Wednesday, November 29, 2017

गुजरात चुनावों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ होना लगभग तय

लोकतंत्र में हार और जीत तो लगी ही रहती है और जनता अपने विवेक और समझ का इस्तेमाल करते हुए किसी एक पार्टी को सत्ता के सिंहासन तक पहुँचाने का काम करती है. उस तरह से देखा जाए तो गुजरात चुनावों में कांग्रेस को मिलने वाली पराजय पर किसी को भी  हैरानी नहीं होनी चाहिए. कांग्रेस पार्टी के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि यह पार्टी और इसके नेता अभी तक यह नहीं समझ सके हैं कि जनता ने जब इस पार्टी को २०१४ में सत्ता से बाहर किया था तो उसे पिछले ६० सालों के कुशासन , भ्रष्टाचार और देशद्रोह का दंड दिया था. २०१४ का सत्ता परिवर्तन कोई मामूली सत्ता परिवर्तन नहीं था. जो लोग पिछले कई दशकों से देशद्रोहियों के तलवे चाट चाट कर देश के बहुसंख्यकों का लगातार अपमान कर रहे थे और  जो लोग अपने कुशासन और भ्र्ष्टाचार से लगातार जनता और देश को लूटने का काम कर रहे थे, जनता ने २०१४ में उन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था.
 
२०१४ में मिली हार के बाद कांग्रेस पार्टी को ज्यादातर राज्यों में भी उसी तरह की शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा लेकिन इस पार्टी ने न तो अपनी हार से कोई सबक लेने की कोशिश की और न ही कभी अपनी  भ्रष्टाचार,कुशासन और देशद्रोही मानसिकता के लिए देश की जनता से माफी माँगी. चोरी और सीनाजोरी की तर्ज़ पर इस पार्टी के नेता लगातार अपनी इन नीतियों का समर्थन करते रहे और मोदी, भाजपा और संघ की नीतियों का पुरजोर विरोध करते रहे. अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए यह पार्टी इस हद तक नीचे गिर गयी कि इसने मुस्लिम  आतंकवादियों को खुश करने के लिए कुछ देशभक्त हिन्दुओं को फ़र्ज़ी मामलों में गिरफ्तार करके उन्हें "हिन्दू आतंकवादी" के नाम से पुकारना शुरू कर दिया. इन लोगों के खिलाफ दायर फ़र्ज़ी मामले अदालतों में नहीं टिक सके और उन्हें अदालतों को बाइज़्ज़त बरी करना पड़ा. लेकिन इस पार्टी ने बहुसंख्यक  समुदाय को जलील करने की अपनी नापाक कोशिश लगातार जारी रखी. जहां एक ओर कांग्रेसी पी एम् मनमोहन सिंह ने देश के सभी संसाधनों पर अल्पसंख्यकों के पहला हक़ होने की बात कही, वहीं कांग्रेस पार्टी एक ऐसे  कानून को लागू करना चाहती थी जिसके तहत सांप्रदायिक हिंसा होने पर दोष चाहे किसी भी समुदाय का हो, उसके लिए बहुसंख्यक समुदाय को ही दोषी माने जाने की व्यवस्था थी. कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री तो पाकिस्तान में जाकर यह भी गिड़गिड़ाए कि मोदी को हारने में  हमारी पार्टी  की मदद करो. अगर यह देशद्रोह नहीं है तो फिर देशद्रोह किसे कहते हैं ?
 
पिछले ३ सालों में पी एम् मोदी ने जिस तरह से देश के सर्वांगीण विकास के लिए ठोस कदम उठाये हैं और जिस तरह से नोटबंदी और जी एस टी के जरिये काले धन पर लगाम लगाई है, उससे इस पार्टी के नेता पूरी तरह बौखलाए हुए हैं और उस बौखलाहट में न सिर्फ इस पार्टी के अपने नेता बल्कि इसकी सहयोगी पार्टियों के नेता भी अनाप शनाप बयानबाज़ी में जुटे हुए है. पिछले ६० सालों में जिस बड़े पैमाने पर गोलमाल और भ्रष्टाचार हुआ था , उसके चलते  सभी नेताओं ने मोटा माल बनाया था. नोटबंदी का असर यह हुआ कि पिछले ६० सालों में जोड़ा हुआ सारा "मोटा माल" या तो बेकार हो गया या फिर बैंकों में जमा करवाना पड गया. अब जब बैंकों में यह "मोटा माल" जमा हो गया तो उसका मतलब यह नहीं है कि उसका रंग "काले" से "सफ़ेद" हो गया. आयकर विभाग ने अब जब इस जमा किये गए "काले धन" का हिसाब माँगना शुरू किया तो इन सभी विपक्षी नेताओं की सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी. जब नोटबंदी के समय यह विपक्षी नेता अपना मूर्खतापूर्ण विरोध कर रहे थे, तभी मैंने यह लिखा था कि विपक्षी नेताओं का इस तरह से छाती पीट पीट कर विधवा विलाप करना ही इस बात का सुबूत है कि इन लोगों ने इस देश को पिछले ६० सैलून में किस तरह से लूट लूट कर काला धन इकठ्ठा किया है. एक तरफ जहां नोटबंदी ने पिछले ६० सालों में कमाए गए काले धन का सफाया कर दिया, दूसरी तरफ जी एस टी ने यह भी सुनिश्चित कर दिया कि आज के बाद काले धन की उपज कम से कम हो या फिर न के बराबर हो. बेनामी संपत्ति के कानून को लागू करके मोदी जी ने इन लोगों के नीचे से रही सही जमीन भी खिसका दी है. नतीजा यह है कि न सिर्फ कांग्रेस पार्टी और उसके नेता बल्कि इसकी सभी सहयोगी पार्टियां और उसके नेता भी पी एम् मोदी का इस तरह से विरोध कर रहे हैं मानों मोदी ने इन लोगों के काले कारनामों पर लगाम लगाकर कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो.
 
कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों ने क्योंकि पिछले ६० सालों में सत्ता का सुख मिल बाँट कर भोगा है और अपने लिए चाटुकारों की एक बहुत बड़ी फौज भी तैयार की है जो समय समय पर इन तथाकथित विपक्षी राजनीतिक दलों और उनके तथाकथित नेताओं की हाँ में हाँ मिलाकर मोदी, भाजपा कर संघ को बदनाम करने का षड्यंत्र रचती रहती है. यह लोग कभी कलाकार और लेखक बनकर अपने अपने "अवार्ड" वापस करना शुरू कर देते हैं, कभी अर्थशास्त्री बनकर भारत की अर्थव्यवस्था पर गैर जरूरी टीका टिप्पणी करना शुरू कर देते हैं. उत्तर प्रदेश में एक "अख़लाक़" की मौत पर कई महीनों तक मातम मनाने वाले यह स्व-घोषित "सेक्युलर" नेता, केरल और पश्चिम बंगाल की हिंसा पर हमेशा ही चुप्पी साधे रहते हैं. इन लोगों को यह लगता है कि यह सारी बातें जो इस ब्लॉग में लिखी गयी हैं, वे इस देश की आम जनता तक नहीं पहुंचेगी और जनता को वही समाचार मालूम पड़ेंगे जो इनके नेता या इनके पाले हुए मीडिया के लोग जनता तक पहुंचाएंगे. लेकिन सोशल मीडिया  ने इन लोगों के मंसूबों पर अब पानी फेर दिया है. गुजरात की जनता हो या देश के किसी अन्य राज्य की जनता, कांग्रेस और इसकी सहयोगी पार्टियों के कारनामों से सभी पूरी तरह वाकिफ है और हर आने वाले चुनाव में जनता इस पार्टी को दण्डित करने के लिए पहले से भी  अधिक आतुर दिखाई देती है. गुजरात में हालांकि कांग्रेस पार्टी तरह तरह की "नौटंकियां " करके जनता को दिग्भ्रमित करने का प्रयास कर रही है लेकिन गुजरात जैसे राज्य की जनता "कांग्रेस की इस प्रायोजित नौटंकी" का शिकार होगी, इस पर कांग्रेस पार्टी को शायद खुद भी यकीन नहीं होगा.

Friday, November 10, 2017

गुजरात और हिमाचल में भाजपा की बम्पर जीत लगभग तय

गुजरात और हिमाचल में इसी साल विधान सभा चुनाव होने हैं. दोनों ही जगह मुख्य चुनावी मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है. अपने राजनीतिक वजूद की आखिरी लड़ाई लड़ रही कांग्रेस पार्टी इन दोनों ही चुनावों में अपनी पूरी “ताकत” झोंकने का प्रयास कर रही है. क्योंकि कांग्रेस इन चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंक रही है, इसलिए यह समझना ज्यादा जरूरी हो जाता है कि आखिर कांग्रेस पार्टी की असली ताकत क्या है, जिसके बल बूते पर इस पार्टी ने इस देश को लगभग ६० सालों तक निर्ममता से लूटा है. दरअसल कांग्रेस पार्टी की असली ताकत है -दुष्प्रचार. अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ मनगढंत दुष्प्रचार करके सत्ता हथियाने में इस पार्टी को महारथ हासिल रही है.
लेकिन पिछले कुछ सालों में लोगों में बढ़ती जागरूकता और सोशल मीडिया के विस्तार के चलते कांग्रेस पार्टी  का यह दुष्प्रचार रूपी ब्रह्मास्त्र अब पूरी तरह बेकार हो गया है. अख़लाक़ और रोहित वेमुला जैसे फ़र्ज़ी मसलों पर कांग्रेस पार्टी और इसके चाटुकारों ने जमकर भाजपा पर हमला बोला. अपने “अवार्ड वापसी गैंग” से अवार्ड भी वापस करवाए, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. नतीजा नहीं निकला लेकिन कांग्रेस पार्टी ने  हार नहीं मानी. जब नोट बंदी का ऐतिहासिक फैसला लिया गया और इन लोगों का सारा काला धन डूब गया तो इन्होने उस फैसले को जन विरोधी बताकर एक बार फिर से दुष्प्रचार शुरू कर दिया. इनके रहमोकरम पर पलने वाले कुछ चाटुकारों और स्व-घोषित अर्थशास्त्रियों ने भी नोटबंदी के खिलाफ जमकर दुष्प्रचार किया. इसका जबाब भी देश की जनता ने उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजों के मार्फ़त दे दिया. अब इन्हे भी लगने लगा है कि दुष्प्रचार रूपी हथियार काम नहीं कर रहा है लेकिन इनके पास कोई और हथियार नहीं है और कोई और विकल्प न होने की वजह से यह लोग उसी बेजान हथियार का एक बार फिर से इस्तेमाल करना चाहते हैं. इस बार इनके दुष्प्रचार का शिकार जी एस टी है, जिसे देश की जनता देश की आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा कर सुधार बता रही है, उसी कर सुधार के खिलाफ कांग्रेस पार्टी दुष्प्रचार करके हिमाचल और गुजरात में अपनी नैया पार लगाना चाहती है.
कांग्रेस पार्टी की जो कमियां हैं, वे सब जग जाहिर है और उन पर जितना भी लिखा जाए कम ही होगा. अब इस बात पर आते है कि भाजपा इन दोनों राज्यों में किस तरह से बम्पर जीत हासिल करने जा रही है.
१. भाजपा के पक्ष में जो सबसे बड़ी बात कही जा सकती है (जिसका उसे पिछले चुनावों में भी फायदा मिला है और इन चुनावों में भी मिलेगा), वह यही है कि पार्टी अपने विकास के रास्ते पर मजबूती से चल रही है और सभी तरह के दुष्प्रचार के बाबजूद देशहित में लिए गए अपने कड़े फैसलों पर आज तक कायम है.
२. कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गाँधी  जिस तरह से अपनी पार्टी के लिए प्रचार करते हैं, उसका फायदा कांग्रेस पार्टी को कितना होता है, यह तो उसके अन्य नेता ही बता सकते हैं. लेकिन राहुल गाँधी जी के भाषणों और उनके चुनाव प्रचार का भाजपा  के शीर्ष नेता भी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं क्योंकि भाजपा की आधी जीत अगर अपने “विकास” के अजेंडे से तय होती है तो बाकी की आधी जीत का श्रेय राहुल गाँधी जी की अनूठी प्रचार शैली को दिया जाना चाहिए. राहुल गाँधी बार बार अपनी चुनाव रैलियों और भाषणों में कहते हैं कि हमारी पार्टी की लड़ाई भाजपा और आर एस एस  की विचारधारा से है और हम उससे बिना कोई समझौता किये लड़ते रहेंगे. भाजपा भी तो यही चाहती है कि राहुल गाँधी जी इस तरह की बातें बोलें. जब वह इस तरह के बयां देते हैं तो लोग यह समझ जाते हैं कि पिछले ६० सालों से वे लोग क्या गलती दोहराते आ रहे थे और लोग यह भी कसम खाते हैं कि अब वह गलती दुबारा नहीं दुहराई जाएगी. जब राहुल गाँधी यह बताते हैं कि उनकी लड़ाई भाजपा और संघ की विचारधारा से है तो अनायास ही लोगों का धयान कांग्रेस पार्टी की विचारधारा पर चला जाता है. राजनीति में पार्टियां और व्यक्ति नहीं जीतते है, सिर्फ विचारधाराएं ही जीता करती है. कांग्रेस पार्टी जिस विचारधारा की पक्षधर है, उसे इस देश की सवा सौ करोड़ जनता एकमत से कई बार नकार चुकी है, इस बात को समझने के लिए न तो राहुल गाँधी  तैयार हैं और न ही उनकी पार्टी का अन्य कोई नेता. जब कभी भी कांग्रेस पार्टी के महाविनाश का इतिहास लिखा जाएगा, राहुल गाँधी जी का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा, इसमें कोई संदेह नहीं  है.
३. भाजपा को जिताने के लिए हालांकि ऊपर लिखे दो ही कारण पर्याप्त हैं लेकिन भाजपा के विरोधी अपनी बौखलाहट और छटपटाहट में कुछ ऐसे भी काम कर जाते हैं जिससे भाजपा को बोनस मिल जाता है और उसकी जीत “बम्पर” जीत में तब्दील हो जाती है. ऐसे मसले  लाखों की संख्या में है. लेकिन उनमे से कुछ मसलों का जिक्र करने भर से ही इस पार्टी के चाल, चरित्र और चेहरे की पहचान हो जाती है. जहां सारी दुनिया “इस्लामिक आतंकवाद” से बुरी तरह परेशान है, वहीं अपनी कांग्रेस पार्टी ने “हिन्दू आतंकवाद” नाम का एक शब्द अपने कांग्रेसी शब्दकोष में जोड़ा है और कई बेगुनाहों को “हिन्दू आतंकवादी” घोषित करके जेलों में डालने का काम अपने शासनकाल में किया है. कांग्रेस पार्टी के कई शीर्ष नेता पाकिस्तान में जाकर पाकिस्तान सरकार के आगे गिड़गिड़ाते हैं कि मोदी को हारने में हमारी मदद करो. देश की जनता को कांग्रेस पार्टी ने अगर आज भी बेबकूफ समझ रखा है तो जनता यह जबाब देने में भी सक्षम है कि दरअसल बेबकूफ कौन है?

Wednesday, October 11, 2017

पटाखे सिर्फ दिवाली पर ही प्रदूषण क्यों फैलाते हैं ?

"दिव्य देश" के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपना एक "ऐतिहासिक" फैसला सुनाते हुए "सिर्फ" दीपावली के अवसर पर पटाखे जलाने पर रोक लगा दी है. पटाखों पर लगी यह रोक सिर्फ नवम्बर तक के लिए ही है. इस तारीख के बाद पटाखे बेचे भी जा सकते हैं और जलाये भी जा सकते हैं. एक खोजी टी वी चैनल को यह बात कुछ हज़म नहीं हुयी सो उसने अपने एक होनहार रिपोर्टर को देश के पर्यावरण  मंत्री के पास  इंटरव्यू  लेने के लिए भेज दिया.

टी वी रिपोर्टर ने पर्यावरण मंत्री से मिलने का समय माँगा. मंत्री जी तो साक्षात्कार देने के लिए खुद ही उतावले हुए जा रहे थे. लिहाज़ा  तय समय पर रिपोर्टर मंत्री जी के निवास पर पहुँच गया.

बिना किसी औपचारिकता के रिपोर्टर ने मंत्री जी से अपना पहला सवाल दागा -" सर, अपने "दिव्य देश" में  पर्यावरण को लेकर लोग काफी जागरूक हो रहे हैं. अभी हाल ही में अपने सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस मामले की गंभीरता समझते हुए दीपावली के मौके पर पटाखों की बिक्री और उन्हें जलाने पर रोक लगा दी हैअदालत के इस "ऐतिहासिक" फैसले पर आपका क्या कहना है ? "

मंत्री जी ने अपने गुस्से को किसी तरह दबाते हुए  जबाब दिया -" हमें क्या कहना है ? अरे हमारी सुन कौन रहा है ? पर्यावरण की चिंता हमसे ज्यादा अदालतों को हो रही है. अब इस देश को सरकारें और उनके मंत्री नहीं, अदालतें ही चला लेंगी. देखते हैं, यह सब कब तक चलता है."

रिपोर्टर : लेकिन मंत्री महोदय, जिस तरह से देश प्रदूषण की समस्या की चपेट में  चुका है, उसे देखते हुए अगर सरकार कोई कदम नहीं उठाएगी तो अदालतों को तो दखल देना ही पड़ेगा ना ? उस पर आप इतना आग बबूला क्यों हुए जा रहे हैं ?

मंत्री जी : पत्रकार महोदय, सिर्फ दीवाली के मौके पर पटाखों की बिक्री और जलाने पर रोक लगाने से इस देश से प्रदूषण की समस्या का समाधान हो जाता तो सरकार यह कदम कब का उठा चुकी होती और इस देश से प्रदूषण भी कब का खत्म हो गया होता.

रिपोर्टर : चलिए , अदालत ने तो सही गलत जो कुछ करना था सो कर दिया, अब आपकी सरकार और खुद आप इस मामले में क्या कार्यवाही करेंगे ?

मंत्री जी : हमारी कैबिनेट कमेटी की मीटिंग आज रात ही होने वाली है. उस मीटिंग में हम सबसे पहले तो इस रहस्य्मय गुत्थी को सुलझाने का प्रयास करेंगे कि आखिर यह पटाखे सिर्फ दीपावली जैसे त्योहारों पर ही प्रदूषण क्यों फैलाते हैंक्रिसमस या अंग्रेजी नए साल के मौके पर जो पटाखे बेचे जाते हैं और जलाये जाते हैं, अगर वे पटाखे किसी और तकनीक से बनाये जाते हैं तो बेहतर यही होगा कि उसी तकनीक से बनाये गए पटाखे दिवाली पर भी इस्तेमाल कर लिए जाएँ.

इस बार रिपोर्टर चकरा गया. मंत्री जी ने भी पहली बार एक समझदारी भरी बात कर डाली थी . खैर अपने को सँभालते हुए रिपोर्टर ने फिर सवाल कर दिया -" मंत्री महोदय आप यह कह रहे हैं कि दिवाली के अलावा अन्य सभी अवसरों और त्योहारों पर बेचे जाने वाले और जलाये जाने वाले पटाखों से प्रदूषण नहीं फैलता है- यह अनोखी बात आपको किसने बताई ?

मंत्री जी : बुरा मत मानना, आप पत्रकार हो या घसियारे हो ? अदालत के फैसले से तुम्हे यह बात समझ में नहीं आयी क्या ? अदालती फैसले के हिसाब से पटाखों की बिक्री और जलाये जाने पर सिर्फ नवम्बर तक की ही रोक है. कोई भी समझदार आदमी इसका जो मतलब निकलेगा, वही आप भी निकाल लो और अपने चैनल की टी आर पी बढ़ाने पर ध्यान दो.

रिपोर्टर अब मंत्री जी के बढ़ते गुस्से को भांप गया था और उसने अपना बोरिया बिस्तर वहां से समेटने में ही अपनी भलाई समझी. मंत्री जी को समय देने के लिए शुक्रिया करता हुआ वह फटाफट वहां से खिसक लिया

( इस व्यंग्य रचना के सभी पात्र एवं घटनाएं  काल्पनिक हैं )



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