Monday, February 20, 2017

सांप्रदायिक कौन : मोदी या मनमोहन ?

रविवार १९ फरवरी २०१७ को उत्तर प्रदेश की एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुये प्रधान मंत्री मोदी ने यह वक्तव्य दिया कि-"धर्म के आधार पर भेदभाव नही होना चाहिये. अगर रमज़ान मे बिजली मिलती है तो दिवाली मे भी बिजली मिलनी चाहिये." देश के सारे के सारे विपक्षी दल पी एम मोदी के इस वक्तव्य को "साम्प्रदायिक" बता रहे हैं और इस हद तक आग बबूला हो गये हैं कि शिकायत लेकर चुनाव आयोग के पास भी पहुंच गये हैं.

पीं एम मोदी के इस वक्तव्य पर और चर्चा करने से पहले आइए हम सन २००६ मे दिये गये तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक बयान पर भी नज़र डाल लेते हैं-" मुस्लिमों और अल्पसंख्यकों का इस देश के संशाधनों पर पहला हक है."

कोई भी साधारण पढ़ा लिखा या समझदार व्यक्ति यह आसानी से बता सकता है कि ऊपर दिये गये दोनो बयानों मे से कौन सा बयान "साम्प्रदायिक" है और कौन सा बयान देश और समाज को भेदभाव से मुक्त रखने की सलाह दे रहा है.

 विपक्षी दलों के साथ दिक्कत यह है कि पिछले ७० सालों से वे लोग जिस तरह से देश और समाज मे भेदभाव, जातिवाद और साम्प्रदायिकता का जहर घोल घोल कर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंक रहे थे, मोदी उन सब को बेनकाब कर रहे हैं और क्योंकि इनकी "वोट बैंक" की राजनीतिक रोटियाँ अब बहुत जल्द ही बंद होने वाली हैं, इन सभी ने अपनी अपनी छाती पीटना और विधवा विलाप करना शुरु कर दिया है.
 यह विपक्षी दल शायद अभी भी देश की जनता को अनपढ, जाहिल और मूर्ख समझने की गलती कर रहे हैं कि यह लोग मोदी और भाजपा के खिलाफ जो कोई भी दुष्प्रचार करेंगे, उसे इस देश की जनता सच समझ कर इनके चंगुल मे एक बार फिर फंस जायेगी. २०१४ के लोकसभा चुनावों मे इस देश की जनता ने यह साबित कर दिया है कि जनता विपक्षी दलों की जाति-पाति और धर्म के आधार पर बांटने वाली ओछी राजनीति से अब ऊब चुकी है. देश के विपक्षी राजनीतिक दल जितनी जल्द यह बात समझ लेंगे, उनकी सेहत के लिये अच्छा होगा


Monday, February 13, 2017

उत्तर प्रदेश में भाजपा की बम्पर जीत के संकेत

विधान सभा चुनावों से पहले ही यह माना जा रहा था कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में सेना द्वारा की गयी सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी के चलते काले धन और जाली धन पर की गयी अभूतपूर्व सर्जिकल स्ट्राइक इन चुनावों में मुख्य मुद्दा बनेंगे, जिस बात का किसी को भी अंदाजा नहीं था, वह यह थी कि विपक्षी राजनीतिक दल इन दोनों ही ऐतिहासिक और जनहित में लिए गए फैसलों का अपनी पूरी ताकत लगाकर विरोध करेंगे. विपक्षी दलों को इन दोनों ही फैसलों से इतना बड़ा धक्का लगा, मानो वे लोग चुनाव शुरू होने से पहले ही चुनाव हार गए हों. इसकी वजह सिर्फ यह थी कि जनता को यह समझ में आ गया कि जो क्रांतिकारी काम पिछली सरकारें ६७ सालों में नहीं कर सकीं, उन्हें मोदी सरकार ने अपनी मजबूत इच्छा शक्ति के बल पर ढाई साल में ही कर दिखाया है. विपक्षी दल इस बात से पूरी तरह वाकिफ थे कि विधान सभा चुनावों को वे पूरी तरह से शुरू होने से पहले ही हार चुके है. सबसे ज्यादा डर उत्तर प्रदेश में सत्ता पर काबिज़ समाजवादी पार्टी को था, लिहाज़ा इस पार्टी  ने सर्जिकल स्ट्राइक के तुरंत बाद से एक लिखी हुईं स्क्रिप्ट पर काम करना शुरू कर दिया, जिसे देखकर जनता  और मीडिया दोनों ही पिछले पांच सालों के जंगल राज को भूल जाएँ और यह समझ बैठें कि अखिलेश यादव तो “बहुत ही बढ़िया राजनेता” हैं, उन्हें उनके पिताजी "बढ़िया" बनने से रोक रहे थे.

दिक्कत यह है कि लोग आजकल पढ़े लिखे और समझदार है और सोशल मीडिया ने उन्हें पूरी तरह सजग कर दिया है. लोग समाजवादी पार्टी द्वारा पेश किये गए इस "मुलायम-अखिलेश" ड्रामा के मन्तव्य को तभी समझ गए थे, जब यह शुरू हुआ था. चुनावों की घोषणा होने के बाद समाजवादी पार्टी को यह लगने लगा कि लोग उसके ड्रामे को समझ गए हैं और उसकी लुटिया डूबनी लगभग तय है. अब इस पार्टी ने मजबूरी में अपना आखिरी दांव चल दिया और जिस कांग्रेस पार्टी का यह कल तक विरोध कर रहे थे, उसके साथ गठबंधन कर लिया. कांग्रेस पार्टी के लिए तो यह मौका "डूबते को तिनके का सहारा "  की तरह आया और उसने बिना किसी सोच विचार के इस मौके को लपक लिया.

देखा जाए तो कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी तो पहले से ही अपने आप को "हारा हुआ खिलाड़ी" समझ रहे थे, कांग्रेस को लगा क़ि समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने से उसे कुछ खोना नहीं है क्योंकि उसके पास कुछ भी खोने के लिए नहीं है. हाँ , लोग अगर गलती से भी समाजवादी ड्रामे की चाल में फंस गए तो उसे फायदा जरूर हो सकता है.

२०१४ के लोकसभा चुनावों में जीरो पर आउट हुईं बहुजन समाज पार्टी तो पहले से ही हाशिये पर थी . रही सही कसर उस खुलासे ने कर दी जिससे यह सामने आया कि नोटबंदी की अवधि में बैंकों में पुराने नोटों  को सबसे अधिक मात्रा में जमा कराने वाली वह इकलौती पार्टी है. बाकी पार्टियों ने भी पुराने नोटों को बैंक में जमा कराया लेकिन जितनी भारी भरकम मात्रा में पुराने नोट बसपा ने जमा कराये, उसे देखकर जनता खुद ही समझ गयी कि आखिर यह विपक्षी दाल नोटबंदी का इतनी तेजी के साथ विरोध क्यों कर रहे थे. इतना तो जनता समझ ही चुकी है कि जो राजनीतिक दाल जितनी ताकत लगाकर नोटबंदी का विरोध कर रहा है, वह राजनीतिक दल या नेता उतनी ही बुरी तरह नोटबंदी से प्रभावित हुआ है.

गौरतलब बात यह है कि पाक अधिकृत कश्मीर में की गयी सर्जिकल स्ट्राइक हो या फिर काले धन और जाली धन पर कि गयी सर्जिकल स्ट्राइक, मोदी सरकार ने देश में पहली बार एक जबरदस्त "मास्टर स्ट्रोक" खेला है, जिससे समूचा विपक्ष चरों खाने चित हो गया है और दोनों ही क़दमों की तीखी आलोचना कर रहा है. अगर यह दोनों फैसले घटिया है, जनहित और देशहित में नहीं हैं, फिर उसका अंजाम तो भाजपा के खिलाफ ही जाने वाला है. भाजपा के खिलाफ जाने वाले फैसलों का तो विपक्षी नेताओं को मन ही मन स्वागत करना चाहिए. लेकिन भाजपा के साथ साथ पूरा विपक्ष यह जानता है कि यह दोनों फैसले ऐसे हैं जो पिछले ६७ सालों में कोई भी सरकार नहीं ले सकी और क्योंकि यह फैसले ऐतिहासिक एवं  अभूतपूर्व हैं और देशहित एवं जनहित में हैं, मोदी सरकार को इनका फायदा लेने से कोई नहीं रोक सकता.

लगभग सभी विपक्षी नेता और राजनीतिक दल मन ही मन इस बात पर एकमत हैं कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की बम्पर जीत को कोई नहीं रोक सकता लेकिन इसी कड़वे सच को खुलकर मानने के लिए तैयार नहीं हैं. अब सभी विपक्षी नेताओं की उम्मीद इसी बात पर टिकी हुयी है कि वे जाति-धर्म और साम्प्रदायिकता की राजनीती को अंजाम देने और जनता को दिग्भ्रमित करने में कितने कामयाब होते हैं. जिस तरह से सभी पार्टियां अल्पसंख्यक वर्ग के मतदाताओं को भाजपा से डरा कर  अपनी तरफ करने में लगी हुयी हैं, उससे यह सवाल भी खड़ा हो रहा  है कि जो मीडिया भाजपा को सांप्रदायिक कहने में एक मिनट नहीं लगाता वह मुस्लिमों को भाजपा से डराने वालों को कब "सांप्रदायिक" कहना शुरू करेगा ?



Friday, February 3, 2017

गाज़ियाबाद वोटर लिस्ट से लाखों नाम गायब !

देश की राजधानी दिल्ली से सटे गाज़ियाबाद  क्षेत्र में विधान सभा की सभी सीटों के लिए लगभग सभी राजनीतिक दलों के प्रत्याशी अपना अपना भाग्य आजमा रहे हैं. इस हाइ प्रोफाइल इलाके  मे जहां कांटे का मुकाबला होने की संभावना जताई जा रही है,वहीं दूसरी तरफ  यहाँ के लाखों निवासियों की शिकायतें भी आ रही है कि उनके नाम अभी तक वोटर लिस्ट मे शामिल नही किये गये है !

जिन इलाकों के निवासियों की ज्यादा शिकायतें आ रही है, उनमे इंदिरापुरम,वैशाली और वसुंधरा जैसे क्षेत्र मुख्य रूप से शामिल है-यहाँ पर चुनाव प्रक्रिया से जुड़े सरकारी कर्मचारियों ने लगभग 1 साल पहले बहुमंजिला इमारतों मे रहने वाले निवासियों की सोसाइटी कॉम्प्लेक्स मे जाकर फार्म 6 एकत्रित किये थे ! काफी लोगों ने यहाँ ऑनलाइन आवेदन भी किया है ! लेकिन हालत इतनी ज्यादा बदतर है कि लाखों नाम अभी तक वोटर लिस्ट मे शामिल नही किये गये है जबकि यहाँ ११ फरवरी  को वोट डाले जाने हैं ! जो निवासी ऑनलाइन शिकायत भी दर्ज़ करा रहे है उन्हे गोल मोल जबाब देकर चलता किया जा रहा है और इस बात की उम्मीद कम ही है की ये लाखों लोग ११ फरवरी  को होने वाले चुनावों मे अपना वोट डाल पायेंगे ! हैरानी की बात तो यह भी है कि सोसाइटी काम्पलेक्स मे आये अधिकारियों को जिन निवासियों ने अपने परिवार के कई सदस्यों के फार्म 6 जमा कराये थे, उनमे से कुछ के नाम मतदाता सूची मे दर्ज़ हैं और कुछ के नही !

गाज़ियाबाद RWA फेडरेशन ने भी इस विषय मे सम्बंधित अधिकारियों को इस बाबत लिखकर इस बात की आशंका जताई है कि इतनी भारी संख्या मे जागरूक मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट मे शामिल ना किया जाना एक राजनीतिक साज़िश भी हो सकती है ! उम्मीद यह की जाती है कि मुख्य चुनाव आयुक्त कार्यालय इस मामले मे तुरंत दखल देकर सभी मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट मे शामिल करवाने की दिशा मे कोई ठोस कदम उठायेगा !

सभी राजनीतिक दल आजकल गाज़ियाबाद मे जोर शोर से प्रचार मे लग गये है- जब तक मतदाताओं के नाम ही मतदाता सूची मे ना शामिल हों, इस प्रचार का कोई मतलब नही है ! कौन किसे वोट देगा, इस बारे मे लोग अपना मन बना चुके हैं-अब वक्त इस बात का है कि सभी राजनीतिक दल,बेमतलब के इस चुनाव प्रचार को रोककर पहले यह सुनिश्चित करें कि जिनसे वे वोट मांग रहे हैं, वे वोट दे भी पायेंगे या नही !

देश की राजधानी दिल्ली से सटे गाज़ियाबाद की हालत अगर यह है तो देश के बाकी स्थानों पर हालत इससे बेहतर होगी, इसकी उम्मीद कम ही है !

नियमों के अनुसार वोट डालने के लिये सिर्फ वोटर कार्ड होना ही काफी नही है-मतदाता को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिये कि उसका नाम वोटर लिस्ट में शामिल भी है या नही क्योंकि काफी मतदाता ऐसे भी हैं जिन्हे वोटर कार्ड तो मिल चुका है लेकिन उनका नाम वोटर लिस्ट मे नही है !

गौर देने लायक बात यह है कि इस समस्या कि तरफ मैंने २०१४ के लोकसभा चुनावों से पहले भी सभी सम्बंधित अधिकारियों और चुनाव आयोग का ध्यान आकर्षित किया था लेकिन सरकारी निकम्मापन इस हद तक फैला हुआ है कि आज तीन सालों के बाद भी हालात जस के तस हैं और जिन लोगों को मतदाताओं को पहचान पत्र जारी तीन साल पहले ही जारी कर देने चाहिए थे, वे आज भी वोटर कार्ड का इंतज़ार कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश में जंगल राज के यह हालात कब सुधरेंगे, इस पर कोई भी टिप्पणी करना आज पूरी तरह फ़िज़ूल की  बात लगती है.
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Sunday, December 25, 2016

भूषण,केजरीवाल और राहुल गाँधी के "झूठ" का सच !

पुरानी कहावत है कि बेईमान आदमी से किसी को डर नही लगता है और ईमानदार आदमी से सभी डरते हैं. देश के पी एम नरेन्द्र मोदी की यही अटूट ईमानदारी आज भ्रष्टाचार के समुद्र मे गोते लगा चुके विपक्षी नेताओं के गले नही उतर रही है और यह लोग पागलपन की हद तक जाकर मोदी के खिलाफ कुछ ना कुछ ऐसा षड्यंत्र 24 घंटे 365 दिन रचने मे लगे हुये हैं, जिससे मोदी भले ही आरोपित हो या ना हों, देश की जनता को यह लोग अपने दुष्प्रचार से भ्रमित करने मे उसी तरह कामयाब हो जाएं, जैसा कि यह लोग पहले भी होते आये हैं.

जनहित याचिकाओं को एक व्यापार की तरह चलाने वाले तथाकथित वकील प्रशांत भूषण सबसे पहले अपनी "बेबुनियाद जनहित याचिका" लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे और सुप्रीम कोर्ट से यह गुहार लगाई थी कि आदित्य बिरला ग्रुप और सहारा ग्रुप पर मारे गये छापों के दौरान कुछ कागज ऐसे मिले हैं, जिनमे "गुजरात सी एम" का नाम लिखा हुआ है, लिहाज़ा जो गुजरात के उस समय सी एम थे, वह आज देश के पी एम हैं, और इसीलिये सुप्रीम कोर्ट एक SIT गठित करके देश के पी एम के खिलाफ इस भ्रष्टाचार की जांच करने का आदेश करे.

सुप्रीम कोर्ट ने इस तथाकथित जनहित याचिका को पूरी तरह बेबुनियाद,मनगढ़ंत और काल्पनिक बताते हुये जो कुछ कहा वह यह है : "अगर इस तरह की सामग्री के आधार पर किसी तरह की जांच या कार्यवाही की जाती है तो दुनिया मे किसी भी व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर जांच की मांग की जाने लगेगी. कोई भी शरारती व्यक्ति अपने कंप्यूटर मे किसी का भी नाम लिख सकता है और आप उसकी जांच के लिये सुप्रीम कोर्ट आ जायेंगे ? " अदालत ने भूषण को जबरदस्त फटकार लगाते हुये कहा कि अगर वह वाकयी जांच कराना चाहते हैं तो कोई सुबूत इस अदालत मे अगली तारीख तक पेश करें. सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी किसी को भी शर्मसार करने के लिये काफी है लेकिन भूषण, केजरीवाल और राहुल गाँधी जैसे लोगों से इस तरह की आशा करना व्यर्थ है क्योंकि "बेशर्मी" ही इन लोगों की जमा पूँजी है.

आइए अब आपको इस मामले से जुड़े कुछ और दिलचस्प तथ्य बताते हैं, जिन्हे पढ़कर आपको यह मालूम पड जायेगा कि भूषण,केजरीवाल और राहुल गाँधी आखिर कितने पानी मे हैं. अक्टूबर 2013 मे जब केन्द्र मे कांग्रेस की सरकार थी, उस समय सी बी आई ने UPA सरकार के कोयला घोटाले के सिलसिले मे आदित्य बिरला ग्रुप पर रेड मारी थी. इस रेड मे कंप्यूटर पर एक शीट पर यह लिखा हुआ था-" Gujarat CM-25 Crore.12 Paid.Rest?"

इस सम्बंध मे दो बाते ध्यान देने योग्य है, पहले तो यह मामला किसी औद्योगिक इकाई की पर्यावरण मंजूरी से जुड़ा हुआ था. पर्यावरण की मंजूरी देने मे ना तो गुजरात सरकार और ना ही गुजरात के किसी मंत्री या अधिकारी का कोई लेना देना होता है. इस मामले मे अगर किसी तरह की रिश्वत का लेन देन हुआ भी होगा तो वह केन्द्र सरकार के पर्यावरण मंत्री और कम्पनी के बीच हुआ होगा क्योंकि पर्यावरण सम्बंधी सभी मंजूरी केन्द्र सरकार के अंतर्गत आती है.  सी बी आई को जब कुछ समझ नही आया तो उस ने यह कंप्यूटर शीट आयकर विभाग को आगे की कार्यवाही करने के लिये सौंप दी. जब आयकर विभाग ने आदित्य बिरला ग्रुप के CEOअमिताभ से यह पूछा कि शीट पर जो GujaratCM  लिखा है,वह कौन है, तो उसने जबाब मे बताया कि GujaratCM का मतलब  Gujarat Alkalies and Chemicals Limited से है. दूसरी अहम बात यह है कि अगर यह मामला गुजरात के तत्कालीन सी एम मोदी से जुड़ा था, तो केन्द्र की सरकार को तो मोदी पर अपनी पूरी ताकत के साथ  अक्टूबर 2013 मे ही टूट पड़ना चाहिये था और सी बी आई और आयकर विभाग के साथ साथ सभी सरकारी अजेंसियों को मोदी के पीछे ही लगा देना चाहिये था. आखिर कांग्रेस सरकार पिछले 12 सालों से मोदी के पीछे पड़ी ही हुई थी और उनको लगातार झूठे और मनगढ़ंत मामलों मे फंसा रही थी. फिर इस मामले मे UPA सरकार ने मोदी पर मेहरबानी क्यों दिखाई ?

अब दुबारा से हम भूषण वकील के निराधार आरोपों पर आते हैं. भूषण को जब सर्वोच्च न्यायालय ने फटकार लगाई तो भूषण का नशा तो शांत हो गया लेकिन केजरीवाल जी ने उन्ही बेबुनियाद आरोपों को फिर से लपक लिया और जनता को हमेशा की तरह एक बार से बेबकूफ बनाने की कोशिश कर डाली. राहुल गाँधी ने तो शायद यह झूठे और मनगढ़ंत आरोप देश के सबसे अधिक ईमानदार राजनेता पी एम मोदी पर लगाने से पहले अपनी पार्टी के नेताओं से भी विचार विमर्श नही किया, वर्ना उन्हे यह मालूम होता कि जिस फर्ज़ी लिस्ट मे "गुजरात सी एम" लिखा हुआ है, उसी लिस्ट मे दिल्ली की तत्कालीन सी एम शीला दीक्षित का भी नांम लिखा हुआ है. सबसे बड़ी बात यह है कि जैन हवाला मामले मे सुप्रीम कोर्ट यह बात साफ शब्दों मे कह चुका है कि सिर्फ किसी काग़ज़, डायरी या शीट पर किसी का नाम भर लिखा होने से ,उस व्यक्ति के खिलाफ कोई मामला बनाकर जांच नही की जा सकती है. यह तो ऐसे हो गया कि किसी भी व्यक्ति के यहाँ कोई छापा पड़े और किसी काग़ज़ पर अगर यह लिखा हो कि राजीव गुप्ता ने 25 करोड़ रुपये लिये तो बस उसी पल सब के सब भ्रष्ट लोग राजीव गुप्ता के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच की मांग करते हुये सुप्रीम कोर्ट पहुंच जायेंगे.


जब 2012 मे हिमाचल प्रदेश के कांग्रेसी मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का नाम इसी तरह के एक मामले मे आया था तो खुद कांग्रेसी नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के इसी जैन हवाला केस का हवाला देते हुये उनका यह कहकर बचाव किया था कि सिर्फ किसी कागज पर नाम लिखा होना किसी तरह की जांच के लिये पर्याप्त सबूत नही है.

Sunday, December 18, 2016

क्या हो सकता है मोदी सरकार का अगला कदम ?

नोट बंदी की समय सीमा  समाप्त होने मे अब कुछ ही दिन बाकी रह गये है. 30 दिसंबर 2016 को नोट बंदी का यह अभूतपूर्व जन आन्दोलन समाप्त होने वाला है. लेकिन जैसा कि खुद पी एम मोदी यह बात कई बार कह चुके हैं कि काले धन, भ्रष्टाचार और सामाजिक अन्याय के प्रति जो कुछ भी किया जाना बाकी है, नोट बंदी उसकी एक शुरुआत भर है. दूसरे शब्दों मे कहा जाये तो नोट बंदी या विमुद्रीकरण उस प्रक्रिया की पहली किश्त है, जिसके जरिये पिछले 70 सालों की गंदगी को साफ किया जाना बाकी है. नोट बंदी के साथ साथ मोदी सरकार ने चुप चाप बेनामी प्रॉपर्टी के कानून को भी 1 नवंबर 2016 से लागू कर दिया है, जिसे कांग्रेस सरकार के समय 1988 मे लाया गया था लेकिन कांग्रेस क्या, मोदी सरकार से पहले किसी भी सरकार की इतनी हिम्मत नही हुई कि वह इस कानून को लागू कर पाती. बेनामी प्रॉपर्टी से सम्बंधित कानून लागू करने का विरोध विपक्षी दलों ने दो कारणो से नही किया. पहला तो यह कि विपक्षी दल नोट बंदी से ही इतने अधिक सदमे मे थे कि उन्हे कुछ और सूझ नही रहा था. दूसरे, बेनामी प्रॉपर्टी के कानून को कांग्रेस के शासनकाल मे  ही पास किया गया था-मोदी सरकार ने उसे सिर्फ लागू करने का काम किया है.

काले धन और भ्रष्टाचार को समाप्त करने के रास्ते पर चलते हुये, मोदी सरकार निकट भविष्य मे कुछ और कड़े कदम उठा सकती है, जिनका उल्लेख नीचे किया गया है :

(1) आयकर कानून की धारा 13A के अंतर्गत सभी राजनीतिक पार्टियों की सभी तरह की आय और मिलने वाले चंदे पर बिना किसी रोकटोक और बिना किसी सीमा के आयकर की पूरी छूट मिली हुई है. गौर करने वाली बात यह है कि राजनीतिक दलों की ना सिर्फ सभी तरह् की आय पर कोई आयकर नही है, उन्हे मिलने वाले चन्दों पर भी कोई आयकर नही है. 20000 रुपये से ऊपर मिलने वाले चन्दों का तो राजनीतिक पार्टियों को हिसाब किताब रखने की भी जरूरत नही है. आयकर अधिनियम की यह धारा देश की जनता के साथ धोखा है- जहाँ देश की जनता को सरकार अपना आयकर समय पर और सही तरीके के भरने का उपदेश देती रहती है, वहीं, सभी राजनीतिक पार्टियों को सभी तरह की आय और चन्दों से होने वाली आय को आयकर के दायरे से बाहर रखना, काले धन और भ्रष्टाचार को बढाने जैसा ही है. मोदी सरकार इस धारा को पूरी तरह समाप्त करके देश की जनता को एक और "सरप्राइज" दे सकती है.

(2) नोट बंदी के बाद डाले गये सभी छापों मे भरी मात्रा मे नये नोट और सोना बरामद हुआ है. अपराधियों को पकड़कर पूछताछ भी की जा रही है. लेकिन जो मौजूदा कानून हैं, उनके तहत इस तरह के अपराधियों को रोक पाना संभव नही है. आज यह बात आम तौर पर कही जाती है कि -"रिश्वत लेते हुये पकड़े जाओ और रिश्वत देकर छूट जाओ." देश भर मे जितने भी सरकारी अधिकारी और कर्मचारी हैं, चाहे वे राज्य सरकार के अंतर्गत आते हों या केन्द्र सरकार के, उनमे से ज्यादातर, तभी तक ईमानदार है, जब तक उन्हे भ्रष्ट होने का मौका ना मिले. पिछले दिनो नोट बंदी के दौरान बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों की काली करतूतें इसका जीता जागता उदाहरण है. अभी हाल ही मे जो नये नोट और सोना पकड़ा गया है, अगर उसकी ईमानदारी से जांच की जाये, तो यही सामने आयेगा कि बरामद किये गये नये नोटों और सोने मे से ज्यादातर हिस्सा किसी ना किसी सरकारी अधिकारी की रिश्वत के लिये ही था. भारत सरकार का एक ऐसा विभाग जिसकी छवि रिश्वत लेने के मामले मे सबसे ज्यादा खराब है, वहां बड़ी संख्या मे मामले हर साल निपटाये जाते हैं और उन्हे निपटाने की आखिरी तारीख हर साल 31 दिसंबर होती है. 8 नवंबर को नोट बंदी का फैसला हुआ तो इस विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने भी रिश्वत की मांग नये नोटो और सोने के रूप मे ही की होगी. इतने बड़े पैमाने पर नये नोटों और सोने की बरामदगी कम से कम इसी बात की ओर संकेत करती है. मजे की बात यह है कि जिस तरह से मोदी सरकार को बैंक अधिकारियों पर बहुत भरोसा था, उसी तरह मोदी सरकार को इस विभाग के अधिकारियों पर भी आने वाले समय मे भरोसा करना है. यह लोग मोदी सरकार के भरोसे पर खरे उतरें, इसे सुनिश्चित करने के लिये, सरकार कुछ ऐसे सख्त कदम उठा सकती है, जिससे इन लोगों के भ्रष्टाचार पर लगाम लगे. किसी भी व्यक्ति के पास रखे जाने वाले अधिकतम सोने और नक़दी की सीमा तय करना और 100 रुपये से ऊपर के नये नोटों पर 3 से लेकर 5 वर्षों तक की "एक्सपाइरी डेट" लिखा जाना, जैसे कुछ फैसले भी निकट भविष्य मे लिये जा सकते हैं. सरल शब्दों मे कहें तो जब तक रिश्वत लेना और देना बंद पूरी तरह से बंद नही होगा, काले धन और भ्रष्टाचार को पूरी तरह समाप्त नही किया जा सकता और सभी सरकारी विभागों मे रिश्वत के इस लेन-देन पर लगाम लगाने के लिये मोदी सरकार कोई बड़ा कदम उठा सकती है.
( लेखक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और टैक्स मांमलों के एक्सपर्ट है.)

Tuesday, December 13, 2016

नोट बंदी से केजरीवाल बेचैन क्यों ?

जब से पी एम मोदी ने काले धन के खिलाफ अपनी निर्णायक जंग का एलान करते हुये, पुराने 500-1000 के नोट बंद किये हैं, केन्द्र की भाजपा सरकार और पी एम मोदी खुद केजरीवाल समेत सभी विपक्षी नेताओं के निशाने पर हैं. केजरीवाल जो खुद अन्ना हज़ारे के साथ एक भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन करने की सफल नौटंकी कर चुके हैं, उनकी बेचैनी विपक्ष के बाकी सभी नेताओं से काफी ज्यादा लग रही है. नोट बंदी से केजरीवाल इतने बेचैन क्यों हैं, इस पर सभी लोग अपने अपने ढंग से कयास लगा रहे हैं लेकिन असली कारण कोई भी खुलकर नही बताना चाहता है.

केजरीवाल की बेचैनी का विश्लेषण करने से पहले हमे उन बातों पर ध्यान देना होगा, जिनके ऊपर इस नोट बंदी का सबसे ज्यादा असर पड़ा है.

(1) नोट बंदी से सबसे ज्यादा मार उन लोगों पर पड़ी है, जो लोग 500 और 1000 के नकली नोटों के कारोबार मे लिप्त थे. जैसा कि सभी को मालूम है कि नकली नोटो की छपाई का सारा काम पाकिस्तान मे होता था और व़हाँ से इन नकली नोटों को भारत मे जारी किया जाता था. पाकिस्तान से भारत मे फैलाया जा रहा आतंकवाद इसी नकली नोटों के कारोबार की बदौलत ही पिछले कई दशकों से बे रोक टोक चल रहा था. हमारे अपने देश मे ऐसे लोगों की कमी नही है जो खाते हिन्दुस्तान का हैं और गाते पाकिस्तान का हैं-दूसरे शब्दों मे कहें तो इनकी वफादारी अपने देश के प्रति ना होकर पाकिस्तान के प्रति ज्यादा है. नोट बंदी से पाकिस्तान को जो झटका लगा है, उसे यह आतंकी देश कभी भूल नही पायेगा. अभी हाल ही मे पाकिस्तान मे नकली नोटों को छापने वाले सरगना ने नोट बंदी की वजह से खुदकशी भी कर ली है.

(2) नोट बंदी से आतंकवादियों के साथ साथ नक्सली लोगों को भी गहरा झटका लगा है. काफी नक्सली लोगों ने नोट बंदी के बाद अपनी नक्सली गतिविधियों को बंद करने का एलान करते हुये अपने आपको देश की मुख्यधारा के हवाले कर दिया है.


(3) नोट बंदी का तीसरा सबसे बड़ा झटका उन लोगों को लगा है, जिन्होने देश और जनता को लूट लूट कर टैक्स की चोरी करके अपने पास काले धन का भंडार एकत्रित किया हुआ था.

(4) नोट बंदी से जिस आम जनता पर असर पड़ा है, उसे हम चौथे नंबर पर रख सकते हैं. यह वे लोग हैं जिन्हे तकलीफ तो खूब हो रही है, लेकिन देश हित मे इन्होने इस तकलीफ को अस्थायी रूप से सहने का मन बना लिया है. विपक्षी नेताओं और न्यायालय के उकसाने के बाबजूद आम जनता ने जिस सहनशीलता और परिपक्वता का परिचय दिया है, उसे विपक्षी नेताओं के मुंह पर एक तमाचा ही समझा जाना चाहिये.


कुल मिलाकर हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं, कि जो कोई भी नोट बंदी से बहुत ज्यादा परेशान है और उसे वापस लेने की मांग भी कर रहा है, वह ऊपर लिखी हुई किसी ना किसी केटेगरी मे आता है और केजरीवाल किस केटेगरी मे आते हैं, इसका बेहतर जबाब वह खुद ही दे सकते हैं. इससे पहले कि सोशल मीडिया मे केजरीवाल के बारे मे कुछ मनगढ़ंत कयास लगाये जाएं, उन्हे खुद आगे बढ़कर यह बताना चाहिये कि वह ऊपर लिखी हुई  केटेगरी मे से किस केटेगरी मे आते हैं.

Saturday, December 10, 2016

नोटबंदी: सरकार पास, बैंक फेल !!!

नोट बंदी के ऐतिहासिक और क्रांतिकारी फैसले की जहाँ एक तरफ हर व्यक्ति, तकलीफ़ें उठाने के बाबजूद भी तारीफ कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ हमारे भ्रष्ट बैंक अधिकारियों और निकम्मे बैंक कर्मचारियों की वजह से देश की जनता को ऐसी तकलीफों का भी सामना करना पड रहा है, जिनसे बचा जा सकता था. दरअसल पिछले 70 सालों मे बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों को जबरदस्त कामचोरी की आदत पड चुकी है और ऐसा लग रहा है मानो उन्हे पहली बार काम करना पड रहा है. बैंक की शाखाओं मे किस तरह से आधे-अधूरे मन से काम होता आया है, वह इस देश की जनता से छिपा हुआ नही है. ग्रामीण इलाकों की बैंक शाखाओं मे तो यह हालत और भी अधिक खराब है.

नोट बंदी से एक तो आम आदमी पहले से ही परेशान है क्योंकि जिन लोगों ने पुराने नोट बैंक मे जमा कराये हैं, उन्हे नये नोट बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों के भ्रष्टाचार के चलते नही मिल रहे हैं. अभी हाल ही मे चेन्नई मे आयकर के छापे मे 70 करोड़ रुपये के नये नोट पकड़े गये हैं- ऐसे और भी मामले सामने आ रहे हैं. यह रुपया बैंक अधिकारियों की मिलीभगत के बिना तो बैंको से बाहर नही गया होगा. कायदे मे यह सभी रुपया अगर भ्रष्ट बैंक अधिकारियों ने इस तरह से अपने चहेतों को नही दिया होता तो यह सारा का सारा रुपया बैंको के पास जनता को बांटने के लिये उपलब्ध रहता और बैंको मे उतनी लम्बी लाइने नही लगतीं, जितनी कि आज लग रही हैं. अब तो बैंकों ने रुपये बदलने का काम भी बंद कर दिया है और बैंकों के आगे लगी हुई लाइने उनके अपने खाताधारकों की ही हैं-अगर बैंक वाले इन लोगों को भी नये नोट उपलब्ध नही करवा पा रहे हैं तो उसका कारण यह नही है कि नये नोट पीछे से नही आ रहे हैं, उसका मुख्य कारण यही है कि बैंकों के पास जो रुपये खाताधारकों को बांटने के लिये आ रहे हैं, उनका जबरदस्त ढंग से दुरुपयोग किया जा रहा है.

अभी हाल ही मे बैंकों की एक नयी मूर्खता सामने आई है जिसके चलते आम जनता को काफी परेशानी से दो चार होना पड रहा है. बैंकों मे आजकल "कोर बॅंकिंग सिस्टम" यानी CBS  है, जिसमे आपका खाता किसी भी बैंक शाखा मे हो, आप उसी बैंक की देश मे स्थित किसी भी दूसरी शाखा मे रुपये जमा भी कर सकते है और निकाल भी सकते हैं. लेकिन ज्यादातर बैंको ने अभूतपूर्व बेशर्मी का प्रदर्शन करते हुये, यह कहना शुरु कर दिया है कि वे सिर्फ उन्ही लोगों का पैसा जमा करेंगे या उन्ही को पैसा निकालने देंगे, जिनका उनकी शाखा मे खाता होगा. इसका मतलब हुआ कि अगर किसी का बैंक खाता स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की फ़रीदाबाद ब्रांच मे है और इस समय अगर वह गाज़ियाबाद मे रह रहा है या काम कर रहा है, तो उसे अपने रुपये जमा करवाने या रुपये निकालने के लिये गाज़ियाबाद मे अपना काम धंधा छोड़कर फ़रीदाबाद जाना पड़ेगा और फ़रीदाबाद जाने के बाद भी अगर वहाँ पर उस ब्रांच ने उसे पैसा नही दिया तो उसे अपना सा मुंह लेकर वापस आना पड़ेगा क्योंकि इस बात की भी पूरी संभावना है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की फ़रीदाबाद ब्रांच के अधिकारी भी नये नोटो को इधर उधर कर दें और जनता के लिये "नो कैश" का बोर्ड बैंक के बाहर लगाकर अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा पा जाएं.

सरकार और वित्त मंत्रालय ने हालांकि कुछ भ्रष्ट बैक अधिकारियों पर कार्यवाही की है लेकिन वह हालात को देखते हुये नाकाफी लगती है. सभी भ्रष्ट बैंक अधिकारियों और निकम्मे बैंक कर्मचारियों को यह सख्त हिदायत देने की जरूरत है कि जो नये नोट जनता मे बांटने के लिये भेजे जा रहे हैं, उनका दुरुपयोग किसी भी हालत मे ना हो. जो बैंक अधिकारी और कर्मचारी सरकार की पकड मे आ भी रहे हैं, उन्हे सिर्फ सस्पेंड करने की औपचारिकता निभाई जा रही है-जिससे इन लोगों का गलत काम करने का हौसला और भी बढ रहा है. जरूरत इस बात की है कि जो बैंक कर्मचारी या अधिकारी इस तरह के अपराध मे लिप्त पाये जाएं, उन्हे तुरंत नौकरी से बर्खास्त करके हवाला कानून के अंतर्गत जेल की हवा खिलाई जाये. बैंकों को यह हिदायत भी तुरंत दी जानी चाहिये कि वे किसी भी खाताधारक को सिर्फ इसलिये रुपये जमा करने या निकालने के लिये मना नही करें, क्योंकि उसका खाता उस ब्रांच मे ना होकर किसी दूसरी ब्रांच मे है. रिजर्व बैंक की तरफ से ऐसा कोई नियम नही है-बैंक वाले यह किसके कहने पर कर रहे हैं, इसकी गहन जांच होनी चाहिये,.

Wednesday, December 7, 2016

इस दशक के नेता नरेन्द्र मोदी




हाल ही में राजीव गुप्ता की लिखी हुईं पुस्तक "इस दशक के नेता नरेन्द्र मोदी" प्रकाशित हुईं है. इस पुस्तक में लेखक ने नरेन्द्र मोदी के राजनीतिक जीवन के इर्द गिर्द घूमती हुईं घटनाओं को आधार बनाकर जो रचनाएँ (लेख, व्यंग्य और कवितायेँ आदि) लिखी थीं और जो समय समय पर लेखक के "नवभारत टाइम्स ब्लॉग" पर प्रकाशित हुईं थीं, उन्ही में से कुछ चुनी हुईं रचनाओं को इस पुस्तक में शामिल किया गया है. 

यह पुस्तक सभी ऑनलाइन पोर्टल्स पर उपलब्ध है. पुस्तक के बारे में सुझाव और प्रतिक्रियाएं भेजने के लिए  rajeevg@hotmail.com   पर संपर्क करें.


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Monday, December 5, 2016

#नोटबंदी पर अब तक का सबसे बड़ा खुलासा !!!

नोट बंदी की घोषणा हुये तीन दिन हो चुके थे. सभी टी वी चैनल अपनी टी आर पी बढाने के चक्कर मे इस बात की होड़ मे लगे हुये थे कि देश मे जहाँ कही भी किसी की भी मौत किसी भी वजह से हुई हो, उसे किसी भी तरह से नोट बंदी से जोड़कर दिखलाया जाये. "खबरदार" टी वी चैनल अभी तक इस दौड़ मे शामिल नही हुआ था और लिहाज़ा इस टी वी चैनल की टी आर पी का बैंड बज़ा हुआ था. टी वी चैनल की संपादक मंडली के लोग गंभीर सोच विचार मे ही थे कि अचानक ही चैनल के चीफ एडिटर ने अपने प्राइम टाइम शो को पेश करने वाले एँकर-पत्रकार को  एक सुझाव दिया-"भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई शुरु करने की नौटंकी करने वाले क्रेजीवाल आजकल जरूरत से ज्यादा बैचेन नज़र आ रहे हैं- उनकी अद्भुत चीख पुकार का हम अपने चैनल की टी आर पी बढाने के लिये उपयोग कर सकते हैं." संपादक जी के इशारे को समझते हुये पत्रकार महोदय ने क्रेजीवाल जी को फोन लगा दिया और उन्होने उछलते हुये "खबरदार" चैनल के प्राइम टाइम शो मे शामिल होने के लिये हामी भर दी. 

प्राइम  टाइम शो के कार्यक्रम का नाम भी धमाकेदार रखा गया -"नोट बंदी पर अब तक का सबसे बड़ा खुलासा !!!" प्राइम टाइम शो रात 9 बजे शुरु होना था. लेकिन क्रेजीवाल जी व्यस्त होने के बाबजूद पूरे आधा घंटा पहले ही स्टूडियो मे पधार चुके थे. उनकी बेचैनी और हैरानी परेशानी को देखकर प्राइम टाइम शो को एँकर करने वाले पत्रकार भी बेहद हैरान थे लेकिन उन्होने अपनी हैरानी वाले सवाल को भी प्राइम टाइम शो के लिये ही बचा कर रख लिया.

शो शुरु होते ही पत्रकार ने अपना पहला सवाल क्रेजीवाल जी के ऊपर दागा-" क्रेजीवाल जी, आप जरूरत से ज्यादा व्यस्त होने के बाबजूद भी, हमारे स्टूडियो मे पूरे आधा घंटा पहले पहुंच गये, इसके पीछे भी कोई खास राजनीतिक चाल है या कोई और वजह है ?"

क्रेजीवाल : नही इसके पीछे कोई खास वजह नही है- मैं दरअसल अपने घर से आपके स्टूडियो तक पैदल ही चलकर आया हूँ और इसलिये शाम को 6 बजे ही चल दिया था, इसी चक्कर मे आधा घंटा पहले ही पहुंच गया.

पत्रकार : क्रेजीवाल जी, आपकी गाड़ी क्या खराब हो गयी है, जिसके चलते आपको पैदल आने की जरूरत पड गयी ?

क्रेजीवाल : नही पत्रकार महोदय, अब नोट बंदी के बाद हमारे पास इतने पैसे ही कहाँ बचे हैं कि हम लोग कहीं कार से आ जा सकें.


पत्रकार (हैरान होते हुये) : क्रेजीवाल जी, आपके पास तो पुराने 500 और 1000 के नोटों का अपार भंडार हुआ करता था-उसे बैंक मे जमा करवाकर आप नये नोट निकलवा सकते थे या फिर ई-पेमेन्ट कर सकते थे.

क्रेजीवाल : पहले तो में आपकी जानकारी दुरुस्त कर दूं कि मेरे पास सिर्फ 500 के नोटों का भंडार था-1000 के नोटो का भंडार मेरे पास नही था. दूसरी बात यह है कि बैंको मे सिर्फ वही नोट जमा हो रहे हैं जिन्हे रिजर्ब बैंक ऑफ इंडिया ने जारी किया है-मेरे पास जो नोट हैं उन्हे पाकिस्तान सरकार ने छापा है.

पत्रकार एकदम सन्न रह गया और अपनी सीट से उठकर खड़ा हो गया: इसका मतलब क्रेजीवाल जी, आप पाकिस्तान से भेजे गये नकली नोटों के सौदागर हैं ?

क्रेजीवाल (अपना मफलर कसकर लपेटते हुये) : हाँ जी, मैं सिर्फ 500 के नकली नोटों मे ही डील करता हूँ लेकिन इस नोट बंदी से मेरा सारा धंधा चौपट कर दिया है मोदी ने .

पत्रकार (बेहद हैरानी के साथ) : क्रेजीवाल जी, आप बार बार यह कह रहे हैं कि आप सिर्फ 500 रुपये के नकली नोटों के भारत मे अधिकृत सौदागर है तो फिर यह बताएं कि पाकिस्तान से जो 1000 के नकली नोट छपकर देश मे आते हैं, उनका भारत मे होलसेल डिस्ट्रीब्यूटर कौन है ?

क्रेजीवाल : अपनी मनता दीदी.........मेरे कहने का मतलब मनता सनर्जी . 1000 के नकली नोटो की इस देश मे वे इकलौती अधिकृत सौदागर हैं.

पत्रकार : फिर तो क्रेजीवाल जी, सिर्फ आपका ही नही, मनता दीदी का भी नकली नोटों का धंधा पूरी तरह चौपट हो गया ?

क्रेजीवाल : हाँ जी, अब आप बिल्कुल सही समझे हैं- हम दोनो का का ही नकली नोटों का धंधा मोदी ने पूरी तरह चौपट कर दिया है. काले धन के सौदागर तो बैंकों मे अपने पैसे को जमा करा रहे हैं और उसे टैक्स देकर सफेद कर रहे हैं लेकिन हमारे जैसे नकली नोटों के सौदागार आखिर कहाँ जाएं ?

पत्रकार : क्रेजीवाल जी, मैं आपकी परेशानी और चीख पुकार को अच्छी तरह समझ चुका हूँ और हमारे दर्शक भी यह जान गये हैं कि नोट बंदी की सबसे ज्यादा मार सिर्फ आप दोनो पर ही क्यों पड़ी है. हम इस चर्चा को कल भी जारी रखेंगे. आज प्राइम टाइम शो का वक्त अब खत्म होता है. स्टूडियो मे पधारने के लिये आपका धन्यवाद. कल इसी वक्त आपका इस स्टूडियो मे एक बार फिर से स्वागत किया जायेगा.

पत्रकार की बात सुनते ही क्रेजीवाल ने अपने चिर परिचित ढंग से खाँसना शुरु कर दिया.
इससे पहले कि क्रेजीवाल जी कुछ और बोल पाते, टी वी पर कामर्शियल ब्रेक शुरु हो गया.

(इस काल्पनिक व्यंग्य रचना मे वर्णित सभी पात्र, घटनाएं एवं संवाद पूरी तरह से काल्पनिक हैं और उनका किसी जीवित या मृत व्यक्ति,संस्था या संगठन से कोई लेना देना नही है.)

Thursday, November 24, 2016

विपक्ष पर लागू नहीं होगी नोटबंदी

नोट बंदी के अचानक आये फैसले से जिन राजनेताओं के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गयी थी और जिनकी रातों की नींद और दिन का चैन गायब हो गया था, उनके लिये एक राहत की खबर आ रही है. संसद के शीतकालीन सत्र मे चल रहे गतिरोध को दूर करने के लिये, सरकार ने यह फैसला लिया है कि पी एम मोदी ने जिस नोट बंदी की घोषणा 8 नवंबर 2016 को की थी, उससे देश के सभी विपक्षी राजनेताओं को मुक्त रखा जायेगा. यह सभी नेता अपनी गतिविधियों को पहले की तरह उसी तरह से जारी रखने के लिये आज़ाद होंगे, जिस तरह से यह लोग पिछले 70 सालों से थे.दुश्मन देश पाकिस्तान से जितने नकली नोट 8 नवंबर 2016 तक देश मे आ चुके है, उनके इस्तेमाल की भी पूरी छूट 30 दिसंबर तक रहेगी, ताकि हमारे माननीय नेताओं को उन्हे चलाने मे किसी तरह की तकलीफ ना हो.

सरकार के इस कदम से जहाँ विपक्षी नेताओं की चाँदी हो जायेगी, वहीं जनता के लिये भी इस फैसले से जबरदस्त राहत मिलने की संभावना है, क्योंकि अब जब विपक्षी नेताओं को अपने पुराने नोट बदलवाने या जमा करवाने के लिये अपने कार्यकर्ताओं को या भाड़े पर लिये गये दिहाड़ी के मजदूरों को बैंक की लाइनो मे खड़ा नही करना पड़ेगा. जब यह लाइने छोटी हो जायेंगी तो जनता अपने पुराने नोटों को सहूलियत के साथ बैंको मे जमा करा सकेगी.

विश्वस्त सूत्रों के हवाले से यह खबर भी आ रही है कि आयकर विभाग के उच्च अधिकारियों को यह स्पष्ट रूप से बता दिया गया है कि इन सभी माननीय विपक्षी नेताओं को नोटिस भेजना तो दूर, उनकी तरफ आंख उठाकर भी ना देखें.

जानकर लोग यह बताते हैं कि सरकार को यह फैसला राष्‍ट्रीय पर्यावरण आयोग की उस फटकार के बाद लेना पड़ा जिसमे आयोग ने नोट बंदी के बाद विपक्षी नेताओं के असहनीय शोर शराबे और चीख पुकार के चलते देश मे अचानक बढे ध्वनि प्रदूषण की ओर सरकार का ध्यान खींचा था. राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी सरकार को जमकर फटकार लगाई थी कि सरकार इस बात का जबाब जल्द से जल्द दे कि जो लोग सभी तरह के ऐशो आराम से पिछले 70 सालों से रह रहे थे, वे लोग आज सरकार की गलत नीतियों के चलते, दाने दाने के लिये मोहताज़ क्यों हो गये हैं.

लम्बी लाइनो की वजह से देश मे दंगे होने की संभावना के चलते भी सरकार पर इन लम्बी लाइनो को जल्द से जल्द छोटा करने का दबाब था. सरकार के इस कदम को सभी विपक्षी नेता किसी भी सरकार द्वारा लिया गया स्वतंत्र भारत का सबसे अधिक "क्रांतिकारी" फैसला बता रहे हैं.


(इस काल्पनिक व्यंग्य रचना का किसी वास्तविक घटना,व्यक्ति, संस्था या संगठन से कोई लेना देना नही है.)

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