अन्ना हज़ारे यकायक भारत की राजनीति मे पूरी तरह से सक्रिय होकर कूद पड़े है और राजनीति मे एक एक कर करके जितने भी खोटे सिक्के हैं, उनको आज़माकर उन पर अपना दाव खेलने के चक्कर मे हैं !
इस सारी कवायद मे यह भी सॉफ हो गया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ किये गये अपने तथाकथित आन्दोलन से उन्होने जनता की जितनी भी सहानुभूति और सम्मान पाया था, उसकी भी उन्होने लगभग बलि चढ़ाने का फैसला कर लिया है !
आजकल अन्ना हज़ारे महाराज पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी की वकालत करते घूम रहे हैं ! पश्चिम बंगाल मे सरकार किस तरह चल रही है यह सभी को मालूम है- पश्चिम बंगाल के जंगल राज को देखकर लल्लू द्वारा किसी जमाने बिहार मे फैलाये गये गुन्डाराज और जंगल राज की याद ताज़ा हो जाती है- शायद पश्चिम बंगाल के कुशासन की सही तुलना उत्तर प्रदेश मे बसपा और सपा के गुन्डाराज और जंगल राज से ही की जा सकती है-ऐसे मे सवाल यह पैदा होता है कि अपने पुराने चेले केजरीवाल तो अराजकता मे धकेलने के बाद क्या अन्ना हज़ारे अब ऐसे नेताओ के समर्थन का बीड़ा उठाने चले है, जो अपनी राजनीतिक विश्वसनीयता पूरी तरह खो चुके हैं ?
लल्लू जिस जंगल राज को बिहार मे छोड़ गये थे, नीतीश ने पूरी मुस्तैदी के साथ उसे जारी रखा है- बीच मे भाजपा के साथ गठबंधन के समय कुछ हालात सुधरे, लेकिन नीतीश जंगल राज से अपने मोह को ज्यादा समय अलग रख नही पाये और भाजपा ने उनसे नमस्ते करने मे ही अपनी भलाई समझी ! अब अगर अन्ना इन्ही राज्यों के ऐसे खोटे सिक्कों को पी एम बनाने के सपने देख रहे है तो इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा !
हो सकता है अन्ना हज़ारे यह सोच रहे हों कि पूरी तरह से मरणासन्न पड़े थर्ड फ्रंट मे वह ज़ान डालकर ममता,माया,नीतीश या मुलायम मे से किसी को अगली सरकार का मुखिया बना सकें या फिर कोई ऐसा तुक्का फिट हो जाये कि ना ना करते हुये दिल्ली की तर्ज़ पर केजरीवाल जी ही पीं एम बन जाएं! अन्ना हज़ारे क्योंकि राजनीति मे केजरीवाल की तरह नये नये आये है और जो भी नये खिलाडी इस मैदान मे आये हैं उन्हे यह पूरा अधिकार मिल जाता है कि वह दिन के उजाले मे जागते हुये प्रधान मंत्री बनने और बनाने के सपने देख देख कर प्रफुल्लित होते रहें.
अन्ना हज़ारे की इस नयी कवायद से यह बात भी सॉफ हो गयी है कि केन्द्र द्वारा लोकपाल बिल पास करने के बाद अब भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नही रहा-अब आज की तारीख मे सबसे बड़ा मुद्दा यही है की किस तरह से देश मे किसी ऐसे दल या गठबंधन की सरकार बनवाकर ऐसे व्यक्ति को जनता के सर पर बिठा दिया जाये जिसे इस देश की जनता ने जनादेश ही नही दिया हो-अगर ऐसा हुआ तो पहली बार नही होगा ! ऐसी अराजक स्थिति हम पहले भी देख चुके है जब चंद्रशेखर और देव गौड़ा को जबरन इस देश की जनता के ऊपर प्रधानमंत्री के तौर पर थोप दिया गया था ! चंद्रशेखर और देव गौड़ा को प्रधानमंत्री बनाने मे कांग्रेस ने जितनी भूमिका तब निभाई थी,उतनी उम्मीद लेकर तो अन्ना चल ही रहे होंगे ! देश की राजनीति मे पूरी तरह से नकार दिये गये वामपंथियों को भी अगर पूरे देश मे एक आध सीट मिल जाये, तो वे भी ऐसी अवांछित सरकार बनाने की कवायद मे अपना सहयोग देने का नाटक जारी रख सकते हैं.
मोदी से घबराये और बौखलाये हुये ये लोग सिर्फ इस डर से केजरीवाल को प्रधानमंत्री के रूप मे स्वीकार कर लेंगे कि कम से कम अब इन लोगों को अपने किये गये दुष्कर्मों का दंड तो नही मिलेगा क्योंकि केजरीवाल जी का पिछला रिकार्ड इस मामले मे बिल्कुल सॉफ है और उन्होने दिल्ली के मुख्यमंत्री रहते हुये शीला दीक्षित पर आँच तक नही आने दी थी ! इसी मनोविज्ञान और रंणनीति पर बहरूपियों यह चौकड़ी अब इकट्ठा होनी शुरु हो गयी है.
इस सारी अराजक कोशिश मे सिर्फ संतोष इस बात से किया जा सकता है कि अब इन लोगों की मक्कारियाँ जनता के सामने खुल चुकी हैं और देश को खंडित जनादेश की तरफ धकेलने की नापाक साज़िश का जबाब जनता ऐसे लोगों की चुनावों मे जमानत जब्त कराकर देगी !
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Published on 22/2/2014