Wednesday, March 28, 2018

“पाकिस्तान जिंदाबाद” से “पाकिस्तान नंगाबाद ” तक का सफर

पाकिस्तान के प्रधान मंत्री की  अमेरिका के हवाई अड्डे पर सारे कपडे उतारकर तलाशी ली गयी है. इस खबर की तस्वीरें सोशल मीडिया में वायरल हो चुकी हैं. देखा जाए तो यह कपडे सिर्फ पाकिस्तानी पी एम के ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान के उतारे गए हैं और अमेरिका ने एक बार पूरी दुनिया को “आतंकवाद का मजहब” बताते हुए पाकिस्तान को सभी के सामने निर्वस्त्र  कर दिया है.

भारतीय मीडिया और टी वी चैनलों के साथ साथ खुद पाकिस्तानी मीडिया और टी वी चेनल इस खबर को काफी रोचकता के साथ पेश कर रहे हैं. दरअसल  यह मामला इतना सीधा नहीं है, जितना लग रहा है. कपडे सिर्फ पाकिस्तानी पी एम या पाकिस्तान के ही नहीं उतरे हैं. हमारे अपने ही देश में ऐसे हज़ारों लोग हैं तो खाते तो हिन्दुस्तान का हैं लेकिन गाते पाकिस्तान का हैं. उन सब के भी यकायक सभी कपडे उतर गए हैं. आइये देखते हैं, ऐसे कौन कौन से लोग हैं, जिनके कपडे इस घटना के बाद से उतर गए हैं :

१. वे सभी लोग जो भाजपा की हार पर “पाकिस्तान जिंदाबाद-भारत तेरे टुकड़े होंगे” के नारे लगाते हैं, उनके सभी कपडे इस घटना के बाद से उतर गए हैं.

२. वे सभी लोग जो जे एन यू जैसे तथाकथित शिक्षा संस्थानों में “पाकिस्तान जिंदाबाद” और “भारत तेरे टुकड़े होंगे” के नारे लगाते हैं, वे सब तो निर्वस्त्र हो ही गए हैं, उनके साथ उन तथाकथित नेताओं के भी कपडे उतर गए हैं, जो इन देशद्रोहियों का समर्थन करने के लिए जे एन यू में जाकर भाषणबाज़ी करते हैं.

३. कपडे तो कांग्रेस पार्टी के उन नेताओं के भी उतर गए हैं तो पाकिस्तान जाकर वहां की सरकार से “मोदी को हटाने” की मांग करते आये हैं. सवाल यह है कि जो देश अपने प्रधान मंत्री के कपडे उतरने से भी नहीं बचा सकता, वह मोदी का भला क्या बिगाड़ लेगा ?

४. कपडे तो उन “अवार्ड वापसी गैंग” के सभी सदस्यों के भी उतर गए हैं जो पाकिस्तानी आतंकवादी याकूब मेमन को फांसी दिए जाने के विरोध में अपने “अवार्ड” वापस कर चुके हैं.

५. याकूब मेमन को फांसी पर चढ़ने से रोकने के लिए जिन लोगों ने राष्ट्रपति महोदय से माफी की गुहार लगाई थी और उनमे से कुछ लोग तो रात के दो बजे सुप्रीम कोर्ट तक उसकी फांसी की सज़ा को रुकवाने के लिए पहुँच गए थे. जाहिर है कि इन सभी पाकिस्तान प्रेमियों के भी कपडे पूरी तरह उतर गए हैं.

६. भारत में बैठे जिन पाक-प्रेमियों के कपडे इस घटना के बाद से यकायक उतर गए हैं, वे सभी मिलकर मोदी को २०१९ के चुनावों में टक्कर देने के लिए एक “महाठगबंधन” बनाने जा रहे हैं. अब इस तरह का “ठगबंधन” मोदी के लिए कितनी बड़ी चुनौती खड़ी कर पायेगा, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल काम नहीं है.

Thursday, March 22, 2018

मोदी ने अगर कुछ नहीं किया तो विपक्ष घबराया हुआ क्यों है ?

मोदी सरकार को सत्ता संभाले लगभग ४ साल का समय पूरा हो चूका है. मोदी सरकार बनने से पहले देश में ज्यादातर समय या तो कांग्रेस पार्टी का शासन था या फिर कांग्रेस के समर्थन से चलने वाली सरकारों का शासन था. कांग्रेस और इसके समर्थन से चलने वाली सभी सरकारों ने देश को जी भरकर लूटा और अपने जबरदस्त भ्रष्टाचार और कुशासन से देश को लगभग महाविनाश के कगार पर पहुंचा दिया. क्योंकि पिछले ६०-७० सालों से कांग्रेस और उसके सहयोगी मिल बांटकर देश को लूट रहे थे,मोदी सरकार के आने से इन सबकी कमाई भी बंद हो गयी और इन लोगों के समर्थन और सहयोग से चलने वाली वे सभी दुकाने भी बंद हो गयीं, जो सामाजिक कार्यकर्त्ता, अर्थशास्त्री , फिल्मकार, इतिहासकार और कलाकार आदि के नामों से चल रही थीं. यह सभी लोग “अवार्ड वापसी गैंग” का हिस्सा बन गए और अपनी दुकानों के बंद होने के विरोध में अपने अपने अवार्ड भी वापस करने लगे.
देखा जाए तो इन विपक्षी राजनीतिक दलों को भारी नुक्सान का सामना करना पड़ा है. किसी भी व्यक्ति ने बड़ी मुश्किल से पिछले ६०-७० सालों में जनता को निर्ममता से लूटने की जो दुकाने खोल रखी हों, अगर उन्होंने अचानक ही बंद करना पड़ जाए तो उसकी पीड़ा को कोई भ्रष्ट-देशद्रोही ही समझ सकता है. इनके नुक्सान को मोदी सरकार ने तब कई गुना और बढ़ा दिया जब नोटबंदी, जी एस टी, बेनामी कानून और आधार को पैन कार्ड से जोड़ने की कवायद भी सरकार ने शुरू कर दी. पहले तो इन भ्रष्ट-देशद्रोहियों की समस्या यह थी कि मोदी के आने से इनकी आगे की कमाई बंद हुई थी, लेकिन नोटबंदी, जी एस टी, बेनामी कानून और आधार से पैन कार्ड को जोड़ने का मतलब यह हुआ कि इन लोगों ने पिछले ६०-७० सालों के कुशासन में जो काला धन इकठ्ठा किया था, उसके भी पकड़ में आने की पूरी संभावनाएं बनने लगीं.
मोदी सरकार के इन कड़े फैसलों से घबराये यह लोग जनता को पिछले ४ सालों से लगातार गुमराह किये जा रहे हैं कि मोदी सरकार ने कोई काम नहीं किया है. अगर मोदी सरकार ने वास्तव में कोई काम नहीं किया है तो उसका फैसला जनता एक साल बाद कर ही देगी और उसके लिए तो विपक्ष के नेताओं और पार्टियों को तो खुश होना चाहिए कि चलो मोदी ने कुछ काम नहीं किया है, लिहाज़ा २०१९ में जनता मोदी को हटाकर इन्हे सत्ता में वापस ले आएगी ताकि यह लोग अपनी लूट का सिलसिला एक बार फिर से शुरू कर सकें. लेकिन इन राजनीतिक दलों और इनके नेताओं को भी मालूम है कि इन लोगों की २०१९ के चुनावों में जमानत जब्त होने वाली है. इसका सबसे बड़ा सुबूत यही है कि यह सारे के सारे राजनीतिक दल सिर्फ अकेले मोदी को हराने के लिए “ठगबंधन” बनाकर चुनाव लड़ने की सोच रहे हैं. अगर मोदी ने कुछ काम ही नहीं किया है तो फिर इस “गठबंधन” या “ठगबंधन” की क्या जरूरत है ?

Saturday, March 17, 2018

थूककर चाटने वाले को केजरीवाल कहते हैं

केजरीवाल ने हाल ही में पंजाब के एक विरोधी राजनीतिक नेता मजीठिया से मानहानि मामले में कोर्ट के सामने जाकर अपना लिखित माफीनामा दाखिल किया है. पंजाब चुनावों के समय केजरीवाल ने अपनी गन्दी आदत के मुताबिक बेबुनियाद और गंभीर आरोप मजीठिया पर लगाए थे, जिन्हे वह अदालत में साबित करने में पूरी तरह नाकाम रहे. केजरीवाल के खिलाफ मानहानि का यह कोई पहला मामला नहीं है और न ही आखिरी मामला है. जब से केजरीवाल  राजनीति में आये हैं, पहले ही दिन से उनकी यह आदत रही है कि विपक्षी पार्टी के नेताओ पर गंभीर आरोप लगाकर किसी भी तरह चुनाव जीत जाओ और बाद में जब वह व्यक्ति केजरीवाल के ऊपर मानहानि का दवा ठोंक दे तो उन आरोपों को साबित करने की बजाये लिखित में  माफी मांग लो.
इसी तरह का एक बड़ा मानहानि का मामला वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी केजरीवाल के ऊपर कर रखा है और इस मामले में भी केजरीवाल अभी तक कुछ भी आरोप साबित नहीं कर पाए हैं. इस बात की पूरी सम्भावना है कि अरुण जेटली समेत बाकी से सभी मानहानि के मामलों में भी केजरीवाल लिखित माफीनामा ही दाखिल करेंगे.
जहां तक मुझे ध्यान है केजरीवाल के खिलाफ सबसे अधिक और सबसे पहले ब्लॉग पर मैंने लिखना शुरू किया था क्योंकि जिस तरह की घटिया राजनीति केजरीवाल ने शुरू की थी, उसे ज्यादातर लोग समझ ही नहीं पा रहे थे. उस समय बड़े बड़े और तथाकथित वरिष्ठ लेखक पत्रकार -” हारकर जीतने वाले को केजरीवाल कहते हैं.” जैसे चाटुकारिता भरे लेख लिख रहे थे. लेकिन उस समय भी मैं लगातार केजरीवाल की काली करतूतों का लगातार पर्दाफाश कर रहा था.
केजरीवाल ने जब अपनी गन्दी राजनीति शुरू की थी, उस समय केंद्र में और दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी. केजरीवाल ने जिस कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं को पानी पी पी कर गालियां देकर अपनी राजनीति चमकाई थी, आज हालत यह है कि केजरीवाल खुद उसी कांग्रेस पार्टी और उसकी नीतियों के समर्थन में खड़े दिखाई दे रहे हैं. मजे की बात यह है कि केजरीवाल जिस तरह से कांग्रेस की तरफ अपनी दोस्ती का हाथ बढाने की एकतरफा चेष्टा कर रहे हैं, उस पर कांग्रेस पार्टी की तरफ से कोई भी जबाब नहीं आ रहा है. अभी जब कांग्रेस की बड़ी नेता और पूर्व अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने सभी विपक्षी पार्टियों को इकठ्ठा करने की गरज़ से एक डिनर मीटिंग रखी, उस मीटिंग में भी केजरीवाल को न बुलाया जाना इस बात को साबित करता है कि केजरीवाल का राजनीतिक असितत्व पूरी तरह समाप्त हो चला है.
मानहानि के मामले में अपनी टिप्पणी करते हुए केजरीवाल के कभी सहयोगी रहे कुमार विश्वास ने भी यही प्रतिक्रिया दी है कि जिस व्यक्ति को खुद थूककर चाटने की आदत हो उस पर थूकना भी बेकार है. एक दूसरे पूर्व सहयोगी, योगेंद्र यादव ने तो माफीनामे की खबर आने के बाद प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि अगर यह खबर सही है तो केजरीवाल को तुरंत ही राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए. सत्ता लोलुप केजरीवाल पर इस तरह की नेक सलाहों का कोई असर पड़ेगा, इस पर सभी को संदेह है.

Tuesday, March 6, 2018

मोदी ने कैसे किया वामपंथ का अंत !

पूर्वोत्तर राज्यों में नरेंद्र मोदी का जादू कुछ इस तरह से सर चढ़कर बोला कि वामपंथ और वामपंथी विचारधारा का एक ही झटके में अंत हो गया. इस देश में आज़ादी के बाद से ही कांग्रेस पार्टी ने अपने दुष्कर्मों पर पर्दा डालने के लिए वामपंथी ताकतों और उनकी विचारधारा को पनपने का भरपूर मौका दिया. वामपंथ की अपनी कोई विचारधारा नहीं है. इन लोगों की विचारधारा यही रही है कि “जिस थाली में खाओ उसी में छेद करो”. दूसरे शब्दों में वामपंथ, माओवाद या फिर नक्सलवाद , यह सभी विचारधाराएं देशद्रोह पर आधारित हैं. जाहिर है कि जो भी व्यक्ति या संगठन इस विचारधारा का पक्षधर है, वह अव्वल दर्ज़े का  देशद्रोही  है.

कांग्रेस पार्टी ने अपने फायदे के लिए इन लोगों को देश का इतिहास लिखने पर लगा दिया और यह लोग अपनी मन मर्ज़ी से मन गढंत इतिहास लिख लिखकर देश के लोगों को गलत मलत इतिहास पढ़ने पर मजबूर करते रहे. इन लोगों का लिखा हुआ इतिहास कितना हास्यास्पद है, उसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन लोगों की माने तो “राहुल गाँधी एक करिश्माई नेता” हैं और “शहीद भगत सिंह एक आतंकवादी” हैं. इन लोगों को पिछले ६०-७० सालों में तरह तरह के अवार्ड भी दे दिए गए, ताकि समय-समय पर यह लोग अपने इन फ़ोकट के मिले पुरस्कारों को वापस करके देशभक्त ताकतों के खिलाफ अपना विरोध जता सकें. बात यहीं पर ख़त्म नहीं हुई. इन लोगों की मौज मस्ती के लिए जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय जैसे तथाकथित शिक्षा संस्थान भी बना दिए गए, जहां पर यह लोग देशवासियों के खून पसीने की  कमाई पर अधेड़ अवस्था तक स्टूडेंट बने रहकर मौज कर सकें.

वैसे तो वामपंथी अपने आप को आस्तिक बताकर मूर्ति पूजा का विरोध करते हैं लेकिन एक देशद्रोही लेनिन की मूर्ति इन्होने त्रिपुरा में लगा रखी थी, जिसे वहां की जनता ने बुलडोज़र चलाकर अब तोडा है जब वहां इनकी सरकार का अंत हुआ है. जब तक इन देशद्रोहियों की सत्ता पूर्वोत्तर में कायम रही, इन लोगों का भय और आतंक इतना ज्यादा था कि जनता इस देशद्रोही लेनिन की पत्थर की मूर्ति का भी बाल-बांका नहीं कर सकी. इसके विपरीत पिछले ७० सालों में वामपंथियों ने  संघ और भाजपा का समर्थन करने वाले लाखों देशभक्तों को मौत के घाट उतारकर अपनी हैवानियत का सुबूत दिया है. पूर्वोत्तर के अलावा केरल और  पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी इन लोगों ने अपना आतंक और भय काफी भयानक तरीके से फैला रखा है. क्योंकि यह  सारा खून खराबा  केंद्र में बैठी कांग्रेस पार्टी के इशारे पर किया जा रहा था, इन वामपंथियों को अपने कारनामे अंजाम देने में कभी भी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा.

मोदी के सत्ता में आते ही इन लोगों को यह लगने लगा कि अब यह लोग अपनी इन आपराधिक वारदातों को मनमाने ढंग से अंजाम नहीं दे पाएंगे, इसी के चलते इन लोगों ने मोदी के हर बढ़िया से बढ़िया काम का बेबकूफ़ाना तरीके से विरोध करना शुरू कर दिया. कांग्रेस पार्टी का तो समर्थन सदा से ही इन लोगों के साथ ही था क्योंकि वामपंथी इतिहासकारों ने आज़ादी की असली लड़ाई लड़ने वालों को नज़रअंदाज़ करके सिर्फ “नेहरू और गाँधी” का महिमा मंडन जिस तरह से अपने मन गढंत इतिहास में किया था, उसका क़र्ज़ तो कांग्रेस को चुकाना ही था.

यहां यह बात ध्यान देने वाली है कि कम्युनिस्टों को देशद्रोह का पहला सबक लेनिन ने ही सिखाया था जिसने पहले विश्व युद्ध में  रूसी सैनिकों से कहा था कि  अपने देश की जगह जर्मनी की मदद करो. देशद्रोही लेनिन से भारतीय कम्युनिस्टों ने अपने देश के विरूद्ध ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ का फलसफा पढ़ा.

आज से ३०-४० साल पहले तक जब देश में लोग कम पढ़े लिखे थे और सोशल मीडिया का भी इतना प्रभाव नहीं था, तब तक कांग्रेसियों और वामपंथियों के कारनामे लोगों तक नहीं पहुँच रहे थे. लेकिन अब समय बदल चुका है और लोग यह समझ चुके हैं कि किस तरह से इन लोगों ने मिलकर भ्रष्टाचार और देशद्रोह पिछले ७० सालों में किया है.  इसीलिए जब जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में ” भारत तेरे टुकड़े  होंगे” के देशद्रोही नारे वामपंथियों द्वारा लगाए गए तो उसका समर्थन करने न सिर्फ कांग्रेस नेता राहुल गाँधी बल्कि दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल भी वहां पहुँच गए. केजरीवाल के वारे में मीडिया में पहले ही बहुत कुछ लिखा जा चूका है और उनके कारनामों को देखकर तो कभी कभी खुद कांग्रेसी   और वामपंथी भी शर्मा जाते होंगे. वामपंथी कन्हैया की  दिल्ली हाई कोर्ट से जमानत दिलवाने में केजरीवाल ने कैसे मदद की थी, उसके ऊपर मेरा एक पूरा लेख इसी मंच पर प्रकाशित हो चुका है.

संक्षेप में लिखा जाए तो कांग्रेसी, वामपंथी और केजरीवाल कमोबेश एक ही विचारधारा का समर्थन करते हैं और वह है कि “जहां मौका मिले-जिस थाली में खा रहे हो, उसी में छेद करना शुरू कर दो”. जो व्यक्ति या संगठन इनकी इस देश विरोधी विचारधारा का विरोध करता है, उसे यह बेहद मूर्खतापूर्ण ढंग से “सांप्रदायिक” कहते हैं.

देश  के मौजूदा कानून इन लोगों से निपटने के लिए पूरी तरह नाकाफी हैं. कानून बनाने का काम कांग्रेस पार्टी के हाथ में था, सो वह ऐसे कानून भला क्यों बनाती  जिनके चलते उन्हें या वामपंथियों को किसी परेशानी का सामना करना पड़े. अब जब मोदी जी का विजय रथ लगातार आगे बढ़ रहा है, तो इनके पैरों के नीचे की जमीन भी खिसक रही है. इन्हे यह भी लग रहा है कि राज्य सभा में भाजपा का जैसे ही बहुमत हुआ नहीं, इनकी शामत आने वाली है क्योंकि उसके बाद उस तरह के कानून बनाये जाने तय हैं, जिनके तहत इस तरह की विघटन कारी ताकतों को समय रहते दण्डित किया जा सके.

वामपंथियों और कांग्रेसियों को धूल चटाकर जो बहुमत जनता मोदी को दे रही है, वह इसी उम्मीद के साथ दिया जा रहा है. केरल और पश्चिम बंगाल की मौजूदा सरकारें तो बेहद घटिया तरीके से खून खराबे में लगी हुई हैं, उन्हें भी अपनी सत्ता आने वाले समय में खिसकती दिख रही है, लेकिन यह लोग चाहे भी तो अपने कामकाज के तौर तरीकों में सुधार नहीं कर सकते क्योंकि किसी भी  लोकतान्त्रिक व्यवस्था में इन लोगों को कोई विश्वास  ही नहीं है.

यह लोग इस गलतफहमी में हैं  कि सिर्फ संघ, भाजपा और मोदी के खिलाफ जबरदस्त दुष्प्रचार करके ही मोदी को हराया जा सकता है लेकिन  जिस तरीके से यह लोग काम करते आये हैं और कर रहे हैं, उसके चलते तो यह लोग कुछ भी कर लें, अगले किसी भी चुनाव में जीतने वाले नहीं हैं. देशद्रोह और भ्रष्टाचार यह छोड़ नहीं सकते और जनता देशद्रोह और भ्रष्टाचार के लिए अब बिलकुल तैयार नहीं है.

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