Thursday, December 21, 2017

मोदी जी, भ्रष्टाचारियों से नहीं निपटे तो आपकी सरकार निपट जाएगी !

हाल ही मे 2जी घोटाले मे स्पेशल सी बी आई कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी करते हुये यह कहा है कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ कोई भी ठोस सुबूत पेश नही कर सका है, लिहाज़ा सभी आरोपियों को बरी किया जाता है. जयललिता और सलमान ख़ान के मामले मे जिस तरह से हमारे देश मे अदालती फैसले आते रहे हैं, उन्हे देखते हुये इस फैसले पर भी कोई बहुत ज्यादा हैरानी किसी को नही होनी चाहिये. समय समय पर मैं अपने लेखों मे यह लिखता रहा हूँ कि सरकार को न्यायालय की अवमानना से सम्बंधित कानून Contempt of Courts Act को या तो पूरी तरह से समाप्त कर देना चाहिये या फिर इसमे इस तरह से संशोधन करना चाहिये ताकि अदालतों द्वारा किये गये गलत फैसलों की समीक्षा और आलोचना का लोकतांत्रिक रास्ता खुला रहे. न्यायपालिका निष्पक्ष रूप से पूरी पारदर्शिता के साथ काम करे, इसकी जिम्मेदारी सरकार की है. सीधे और सरल शब्दों मे कहा जाये तो न्यायपालिका को बेलगाम नही छोड़ा जा सकता अन्यथा जयललिता, सलमान ख़ान और 2 जी जैसे फैसले आते रहेंगे और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहेगी. रोज शाम को टी वी चेनल वाले जिस तरह से हर छोटे-बड़े मुद्दे पर बहस शुरु कर देते हैं, वे सब भी  इस तरह् के मामलों पर बहस करने की बजाय ,न्यायालय की अवमानना के डर से चुप्पी लगाकर बैठ जायेंगे. किसी भी लोकतंत्र मे इससे अधिक शर्मनाक बात और कोई नही हो सकती है.

यह तो हुई न्यायालय की निष्पक्षता और उसकी पारदर्शिता को सुनिश्चित करने की बात जिस पर हमारी मोदी सरकार भी कोई ठोस कदम उठाने मे अभी तक पूरी तरह से नाकाम रही है. पिछले 60 सालों के कुशासन मे जिस तरह से भ्रष्टाचार चल रहा था और जिस की दुहाई देकर मोदी सरकार को 2014 मे सत्ता मे आई थी, देखा जाये तो किसी भी भ्रष्टाचारी को मोदी सरकार आज तक सज़ा दिलवाने मे पूरी तरह नाकाम रही है. मोदी सरकार को सत्ता मे आये हुये साढ़े तीन साल से ऊपर का समय हो चुका है लेकिन ऐसा नही लगता कि बाकी के बचे हुये अपने शासन काल मे यह सरकार किसी भ्रष्टाचारी को ठिकाने लगा पायेगी. बिना किसी ठोस इच्छा शक्ति के ना तो भ्रष्टाचारियों का कुछ बिगड़ने वाला है और ना ही उन देशद्रोहियों का, जिन पर मोदी सरकार पूरी तरह से चुप्पी लगाये बैठी हुई है. शायद मोदी जी इस गलतफ़हमी मे हैं कि सिर्फ “सबका साथ-सबका विकास” उनकी 2019 मे भी नैया पार करा देगा लेकिन ऐसा होना संभव नही है. कोई भी सरकार जन-आकांक्षाओं के विरुद्ध काम करके बहुत समय तक सत्ता मे नही रह सकती. सिर्फ विकास के मुद्दे पर मोदी सरकार सत्ता मे नही आई थी. जनता ने मोदी सरकार को इस लिये चुना था कि मोदी सरकार भ्रष्टाचारियों, देशद्रोहियों और आतंकवादियों पर कडी कार्यवाही करेगी और उसके साथ देश मे इस तरह् का माहौल तैयार करेगी जिससे सबका विकास सुनिश्चित हो सके.


2 जी घोटाले मे जिस तरह् से सभी आरोपी बरी कर दिये हैं, उसे देखकर यही लगता है कि न्यायपालिका के साथ साथ यह सी बी आई और मोदी सरकार की भी बहुत बड़ी नाकामी है. सी बी आई की सीधी रिपोर्टिंग प्रधान मंत्री कार्यालय को है. लिहाज़ा सी बी आई के निकम्मेपन से पी एम मोदी अपना पल्ला नही झाड़ सकते हैं. इस 2 जी मामले को अगर एक बार छोड़ भी दें तो हम यही देखते हैं कि किसी और भ्रष्टाचारी या देशद्रोही को पिछले साढ़े तीन सालों मे सज़ा नही हुई है. कश्मीर मे हुरियत के आतंकवादी हों या फिर अब्दुल्ला बाप बेटे-यह सभी अपनी देश विरोधी गतिविधियों मे लगे हुये हैं और मोदी जी की उदारता का मजाक उड़ा रहे हैं. कांग्रेस पार्टी के नेता पाकिस्तान मे जाकर खुले आम वहां की सरकार से कहते है कि मोदी को हटाने मे हमारी मदद करो, लेकिन ऐसी देशद्रोह की घटनाओं का मोदी जी अपनी चुनाव सभाओं मे तो जिक्र करते हैं, उस पर किसी भी तरह की ठोस कार्यवाही करके देशद्रोहियों को अपने अंज़ाम तक पहुंचाने का लेशमात्र भी प्रयास करते नही दिखते हैं. कभी कांग्रेस पार्टी के नेता चोरी छिपे चीन के नेताओं से मिलते हैं और कभी पाकिस्तान के नेताओं से, लेकिन किसी पर कोई कार्यवाही होती नही दिखती है. ऐसे ना जाने कितने भ्रष्टाचार और देशद्रोह के मामले हैं, जिन पर पिछले साढ़े तीन साल के शासन काल मे कडी कार्यवाही होनी चाहिये थी और दोषियों को जेल की सलाखों के पीछे होना चाहिये था. लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ और इस बात की संभावना बहुत कम है कि बचे हुये डेढ़ साल मे भी कुछ खास हो पायेगा. अगर मोदी सरकार को 2019 मे सत्ता मे वापसी करनी है तो उसे सभी काम धंधे छोड़कर सभी भ्रष्टाचारियों और देशद्रोहियों के खिलाफ बड़े स्तर पर कार्यवाही करनी होगी. गुजरात चुनावों मे सिर्फ 99 सीटों पर भी भाजपा इसी लिये सिमटी है. लगभग 16 सीटों पर जहाँ पार्टी की हार हुई है, वहां हार के वोटों की संख्या नोटा के वोटों की संख्या से बहुत कम है. यह सभी निर्वाचन क्षेत्र वह हैं, जो भाजपा का गढ माने जाते रहे हैं. इसका सीधा सा मतलब यही है कि कट्टर भाजपा समर्थक जो कांग्रेस को किसी भी हालत मे वोट नही देना चाहते थे, उन्होने मोदी सरकार के निकम्मेपन से नाराज़ होकर नोटा का इस्तेमाल किया है.

Monday, December 18, 2017

“कांग्रेस मुक्त भारत” बनाने की तरफ मोदी का एक और कदम

आज से लगभग ९ महीने पहले मार्च २०१७ में मैंने इसी मंच पर एक लेख लिखा था -”दिल्ली ,हिमाचल और गुजरात में भाजपा की जीत लगभग तय”. दिल्ली में उस समय नगर निगम के चुनाव होने थे जिनमे  भाजपा को जीत मिली थी. हाल में ही  हुए चुनावों के बाद गुजरात और हिमाचल में भी भाजपा ने अभूतपूर्व जीत दर्ज़ करके देश को कांग्रेस मुक्त बनाने की तरफ दो और कदम आगे बढ़ा दिए हैं.

यहां देखने वाली बात यह है कि भाजपा ने गुजरात में लगातार २२ साल सरकार में रहते हुए लगातार  छठवीं बार यह जीत दर्ज़ की है. ऐसा नहीं है कि कांग्रेस और उसके समर्थक मीडिया ने मोदी और भाजपा को हराने के लिए अपने षड्यंत्रों को रचने  में कोई कसर उठा रखी थी. कांग्रेस ने जाति गत आरक्षण से लेकर साम्प्रदायिकता और देशद्रोह के जहर को भी इन चुनावों में बड़ी बेशर्मी के साथ घोलने की नाकाम कोशिश की थी जिसे गुजरात और हिमाचल की जनता ने पूरी तरह से नकार दिया है.

पहले तो कांग्रेस ने विकास के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने की बजाये विकास को पागल घोषित कर दिया और  गुजरातियों को जात-पात के आधार पर बांटने के लिए कुछ ऐसे लोगों से  जाति गत आधार पर गठबंधन कर लिया जिन्हे राजनेता की बजाय “ठग”  कहना ज्यादा उपयुक्त होगा. इससे भी जब कांग्रेस को जब बात बनती नहीं  दिखी तो राहुल गाँधी ने गुजरात में जितने भी हिन्दू देवी देवताओं के मंदिर थे, उन सबके दर्शन करने का ढोंग किया. यह नाटकीयता इस हद तक बढ़ गयी कि उन्होंने एक तरफ तो अपने आप को “जनेऊ धारी हिन्दू”  घोषित कर दिया और वहीं दूसरी तरफ   सोमनाथ मंदिर में “गैर-हिन्दू” वाले रजिस्टर में भी अपना नाम लिखवा दिया. देश और गुजरात की जनता इस नौटंकी को बहुत ध्यान से देख रही थी .

इस नौटंकी के चलते चलते ही कांग्रेस के नेताओं को लगा कि अभी भी बात कुछ बन नहीं रही है. लिहाज़ा कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने कपिल सिब्बल और मणि शंकर अय्यर के कन्धों पर यह जिम्मेदारी डाल दी कि आगे का काम यह लोग करें. यह दोनों ही नेता अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझते हैं. लिहाज़ा कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर की सुनवाई को २०१९ के बाद किये जाने की मांग रख दी. मणि शंकर अय्यर जी भी कहाँ पीछे रहने वाले थे. उन्होंने अपनी पार्टी के “मन की बात” जनता के सामने रखते हुए पी एम् मोदी को ” नीच आदमी” की पदवी से नवाज़ दिया. वे यहीं नहीं रुके, उन्होंने अपने घर पर एक डिनर मीटिंग रखी जिसमे पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी और पकिस्तान के कुछ नेता और पूर्व राजनयिक शामिल थे. इस मीटिंग पर शायद किसी को भी कोई ऐतराज़ नहीं होता. लेकिन कांग्रेस पार्टी ने जिस तरह से इस मीटिंग को छुपाने का काम किया और बड़ी मुश्किल से यह कबूल किया कि हाँ यह मीटिंग हुयी थी,उसके चलते जनता ने   इस पार्टी का रहा सहा  बैंड भी  बजा दिया और नतीजा सबके सामने है.

अगर देखा जाए तो भाजपा जहां एक तरफ प्रदेश में पिछले २२ साल के अपने काम और विकास के मुद्दे पर फोकस करना चाह रही थी, कांग्रेस लगातार इन मुद्दों से हटकर अन्य मुद्दों की तरफ भटक रही थी. अगर भाजपा ने पिछले २२ सालों में काम या विकास नहीं किया था, तो कांग्रेस को यह चाहिए था कि वह भाजपा को उस मुद्दे पर घेरे. लेकिन अगर कांग्रेस ने भाजपा को घेरा भी तो  जी एस टी और नोट बंदी जैसे मुद्दों पर घेरा. इन मुद्दों पर पी एम् मोदी देश वासियों को पहले ही कई बार सफाई दे चुके हैं कि यह दोनों ही फैसले देश हित में लिए गए मुश्किल फैसले हैं जिनसे कुछ लोगों को शुरू शुरू में परेशानी भी हुयी लेकिन जिसे सरकार लगातार सुधारने का काम भी करती रही है. मोदी जी ने तो यहां तक बयान दिया है कि अगर  देश हित में लिए गए मुश्किल फैसलों की वजह से अगर उन्हें सत्ता भी छोड़नी पड़े तो उन्हें उसमे कोई परहेज़ नहीं है और वह देश हित में इस तरह के फैसले आगे भी लेते रहेंगे.

कांग्रेस और उसके सहयोगी जिस तरह से  अपनी संभावित हार से डर कर EVM   के ख़राब होने की बात कर रहे थे, उस मूर्खतापूर्ण दलील के चलते जनता के मन में यह सवाल भी घूम रहा था  था कि इस तरह की मूर्खतापूर्ण मानसिकता वाले लोगों के हाथ गुजरात की सत्ता कैसे सौंपी जा सकती है. आज की तारीख में अगर कोई भी नेता EVM   ख़राब होने की बात करता है तो उसे “मूर्खता” के अलावा और कुछ नहीं कहा जाएगा क्योंकि इन्ही EVM    मशीनों से कई गैर-भाजपाई सरकारें भी चुनी जा चुकी हैं जिन पर किसी ने सवाल नहीं उठाया है. उलटे चुनाव आयोग ने सभी नेताओं और पार्टियों को ओपन चेलेंज देकर EVM  में  किसी भी तरह की गड़बड़ी साबित करने का मौका दिया था लेकिन उस समय कोई भी नेता  या पार्टी अपने इस मूर्खतापूर्ण आरोप को साबित नहीं कर पाए थे.

आज देश के १९ राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं और कांग्रेस और उसके सहयोगी जिस तरह की नकारात्मक राजनीति जारी रखें हुए हैं. उसे देखकर सिर्फ यही कहा जा सकता है कि देश को कांग्रेस मुक्त बनाने की दिशा में भाजपा ने एक नहीं, दो और कदम आगे बढ़ा दिए है.

अपने पिछले सभी लेखों में मैं यह कई बार लिख चुका हूँ कि कांग्रेस और उसके सहयोगी जब तक देशद्रोह, साम्प्रदायिकता, जात-पात और नकारात्मकता की अपनी नीतियों का त्याग नहीं करेंगे, भाजपा का विजय रथ इसी तरह से निर्बाध रूप से चलता रहेगा और मोदी जी का “कांग्रेस मुक्त भारत” का सपना जल्द ही पूरा हो जाएगा.  अगर कांग्रेस या किसी और गैर भाजपाई राजनीतिक दल को आज के बाद कोई चुनाव जीतना है तो उन्हें सबसे पहले अपने पिछले ६० साल के कुशासन, भ्रष्टाचार, देशद्रोह और साम्प्रदायिकता के लिए देश की जनता से माफी मांगनी चाहिए. जब तक ऐसा नहीं होगा, भाजपा का विजय रथ इसी तरह आगे बढ़ता रहेगा.

Monday, December 4, 2017

यही मोदी का “गुजरात मॉडल” है

२०१४ के पहले से ही नरेंद्र मोदी के गुजरात मॉडल की चर्चाएं काफी गर्म रहती थीं. जहां मोदी के समर्थक गुजरात मॉडल का हवाला देकर वहां भ्रष्टाचार रहित एवं विकास शील व्यवस्था का गुणगान करते थे, वहीं देश की विपक्षी पार्टियों के नेता मोदी के गुजरात मॉडल पर तंज़ करते नज़र आते थे. उत्तर प्रदेश के एक नेता ने तो यहां तक कह दिया था कि- “हम यू पी को गुजरात नहीं बनने देंगे”. कमोबेश यही बात हर विपक्षी नेता की जुबान पर भले ही न आयी हो, लेकिन सबके मन में यही डर कहीं न कहीं बैठा हुआ था कि अगर “गुजरात मॉडल” चल पड़ा तो मोदी और देश की जनता के अच्छे दिन आ जाएंगे और उनके लिए सत्ता का स्वाद चखना अगले कई दशकों तक एक दिवा स्वप्न बनकर रह जाएगा.
चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले यह समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर यह “गुजरात मॉडल” है किस चिड़िया का नाम:
[१] गुजरात में होने वाला विधान सभा का चुनाव स्वतंत्र भारत का पहला ऐसा चुनाव है जिसमे कोई भी नेता गोल जालीदार टोपी पहने दिखाई नहीं दे रहा है. यही गुजरात मॉडल है.
[२] भगवान् श्री राम को “काल्पनिक” बताने वाले राहुल गाँधी पिछले दो महीने में २२ बार मंदिरों में जाकर अपनी नाक रगड़ चुके हैं. निश्चित रूप से यही गुजरात मॉडल है.
[३] राहुल गाँधी, जिनका अभी तक यह मानना था कि मंदिरों में लोग लड़कियों को छेड़ने जाते हैं, वे खुद इतनी बार मंदिरों के चक्कर काट चुके हैं, जितने चक्कर किसी और कांग्रेसी नेता ने अपनी पूरी जिंदगी में नहीं लगाए होंगे. यह भी गुजरात मॉडल है.
[४] राहुल गाँधी मंदिर जा रहे हैं लेकिन किसी “सेक्युलर” नेता की इतनी हिम्मत नहीं पड़ रही कि पलटकर उनसे पूछे कि क्या अब मस्जिद भी जाओगे? यही गुजरात मॉडल है.
[५] नेहरू ने जिस सोमनाथ मंदिर का विरोध किया और उसके लिए धन देने से भी मना कर दिया, आज उसी मंदिर में जाकर उनके वंशज अपनी चुनावी जीत की भीख मांगने के लिए विवश हैं. यही गुजरात मॉडल है.
वैसे तो धीरे धीरे सभी नकली “सेक्युलर” नेताओं को पिछले तीन सालों में गुजरात मॉडल की पूरी खबर लग चुकी है. जिन्हे अभी तक गुजरात मॉडल की समझ नहीं हुयी है, उन्हें भी २०१९ के चुनावों से पहले यह गुजरात मॉडल पूरी तरह समझ में आ जाएगा. घोर जातिवाद और साम्प्रदायिकता की राजनीती करने वाली मायावती का उत्तर प्रदेश के हालिया निकाय चुनावों में इस्तेमाल किये गए एक चुनावी नारे की झलक मात्र से ही यह बात साफ़ हो जाएगी कि अब “गुजरात मॉडल” सभी को समझ आने लगा है. बहुजन समाज पार्टी का नारा था- “न ज़ात को न धर्म को- वोट मिलेगा कर्म को.” यानि जिनकी पार्टी की बुनियाद ही ज़ात-पात, तुष्टिकरण और साम्प्रदायिकता पर टिकी हो, अब उन्हें भी “कर्म” यानि गुजरात मॉडल का सहारा लेना पड़ रहा है.

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