने भी हमारे ऊपर मानहानि का दावा ठोंक दिया तो हमारी बची खुची साख तो मिट्टी मे मिलेगी ही, हमारी अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह चरमरा सकती है-लिहाज़ा चंदे की हमे बहुत सख्त और जल्द आवश्यकता है-अगर हमारी इस जायज़ मांग का अभी भी देश के बड़े बड़े व्यापारियों और उद्योगपतियों ने संज्ञान नही लिया तो हम लोगों को विवश होकर उन लोगों के लिये " चोर लुटेरे " के अलावा अन्य  भडकाऊ शब्दावली तलाशनी होगी !

दरअसल यह बड़े बड़े उद्योगपति इतने अधिक ढीठ हैं कि हमारी लाख कोशिशों के बाबजूद हमारे चंगुल मे फंसने को तैयार नही है- हम लोग इस बात को अपनी सबसे बड़ी अवमानना मानते हैं कि देश के इतने बड़े बड़े व्यापारी हमे कुछ समझ ही नही रहे और हमे कुछ   भाव ही नही दे रहे ! इन व्यापारियों और उद्योगपतियों द्वारा लगातार की जा रही हमारी उपेक्षा से परेशान होकर हमारे एक बड़े नेता और प्रवक्ता ने तो खुले तौर पर कह भी दिया की भई हमे चंदा बंदा लेने मे कोई ऐतराज़ नही है- आओ और हमे चंदा दो और बदले मे हमसे अभयदान और ईमानदारी का अकाट्य प्रमाण पत्र भी लेकर जाओ !

हम लोगों ने अपना मुख्य राजनीतिक विरोधी मोदी को माना हुआ है और उस लिहाज़ से हमारा स्टॅंडर्ड काफी ऊँचा करके देखा जाना चाहिये और हमारे चंदे का रेट भी उसी अनुसार तय होना चाहिये !

हमारी तरफ से इसे अंतिम चेतावनी के रूप मे देखा जाना चाहिये क्योंकि अगर अभी भी इन ढीठ व्यापारियों और उद्योगपतियों के ख़ज़ाने हमारे लिये नही खुले तो इन लोगों का हम जीना दूभर कर देंगे !
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 Published on 19/2/2014

इस तरह बनेंगे केजरीवाल पी एम !

अन्ना हज़ारे यकायक भारत की राजनीति मे पूरी तरह से सक्रिय होकर कूद पड़े है और राजनीति मे एक एक कर करके जितने भी खोटे सिक्के हैं, उनको आज़माकर उन पर अपना दाव खेलने के चक्कर मे हैं !

इस सारी कवायद मे यह भी सॉफ हो गया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ किये गये अपने तथाकथित आन्दोलन से उन्होने जनता की जितनी भी सहानुभूति और सम्मान पाया था, उसकी भी उन्होने लगभग बलि चढ़ाने का फैसला कर लिया है !

आजकल अन्ना हज़ारे महाराज पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी की वकालत करते घूम रहे हैं ! पश्चिम बंगाल मे सरकार किस तरह चल रही है यह सभी को    मालूम है- पश्चिम बंगाल के जंगल राज को देखकर लल्लू द्वारा किसी जमाने बिहार मे फैलाये गये गुन्डाराज और जंगल राज की याद ताज़ा हो जाती है- शायद पश्चिम बंगाल के कुशासन की सही तुलना उत्तर प्रदेश मे बसपा और सपा के गुन्डाराज और जंगल राज से ही की जा सकती है-ऐसे मे सवाल यह पैदा होता है कि अपने पुराने चेले केजरीवाल तो अराजकता मे धकेलने के बाद क्या अन्ना हज़ारे अब ऐसे नेताओ के समर्थन का बीड़ा उठाने चले है, जो अपनी राजनीतिक विश्वसनीयता पूरी तरह खो चुके हैं ? 

लल्लू जिस जंगल राज को बिहार मे छोड़ गये थे, नीतीश ने पूरी मुस्तैदी के साथ उसे जारी रखा है- बीच मे भाजपा के साथ गठबंधन के समय कुछ हालात सुधरे, लेकिन नीतीश जंगल राज से अपने मोह  को ज्यादा समय अलग रख नही पाये और भाजपा ने उनसे नमस्ते करने मे ही अपनी भलाई समझी ! अब अगर अन्ना इन्ही राज्यों के ऐसे खोटे सिक्कों को पी एम बनाने के सपने देख रहे है तो इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा !

हो सकता है अन्ना हज़ारे यह सोच रहे हों कि पूरी तरह से मरणासन्न पड़े थर्ड फ्रंट मे वह ज़ान डालकर ममता,माया,नीतीश या मुलायम मे से किसी को अगली सरकार का मुखिया बना सकें  या फिर कोई ऐसा तुक्का फिट हो जाये कि ना ना करते हुये दिल्ली की तर्ज़ पर केजरीवाल जी ही पीं एम बन जाएं! अन्ना हज़ारे क्योंकि राजनीति मे केजरीवाल की तरह नये नये आये है और जो भी नये खिलाडी इस मैदान मे आये हैं उन्हे यह पूरा अधिकार मिल जाता है कि वह दिन के उजाले मे जागते हुये प्रधान मंत्री बनने और बनाने के सपने देख देख कर प्रफुल्लित होते रहें. 

अन्ना हज़ारे की इस नयी कवायद से यह बात भी सॉफ हो गयी है कि केन्द्र द्वारा लोकपाल बिल पास करने के बाद अब भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नही रहा-अब आज की तारीख मे सबसे बड़ा मुद्दा यही है की किस तरह से देश मे किसी ऐसे दल या गठबंधन की सरकार बनवाकर ऐसे व्यक्ति को जनता के सर पर बिठा दिया जाये जिसे इस देश की जनता ने जनादेश ही नही दिया हो-अगर ऐसा हुआ तो पहली बार नही होगा ! ऐसी अराजक स्थिति हम पहले भी देख चुके है जब चंद्रशेखर और देव गौड़ा को जबरन इस देश की जनता के ऊपर प्रधानमंत्री के तौर पर थोप दिया गया था ! चंद्रशेखर और देव गौड़ा को प्रधानमंत्री बनाने मे कांग्रेस ने जितनी भूमिका तब निभाई थी,उतनी उम्मीद लेकर तो अन्ना चल ही रहे होंगे ! देश की राजनीति मे पूरी तरह से नकार दिये गये वामपंथियों को भी अगर पूरे देश मे एक आध सीट मिल जाये, तो वे भी ऐसी अवांछित सरकार बनाने की कवायद मे अपना सहयोग देने का नाटक जारी रख सकते हैं.

मोदी से घबराये और बौखलाये हुये ये लोग सिर्फ इस डर से केजरीवाल को प्रधानमंत्री के रूप मे स्वीकार कर लेंगे कि कम से कम अब इन लोगों को अपने किये गये दुष्कर्मों का दंड तो नही मिलेगा क्योंकि केजरीवाल जी का पिछला रिकार्ड इस मामले मे बिल्कुल सॉफ है और उन्होने दिल्ली के मुख्यमंत्री रहते हुये शीला दीक्षित पर आँच तक नही आने दी थी ! इसी मनोविज्ञान और रंणनीति पर बहरूपियों यह चौकड़ी अब इकट्ठा होनी शुरु हो गयी है.

इस सारी अराजक कोशिश मे सिर्फ संतोष इस बात से किया जा सकता है कि अब इन लोगों की मक्कारियाँ जनता के सामने खुल चुकी हैं और देश को खंडित जनादेश की तरफ धकेलने की नापाक साज़िश  का जबाब जनता ऐसे लोगों की चुनावों मे जमानत जब्त कराकर देगी !
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Published on 22/2/2014

"मोदी का रास्ता रोको" अभियान !

भ्रष्ट कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली मे 49 दिनों तक गठबंधन सरकार चलाने मे पूरी तरह से नाकाम होने के बाद   केजरीवाल जी आजकल मीडिया पर बुरी तरह बरस रहे है ! जिस मीडिया ने उन्हे एक सड़कछाप आन्दोलनकारी से उठाकर मुख्य मंत्री की कुर्सी तक पहुँचाया, वही मीडिया आज उन्हे बिका हुआ लगने लगा है ! उनकी इस अपराधिक सोच का समर्थन उनके आका यानि कि हमारे गृह मंत्री सुशील कुमार शिन्दे भी करते नज़र आ रहे है जो मीडिया को धमकाते हुये उसकी आई बी से जांच कराकर उसे कुचलने की बात कहते है !

दरअसल 1975 मे एमर्जेन्सी की आग मे देश को झोंकने वाली कांग्रेस अपनी बौखलाहट के जुनून मे किसी भी हद तक जा सकती है ! अपने राजनीतिक विरोधियों को नीचा दिखाने के लिये कांग्रेस कुछ भी कर सकती है यह तो शिन्दे के बयान से साफ हो ही चुका है- पहले भी कांग्रेस के इशारे पर एक तथाकथित पत्रिका "तहलका" के संपादक तरुण तेजपाल के जरिये  भाजपा पर हमला साधने की नाकाम कोशिस की गयी थी ! तरुण तेजपाल महोदय कांग्रेस पार्टी के इशारों पर नाच नाचकर लगातार दुष्कर्म करते रहे और अपने सभी दुष्कर्मों को उन्होने "तहलका" का नाम दे दिया ! अपने आखिरी दुष्कर्म मे तेजपाल महाराज रंगे हाथों पकड़े गये और फिलहाल गोआ की जेल मे चक्की पीस रहे हैं.

भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुये उसे रोकने के लिये पहले कांग्रेस ने तेजपाल का इस्तेमाल किया और जब जब कांग्रेस को लगा कि उसका अंतिम समय निकट आ गया है और मोदी और भाजपा की लोकप्रियता दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही है तो यह पार्टी केजरीवाल महाराज को लेकर मैदान मे आ गयी- यह बात किसी को मालूम भी नही पड़ती लेकिन दिल्ली मे सरकार बनाते समय इनकी पोल खुल कर सामने आ गयी ! कांग्रेस ने बड़ी शान से अपनी गठबंधन सरकार बनाकर दिल्ली मे 49 दिन तक मौज ली और जब लगा कि केजरीवाल महाराज अगर दिल्ली मे ही फंसे रहे तो बाकी देश मे मोदी की लहर को कैसे रोक पायेंगे ! लिहाज़ा किसी  ना किसी बहाने से दिल्ली की नौटंकी का पटाक्षेप करके केजरीवाल जी का रास्ता साफ कर दिया -" जाओ जहां तक जा सकते हो और मोदी और भाजपा का रास्ता रोको !"


कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री मणि शंकर सी एन एन आइ बी एन को दिये गये एक इंटरव्यू मे यह बात खुद ही कबूल चुके है कि उन्हे उम्मीद है कि मोदी का रास्ता रोकने मे आम आदमी पार्टी देश भर मे दिल्ली की तर्ज़ पर कामयाब रहेगी ! लेकिन उनकी तरफ से अगर यह कबूल नामा नही भी आता तो यह बात तो जग जाहिर ही है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी, दोनो का एक ही मकसद है और इस मकसद को हासिल करने के लिये दोनो ही पार्टियाँ एक दूसरे का भरपूर सहयोग कर रही हैं.


जो लोग आज केजरीवाल के समर्थक हैं,कमोबेश यही लोग तेजपाल के भी समर्थक थे और उसके हर जायज़ नाज़ायज़ खुलासे पर तालियाँ पीटा करते थे ! यह बाद मे मालूम पड़ा कि तेजपाल खुलासे कम "नौटंकी" ज्यादा कर रहा था और जब उसका अपना खुलासा हुआ तो सबसे पहले उसके मुंह से यही आवाज़ आई-"यह सब भाजपा की साज़िश है !" यानि कि मोदी या भाजपा ने उससे कहा था कि तेजपाल जी जाओ और अपनी महिला सहकर्मी के साथ दुष्कर्म करो ! केजरीवाल जी भी कांग्रेस का सारा विरोध भूलकर आजकल सिर्फ भाजपा और मोदी को निशाने पर लिये हुये है- बाकी के राजनीतिक दलों की आलोचना भी केजरीवाल जी इसलिये नही करते क्योंकि वह सभी राजनीतिक दल संख्याबल पूरा ना होने पर कांग्रेस सरकार की कभी अंदर से तो कभी बाहर से मदद करते है ! कांग्रेस के खिलाफ तो केजरीवाल जी कभी कभार शर्मा शर्मी कुछ थोड़ा बहुत बोलकर अपनी औपचारिकता पूरी करने का नाटक भी बड़ी मुश्किल से कर पा रहे हैं.

केजरीवाल जी को तेजपाल बनने मे कितनी सफलता मिलेगी और कब मिलेगी और वह मोदी का कब,कितना और कैसे रास्ता रोके पायेंगे, यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा !
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Published on 26/2/2014

मोदी से 7 तीखे सवाल !

मोदी से लोग पहले भी बहुत सवाल कर चुके हैं- आजकल आम आदमी पार्टी को भी मोदी से सवाल करने का चस्का लग गया है ! ठीक भी है, अब दिल्ली का काम काज़ तो देखना नही है, वक़्त गुजारने के लिये सबके पास कुछ ना कुछ काम तो होना ही चाहिये- सो मोदी से सवाल पूछ पूछकर ही अपना वक़्त काटते रहो !

सवाल पूछने की इसलिये भी जल्दी रहती है कि पिछले 65 सालों से जुबां पर ताले पड़े हुये थे- इसलिये जो सवाल पिछले 65 सालों मे नही  पूछ पाये वह फटाफट मोदी से  पूछ लिये जाएं- कहीं ऐसा ना हो कि कल को हमारे ना चाहते हुये भी मोदी जी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ जाएं और फिर मामला उल्टा पड जाये और मोदी जी हम लोगों से ही सवाल पूछने शुरु कर दे और 65 सालों मे हम लोगों ने जो भयंकर दुष्कर्म किये है, उनका हिसाब किताब ना चाहते हुये भी देना पड जाये !
क्योंकि सवाल पूछने का मौसम चल रहा है इसलिये हमने सोचा कि हम भी एक दो सवाल मोदी जी से कर ही डालें ! हमारे मोदी जी से यह सवाल हैं :

1. प्रधानमंत्री बनने के बाद उन लोगों के लिये किस प्रकार के दंड का प्रावधान किया जायेगा जो लोग "देशद्रोह" नामक वस्तु को "सेकुलरिज्म" कहकर पिछले 65 सालों से अपनी दुकानदारी चला रहे हैं ?

2. ऐसे तथाकथित राजनीतिक दलों के खिलाफ कौन सा कानून बनाया जायेगा जो ज्यादातर समय चुनावों मे एक दूसरे के विरोधी होने की नौटंकी कर करके जनता को बेबकूफ बनाते रहते है और चुनावों से ठीक पहले इकट्ठा होकर उस अनैतिक जमावड़े को कभी "थर्ड फ्रंट" या फिर कभी "तीसरे मोर्चे" का नाम देकर जनता को एक बार फिर से बरगलाने की नाकाम कोशिश करते हैं ?

3. ऐसे तथाकथित राजनेताओं को कितने समय मे फांसी की सज़ा दी जायेगी जो  जब देखो आतंकवादियों, देशद्रोहियों और अलगाववादियों की वकालत करते रहते हैं ?

4. ऐसे लोगों के रामलीला मैदान मे कितने कोड़े लगाये जायेंगे जो जनता से "भ्रष्टाचार मुक्त " शासन का वादा करते है, और सत्ता को पाने के लिये खुद "भ्रष्टाचार युक्त" शासन मे लिप्त हो जाते हैं ?

5. ऐसे लोगों का क्या हश्र किया जायेगा जो कश्मीर को जनमत संग्रह के आधार पर पाकिस्तान को सौंपने की वकालत करते हैं ?

6. ऐसे लोगों को कितने साल की सज़ा सुनाई जायेगी जो कांग्रेस के भ्रष्टाचार  और जबरदस्त निकम्मेपन से लोगों का ध्यान बँटाने के लिये रोज रोज तरह तरह की "नौटंकी" करके जनता  और मीडिया का ध्यान अपनी तरफ खींचकर रखते है ताकि लोग 65 साल मे किये गये दुष्कर्मों को पूरी तरह भूल जाएं और इनकी प्रायोजित नौटंकी देख देखकर तालियाँ पीटते रहें ?

7. आपके प्रधान मंत्री बनने के बाद जो "सेक्युलर " लोग इस देश को छोड़ना चाहें, उन्हे देश छोड़ने की इज़ाज़त कितने दिनो मे दे जायेगी ताकि वे लोग दूसरे देशों मे जाकर अपना प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने का सपना साकार कर सकें ?

ऐसी उम्मीद की जाती है कि अगर मोदी जी ने इन 7 सवालों के जबाब दे दिये तो उनसे बाकी के लोग सवाल पूछना अपने आप ही बंद कर देंगे !
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rajeevg@hotmail.com

Published on 28/2/2014

किन मुददों पर लड़े जायेंगे 2014 के चुनाव ?

आम आदमी पार्टी के समर्थकों को इस बात से कुछ निराशा हो सकती है और कांग्रेस के समर्थकों को इस बात से कुछ राहत मिल सकती है कि पहले की तरह ही 2014 के लोकसभा चुनावों मे भी भ्रष्टाचार कोई बहुत बड़ा मुद्दा नही बन सकेगा ! इस आकलन के पीछे मुख्य कारण यही है कि भ्रष्टाचार एक राजनीतिक समस्या नही है जैसा कि इसे प्रचारित किया जा रहा है, बल्कि यह एक सामाजिक समस्या है और जिस देश मे संतरी से लेकर मंत्री तक सभी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हों, वहां सिर्फ यह मान लेना कि सिर्फ हमारे राजनेता ही भ्रष्ट है,बिल्कुल गलत होगा !

हम लोग वही नेता चुनकर संसद या विधान सभा मे भेजते है, जो हमे पसंद होते है और हम उन्ही को चुनकर भेजते है जो हमारी विचारधारा से मेल खाते है ! पिछले 65 सालों के शासन मे भी अगर हम देखें कि जब जब किसी राजनीतिक दल ने भ्रष्टाचार से लड़ने की कोशिश की, उसे वहा की जनता ने चुनावी शिकस्त देकर भ्रष्ट या फिर ज्यादा भ्रष्ट लोगों के हाथ मे सत्ता सौंप दी ! कर्नाटक, उत्तराखंड और हिमाचल मे विधान सभा चुनावों मे हुई भाजपा की हार को इसी संदर्भ मे लेकर देखा जाना चाहिये ! कर्नाटक मे भाजपा ने भ्रष्ट येदुरप्पा पर तुरंत कार्यवाही करते हुये उसे जेल का रास्ता दिखाया तो वहा की जनता ने भाजपा को दंडित करने मे जरा भी देरी नही लगाई और भाजपा को वहा की सत्ता से फटाफट बेदखल कर दिया !

यही हाल उत्तराखंड मे हुआ-उत्तराखंड ऐसा पहला राज्य था जहां के लोकपाल कानून की ना सिर्फ अन्ना हज़ारे ने बल्कि केजरीवाल ने भी तारीफ की थी, लेकिन इससे पहले कि वहा पर उस कानून पर अमल हो और कुछ लोग जेल मे चक्की पीसें, वहा भी चुनावों मे जनता ने भाजपा को सत्ता से बेदखल करके दंडित किया और उसके बाद जब कांग्रेस की सरकार विजय बहुगुणा जी ने बनाई तो सबसे पहला काम उन्होने यही किया की उस सख्त लोकपाल कानून को रद्द करके अपने मन माफिक लोकपाल कानून बनाया !

हिमाचल की कहानी भी कमोबेश कुछ इसी तरह की है जहां भ्रष्टाचार मे लिपटे वीरभद्र सिंह के नेत्रत्व मे कांग्रेस सत्ता मे आने मे कामयाब रही और भाजपा को बहा भी जनता ने कम भ्रष्ट होने के लिये दंडित किया ! इसके विपरीत जो राजनीतिक दल भरपूर मात्रा मे भ्रष्टाचार कर रहे है उनकी सरकारें पूरी तरह से सुरक्षित रहती है- शायद यही कारण है कि जिस पूर्ण बहुमत के लिये भाजपा और कांग्रेस जैसी पार्टियाँ उत्तर प्रदेश मे तरसते रहते है, वह सपा और बसपा जैसी पार्टियों को बड़ी आसानी से सुलभ हो जाता है क्योंकि यह लोग जियो और जीने दो के सिद्धांत पर चल रहे है ! कांग्रेस ने काफी अधिक समय तक इस देश पर अगर शासन किया है तो उसका सबसे बड़ा कारण यही है कि यह लोग जमकर भ्रष्टाचार करने मे पारंगत है ! जिसको सत्ता मे टिकना है उसे समय की धारा के साथ ही बहना होगा-जब तक भाजपा वाले भी केजरीवाल की तरह ईमानदार रहे उनकी भी लोकसभा मे 2 सीटे हुआ करती थी!

राजनीतिक दलों को ईमानदार रहना है या नही, यह दिशा निर्देश तो आखिर जनता जनार्दन के दरबार से ही आना होता है और लोग राजनेताओं और राजनीतिक पार्टियों को वेवजह दिन रात कोसते रहते हैं !शायद यही वजह है कि सुशासन और विकास ही इस बार के चुनावों मे असली मुद्दा बनकर उभरेगा और सभी राजनीतिक दल इन्ही दोनो मुद्दों पर अपना ध्यान केन्द्रित किये हुये हैं ! दिल्ली मे 49 दिनो तक अपनी सरकार चला चुके केजरीवाल जी ने भी अंतत: स्वीकार कर ही लिया कि "साम्प्रदायिकता" भ्रष्टाचार से भी बड़ा मुद्दा है, लिहाज़ा वह अब उसे दूर करने पर ही ज्यादा ध्यान देंगे !
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 Published on 3/3/2014

नरेन्द्र मोदी के नाम खुला खत !

आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी,

इस समय पूरे देश मे भाजपा की और खुद आपकी जबरदस्त लहर चल रही है- इसमे कोई दो राय नही है ! आपका प्रधानमंत्री बनना भी पूरी तरह तय है. लल्लू,नीतीश,ममता,माया,मुलायम, राहुल,सोनिया और केजरीवाल जैसे लोगों के बस की यह बात नही है कि आपको प्रधानमंत्री बनने से रोक सके ! लेकिन आपकी अपनी ही पार्टी द्वारा किये गये कुछ बेहद गलत फैसले आपके इस प्रधानमंत्री बनने की हकीकत को कभी ना पूरा होने वाले सपने मे तब्दील कर सकते है.

अभी हाल ही मे बिहार मे पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के साथ किया गया गठबंधन और तमिलनाडु मे डी एम के के करुणानिधि से बढ़ती नज़दीकियाँ निश्चित रूप से ऐसे गलत कदम हैं, जो भाजपा के अच्छे खासे चलते हुये विजय रथ को रोकने के लिये पर्याप्त हैं. ऐसी नरपिशाची शक्तियाँ जिनका भाजपा को हर हाल मे विरोध करना चाहिये, उन्ही के साथ गठबंधन करने का मतलब यही होगा कि जितनी सीटों पर इन पार्टियों के लोग खड़े होंगे, उतनी सीटे तो सीधे सीधे अपने 273 की संख्या मे से घटाकर चलना ही ठीक होगा ,क्योंकि जहां जहां भी इन लोगों के गुंडे,डाकू,बलात्कारी,हत्यारे,देशद्रोही और भ्रष्ट उम्मीदवार खड़े होंगे, उन सबकी जमानत जब्त होनी लगभग तय है ! अगर भाजपा इन्ही सीटों पर अपने साफ सुथरी छवि वाले उम्मीदवार खड़े करे, तभी यह संभव होगा कि वह सीटें भाजपा के खाते मे जुड़ पाएँ और 273 का आंकड़ा पूरा हो सके !

इस बात को बिल्कुल भी हल्के मे लेने की जरूरत नही है-समय बदल चुका है और लोग अब इस बात के लिये शायद बिल्कुल भी तैयार नही हैं कि खराब छवि वाले गुंडे,डाकू,बलात्कारी,हत्यारे और पूरी तरह से भ्रष्ट लोग संसद मे पहुंचकर 125 करोड़ लोगों के ऊपर राज करें !

आप अपनी पार्टी मे तो यह सुनिश्चित कर सकते है कि साफ सुथरी छवि के ऐसे उम्मीदवार खड़े किये जाएं जिनके ऊपर इस तरह के संगीन आरोप ना हों, लेकिन अगर इस बात की उम्मीद पासवान और करुणानिधि से करेंगे तो यह असंभव कार्य होगा क्योंकि इन जैसी पार्टियों मे तो सिर्फ और सिर्फ इसी तरह के उम्मीदवार उपलब्ध हैं !

इस बार टक्कर कांटे की होगी और 273 का संख्याबल पूरा करने के लिये लोकसभा की एक एक सीट की मारामारी होगी ! ऐसी स्थिति मे जानबूझकर ऐसी पार्टियों से गठबंधन अपने पैरों मे खुद कुल्हाड़ी मारने जैसा ही है !

इन पार्टियों से अगर गठबंधन जारी रहता है तो उसके दो बड़े नुकसान होंगे-पहला तो यही कि जितनी सीटों पर यह लोग लडेंगे, जमानत जब्त कराकर हारेंगे और 273 के संख्याबल मे सीधा सीधा नुकसान पहुंचाएंगे ! दूसरा अपरोक्ष नुकसान यह होगा कि अगर इन जन विरोधी और देश विरोधी शक्तियों के साथ गठबंधन कर लिया तो उसका असर भाजपा के बाकी उम्मीदवारों की सीटों पर भी पड सकता है- आप खुद भी सहमत होंगे कि यह असर अच्छा तो होगा नही !

यह देश तो आपको प्रधान मंत्री बनाने के लिये तैयार है,अब यह आपको तय करना है कि आपकी उसके लिये कितनी तैयारी है और इन नरपिशाची शक्तियों को आप भाजपा से कितना दूर रख पाते हैं ! ऐसे लोगों के साथ गठबंधन के बाबजूद अगर आप प्रधान मंत्री बन गये तो यह किसी चमत्कार से कम नही होगा !
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Published on 4/3/2014

देशद्रोहियों को बचाने मे जुटे अब्दुल्ला,अखिलेश और केजरीवाल !

बुधवार 5 मार्च को चुनाव आयोग द्वारा लोकसभा चुनावों की घोषणा के साथ ही आदर्श चुनाव संहिता जम्मू-कश्मीर समेत प़ूरे देश मे लागू हो गयी है, यह सभी को मालूम है ! सेकुलरिज्म का पाखंड कर के वोट बैंक की घटिया राजनीति करने वालों को लगता है, उन पर यह संहिता लागू नही होती है और वे देशद्रोहियों का समर्थन "सेकुलरिज्म" के नाम पर सिर्फ इसलिये किये जा रहे हैं, ताकि आने वाले लोकसभा चुनावों मे उनकी वोट बैंक की राजनीति चमकती रहे !

चुनाव आचार संहिता लागू होने के अगले ही दिन यानी 6 मार्च को जम्मू कश्मीर के माननीय मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला जी का बयान आता है कि मेरठ की एक यूनिवर्सिटी मे 67 छात्रों पर देशद्रोह के लगाये गये आरोप दुर्भाग्यपूर्ण हैं और वापस लिये जाने चाहिये- वे इतने पर ही नही रुके-अपने नापाक इरादों को आगे अंज़ाम देने के लिये उन्होने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से बात भी कर ली और उनसे उन्होने देशद्रोह के मामले वापस लेने के लिये औपचारिक रूप से अनुरोध भी कर डाला ! खास आदमियों के लिये बनी " आम आदमी पार्टी " भी भला कहा पीछे रहने वाली थी सो वह भी खुलकर इन देशद्रोहियों के समर्थन मे आ गयी और उनकी तरफ से भी इन लोगों को छोड़ने का दबाब बना दिया गया !

हाफ़िज़ सईद जो एक देशद्रोही है, उसका इस बात पर खुश होना क़ि 67 छात्रों ने "पाकिस्तान जिंदाबाद" के नारे लगाकर देशद्रोह का सबूत दिया, तो फिर भी समझ मे आता है क्योंकि पहली बात तो हमारे सेक्युलर लोगों के लिये वह " श्री हाफ़िज़ सईद" है, दूसरे वह देशद्रोही है तो देशद्रोहियों के समर्थन मे ही बात करेगा !


उमर अब्दुल्ला जो दुर्भाग्य से एक चुनी हुई सरकार के मुख्यमंत्री है और उनकी पार्टी नैशनल कांफ़्रेस लोकसभा के चुनाव भी लड़ेगी-उनकी ये नाज़ायज़ हरकत किसी देशद्रोह से कम नही है ! मोदी के खिलाफ 24 घंटे बकबास करने वालों को उमर अब्दुल्ला की यह बेशर्मी भरा देशद्रोह या तो दीख नही रहा, या फिर वे भी अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने मे लगे हुये हैं.

यह समझ मे नही आता कि जिन "सेक्युलर" लोगों की जबान मोदी और भाजपा के खिलाफ 24 घंटे कैंची की तरह चलती रहती है,उनकी जुबान उमर अब्दुल्ला और हाफ़िज़ सईद जैसे लोगों के खिलाफ क्यों नही चलती ? राजनीतिक दल तो अपनी राजनीति करते रहेंगे- इस समय मामला सीधे सीधे आदर्श चुनाव संहिता के उल्लंघन का है और चुनाव आयोग को उमर अब्दुल्ला के खिलाफ ऐसी सख्त कार्यवाही करनी चाहिये जो देश के सभी  ऐसे लोगों के लिये एक मिसाल का काम कर सके जो "सेकुलरिज्म" का पाखंड करते रहते हैं.

ब्लॉग लिखते लिखते यह खबर भी आ गयी है कि "सेकुलरिज्म" के एक पाखंडी के निवेदन को "सेकुलरिज्म" के दूसरे पाखंडी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया है और देशद्रोहियों के ऊपर से देशद्रोह के आरोप वापस ले लिये गये है ! ठीक है-अखिलेश यादव को भी तो अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकनी है-यह काम सिर्फ अब्दुल्ला क्यों करे ? "सेकुलरिज्म" का सारा ठेका अब्दुल्ला ने ही थोड़े ले रखा है ! चुनाव आयोग का काम अब दुगुना हो गया है और उसे अब इन दोनो पर ही कोई सख्त कार्यवाही करनी होगी ! हैरानी की बात तो यह है कि देशद्रोह का मुकदमा वापस लेने से पहले ही इन 67 लोगों को गिरफ्तार करने की वजाये वहा से सुरक्षित जगह पर भगा दिया गया था !
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Published on 6/3/2014

केजरीलाल की "मीडिया सैटिंग"

खुल गया पाखंड मेरा-हाँ मैं केजरीलाल हूँ !
लुट गया घमंड मेरा-हाँ मैं केजरीलाल हूँ !!

 हवाई यात्राएं करता -मीडिया के खर्चे पर !
 रंगे हाथों पकड़ा गया मीडिया से "सेटिंग" पर !!

खुद किसी सवाल का जबाब नही बन पड़ता,
औरों से सवाल करूँ, हाँ मैं केजरीलाल हूँ !!

 देशद्रोही- आतंकी, सब तो मेरे साथी हैं,
 बन गया हूँ में दूल्हा,ये तो बस बाराती हैं !!

मोदी ना बने पी एम, यह मुझे आदेश है-
दंड का मैं अधिकारी, हाँ मैं केजरीलाल हूँ !!

 भूल  गया  भ्रष्टाचार, यह  मेरी  मजबूरी  है!
 मीडिया से "सेटिंग" करना बहुत जरूरी है !!

सी एम की तर्ज़ पर ही, पी एम बनवा दो मुझे
बिक गया ईमान मेरा, हाँ मैं केजरीलाल हूँ !!

 "सेकुलरिज्म का पाखंड" मेरा आखिरी सहारा है !
 "मोदी लहर" ने मुझे भिगो- भिगो मारा है !!

फंस  चुका  हूँ , अपने  ही  किये  दुष्कर्मों में,
आखिर कितना झूठ बोलूँ- हाँ मैं केजरीलाल हूँ !!

बीस सवालों की  यह लिस्ट मेरी दुश्मन है
कैसे दूंगा जबाब इनके,भारी यह उलझन है

दुष्कर्मों को अंज़ाम देना सिर्फ मुझे आता है !
खुल गयी है पोल मेरी, हाँ मैं केजरीलाल हूँ !!

खंडित जनादेश  आये, बस  यही  तमन्ना  है !
मुझको तो "किंग" नही, "किंगमेकर" बनना है !!

दौड़ा- दौड़ाकर , जनता खूब मुझे  मारेगी-
जानता यह मैं भी हूँ-हाँ मैं केजरीलाल हूँ !!
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Published on 10/3/2014

मीडिया अटेंशन पाने के लिये किये ज़ा रहे हैं मोदी पर हमले ?

कुछ समय पहले मैने एक ब्लॉग लिखा था कि-"क्या मोदी टिक पायेंगे केजरीवाल के सामने ?"  केजरीवाल जी ने लगता है मेरे उस लेख को काफी गंभीरता से ले लिया है और उस दिन के बाद से वह लगातार कुछ ना कुछ ऐसा कारनामा अंज़ाम देने की फ़िराक़ मे रहते है कि जो भी हो, मुझे जैसे तैसे करके एक बार प्रधान मंत्री जरूर बनना है-उसके बाद वह सरकार 49 दिनो तक चले , 49 घंटों तक  चले या फिर 49 मिनट चलकर ही अपना दम तोड दे-इससे मेरा कोई सरोकार नही है क्योंकि देश मे चुनाव आयोग खाली बैठा हुआ है सो दुबारा चुनाव हो जायेंगे और दुबारा चुनाव होने पर जो खर्चा होगा वह कौन सा मेरी जेब से जा रहा है- जिन लोगों को बरगला बरगलाकर मैं वोट बटोरने की नाकाम कोशिश मे लगा हूँ, इन्ही के दिये गये टॅक्स के पैसे से मध्यावधि चुनाव भी लड लिये जायेंगे- हमारा तो शुरु से ही यही कहना रहा है कि हम सब "मरे पिटे कुचले हुये आम-आदमी" हैं और हमारे पास खोने के लिये कुछ भी नही है- अगर कोई खोयेगा तो जनता खोयेगी-हम लोग दरअसल उसूलों के बहुत ज्यादा पक्के हैं और एक ही उसूल पर चल रहे है -"अपना काम बनता -भाड मे जाये जनता !"

जनता को तो और राजनीतिक पार्टियाँ भी पिछले 65 सालों से बरगला ही रही हैं- थोड़ा केजरीवाल जी भी बरगला लेंगे तो किसी का क्या बिगड़ जायेगा- अगर केजरीवाल जी देशद्रोहियों,माओवादियों,आतंकवादियों और अलगाववादियों की मदद से दो चार घंटे के लिये भी प्रधान मंत्री बन सके और टिक कर एक आध काम भी निपटाने का नाटक कर सके, तो कम से कम वह इस स्थिति मे तो होंगे कि अपने घर के आगे-"पूर्व प्रधान मंत्री" की तख्ती टांग सकें ! भाजपा को छोड़कर बाकी सभी दलों मे अपनी स्वीकार्यता बढ़वाने की गरज से केजरीवाल जी ने  "भ्रष्टाचार" के मुद्दे को भी पीछे कर दिया और यह वक्तव्य देकर सर्वसाधारण मे हर्ष की लहर पहुँचा दी कि "सबसे बड़ा मुद्दा भ्रष्टाचार नही है, सबसे बड़ा मुद्दा तो "साम्प्रदायिकता" है ! " ठीक भी है, केजरीवाल जी ने पूरी ईमानदारी के साथ यह स्वीकार कर लिया कि उनका राजनीतिक विरोधी सिर्फ और सिर्फ एक है-"मोदी और भाजपा " -बाकी सभी लोग जो पिछले 65 सालों से देश को लूट रहे है-वे सब तो उनके लंगोटिया यार हैं !

यह मामूली सी बात शायद लोग समझ नही पा रहे है और वेवजह केजरीवाल का विरोध किये जा रहे है- चौधरी चरण सिंह,चंद्रशेखर,देव गौड़ा आदि कितने ही महान लोग इसी "शॉर्ट कट" के जरिये प्रधानमंत्री बन कर इस देश और उसकी जनता को धन्य कर चुके है-अगर आदरणीय केजरीवाल जी ने भी कुछ ऐसा ही सोच रखा है, तो उस पर भाजपा या फिर मोदी को ऐतराज क्यों है ? लालू,नीतीश,माया,ममता,मुलायम,राहुल,सोनिया और अपने वामपंथी भाईओं को भी केजरीवाल के इस दिवास्वप्न पर कोई ऐतराज नही है-शायद अब उमर अब्दुल्ला,फ़ारूक़ अब्दुल्ला और पाकिस्तान को भी ना हो क्योंकि अब तो केजरीवाल जी ने "सेकुलरिज्म" मे पी एच डी करके उत्तर प्रदेश की एक यूनिवर्सिटी मे "पाकिस्तान ज़िंदाबाद" के नारे लगाने वाले 67 देशद्रोहियों के खुलकर समर्थन मे आकर अपने लिये भारत के साथ साथ पाकिस्तान मे भी  पी एम की जगह पक्की कर ली है !

पाकिस्तान मे तो वैसे भी अस्थिर सरकारों का ही माहौल रहता है, वहा अपने केजरीवाल जी का स्टाइल एक दम हिट हो जायेगा- जब तक मन मे आये काम करो, जब कुछ ना हो सके तो सारा ठीकरा भाजपा के ऊपर फोड़कर, जनता के खर्चे पर अगले चुनाव की तैयारी मे लग जाओ ! वैसे केजरीवाल जी की तो इसमे कोई गलती नही है-वे तो एकदम सही जा रहे है और ऐसे ही चलते रहे तो वे एक ना एक दिन भारत के नही तो किसी दुश्मन देश के प्रधानमंत्री जरूर बन जायेंगे और अपने साथ अपने देशद्रोही,अलगाववादी,माओवादी और आतंकवादी समर्थकों को भी  वहीं ले जायेंगे! हाल ही मे पाकिस्तान मे आम आदमी पार्टी की स्थापना शायद इसी मद्देनज़र की गयी है !

केजरीवाल जी के एक पुराने साथी और पार्टी के सह-संस्थापक आश्विनी उपाध्याय जी ने केजरीवाल के ही स्टाइल मे उन्हे 20 सवालों का पन्ना पकड़ा दिया है-उसमे मुख्य रूप से सवाल यह किये गये है कि आदरणीय केजरीवाल जी, कांग्रेस पार्टी और उसके करप्शन के खिलाफ आपकी जबान पथरा क्यों जाती है -और यह नक्सलियों,माओवादियों,देशद्रोहियों और आतंकवादियों को लोकसभा के टिकट बांटकर क्या साबित करना चाहते हो ? अपने इस जीवन मे केजरीवाल या फिर उनके कोई समर्थक इन सवालों का जबाब दे पायेंगे, इसकी संभावना तो लगभग ना के बराबर है क्योंकि खुद केजरीवाल और इनके सारे समर्थकों ने आम आदमी पार्टी को मोदी के खिलाफ दुष्प्रचार की मशीन बना लिया है !

केजरीवाल के चेहरे पर उडती हुई हवाइयां और दिलचस्प बौखलाहट का सिर्फ एक ही कारण नज़र आता है कि पूरे देश मे मोदी से ज्यादा लोकप्रिय व्यक्ति इस समय कोई है नही और केजरीवाल जी को तो प़ूरे देश की जनता तभी जान पायेगी जब वे मोदी नाम की 24 घंटे माला का जाप करते रहेंगे !मोदी नाम की माला जपने से ही 24 घंटे का गारंटीड मीडिया अटेंशन मिल सकता है ! मोदी को टारगेट करने की नीयत से कुछ स्टिंग भी "मीडिया सैटिंग" के जरिये बनबाये जा रहे है, लेकिन यहाँ भी हड़बड़ी इन्हे खुद को ही ले डूबी-उस हड़बड़ी मे एक स्टिंग अपना भी बन गया और इससे पहले कि मोदी के फर्ज़ी स्टिंग आते, इनका अपना असली स्टिंग जनता के सामने आ गया ! जल्द काम शैतान का होता है, यह तो हमने सुना भर था-अब देख भी लिया !

लगता है डर से थर थर कांप रहे केजरीवाल जी को मोदी नाम की अनवरत माला जपनी पड़ेगी-पर यह बात तो उनके समर्थकों को कुछ हज़म होगी नही-लिहाज़ा इनके अंध समर्थकों की आत्मा की शान्ती के लिये यही लिखना पड़ेगा कि मोदी केजरीवाल से डर गये हैं और मीडिया का अटेंशन पाने के लिये वेवजह ही केजरीवाल जी को टारगेट कर रहे हैं.
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Published on 13/3/2014

मोदी के हाथों बिका हुआ है सारा मीडिया ?

जब से मीडिया ने केजरीवाल जी और उनकी ईमानदार पार्टी की 24 घंटे की जाने वाली आरती का प्रकाशन -प्रसारण कुछ कम किया है,केजरीवाल जी  मीडिया से खासे नाराज़ चल रहे हैं ! उनका यह भी कहना कि सारा का सारा मीडिया मोदी और भाजपा के हाथों बिका हुआ है ! केजरीवाल जी सिर्फ यही पर नही रुके और मीडिया को बाकायदा धमकाते हुये उन्होने यह भी कह दिया कि अगर मीडिया इसी तरह मोदी और भाजपा के हाथों बिकता रहा तो उसको जेल भेज दिया जायेगा !

केजरीवाल जी की बात मे कुछ ना कुछ तो दम है क्योंकि उसका सुबूत तो केजरीवाल जी के यू ट्यूब पर लीक हुये वीडियो से ही मिल जाता है जहां पर पूरी दुनिया यह देख सकती है कि दरअसल मीडिया को कौन खरीद रहा है और कौन बेच रहा है ! इस यू ट्यूब के वीडियो मे दरअसल केजरीवाल जी अपने इंटरव्यू की सैटिंग थोड़े ही कर रहे थे-वे बेचारे तो नरेन्द्र मोदी और भाजपा के किसी इंटरव्यू की सैटिंग करते हुये रंगे हाथों पकड़े गये थे-इसलिये उनका यह कहना बिल्कुल सही है कि सारा मीडिया मोदी और भाजपा के हाथों बिका हुआ है और केजरीवाल जी प्रधानमंत्री बने या ना बने, उसे जेल तो भेज ही देंगे-आखिर शीला दीक्षित को भी तो उन्होने किस खूबसूरती के साथ जेल भिजवा कर ही दम लिया-लिहाज़ा उनकी बात का हर आम और खास को पूरा विश्वास करना ही चाहिये !

पिछले लगभग दस सालों से जो मीडिया मोदी के खिलाफ दुष्प्रचार मे लगा हुआ था वह भी मेरे ख्याल से मोदी या भाजपा की अपनी ही कोई चाल रही होगी और मोदी या भाजपा ने ही मीडिया को खरीदकर कहा होगा कि तुम लोग 24 घंटे गुजरात दंगों के लिये वेवजह ही मोदी और भाजपा को कोसते रहो चाहें वह मामला अदालत मे चल रहा हो और अदालतें बार बार मोदी को क्लीन चिट भी दे रही हों-लेकिन यह मामला मीडिया की नज़र से नही हटना चाहिये और मोदी के खिलाफ यह दुष्प्रचार हर हाल मे जारी रहना चाहिये !

दुष्प्रचार भी तो एक तरह का प्रचार ही है और मीडिया के तो बराबर पैसे लगते है चाहे प्रचार. किया जाये या दुष्प्रचार किया जाये-लिहाज़ा मीडिया को तो बिकना ही है-मीडिया सिर्फ एक ही सूरत मे बिका हुआ नही माना जायेगा-वह स्थिति तब होगी जब सारा का सारा मीडिया 24 घंटे केजरीवाल जी और उनकी आम आदमी पार्टी के गुणगान करता रहे और उनके सारे दुष्कर्मों की अनदेखी करके उन पर पर्दा डालता रहे-अगर मीडिया ऐसा करता है तो वह आराम से चैन की सांस लेता हुआ अपना "केजरीवाल गुणगान" जारी रख सकता है और फिर शायद उसे जेल जाने की भी जरूरत ना पड़े

मीडिया के एक सज्जन तो केजरीवाल के हस्तक्षेप के  बिना ही गोआ की जेल मे चक्की पीसने को मजबूर हैं-अगर इन्हे जेल ना हुई होती तो औरों की तरह इन्हे भी आम आदमी पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ने का सुअवसर प्राप्त हो जाता ! इनकी पूरी कोशिश है कि लालू की तरह यह भी जेल से बाहर निकलने मे कामयाब हो जाएं और केजरीवाल जी की अनुकंपा जैसे बाकी के मीडिया वालों पर हुई है, शायद इन पर भी हो जाये!

केजरीवाल जी के मीडिया मे जो मित्र ब्लॉग और लेख लिखने वाले हैं, केजरीवाल जी की हाल की करतूतों और दुष्कर्मों से शरमाकर कुछ देर के लिये ओझल हो गये थे, वे सब दुबारा से अवतरित हो गये है और केजरी गुणगान की जगह केजरीवाल जी के ही अंदाज़ मे मोदी को लताड़ने का काम शुरु कर दिया है ! कोई मोदी को मूर्ख और झूठा बता रहा है तो कोई मोदी को डरपोक बताकर अपना जीवन धन्य किये जा रहा है !
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rajeevg@hotmail.com
Published on 15/3/2014

केजरीवाल :"महानायक" से "खलनायक" बनने तक का सफर !

आम तौर पर किसी भी नेता को महानायक से खलनायक बनने की जरूरत इसलिये नही पड़ती है कि उनमे से ज्यादातर तो महानायक कहलाने के काबिल ही नही होते हैं और जो लोग होते हैं, उनमे से कुछ का सफर नायक पर और कुछ का खलनायक पर खत्म तो होता है,लेकिन उसमे खासा वक्त लगता है ! अपनी हड़बड़ी के लिये मशहूर केजरीवाल जी यहाँ इसका अपवाद ही कहे जायेंगे-इनका सफर अन्ना आन्दोलन के समय एक ठीक ठाक "महानायक" की तरह ही हुआ था और इनकी सादगी,विनम्रता, साफगोई और जनसाधारण से जुड़ने की इनकी जो प्रबल इच्छा शक्ति थी, उसीके चलते लोगों ने इन्हे सिर् आँखों पर बिठाया जिसका परिणाम हमने रामलीला मैदान, जन्‍तर मन्‍तर और इंडिया गेट पर इकट्ठा हुये अपार जनसमूह के रूप मे भी देखा !

केजरीवाल चाहते तो महानायक बने रह सकते थे ! लेकिन महानायक भी गलतियाँ करते हैं- जब ऐसा लग रहा था कि लोहा लगभग पूरी तरह गर्म होने वाला है और सरकार जैसे तैसे करके अन्ना के मन मुताबिक जनलोकपाल बिल लाने ही वाली थी, उसी समय इन लोगों के सब्र का पैमाना टूट गया और इन्होने अपनी राजनीतिक पार्टी बना डाली ! पार्टी बनने का मतलब था कि यह सीधे महानायक की पदवी से लुढ़ककर नायक बन गये- नायक भी बने रह सकते थे और ऐसा नही है कि आदमी नायक बनकर कुछ अच्छा काम नही कर सकता ! आखिर सब लोगों मे तो इतना सब्र नही होता कि वे महानायक की भूमिका निभायें लेकिन यह उम्मीद तो जनता कर ही सकती है कि आदमी जनहित मे नायक की भूमिका तो निभाये !

पुरानी कहावत है की सत्ता आदमी को भ्रष्ट कर देती है और सम्पूर्ण सत्ता आदमी को पूरी तरह से भ्रष्ट करती है ! दुर्भाग्य से यही केजरीवाल के साथ यही हुआ और लोगों ने उन्हे अपने सर आँखों पर बिठाकर अपना विश्वाश उनके हाथों मे सौंपा था,मौका लगते ही उन्होने उसका दुरुपयोग किया और सत्ता के लालच मे उन्होने दिल्ली की जनता के साथ विश्वासघात करते हुये, भ्रष्टाचार के मुद्दों को पीछे छोड़ते हुये,दिल्ली की जनता को उसके हाल पर छोड़कर लोकसभा चुनावों मे कूदने की षड्यंत्रकारी योजना बना डाली जिसकी स्क्रिप्ट उन्होने बहुत पहले से तैयार कर रखी थी-उनके "मीडिया सैटिंग" का यू ट्यूब पर जो वीडियो लीक हुआ है,वह भी इसी बात की पुष्टि करता है! देखा जाये तो 14 फरवरी 2014 को ही केजरीवाल जी और ज्यादा पतन हुआ और वे नायक से लुढ़ककर सीधे खलनायक बन गये-इसके बाद जो हुआ उसके बारे मे पहले ही बहुत विस्तार से लिखा जा चुका है और आगे भी लिखा जाता रहेगा ! तरह तरह की नरपिशाची और देशद्रोही ताकतें एक एक करके केजरीवाल जी से जुड़ती गयी और फिर अकेले केजरीवाल ही खलनायक नही रह गये, वरन इनकी पूरी पार्टी को ही खलनायक पार्टी मे तब्दील कर दिया !

दिलचस्प बात यह है कि अभी तक लोग हरेक राजनीतिक दल मे कोई ना कोई बुराई देख रहे थे और उससे दूर जाने का विकल्प तलाश रहे थे-अब हो यह गया कि सभी पार्टियों की सभी बुराइयां अब एक ही पार्टी मे समाहित हो गयी है-दुर्भाग्य यह है कि इसके वावजूद यह पार्टी अपने आपको सबसे ज्यादा ईमानदार बता रही है- इस छलावे मे लोग कब तक आते हैं, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन तब तक केजरीवाल जी की महानायक से खलनायक बनने की यात्रा भी पूरी हो चुकी होगी !
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Published on 18/3/2014

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