Thursday, November 24, 2016

विपक्ष पर लागू नहीं होगी नोटबंदी

नोट बंदी के अचानक आये फैसले से जिन राजनेताओं के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गयी थी और जिनकी रातों की नींद और दिन का चैन गायब हो गया था, उनके लिये एक राहत की खबर आ रही है. संसद के शीतकालीन सत्र मे चल रहे गतिरोध को दूर करने के लिये, सरकार ने यह फैसला लिया है कि पी एम मोदी ने जिस नोट बंदी की घोषणा 8 नवंबर 2016 को की थी, उससे देश के सभी विपक्षी राजनेताओं को मुक्त रखा जायेगा. यह सभी नेता अपनी गतिविधियों को पहले की तरह उसी तरह से जारी रखने के लिये आज़ाद होंगे, जिस तरह से यह लोग पिछले 70 सालों से थे.दुश्मन देश पाकिस्तान से जितने नकली नोट 8 नवंबर 2016 तक देश मे आ चुके है, उनके इस्तेमाल की भी पूरी छूट 30 दिसंबर तक रहेगी, ताकि हमारे माननीय नेताओं को उन्हे चलाने मे किसी तरह की तकलीफ ना हो.

सरकार के इस कदम से जहाँ विपक्षी नेताओं की चाँदी हो जायेगी, वहीं जनता के लिये भी इस फैसले से जबरदस्त राहत मिलने की संभावना है, क्योंकि अब जब विपक्षी नेताओं को अपने पुराने नोट बदलवाने या जमा करवाने के लिये अपने कार्यकर्ताओं को या भाड़े पर लिये गये दिहाड़ी के मजदूरों को बैंक की लाइनो मे खड़ा नही करना पड़ेगा. जब यह लाइने छोटी हो जायेंगी तो जनता अपने पुराने नोटों को सहूलियत के साथ बैंको मे जमा करा सकेगी.

विश्वस्त सूत्रों के हवाले से यह खबर भी आ रही है कि आयकर विभाग के उच्च अधिकारियों को यह स्पष्ट रूप से बता दिया गया है कि इन सभी माननीय विपक्षी नेताओं को नोटिस भेजना तो दूर, उनकी तरफ आंख उठाकर भी ना देखें.

जानकर लोग यह बताते हैं कि सरकार को यह फैसला राष्‍ट्रीय पर्यावरण आयोग की उस फटकार के बाद लेना पड़ा जिसमे आयोग ने नोट बंदी के बाद विपक्षी नेताओं के असहनीय शोर शराबे और चीख पुकार के चलते देश मे अचानक बढे ध्वनि प्रदूषण की ओर सरकार का ध्यान खींचा था. राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी सरकार को जमकर फटकार लगाई थी कि सरकार इस बात का जबाब जल्द से जल्द दे कि जो लोग सभी तरह के ऐशो आराम से पिछले 70 सालों से रह रहे थे, वे लोग आज सरकार की गलत नीतियों के चलते, दाने दाने के लिये मोहताज़ क्यों हो गये हैं.

लम्बी लाइनो की वजह से देश मे दंगे होने की संभावना के चलते भी सरकार पर इन लम्बी लाइनो को जल्द से जल्द छोटा करने का दबाब था. सरकार के इस कदम को सभी विपक्षी नेता किसी भी सरकार द्वारा लिया गया स्वतंत्र भारत का सबसे अधिक "क्रांतिकारी" फैसला बता रहे हैं.


(इस काल्पनिक व्यंग्य रचना का किसी वास्तविक घटना,व्यक्ति, संस्था या संगठन से कोई लेना देना नही है.)

Sunday, November 20, 2016

नोटबंदी पर सुप्रीमकोर्ट की दंगों की भविष्यवाणी

नोट बंदी के खिलाफ डाली गयी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट खुद ही रद्द कर चुका है. सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले के मद्दे नज़र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से यह गुहार लगाई थी कि देश की अन्य अदालतों मे इस तरह् की याचिकाएं अभी भी डाली जा रही हैं और उन पर भी रोक लगाई जानी चाहिये. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की यह याचिका यह कहते हुये खारिज़ कर दी कि लोगों को नोट बंदी के चलते भारी परेशानी हो रही है और उन्हे अदालतों मे अपनी याचिका डालने के अधिकार से वंचित नही किया जा सकता है. यहाँ तक तो बात हज़म होने लायक लग रही थी. लेकिन अपनी इस दलील मे सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी टिप्पणी भी जोड़ दी जिसके अनुसार बैंकों के बाहर लगी लम्बी लम्बी लाइनों की वजह से देश मे दंगे भी हो सकते हैं. बैंकों मे लगी लम्बी लाइनो की वजह से दंगे होने की भविष्यवाणी माननीय सुप्रीम कोर्ट ने किस आधार पर की, इसके बारे मे तो मीडिया मे कोई खबर नही आई है, लेकिन सोशल मीडिया मे सुप्रीम कोर्ट की इस अनावश्यक भविष्यवाणी को लेकर काफी चर्चा हो रही है. लोगों का यह मानना है कि सर्वोच्च अदालत का काम फैसला करना है और भविष्यवाणी करने का काम हमे भविष्यवक्ताओं और ज्योतिषियों के लिये ही छोड़ देना चाहिये.

यहाँ यह बात भी गौर करने लायक है कि हमारे देश मे आज से पहले कभी भी लम्बी लाइनो की वजह से दंगे नही हुये है. लोग जियो के सिम लेने के लिये, शराब खरीदने के लिये और राशन की लाइनो मे लगने के आदी हो चुके हैं और लम्बी लाइने कभी भी इस देश मे दंगों की वजह नही बनीं हैं. कश्मीर मे पिछले काफी समय से दंगों से भी बदतर हालात बने हुये थे. जब से नोटबंदी का फैसला आया है, कश्मीर के हालात एकदम सामान्य हो गये है. इसका सीधा सा मतलब यह है कि जितने भी दंगे आज तक देश मे हुये हैं, उनके लिये किसी भी जाति, धर्म या समुदाय से ताल्लुक रखने वाली जनता कभी भी जिम्मेदार नही थी. दंगे हमेशा राजनीति से प्रेरित होते हैं और उन्हे प्रायोजित करने के लिये काला धन और जाली धन की बहुत अधिक जरूरत होती है. अगर इस कसौटी पर आज के हालातों को परखा जाये तो देश मे दंगा होने की कोई सूरत दूर दूर तक नज़र नही आती है. आज ना किसी राजनीतिक दल के पास काला धन है और ना ही जाली धन.

सोशल मीडिया पर तो देश की अदालतों मे लम्बित मामलों की जो लाइन लगी हुई है, उसके आकडे भी आ रहे हैं, जो बेहद चौंकाने वाले हैं. देश की निचली अदालतों मे 2,30,79,723 मामले लंबित पड़े हुये हैं, देश के विभिन्न हाइ कोर्ट मे 38,91,076 मामले लम्बित पड़े हुये हैं और खुद सुप्रीम कोर्ट मे 61,436 मामले ऐसे हैं, जिन पर अभी फैसला आना बाकी है. कुल मिलाकर देखा जाये तो 2,70,00,000 मामलों की विभिन्न अदालतों मे लाइन लगी हुई है और आज तक इतनी लम्बी लाइन लगने के बाबजूद भी इन लाइनो की वजह से देश मे कोई दंगा नही हुआ है.

अच्छा तो यह होता अगर सुप्रीम कोर्ट लम्बी लाइनो के लिये जिम्मेदार भ्रष्ट लोगों के खिलाफ सरकार को कडी कार्यवाही का आदेश देता क्योंकि यह बात धीरे धीरे बिल्कुल साफ होती जा रही है कि लाइनो मे लगे हुये लगभग 90 प्रतिशत लोग भ्रष्ट लोगों द्वारा भाड़े पर लिये हुये लोग हैं जो बाकी के 10 प्रतिशत लोगों के लिये परेशानी का कारण बन रहे हैं. पहले इन लोगों ने अपने काले धन को बदलवाने के लिये अपने कार्यकर्ताओं, दिहाड़ी के मजदूरों और अपने कर्मचारियों को 4000 बदलने की लाइन मे लगाकर लाइनो को लम्बा कर दिया और जब सरकार ने कुछ सख्ती दिखाई तो यह लोग आम जनता के जन धन खातों मे 250000 रुपये यह कहकर डलवा रहे हैं कि इन्हे 200000 रुपये निकालकर वह व्यक्ति एक निश्चित समय सीमा मे वापस कर दे. 50000 रुपये के लालच मे इन सभी लोगों के सामने यह बड़ी भारी चुनौती है कि उन्हे ATM  से या बैंक से निकालकर 200000 रुपये एक निश्चित समय सीमा मे वापस भी करने हैं. बैंकों मे लम्बी होती लाइनो का यही मुख्य कारण भी है. 

Thursday, November 17, 2016

देश आपका है- फैसला आपको करना है !

देश मे एक के बाद एक, लगातार दो अलग अलग "सर्जिकल स्ट्राइक" हुई है. दोनो बार की कार्यवाही मे समानता यही है कि दोनो ही बार इनकी घोषणा अचानक की गयी और दोनो ही बार देश के विपक्षी नेता या कहिये कि गैर-भाजपाई नेताओं की समझ मे यह नही आया कि तत्कालिक रूप से इन "सर्जिकल स्ट्राइक्स" पर क्या प्रतिक्रिया दी जाये.

जब जब इन "सर्जिकल स्ट्राइक्स" की सूचना सेना या सरकार द्वारा मुहैया कराई गयी, देश के सम्पूर्ण विपक्ष की हालत ऐसी हो गयी जैसे काटो तो खून नही. लकवा मारा हुआ विपक्ष जब कुछ सोचने समझने लायक होता है तो फिर कुछ काल्पनिक कहानी गढनी शुरु करता है ताकि वर्तमान सरकार को उसके ऐतिहासिक और क्रांतिकारी फैसले का श्रेय ना मिल पाये. विपक्ष इस गलतफ़हमी मे आज तक है कि देश मे सोशल मीडिया का कोई वजूद नही है और जो कुछ भी "दुष्प्रचार" यह विपक्षी नेता सरकार के खिलाफ करेंगे, उसे जनता सच मान लेगी और यह अपने दुष्प्रचार मे उसी तरह कामयाब होते रहेंगे जैसे कि पिछले 60-70 सालों से हो रहे थे.

पहली सर्जिकल स्ट्राइक तो विपक्ष के नेताओं से हज़म ही नही हुई और उन्होने उसे फर्ज़ी करार दे दिया-पाकिस्तान भी यही चाहता था. इन लोगों का यह कहना था कि या तो "सर्जिकल स्ट्राइक" का वीडियो जारी किया जाये (ताकि पाकिस्तान उस वीडियो को देखकर आगे के लिये सतर्क हो जाये ) और अगर सरकार यह वीडियो नही दिखाती है तो यह "सर्जिकल स्ट्राइक" फर्ज़ी मानी जायेगी. यह फैसला जनता करे कि विपक्षी नेता जो कुछ भी बोल रहे थे, उससे ज्यादा फायदा पाकिस्तान को हो रहा था या भारत को ?

अपनी पहली सर्जिकल स्ट्राइक को ही आगे बढ़ाते हुये मोदी सरकार ने 8 नवंबर 2016 की रात को "काले धन पर भी सर्जिकल स्ट्राइक" कर डाली. यह बात सारी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान एक आतंकवादी देश है और अपने आतंकवाद को पालने पोषने के लिये वह भारत के 500-1000 के नकली नोट भारी मात्रा मे छाप छाप कर, अपने आतंकवादी मनसूबों को अंज़ाम देता रहा है. आज जो लोग विपक्ष मे हैं, वे लोग पहले सत्ता मे थे और उन लोगों ने पाकिस्तान की इस बेज़ा हरकत को रोकने के लिये अगर कोई उपाय किये होते तो हज़ारों सैनिकों और देशवासियों की जान बचाई जा सकती थी. लेकिन पिछली "सेक्युलर" सरकारों का पाकिस्तान-प्रेम, देश-प्रेम पर हमेशा ही भारी पड़ता रहा. इसीलिये जब मोदी सरकार ने अचानक ही पाकिस्तानी-आतंकवाद का "सोर्स ऑफ फंडिंग" ही बंद कर दिया तो हमारे विपक्षी नेताओं को यह बात बहुत नागवार गुज़री.

लेकिन हमारे विपक्षी नेताओं मे थोड़ी बहुत शर्म अभी भी बाकी है या वे लोग जनता को आज भी सन 1950-60 के दशक की जनता समझ रहे हैं, इसलिये उन्होने यह बहाना बनाना शुरु कर दिया कि हम लोग "काले धन पर की गयी सर्जिकल स्ट्राइक" का पुरजोर विरोध इसलिये कर रहे हैं, क्योंकि जनता को उससे बड़ी तकलीफ हो रही है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलावा किसी और विपक्षी नेता ने यह बताने की जरूरत नही समझी, कि जिस जनता के दर्द की चिंता इन लोगों को पिछले 60-70 सालों मे नही हुई, अचानक इनका दिल इतना कैसे पसीज़ गया और यह दयावान होकर "जनता के हमदर्द" बनने की नौटंकी कब से करने लगे ?

गौर करने लायक बात यह है कि दीपावली से पहले लगभग हर घर मे रँगाई-पुताई का काम होता है और इसीके बहाने साफ-सफाई भी हो जाती है. जितने दिन तक यह काम घर मे चलता है, घर की सारी व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है, लेकिन उससे हम लोग हाहाकार मचाना शुरु नही कर देते हैं. ठीक उसी तरह से जब देशहित मे एक ऐसा फैसला लिया गया है, जिससे ना सिर्फ पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का, बल्कि भ्रष्टाचार के लिये जिम्मेदार काले धन का भी सफाया होने वाला है, तो हमारे कुछ मुट्ठी भर विपक्षी नेताओं के पेट मे दर्द क्यों हो रहा है ? कोई विपक्षी नेता अपने पिछले कमाये हुये काले  धन को सफेद करने के लिये बैंक की लाइन मे लगने की नौटंकी कर रहा है और कोई विपक्षी नेता पाकिस्तान से आये नकली नोटों को ठिकाने लगाने के लिये आज़ादपुर सब्जी मंडी जाकर बैठ गया है.

देश इस समय एक ऐसे निर्णायक  मोड पर खड़ा है, जहाँ एक ओर भ्रष्ट लोग पूरी तरह बेनकाब होकर जनता के सामने खड़े हुये हैं-वहीं दूसरी ओर ईंमानदार लोग अपने फैसले पर अडिग और अटल खड़े हुये है और उनके फैसले को सुप्रीम कोर्ट के साथ साथ देश के राष्ट्रपति और 125 करोड़ देशवासियों का भी पूरा समर्थन प्राप्त है.  भ्रष्ट लोगों की संख्या मुट्ठी भर है और वे लोग अपनी पूरी बेशर्मी के साथ इस ऐतिहासिक फैसले का पुरजोर विरोध  संसद के बाहर और संसद के अंदर भी कर रहे हैं.

लेकिन  देश इन नेताओं का नही है !
देश आपका है !!
फैसला आपको करना है !!!

Sunday, November 13, 2016

लगा दिया मोदी ने उनको आज बैंक की लाइन मे

काले धन पर पड़ी चोट तो भ्रष्ट दरिंदे चिल्लाये
जनता का ये करें बहाना, चोट को अपनी सहलाएं

जनता का कर रहे बहाना, परअपनी पीड़ा भारी है
जनता को तो खूब ठग चुके,अब खुद इनकी बारी है

लूट रहे थे 60 साल से, देश को दोनो हाथों से
मोदी ने औकात दिखा दी, इनको अपनी बातों से.

नकली नोटों के सौदागर करते इनकी रखवाली
उनका धंधा बंद हुआ तो ये देते मोदी को गाली

"अन्ना का चेला" बन बैठा, काले धन का सौदागर
इसकी काली करतूतों पर मोदी की है कडी नज़र

धनकुबेर लगते थे जिनके घर पर आकर लाइन मे
लगा दिया मोदी ने उनको आज बैंक की लाइन मे

-राजीव गुप्ता
(C) सर्वाधिकार सुरक्षित

Thursday, November 10, 2016

4000 के नोट बदलने पर तुरंत रोक लगाये सरकार

8 नवंबर की रात को मोदी सरकार ने काले धन को समाप्त करने का जो ऐतिहासिक और क्रांतिकारी फैसला लिया है, उसके तहत कोई भी सड़क चलता व्यक्ति, जिसके पास बैंक खाता नही है, अपना कोई भी पहचान पत्र दिखाकर देश के किसी भी बैंक की किसी भी शाखा से जाकर 4000 रुपये तक के पुराने नोटों के बदले नये नोट ले सकता है. सरकार ने यह नियम इसलिये बनाया था ताकि जिन लोगों ने अभी तक बैंक मे खाते नही खुलवाये हैं, उन्हे इस योजना के चलते किसी परेशानी का सामना ना करना पड़े, लेकिन बड़े बड़े राजनेताओं, व्यापारियों और उद्योगपतियों ने आम आदमी को राहत पहुंचाने वाली इस योजना का भी जमकर दुरुपयोग करना शुरु कर दिया है और इसी दुरुपयोग के चलते बैंकों के बाहर लम्बी लम्बी लाइने लगी हुई हैं.

दरअसल इस योजना का दुरुपयोग करते हुये भ्रष्ट नेता अपने कार्यकर्ताओं को रुपये बदलने का फॉर्म और पहचान पत्र की फोटोकॉपी के सैंकड़ों सेट देकर अलग अलग बैंकों की अलग अलग शाखाओं मे भेज रहे हैं. उदाहरण के लिये, अगर कोई भी व्यक्ति एक दिन मे दस बैंक शाखाओं से भी रुपये बदलने मे कामयाब हो जाता है, तो वह दिन भर मे 40000 रुपये आसानी से बदलवा सकता है. हर राजनीतिक पार्टी और नेता के पास कार्यकर्ताओं की जो फ़ौज़ है, अगर सभी लोग इसी काम पर लग जाएं तो 30 दिसंबर 2016 तक रोजाना 40000 के हिसाब से भी यह लोग करोड़ों रुपये बदलने मे कामयाब हो सकेंगे.

मजे की बात यह है कि जिन लोगों का बैंक मे खाता है, वे तो पूरे सप्ताह मे सिर्फ 20000 रुपये ही निकाल पायेंगे लेकिन जिनका खाता नही है, उनके लिये ऐसी कोई सीमा नही है और वे लोग जितनी मर्ज़ी बैंक शाखाओं मे जाकर 4000 रुपये के हिसाब से जितना चाहे पुराना धन नये धन से बदल सकते हैं. भ्रष्ट राजनेताओं की तर्ज़ पर भ्रष्ट सरकारी अधिकारी और व्यापारी भी इसी रास्ते को अपना रहे हैं. बहुत से व्यवसायिक प्रतिष्ठानो ने तो अपने सभी कर्मचारियों को सिर्फ इसी काम पर लगाया हुआ है और जो दिन भर मे सबसे अधिक रुपये बदलवाकर ला रहा है, उसे कुछ इनाम भी दिया जा रहा है.

इससे पहले कि जनता को दी गयी इस रियायत का और अधिक दुरुपयोग हो, इस योजना को तुरंत प्रभाव से बंद करना चाहिये ताकि बैंकों के आगे लगी हुई लम्बी लाइने खत्म हों और बैंक अपना समय असली खाताधारकों को दे सकें. वैसे भी जिन सड़क चलते लोगों ने (जिनके पास बैंक खाता नही है), अपने नोट बदलवाने थे, अब तक बदलवा ही लिये होंगे. मज़े की बात यह है कि बैंकों के पास यह चेक करने का भी कोई तरीका नही है कि जो लोग लाइन मे लगकर 4000 रुपये यह कहकर बदलवा रहे हैं कि उनके पास कोई बैंक खाता नही है, वे सच बोल रहे हैं या झूठ. आज सुबह कांग्रेस नेता राहुल गाँधी भी ४००० के नोट बदलवाने के लिए एक बैंक की लाइन में खड़े दिखे. क्या राहुल गाँधी का बैंक खाता  नहीं है ? अगर राहुल गाँधी बैंक की लाइन में खड़े होकर बैंक को चकमा देने की कोशिश कर सकते हैं तो कोई और क्यों नहीं कर सकता?

Tuesday, November 8, 2016

काले धन पर पी एम मोदी की "सर्जिकल स्ट्राइक"

500 और 1000 के नोटों का विमुद्रीकरण करते हुये पी एम मोदी ने अपनी सरकार का अब तक का सबसे अधिक साहसी कदम उठाते हुये  काले धन के खिलाफ एक ऐसा प्रहार किया है, जिसके वार से जहाँ एक ओर ईमानदारी से पैसा कमाने वाली जनता खुशी से फूली नही समा रही है,वहीं उन लोगों के चेहरे पर मातम छाया हुआ है, जिन्होने जनता को लूट लूट कर काले धन को अपनी तिजोरियों मे इकट्ठा किया हुआ था. काले धन के खिलाफ छेड़े गये इस युद्ध की मार किस पर सबसे ज्यादा पड़ी है, आइए उन लोगों के बारे मे विचार करते हैं :

1. पाकिस्तान की सरकार खुद 500 रुपये और 1000 रुपये के नकली नोट छाप-छापकर उन्हे आतंकवादियों के मार्फत हमारे देश मे भेज रही थी और पाकिस्तान का सारा का सारा आतंकवादी तामझाम इन्ही नकली नोटों के गोरखधंदे पर चल रहा था. पाकिस्तान सरकार को और उसकी आतंकवादी गतिविधियों को इससे बहुत बड़ा झटका लगा है.

2. जिन राजनेताओं ने पिछले 70 सालों मे जनता को लूट लूटकर प्रचुर मात्रा मे काला धन इकट्ठा किया हुआ था, उनकी हालत सिर्फ देखने लायक है- जिन लोगों ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की "सर्जिकल स्ट्राइक" पर भी सवाल उठा दिये थे, फिलहाल तो वे लोग भी इस बार् की "सर्जिकल स्ट्राइक" पर चुप्पी साधे हुये है और अभी तक कोई बहुत बड़ा हो-हल्ला नही किया है.

3. सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों ने भी पिछले 60-70 सालों मे काफी मात्रा मे जनता को प्रताडित कर करके रिश्वत के माध्यम से काला धन इकट्ठा किया हुआ था, यह सब लोग भी रातों-रात सड़क पर आ गये हैं और अपने दुष्कर्मों का जीते जी फल भुगतने के लिये तैयार हो रहे हैं.

4. काले धन पर की गयी सर्जिकल स्ट्राइक की मार उन व्यापारियों पर भी पड़ी है, जिनका धंधा ही काले धन पर टिका हुआ था. मुम्बई स्टॉक एक्सचेंज का संवेदी सूचकांक आज लगभग 1600 अंक नीचे खुला, यह इस बात का जीता जागता प्रमाण है कि काले धन का हमारी अर्थव्यवस्था पर कितना गहरा प्रभाव है. जिन व्यापारियों और उद्योगपतियों ने काले धन को इकट्ठा किया हुआ था, निश्चित रूप से , उन सब के लिये भी यह संकट की घड़ी है.

आम आदमी और मध्यम वर्ग जो अब तक काले धन की कमाई करने वालों से त्रस्त रहता था, उसे सबसे अधिक खुशी हुई है क्योंकि आज जाकर उसे यह मालूम पड़ा है कि ईमानदारी से धन कमाने का सुख क्या होता है. ऐसा भी नही है कि यह सब कुछ अचानक हो गया है. जब 30 सितंबर 2016 को काले धन को घोषित करने की स्कीम बंद हुई थी, उसके तुरंत बाद सरकार की तरफ से यह वक्तव्य आया था कि जिन लोगों ने अपना काला धन इस स्कीम मे भी घोषित नही किया है, आने वाले दिनो मे उन्हे चैन से सोने नही दिया जायेगा. कल 8 नवंबर 2016 की रात तो काफी ऐसे लोग नही सो पाये होंगे. आगे और कितनी रातें इनकी बिना सोये कटेंगी, यह देखने वाली बात है.

क्या मोदी टिक पायेंगे केजरीवाल के सामने ?

भ्रष्टाचार को खत्म करने की नीयत से राजनीति मे आये और दुनिया के सबसे भ्रष्ट राजनीतिक दल के साथ दिल्ली मे गठबंधन सरकार चला रहे केजरीवाल जी को लोकसभा चुनावों मे जाने की इस कदर हड़बड़ी मची हुई है कि वह सही और गलत का फर्क ही नही कर पा रहे हैं. अब तो उनकी चौकड़ी इतनी शातिर हो चुकी है कि उन्होने जनता से एस एम एस करके राय लेना भी बंद कर दिया है.

आम आदमी पार्टी का आत्मविश्वाश केजरीवाल जी को प्रधान मंत्री बनाने को लेकर किस हद तक बढ़ा हुआ है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि यह पार्टी दूसरी राजनीतिक पार्टियों से अपने आपको कई मायनों मे अलग दिखाने की नाकाम कोशिश कर रही है. दिल्ली विधान सभा के चुनाव नतीजे 8 दिसंबर को घोषित हुये थे जिसमे 28 विधायक आम आदमी पार्टी के भी चुने गये थे-दल बदल कानून के हिसाब से अगर 28 के एक तिहाई विधायक यानी कि 10 विधायक अपने आप को अलग करके किसी दूसरी पार्टी को समर्थन दे देते है तो उनकी विधान सभा की सदस्यता भी बनी रहेगी और आम आदमी पार्टी का कानूनी तरीके से विभाजन भी हो जायेगा.

आम आदमी पार्टी के नेताओं के पस कुछ ऐसी दिव्य शक्ति भी मौजूद है जो उन्हे 8 दिसंबर के पहले ही इस बात का आभास करा देती है कि 8 दिसंबर को नतीजे आयेंगे उसमे उनकी पार्टी को कम ना ज्यादा बिल्कुल 28 सीटें मिलेंगी- इसीलिये उनके विधायक मदन लाल को 7 दिसंबर की रात को ही "विदेश मे बैठे भाजपा के शीर्ष नेताओं"का फोन भी आ जाता है कि मदन लाल जी आप खुद को मिलाकर 10 विधायक लेकर अपनी पार्टी से अलग हो जाओ और भाजपा की सरकार बनबा डालो.

भाजपा मे हालांकि राजनीति के जानकiर तो कई नेता हैं लेकिन इस तरह की दिव्य शक्ति( जो आने वाले चुनाव नतीजों का एकदम सही पूर्वाभास करा सके) से युक्त तो एक भी नेता नही है. मोदी जी तो हर्गिज़ भी यह काम नही कर पायेंगे- लिहाज़ा जहां तक प्रधान मंत्री की कुर्सी की दौड़ का सवाल है, वह यहाँ केजरीवाल जी से पिछड़ते दिखाई दे रहे हैं.

चलिये अब दिव्य शक्तियों के अलावा और योग्यताओं की भी बात कर लेते हैं- हो सकता है यहाँ मोदी जी हाथ मार ले जाएं. लेकिन हमे यहाँ भी निराशा ही हाथ लगी है- दरअसल हमारे केजरीवाल जी तो भारतीय राजस्व सेवा से आये अधिकारी हैं और मोदी जी का बॅकग्राउंड चाय बेचने का रहा है- तो मोदी जी यहाँ भी मात् खा गये. आखिर मोदी जी क्या सोचकर पी एम की दौड़ मे शामिल हुये है ? उन्हे शायद केजरीवाल जी और उनकी पार्टी की दिव्य शक्तियों का अंदाज़ा नही है. क्या खाकर मोदी जी केजरीवाल जी के आगे टिक पायेंगे ?
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rajeevg@hotmail.com
Published on 6/2/2014

बहुत मंहगी पड़ेगी ये "मोदी ब्रांड" चाय !

जी हाँ यहाँ किसी पांच सितारा होटल मे 100-200 रुपये मे एक कप मिलने वाली घटिया चाय की बात नही हो रही है. यहाँ उस चाय की बात हो रही है जिसके सपा नेता नरेश अगरवाल से लेकर कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर तक दीवाने हैं और उस चाय का एक घूँट पीने के लिये ये दोनो नेता और इनकी पार्टियाँ युगों युगों से तरस रही हैं.

कांग्रेस के प्रमुख सहयोगी राजनीतिक दल और उत्तर प्रदेश मे गुंडा राज की स्थापना करने वाली पार्टी सपा के नेता जब यह बोले कि मोदी तो चiय बेचने वाले हैं और वह क्या खाकर पी एम बनेंगे, तो किसी को बहुत ज्यादा हैरानी नही हुई- दरअसल उत्तर प्रदेश को पूरी तरह से जंगल राज मे तब्दील कर चुके सपा के नेताजी की योजना यह थी कि धीरे धीरे इस गुंडा राज और जंगल राज की स्थापना  प़ूरे   भारत मे की जाये क्योंकि सभी देशवासियों का यह पूरा अधिकार है कि उन्हे भी इस अभूतपूर्व गुन्डाराज और जंगलराज का आनन्द मिले-यह आनन्द सिर्फ उत्तर प्रदेश के लोगों की बपौती थोड़े ही है-लेकिन सपा के मनसूबों पर तब पानी फिरने लगा जब सब तरफ से यह चुनाव सर्वे आने लगे कि मोदी जी उत्तर प्रदेश मे भी जंगल और गुंडा राज को समाप्त करने का मन बना चुके है और अभूतपूर्व बहुमत के साथ जीत हासिल करने वाले हैं.

नरेश अगरवाल ने ऐसे तो खिसियाहट मे मोदी को लताड़ने की नीयत से यह बयानबाज़ी की थी लेकिन जब कांग्रेस पार्टी मे बैठे उनके आकाओं को लगा कि मोदी पर उनकी इस लानत मलानत का कोई असर नही पड रहा है और उल्टा मोदी तो इस बयानबाज़ी के बाद और भी अधिक आक्रामक होकर उत्तर प्रदेश की तरफ अपना विजय रथ लेकर बढते जा रहे हैं तो कांग्रेस ने इस काम का जिम्मा अपने ऊपर ही ले लिया और अपने एक वरिष्ठ नेता श्री मणिशंकर अय्यर को इस काम को अंज़ाम देने की जिम्मेदारी सौंपी.

अय्यर भी कोई कच्चे खिलाड़ी तो हैं नही जो इस बात को मामूली तरीके से अंज़ाम देते-उन्होने उस समय बयानबाज़ी की जब उनकी पार्टी का अखिल भारतीय स्तर का जलसा चल रहा था और सारे मीडिया कैमरों की निगाहे उनकी तरफ ही थीं- अय्यर साहब ने आव देखा ना ताव-कह दिया  कि मोदी अगर चाहें तो हम उनके लिये चाय बांटने की व्यवस्था यहाँ पर करवा सकते हैं-दरअसल अय्यर साहब वह काम करना  चाह रहे थे जो उनके चहेते नरेश अग्रवाल नही कर सके थे-यानी कि अपनी खिसियाहट को छिपाने के लिये मोदी को लताड़ने का काम.

अय्यर साहब को लगा होगा कि उनके इस साहसिक कार्य के लिये उनकी पार्टी का आलाकमान बहुत खुश होगा और क्या पता जैसे मनमोहन सिंह की लॉटरी निकल आई, कभी उनके भी अच्छे दिन आ जाएं.

लेकिन हाय इन नेताओं का दुर्भाग्य, मोदी जी ने पलटकर जब इन लोगों को चाय पिलाने की ठान ली और जगह जगह् चाय बांटने और बंटवाने का काम शुरु करवा दिया तो इन लोगो को यकायक लगा कि यह चाय तो इन नेताओ और उनकी पार्टियों के लिये बहुत मंहगी पड़ने वाली है. खबर यह भी है कि जितने भी मोदी विरोधी गद्दार हैं, उन लोगों ने अपने लिये चाय बेचने के लिये खोके वगैरा की जगह का बन्दोबस्त करना शुरु कर दिया है ताकि 2014 के चुनावों के बाद कम से कम चाय बेचकर तो अपना बाकी का जीवन यापन कर सकें.
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rajeevg@hotmail.com
Published on 10/2/2014

तीसरे मोर्चे की अंतिम यात्रा निकलेगी इस बार ?

हिन्दी मे एक बड़ी ही मशहूर कहावत है-धोबी का कुत्ता, न घर का ना घाट का ! हमारे बड़े बुजुर्गों ने पता नही क्या सोचकर यह कहावत बनाई होगी लेकिन उन्हे क्या मालूम था कि उनकी बनाई हुई यह कहावत आज की तथाकथित राजनीति मे समय समय पर बनने वाले "थर्ड फ्रंट " यानि कि तीसरे मोर्चे पर बखूबी लागू हो जायेगी !

पहले तो यह समझने की कोशिश करते हैं कि यह तीसरा मोर्चा है किस चिड़िया का नाम ? दरअसल कुछ ऐसे नेता और राजनीतिक दल हमारी व्यवस्था मे अपने आप पैदा हो गये हैं जिनका मुख्य कार्य ही देश, समाज और सरकार के अंदर "अव्यवस्था" पैदा करना है ! यह वे लोग हैं जो गलती से किसी तरह जीत कर विधान सभा या संसद मे पहुंच तो जाते हैं लेकिन उसके बाद क्या करें, उसका पता ना तो इन्हे होता है और ना ही उस जनता को जो इनको चुनकर भेजती है.

ये वह राजनीतिक दल या नेता होते हैं जो चुनावों से पहले तो जनता से यही कहते रहते हैं कि हम किसी भी दूसरे दल के साथ किसी भी तरह का कोई गठबंधन नही करेंगे और सभी 545 सीटों पर चुनाव लडकर किसी ना किसी तरह प्रधान मंत्री बन जायेंगे, लेकिन जैसे जैसे चुनावों का समय नज़दीक आता है और इन्हे कोई राष्‍ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी अपने मुंह नही लगाती है तो यह अपनी ही खिचडी पकानी शुरु कर देते है और उस खिचडी को यह लोग कभी कभी खुद और कभी कभी मीडिया वाले बड़े चाव से " तीसरा मोर्चा " या फिर अंग्रेज़ी मे थर्ड फ्रंट कहकर संबोधित करते हैं.

चुनाव जीतने के शुरु के चार सालों मे तो यह लोग किसी ऐसी राजनीतिक पार्टी को अपना शिकार बनाने की कोशिश करते है जिसके पास सरकार बनाने के लिये कुछ सदस्यों की सँख्या कम पड रही होती है और अपना "समर्थन" देकर उस पार्टी की सरकार बनबा कर यह अपने आपको धन्य महसूस करते हैं-बदले मे इन्हे क्या मिलता है ? इन्हे एक तो "कांग्रेस बचाओ इन्वेस्टिगेशन" यानि की सी बी आई की तरफ से अभयदान की प्राप्ति हो जाती है और इनके एक आध नेता को भ्रष्टाचार करने के लाइसेंस के साथ मंत्री बना दिया जाता है-इस तरीके से इन लोगों की दुकानदारी बिना किसी खास परेशानी के पिछले कई दशकों से चल रही है

पाँचवे साल मे यह लोग अगले लोकसभा चुनावो की रणनीति बनाने मे लग जाते है और जिस सरकार के साथ चार साल गुजार दिये उसे भी मौका देखकर कोसना शुरु कर देते है.

तीसरे मोर्चे के नाम पर जो नरपिशाची ताकतें समय समय पर इकट्ठा होने की नौटंकी करती हैं, उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि वे उत्तर प्रदेश,बिहार और पश्चिम बंगाल सहित देश के कई राज्यों मे गुन्डाराज और जंगल राज्य की स्थापना करने मे कामयाब रही हैं.

सवाल यह है कि इस बार यानि कि 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले ये लोग काफी घबराये और बौखलाये हुये क्यों हैं ? उसका प्रमुख कारण यही समझ मे आ रहा है कि इस बार इनको लग रहा है कि मोदी के नेत्रत्व मे भाजपा की सरकार बननी लगभग तय है और क्योंकि वह सरकार पूर्ण बहुमत के साथ बनेगी तो इन लोगों का कोई "नामलेवा" और "पानीदेवा" नही होगा. साथ ही इन लोगों ने जो दुष्कर्म आज तक किये है उनके चलते पहले तो जनता इनकी जमानत जब्त कराकर दंडित करेगी- इस दंड को तो ये बेचारे किसी तरह झेल भी जाते लेकिन दुष्कर्मों का कानूनी दंड जो मोदी के द्वारा इन लोगों को दिया जायेगा, बह इन लोगों को दिन रात आतंकित किये जा रहा है !

इस तीसरे मोर्चे के नेताओं की बौखलाहट का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पहले तो यह लोग अपने राज्य मे साम्प्रदायिक दंगों का आयोजन करते है और जब लगता है कि पोल खुल खुलकर जनता के सामने आ रही है तो अपना गम गलत करने के लिये नाच गाने का रंगरेलियों युक्त कार्यक्रम का भी फटाफट आयोजित कर डालते हैं.
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rajeevg@hotmail.com
 Published on 14/2/2014

केजरीवाल को पी एम बनने से कोई नही रोक सकता !

दिल्ली के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के  अभूतपूर्व  नेता अरविन्द केजरीवाल जी को पिछले कुछ दिनो से इस बात का खूब शौक चर्राया हुआ है कि वह बिना मांगे ही लोगों को ईमानदारी और बेईमानी का प्रमाण पत्र दे देकर खुद को धन्य समझ रहे हैं-मीडिया ने भी एकता कपूर के सास बहू के धारावाहिकों को छोड़कर इस चटपटी नौटंकी पर अपना सारा ध्यान केन्द्रित करने मे ही अपनी भलाई समझ ली है.

खबर तो यह भी आ रही है की खुद एकता कपूर ने अपनी बदहाली से परेशान होकर यह फैसला किया है कि अब वह सिर्फ एक ही सीरियल पर अपना ध्यान केन्द्रित करके मनचाहा पैसा कमाएँगी. सीरियल का नाम होगा-"केजरीवाल को पी एम बनने से कोई नही रोक सकता." यह धारावाहिक लोगों को तब तक झेलना पड़ेगा जब तक केजरीवाल जी का पी एम के रूप मे राज्याभिषेक नही हो जाता. इशारा सॉफ है कि या तो केजरीवाल को पी एम बनाओ या फिर 24 घंटे हर चैनल पर यह सीरियल देखो-इस सीरियल को बनाने मे कलाकारों का खर्चा कोई नही आयेगा-यह भी एक बहुत बड़ी बचत होगी,क्योंकि कलाकारों की तो केजरीवाल साहब के पास कोई कमी नही है. सर्वगुण संपन्न और अनोखी प्रतिभा से युक्त ये कलाकार  चारों पहर इतनी रोचक बयानबाजी करते रहते है कि कैमरे उनका पीछा ही नही छोड़ते.

 केजरीवाल जी भी अपनी तरफ से हालांकि पूरी कोशिश कर रहे हैं कि सास बहू के सीरियल बनाने वालों को उनकी वज़ह से जो नुकसान हुआ है, उसकी किसी तरह से भरपाई अपनी जान देकर भी करवा दें-एक निष्ठावान और ईमानदार नेता की यही तो सबसे बड़ी पहचान है कि वह किसी का नुकसान होते नही देख सकता. अब देखो दिल्ली के ऑटो वालों को पुलिस परेशान करके उन्हे नुकसान पहुँचा रही थी तो केजरीवाल जी ने ऐसी व्यवस्था कर दी कि अब पुलिस दिल्ली के ऑटो वालों का बॉल भी बांका नही कर सकती चाहे ये ऑटो वाले दिल्ली की जनता के साथ जितनी मर्ज़ी   बदसलूकी और गुंडागर्दी करे- ईमानदारी का तकाज़ा तो यही कहता है कि जिन ऑटो वालों ने आड़े वक्त पर केजरीवाल जी का मुफ्त का प्रचार करके उनका साथ दिया, उनकी सहायता हर हालत मे की जाये-जनता जहां कांग्रेस के कुशासन को 15 साल झेल गयी, क्या 49 दिनो के कुशासन को याद रख पायेगी ?

कहानी को रोचक और सस्पेन्स से भरपूर बनाने मे तो खुद केजरीवाल जी बहुत माहिर हैं-तभी तो वह मोदी पर आरोप लगाते समय यह बिल्कुल भूल जाते हैं कि पिछले दस साल से प्रधानमंत्री मोदी नही मनमोहन जी हैं- लेकिन अगर दोषी आदमी पर ही दोष  मढ दिया तो सीरियल मे रोचकता  कहाँ से आयेगी- उसके लिये तो यही करना पड़ेगा कि मोदी और भाजपा को इस तरह दिन रात लताड़ो मानो देश मे पिछले दस सालों से मनमोहन की अगुयायी मे कांग्रेस की नही, मोदी की अगुयायी मे भाजपा की सरकार चल रही हो ! जनलोकपाल बिल नही बना तो वह भी मोदी और भाजपा की वजह से नही बना और दिल्ली मे गैरक़ानूनी "जनलोकपाल" उपराज्यपाल ने पास नही होने दिया तो वह भी मोदी और भाजपा की वजह से.


दरअसल मोदी और भाजपा हैं ही इतने शक्तिशाली कि सब लोगों के सारे काम मोदी और भाजपा की वज़ह से रुक जाते हैं- लोग तो राजनीति मे जनसेवा की भावना से आये है और इन बेचारे लल्लू,नीतीश,ममता, माया ,मुलायम,केजरीवाल और मनमोहन जैसे जनसेवकों को मोदी और भाजपा कोई काम ही नही करने देते-अगर मोदी और भाजपा नही होते तो इन सब जनसेवकों ने पिछले 66 सालों मे इस देश को स्वर्ग से भी सुन्दर बना दिया होता,इसमे कोई शक नही है.

"मीठा हप हप, कड़वा थू थू" की तर्ज़ पर, जनसेवकों की यह अनोखी टोली यह साबित करने की भरसक कोशिश कर रही है कि इस देश मे जहां कहीं भी कुछ गलत हो गया तो उसके लिये मोदी और भाजपा जिम्मेदार है, और जो कुछ अच्छा हुआ उसका पूरा श्रेय जनसेवकों की इस अदभुत टोली को जाता है.
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rajeevg@hotmail.com
Published on 17/2/2014

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