Sunday, December 25, 2016

भूषण,केजरीवाल और राहुल गाँधी के "झूठ" का सच !

पुरानी कहावत है कि बेईमान आदमी से किसी को डर नही लगता है और ईमानदार आदमी से सभी डरते हैं. देश के पी एम नरेन्द्र मोदी की यही अटूट ईमानदारी आज भ्रष्टाचार के समुद्र मे गोते लगा चुके विपक्षी नेताओं के गले नही उतर रही है और यह लोग पागलपन की हद तक जाकर मोदी के खिलाफ कुछ ना कुछ ऐसा षड्यंत्र 24 घंटे 365 दिन रचने मे लगे हुये हैं, जिससे मोदी भले ही आरोपित हो या ना हों, देश की जनता को यह लोग अपने दुष्प्रचार से भ्रमित करने मे उसी तरह कामयाब हो जाएं, जैसा कि यह लोग पहले भी होते आये हैं.

जनहित याचिकाओं को एक व्यापार की तरह चलाने वाले तथाकथित वकील प्रशांत भूषण सबसे पहले अपनी "बेबुनियाद जनहित याचिका" लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे और सुप्रीम कोर्ट से यह गुहार लगाई थी कि आदित्य बिरला ग्रुप और सहारा ग्रुप पर मारे गये छापों के दौरान कुछ कागज ऐसे मिले हैं, जिनमे "गुजरात सी एम" का नाम लिखा हुआ है, लिहाज़ा जो गुजरात के उस समय सी एम थे, वह आज देश के पी एम हैं, और इसीलिये सुप्रीम कोर्ट एक SIT गठित करके देश के पी एम के खिलाफ इस भ्रष्टाचार की जांच करने का आदेश करे.

सुप्रीम कोर्ट ने इस तथाकथित जनहित याचिका को पूरी तरह बेबुनियाद,मनगढ़ंत और काल्पनिक बताते हुये जो कुछ कहा वह यह है : "अगर इस तरह की सामग्री के आधार पर किसी तरह की जांच या कार्यवाही की जाती है तो दुनिया मे किसी भी व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर जांच की मांग की जाने लगेगी. कोई भी शरारती व्यक्ति अपने कंप्यूटर मे किसी का भी नाम लिख सकता है और आप उसकी जांच के लिये सुप्रीम कोर्ट आ जायेंगे ? " अदालत ने भूषण को जबरदस्त फटकार लगाते हुये कहा कि अगर वह वाकयी जांच कराना चाहते हैं तो कोई सुबूत इस अदालत मे अगली तारीख तक पेश करें. सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी किसी को भी शर्मसार करने के लिये काफी है लेकिन भूषण, केजरीवाल और राहुल गाँधी जैसे लोगों से इस तरह की आशा करना व्यर्थ है क्योंकि "बेशर्मी" ही इन लोगों की जमा पूँजी है.

आइए अब आपको इस मामले से जुड़े कुछ और दिलचस्प तथ्य बताते हैं, जिन्हे पढ़कर आपको यह मालूम पड जायेगा कि भूषण,केजरीवाल और राहुल गाँधी आखिर कितने पानी मे हैं. अक्टूबर 2013 मे जब केन्द्र मे कांग्रेस की सरकार थी, उस समय सी बी आई ने UPA सरकार के कोयला घोटाले के सिलसिले मे आदित्य बिरला ग्रुप पर रेड मारी थी. इस रेड मे कंप्यूटर पर एक शीट पर यह लिखा हुआ था-" Gujarat CM-25 Crore.12 Paid.Rest?"

इस सम्बंध मे दो बाते ध्यान देने योग्य है, पहले तो यह मामला किसी औद्योगिक इकाई की पर्यावरण मंजूरी से जुड़ा हुआ था. पर्यावरण की मंजूरी देने मे ना तो गुजरात सरकार और ना ही गुजरात के किसी मंत्री या अधिकारी का कोई लेना देना होता है. इस मामले मे अगर किसी तरह की रिश्वत का लेन देन हुआ भी होगा तो वह केन्द्र सरकार के पर्यावरण मंत्री और कम्पनी के बीच हुआ होगा क्योंकि पर्यावरण सम्बंधी सभी मंजूरी केन्द्र सरकार के अंतर्गत आती है.  सी बी आई को जब कुछ समझ नही आया तो उस ने यह कंप्यूटर शीट आयकर विभाग को आगे की कार्यवाही करने के लिये सौंप दी. जब आयकर विभाग ने आदित्य बिरला ग्रुप के CEOअमिताभ से यह पूछा कि शीट पर जो GujaratCM  लिखा है,वह कौन है, तो उसने जबाब मे बताया कि GujaratCM का मतलब  Gujarat Alkalies and Chemicals Limited से है. दूसरी अहम बात यह है कि अगर यह मामला गुजरात के तत्कालीन सी एम मोदी से जुड़ा था, तो केन्द्र की सरकार को तो मोदी पर अपनी पूरी ताकत के साथ  अक्टूबर 2013 मे ही टूट पड़ना चाहिये था और सी बी आई और आयकर विभाग के साथ साथ सभी सरकारी अजेंसियों को मोदी के पीछे ही लगा देना चाहिये था. आखिर कांग्रेस सरकार पिछले 12 सालों से मोदी के पीछे पड़ी ही हुई थी और उनको लगातार झूठे और मनगढ़ंत मामलों मे फंसा रही थी. फिर इस मामले मे UPA सरकार ने मोदी पर मेहरबानी क्यों दिखाई ?

अब दुबारा से हम भूषण वकील के निराधार आरोपों पर आते हैं. भूषण को जब सर्वोच्च न्यायालय ने फटकार लगाई तो भूषण का नशा तो शांत हो गया लेकिन केजरीवाल जी ने उन्ही बेबुनियाद आरोपों को फिर से लपक लिया और जनता को हमेशा की तरह एक बार से बेबकूफ बनाने की कोशिश कर डाली. राहुल गाँधी ने तो शायद यह झूठे और मनगढ़ंत आरोप देश के सबसे अधिक ईमानदार राजनेता पी एम मोदी पर लगाने से पहले अपनी पार्टी के नेताओं से भी विचार विमर्श नही किया, वर्ना उन्हे यह मालूम होता कि जिस फर्ज़ी लिस्ट मे "गुजरात सी एम" लिखा हुआ है, उसी लिस्ट मे दिल्ली की तत्कालीन सी एम शीला दीक्षित का भी नांम लिखा हुआ है. सबसे बड़ी बात यह है कि जैन हवाला मामले मे सुप्रीम कोर्ट यह बात साफ शब्दों मे कह चुका है कि सिर्फ किसी काग़ज़, डायरी या शीट पर किसी का नाम भर लिखा होने से ,उस व्यक्ति के खिलाफ कोई मामला बनाकर जांच नही की जा सकती है. यह तो ऐसे हो गया कि किसी भी व्यक्ति के यहाँ कोई छापा पड़े और किसी काग़ज़ पर अगर यह लिखा हो कि राजीव गुप्ता ने 25 करोड़ रुपये लिये तो बस उसी पल सब के सब भ्रष्ट लोग राजीव गुप्ता के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच की मांग करते हुये सुप्रीम कोर्ट पहुंच जायेंगे.


जब 2012 मे हिमाचल प्रदेश के कांग्रेसी मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का नाम इसी तरह के एक मामले मे आया था तो खुद कांग्रेसी नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के इसी जैन हवाला केस का हवाला देते हुये उनका यह कहकर बचाव किया था कि सिर्फ किसी कागज पर नाम लिखा होना किसी तरह की जांच के लिये पर्याप्त सबूत नही है.

Sunday, December 18, 2016

क्या हो सकता है मोदी सरकार का अगला कदम ?

नोट बंदी की समय सीमा  समाप्त होने मे अब कुछ ही दिन बाकी रह गये है. 30 दिसंबर 2016 को नोट बंदी का यह अभूतपूर्व जन आन्दोलन समाप्त होने वाला है. लेकिन जैसा कि खुद पी एम मोदी यह बात कई बार कह चुके हैं कि काले धन, भ्रष्टाचार और सामाजिक अन्याय के प्रति जो कुछ भी किया जाना बाकी है, नोट बंदी उसकी एक शुरुआत भर है. दूसरे शब्दों मे कहा जाये तो नोट बंदी या विमुद्रीकरण उस प्रक्रिया की पहली किश्त है, जिसके जरिये पिछले 70 सालों की गंदगी को साफ किया जाना बाकी है. नोट बंदी के साथ साथ मोदी सरकार ने चुप चाप बेनामी प्रॉपर्टी के कानून को भी 1 नवंबर 2016 से लागू कर दिया है, जिसे कांग्रेस सरकार के समय 1988 मे लाया गया था लेकिन कांग्रेस क्या, मोदी सरकार से पहले किसी भी सरकार की इतनी हिम्मत नही हुई कि वह इस कानून को लागू कर पाती. बेनामी प्रॉपर्टी से सम्बंधित कानून लागू करने का विरोध विपक्षी दलों ने दो कारणो से नही किया. पहला तो यह कि विपक्षी दल नोट बंदी से ही इतने अधिक सदमे मे थे कि उन्हे कुछ और सूझ नही रहा था. दूसरे, बेनामी प्रॉपर्टी के कानून को कांग्रेस के शासनकाल मे  ही पास किया गया था-मोदी सरकार ने उसे सिर्फ लागू करने का काम किया है.

काले धन और भ्रष्टाचार को समाप्त करने के रास्ते पर चलते हुये, मोदी सरकार निकट भविष्य मे कुछ और कड़े कदम उठा सकती है, जिनका उल्लेख नीचे किया गया है :

(1) आयकर कानून की धारा 13A के अंतर्गत सभी राजनीतिक पार्टियों की सभी तरह की आय और मिलने वाले चंदे पर बिना किसी रोकटोक और बिना किसी सीमा के आयकर की पूरी छूट मिली हुई है. गौर करने वाली बात यह है कि राजनीतिक दलों की ना सिर्फ सभी तरह् की आय पर कोई आयकर नही है, उन्हे मिलने वाले चन्दों पर भी कोई आयकर नही है. 20000 रुपये से ऊपर मिलने वाले चन्दों का तो राजनीतिक पार्टियों को हिसाब किताब रखने की भी जरूरत नही है. आयकर अधिनियम की यह धारा देश की जनता के साथ धोखा है- जहाँ देश की जनता को सरकार अपना आयकर समय पर और सही तरीके के भरने का उपदेश देती रहती है, वहीं, सभी राजनीतिक पार्टियों को सभी तरह की आय और चन्दों से होने वाली आय को आयकर के दायरे से बाहर रखना, काले धन और भ्रष्टाचार को बढाने जैसा ही है. मोदी सरकार इस धारा को पूरी तरह समाप्त करके देश की जनता को एक और "सरप्राइज" दे सकती है.

(2) नोट बंदी के बाद डाले गये सभी छापों मे भरी मात्रा मे नये नोट और सोना बरामद हुआ है. अपराधियों को पकड़कर पूछताछ भी की जा रही है. लेकिन जो मौजूदा कानून हैं, उनके तहत इस तरह के अपराधियों को रोक पाना संभव नही है. आज यह बात आम तौर पर कही जाती है कि -"रिश्वत लेते हुये पकड़े जाओ और रिश्वत देकर छूट जाओ." देश भर मे जितने भी सरकारी अधिकारी और कर्मचारी हैं, चाहे वे राज्य सरकार के अंतर्गत आते हों या केन्द्र सरकार के, उनमे से ज्यादातर, तभी तक ईमानदार है, जब तक उन्हे भ्रष्ट होने का मौका ना मिले. पिछले दिनो नोट बंदी के दौरान बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों की काली करतूतें इसका जीता जागता उदाहरण है. अभी हाल ही मे जो नये नोट और सोना पकड़ा गया है, अगर उसकी ईमानदारी से जांच की जाये, तो यही सामने आयेगा कि बरामद किये गये नये नोटों और सोने मे से ज्यादातर हिस्सा किसी ना किसी सरकारी अधिकारी की रिश्वत के लिये ही था. भारत सरकार का एक ऐसा विभाग जिसकी छवि रिश्वत लेने के मामले मे सबसे ज्यादा खराब है, वहां बड़ी संख्या मे मामले हर साल निपटाये जाते हैं और उन्हे निपटाने की आखिरी तारीख हर साल 31 दिसंबर होती है. 8 नवंबर को नोट बंदी का फैसला हुआ तो इस विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने भी रिश्वत की मांग नये नोटो और सोने के रूप मे ही की होगी. इतने बड़े पैमाने पर नये नोटों और सोने की बरामदगी कम से कम इसी बात की ओर संकेत करती है. मजे की बात यह है कि जिस तरह से मोदी सरकार को बैंक अधिकारियों पर बहुत भरोसा था, उसी तरह मोदी सरकार को इस विभाग के अधिकारियों पर भी आने वाले समय मे भरोसा करना है. यह लोग मोदी सरकार के भरोसे पर खरे उतरें, इसे सुनिश्चित करने के लिये, सरकार कुछ ऐसे सख्त कदम उठा सकती है, जिससे इन लोगों के भ्रष्टाचार पर लगाम लगे. किसी भी व्यक्ति के पास रखे जाने वाले अधिकतम सोने और नक़दी की सीमा तय करना और 100 रुपये से ऊपर के नये नोटों पर 3 से लेकर 5 वर्षों तक की "एक्सपाइरी डेट" लिखा जाना, जैसे कुछ फैसले भी निकट भविष्य मे लिये जा सकते हैं. सरल शब्दों मे कहें तो जब तक रिश्वत लेना और देना बंद पूरी तरह से बंद नही होगा, काले धन और भ्रष्टाचार को पूरी तरह समाप्त नही किया जा सकता और सभी सरकारी विभागों मे रिश्वत के इस लेन-देन पर लगाम लगाने के लिये मोदी सरकार कोई बड़ा कदम उठा सकती है.
( लेखक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और टैक्स मांमलों के एक्सपर्ट है.)

Tuesday, December 13, 2016

नोट बंदी से केजरीवाल बेचैन क्यों ?

जब से पी एम मोदी ने काले धन के खिलाफ अपनी निर्णायक जंग का एलान करते हुये, पुराने 500-1000 के नोट बंद किये हैं, केन्द्र की भाजपा सरकार और पी एम मोदी खुद केजरीवाल समेत सभी विपक्षी नेताओं के निशाने पर हैं. केजरीवाल जो खुद अन्ना हज़ारे के साथ एक भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन करने की सफल नौटंकी कर चुके हैं, उनकी बेचैनी विपक्ष के बाकी सभी नेताओं से काफी ज्यादा लग रही है. नोट बंदी से केजरीवाल इतने बेचैन क्यों हैं, इस पर सभी लोग अपने अपने ढंग से कयास लगा रहे हैं लेकिन असली कारण कोई भी खुलकर नही बताना चाहता है.

केजरीवाल की बेचैनी का विश्लेषण करने से पहले हमे उन बातों पर ध्यान देना होगा, जिनके ऊपर इस नोट बंदी का सबसे ज्यादा असर पड़ा है.

(1) नोट बंदी से सबसे ज्यादा मार उन लोगों पर पड़ी है, जो लोग 500 और 1000 के नकली नोटों के कारोबार मे लिप्त थे. जैसा कि सभी को मालूम है कि नकली नोटो की छपाई का सारा काम पाकिस्तान मे होता था और व़हाँ से इन नकली नोटों को भारत मे जारी किया जाता था. पाकिस्तान से भारत मे फैलाया जा रहा आतंकवाद इसी नकली नोटों के कारोबार की बदौलत ही पिछले कई दशकों से बे रोक टोक चल रहा था. हमारे अपने देश मे ऐसे लोगों की कमी नही है जो खाते हिन्दुस्तान का हैं और गाते पाकिस्तान का हैं-दूसरे शब्दों मे कहें तो इनकी वफादारी अपने देश के प्रति ना होकर पाकिस्तान के प्रति ज्यादा है. नोट बंदी से पाकिस्तान को जो झटका लगा है, उसे यह आतंकी देश कभी भूल नही पायेगा. अभी हाल ही मे पाकिस्तान मे नकली नोटों को छापने वाले सरगना ने नोट बंदी की वजह से खुदकशी भी कर ली है.

(2) नोट बंदी से आतंकवादियों के साथ साथ नक्सली लोगों को भी गहरा झटका लगा है. काफी नक्सली लोगों ने नोट बंदी के बाद अपनी नक्सली गतिविधियों को बंद करने का एलान करते हुये अपने आपको देश की मुख्यधारा के हवाले कर दिया है.


(3) नोट बंदी का तीसरा सबसे बड़ा झटका उन लोगों को लगा है, जिन्होने देश और जनता को लूट लूट कर टैक्स की चोरी करके अपने पास काले धन का भंडार एकत्रित किया हुआ था.

(4) नोट बंदी से जिस आम जनता पर असर पड़ा है, उसे हम चौथे नंबर पर रख सकते हैं. यह वे लोग हैं जिन्हे तकलीफ तो खूब हो रही है, लेकिन देश हित मे इन्होने इस तकलीफ को अस्थायी रूप से सहने का मन बना लिया है. विपक्षी नेताओं और न्यायालय के उकसाने के बाबजूद आम जनता ने जिस सहनशीलता और परिपक्वता का परिचय दिया है, उसे विपक्षी नेताओं के मुंह पर एक तमाचा ही समझा जाना चाहिये.


कुल मिलाकर हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं, कि जो कोई भी नोट बंदी से बहुत ज्यादा परेशान है और उसे वापस लेने की मांग भी कर रहा है, वह ऊपर लिखी हुई किसी ना किसी केटेगरी मे आता है और केजरीवाल किस केटेगरी मे आते हैं, इसका बेहतर जबाब वह खुद ही दे सकते हैं. इससे पहले कि सोशल मीडिया मे केजरीवाल के बारे मे कुछ मनगढ़ंत कयास लगाये जाएं, उन्हे खुद आगे बढ़कर यह बताना चाहिये कि वह ऊपर लिखी हुई  केटेगरी मे से किस केटेगरी मे आते हैं.

Saturday, December 10, 2016

नोटबंदी: सरकार पास, बैंक फेल !!!

नोट बंदी के ऐतिहासिक और क्रांतिकारी फैसले की जहाँ एक तरफ हर व्यक्ति, तकलीफ़ें उठाने के बाबजूद भी तारीफ कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ हमारे भ्रष्ट बैंक अधिकारियों और निकम्मे बैंक कर्मचारियों की वजह से देश की जनता को ऐसी तकलीफों का भी सामना करना पड रहा है, जिनसे बचा जा सकता था. दरअसल पिछले 70 सालों मे बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों को जबरदस्त कामचोरी की आदत पड चुकी है और ऐसा लग रहा है मानो उन्हे पहली बार काम करना पड रहा है. बैंक की शाखाओं मे किस तरह से आधे-अधूरे मन से काम होता आया है, वह इस देश की जनता से छिपा हुआ नही है. ग्रामीण इलाकों की बैंक शाखाओं मे तो यह हालत और भी अधिक खराब है.

नोट बंदी से एक तो आम आदमी पहले से ही परेशान है क्योंकि जिन लोगों ने पुराने नोट बैंक मे जमा कराये हैं, उन्हे नये नोट बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों के भ्रष्टाचार के चलते नही मिल रहे हैं. अभी हाल ही मे चेन्नई मे आयकर के छापे मे 70 करोड़ रुपये के नये नोट पकड़े गये हैं- ऐसे और भी मामले सामने आ रहे हैं. यह रुपया बैंक अधिकारियों की मिलीभगत के बिना तो बैंको से बाहर नही गया होगा. कायदे मे यह सभी रुपया अगर भ्रष्ट बैंक अधिकारियों ने इस तरह से अपने चहेतों को नही दिया होता तो यह सारा का सारा रुपया बैंको के पास जनता को बांटने के लिये उपलब्ध रहता और बैंको मे उतनी लम्बी लाइने नही लगतीं, जितनी कि आज लग रही हैं. अब तो बैंकों ने रुपये बदलने का काम भी बंद कर दिया है और बैंकों के आगे लगी हुई लाइने उनके अपने खाताधारकों की ही हैं-अगर बैंक वाले इन लोगों को भी नये नोट उपलब्ध नही करवा पा रहे हैं तो उसका कारण यह नही है कि नये नोट पीछे से नही आ रहे हैं, उसका मुख्य कारण यही है कि बैंकों के पास जो रुपये खाताधारकों को बांटने के लिये आ रहे हैं, उनका जबरदस्त ढंग से दुरुपयोग किया जा रहा है.

अभी हाल ही मे बैंकों की एक नयी मूर्खता सामने आई है जिसके चलते आम जनता को काफी परेशानी से दो चार होना पड रहा है. बैंकों मे आजकल "कोर बॅंकिंग सिस्टम" यानी CBS  है, जिसमे आपका खाता किसी भी बैंक शाखा मे हो, आप उसी बैंक की देश मे स्थित किसी भी दूसरी शाखा मे रुपये जमा भी कर सकते है और निकाल भी सकते हैं. लेकिन ज्यादातर बैंको ने अभूतपूर्व बेशर्मी का प्रदर्शन करते हुये, यह कहना शुरु कर दिया है कि वे सिर्फ उन्ही लोगों का पैसा जमा करेंगे या उन्ही को पैसा निकालने देंगे, जिनका उनकी शाखा मे खाता होगा. इसका मतलब हुआ कि अगर किसी का बैंक खाता स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की फ़रीदाबाद ब्रांच मे है और इस समय अगर वह गाज़ियाबाद मे रह रहा है या काम कर रहा है, तो उसे अपने रुपये जमा करवाने या रुपये निकालने के लिये गाज़ियाबाद मे अपना काम धंधा छोड़कर फ़रीदाबाद जाना पड़ेगा और फ़रीदाबाद जाने के बाद भी अगर वहाँ पर उस ब्रांच ने उसे पैसा नही दिया तो उसे अपना सा मुंह लेकर वापस आना पड़ेगा क्योंकि इस बात की भी पूरी संभावना है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की फ़रीदाबाद ब्रांच के अधिकारी भी नये नोटो को इधर उधर कर दें और जनता के लिये "नो कैश" का बोर्ड बैंक के बाहर लगाकर अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा पा जाएं.

सरकार और वित्त मंत्रालय ने हालांकि कुछ भ्रष्ट बैक अधिकारियों पर कार्यवाही की है लेकिन वह हालात को देखते हुये नाकाफी लगती है. सभी भ्रष्ट बैंक अधिकारियों और निकम्मे बैंक कर्मचारियों को यह सख्त हिदायत देने की जरूरत है कि जो नये नोट जनता मे बांटने के लिये भेजे जा रहे हैं, उनका दुरुपयोग किसी भी हालत मे ना हो. जो बैंक अधिकारी और कर्मचारी सरकार की पकड मे आ भी रहे हैं, उन्हे सिर्फ सस्पेंड करने की औपचारिकता निभाई जा रही है-जिससे इन लोगों का गलत काम करने का हौसला और भी बढ रहा है. जरूरत इस बात की है कि जो बैंक कर्मचारी या अधिकारी इस तरह के अपराध मे लिप्त पाये जाएं, उन्हे तुरंत नौकरी से बर्खास्त करके हवाला कानून के अंतर्गत जेल की हवा खिलाई जाये. बैंकों को यह हिदायत भी तुरंत दी जानी चाहिये कि वे किसी भी खाताधारक को सिर्फ इसलिये रुपये जमा करने या निकालने के लिये मना नही करें, क्योंकि उसका खाता उस ब्रांच मे ना होकर किसी दूसरी ब्रांच मे है. रिजर्व बैंक की तरफ से ऐसा कोई नियम नही है-बैंक वाले यह किसके कहने पर कर रहे हैं, इसकी गहन जांच होनी चाहिये,.

Wednesday, December 7, 2016

इस दशक के नेता नरेन्द्र मोदी




हाल ही में राजीव गुप्ता की लिखी हुईं पुस्तक "इस दशक के नेता नरेन्द्र मोदी" प्रकाशित हुईं है. इस पुस्तक में लेखक ने नरेन्द्र मोदी के राजनीतिक जीवन के इर्द गिर्द घूमती हुईं घटनाओं को आधार बनाकर जो रचनाएँ (लेख, व्यंग्य और कवितायेँ आदि) लिखी थीं और जो समय समय पर लेखक के "नवभारत टाइम्स ब्लॉग" पर प्रकाशित हुईं थीं, उन्ही में से कुछ चुनी हुईं रचनाओं को इस पुस्तक में शामिल किया गया है. 

यह पुस्तक सभी ऑनलाइन पोर्टल्स पर उपलब्ध है. पुस्तक के बारे में सुझाव और प्रतिक्रियाएं भेजने के लिए  rajeevg@hotmail.com   पर संपर्क करें.


Follow Rajeev Gupta on Twitter @RAJEEVGUPTACA

Monday, December 5, 2016

#नोटबंदी पर अब तक का सबसे बड़ा खुलासा !!!

नोट बंदी की घोषणा हुये तीन दिन हो चुके थे. सभी टी वी चैनल अपनी टी आर पी बढाने के चक्कर मे इस बात की होड़ मे लगे हुये थे कि देश मे जहाँ कही भी किसी की भी मौत किसी भी वजह से हुई हो, उसे किसी भी तरह से नोट बंदी से जोड़कर दिखलाया जाये. "खबरदार" टी वी चैनल अभी तक इस दौड़ मे शामिल नही हुआ था और लिहाज़ा इस टी वी चैनल की टी आर पी का बैंड बज़ा हुआ था. टी वी चैनल की संपादक मंडली के लोग गंभीर सोच विचार मे ही थे कि अचानक ही चैनल के चीफ एडिटर ने अपने प्राइम टाइम शो को पेश करने वाले एँकर-पत्रकार को  एक सुझाव दिया-"भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई शुरु करने की नौटंकी करने वाले क्रेजीवाल आजकल जरूरत से ज्यादा बैचेन नज़र आ रहे हैं- उनकी अद्भुत चीख पुकार का हम अपने चैनल की टी आर पी बढाने के लिये उपयोग कर सकते हैं." संपादक जी के इशारे को समझते हुये पत्रकार महोदय ने क्रेजीवाल जी को फोन लगा दिया और उन्होने उछलते हुये "खबरदार" चैनल के प्राइम टाइम शो मे शामिल होने के लिये हामी भर दी. 

प्राइम  टाइम शो के कार्यक्रम का नाम भी धमाकेदार रखा गया -"नोट बंदी पर अब तक का सबसे बड़ा खुलासा !!!" प्राइम टाइम शो रात 9 बजे शुरु होना था. लेकिन क्रेजीवाल जी व्यस्त होने के बाबजूद पूरे आधा घंटा पहले ही स्टूडियो मे पधार चुके थे. उनकी बेचैनी और हैरानी परेशानी को देखकर प्राइम टाइम शो को एँकर करने वाले पत्रकार भी बेहद हैरान थे लेकिन उन्होने अपनी हैरानी वाले सवाल को भी प्राइम टाइम शो के लिये ही बचा कर रख लिया.

शो शुरु होते ही पत्रकार ने अपना पहला सवाल क्रेजीवाल जी के ऊपर दागा-" क्रेजीवाल जी, आप जरूरत से ज्यादा व्यस्त होने के बाबजूद भी, हमारे स्टूडियो मे पूरे आधा घंटा पहले पहुंच गये, इसके पीछे भी कोई खास राजनीतिक चाल है या कोई और वजह है ?"

क्रेजीवाल : नही इसके पीछे कोई खास वजह नही है- मैं दरअसल अपने घर से आपके स्टूडियो तक पैदल ही चलकर आया हूँ और इसलिये शाम को 6 बजे ही चल दिया था, इसी चक्कर मे आधा घंटा पहले ही पहुंच गया.

पत्रकार : क्रेजीवाल जी, आपकी गाड़ी क्या खराब हो गयी है, जिसके चलते आपको पैदल आने की जरूरत पड गयी ?

क्रेजीवाल : नही पत्रकार महोदय, अब नोट बंदी के बाद हमारे पास इतने पैसे ही कहाँ बचे हैं कि हम लोग कहीं कार से आ जा सकें.


पत्रकार (हैरान होते हुये) : क्रेजीवाल जी, आपके पास तो पुराने 500 और 1000 के नोटों का अपार भंडार हुआ करता था-उसे बैंक मे जमा करवाकर आप नये नोट निकलवा सकते थे या फिर ई-पेमेन्ट कर सकते थे.

क्रेजीवाल : पहले तो में आपकी जानकारी दुरुस्त कर दूं कि मेरे पास सिर्फ 500 के नोटों का भंडार था-1000 के नोटो का भंडार मेरे पास नही था. दूसरी बात यह है कि बैंको मे सिर्फ वही नोट जमा हो रहे हैं जिन्हे रिजर्ब बैंक ऑफ इंडिया ने जारी किया है-मेरे पास जो नोट हैं उन्हे पाकिस्तान सरकार ने छापा है.

पत्रकार एकदम सन्न रह गया और अपनी सीट से उठकर खड़ा हो गया: इसका मतलब क्रेजीवाल जी, आप पाकिस्तान से भेजे गये नकली नोटों के सौदागर हैं ?

क्रेजीवाल (अपना मफलर कसकर लपेटते हुये) : हाँ जी, मैं सिर्फ 500 के नकली नोटों मे ही डील करता हूँ लेकिन इस नोट बंदी से मेरा सारा धंधा चौपट कर दिया है मोदी ने .

पत्रकार (बेहद हैरानी के साथ) : क्रेजीवाल जी, आप बार बार यह कह रहे हैं कि आप सिर्फ 500 रुपये के नकली नोटों के भारत मे अधिकृत सौदागर है तो फिर यह बताएं कि पाकिस्तान से जो 1000 के नकली नोट छपकर देश मे आते हैं, उनका भारत मे होलसेल डिस्ट्रीब्यूटर कौन है ?

क्रेजीवाल : अपनी मनता दीदी.........मेरे कहने का मतलब मनता सनर्जी . 1000 के नकली नोटो की इस देश मे वे इकलौती अधिकृत सौदागर हैं.

पत्रकार : फिर तो क्रेजीवाल जी, सिर्फ आपका ही नही, मनता दीदी का भी नकली नोटों का धंधा पूरी तरह चौपट हो गया ?

क्रेजीवाल : हाँ जी, अब आप बिल्कुल सही समझे हैं- हम दोनो का का ही नकली नोटों का धंधा मोदी ने पूरी तरह चौपट कर दिया है. काले धन के सौदागर तो बैंकों मे अपने पैसे को जमा करा रहे हैं और उसे टैक्स देकर सफेद कर रहे हैं लेकिन हमारे जैसे नकली नोटों के सौदागार आखिर कहाँ जाएं ?

पत्रकार : क्रेजीवाल जी, मैं आपकी परेशानी और चीख पुकार को अच्छी तरह समझ चुका हूँ और हमारे दर्शक भी यह जान गये हैं कि नोट बंदी की सबसे ज्यादा मार सिर्फ आप दोनो पर ही क्यों पड़ी है. हम इस चर्चा को कल भी जारी रखेंगे. आज प्राइम टाइम शो का वक्त अब खत्म होता है. स्टूडियो मे पधारने के लिये आपका धन्यवाद. कल इसी वक्त आपका इस स्टूडियो मे एक बार फिर से स्वागत किया जायेगा.

पत्रकार की बात सुनते ही क्रेजीवाल ने अपने चिर परिचित ढंग से खाँसना शुरु कर दिया.
इससे पहले कि क्रेजीवाल जी कुछ और बोल पाते, टी वी पर कामर्शियल ब्रेक शुरु हो गया.

(इस काल्पनिक व्यंग्य रचना मे वर्णित सभी पात्र, घटनाएं एवं संवाद पूरी तरह से काल्पनिक हैं और उनका किसी जीवित या मृत व्यक्ति,संस्था या संगठन से कोई लेना देना नही है.)

Thursday, November 24, 2016

विपक्ष पर लागू नहीं होगी नोटबंदी

नोट बंदी के अचानक आये फैसले से जिन राजनेताओं के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गयी थी और जिनकी रातों की नींद और दिन का चैन गायब हो गया था, उनके लिये एक राहत की खबर आ रही है. संसद के शीतकालीन सत्र मे चल रहे गतिरोध को दूर करने के लिये, सरकार ने यह फैसला लिया है कि पी एम मोदी ने जिस नोट बंदी की घोषणा 8 नवंबर 2016 को की थी, उससे देश के सभी विपक्षी राजनेताओं को मुक्त रखा जायेगा. यह सभी नेता अपनी गतिविधियों को पहले की तरह उसी तरह से जारी रखने के लिये आज़ाद होंगे, जिस तरह से यह लोग पिछले 70 सालों से थे.दुश्मन देश पाकिस्तान से जितने नकली नोट 8 नवंबर 2016 तक देश मे आ चुके है, उनके इस्तेमाल की भी पूरी छूट 30 दिसंबर तक रहेगी, ताकि हमारे माननीय नेताओं को उन्हे चलाने मे किसी तरह की तकलीफ ना हो.

सरकार के इस कदम से जहाँ विपक्षी नेताओं की चाँदी हो जायेगी, वहीं जनता के लिये भी इस फैसले से जबरदस्त राहत मिलने की संभावना है, क्योंकि अब जब विपक्षी नेताओं को अपने पुराने नोट बदलवाने या जमा करवाने के लिये अपने कार्यकर्ताओं को या भाड़े पर लिये गये दिहाड़ी के मजदूरों को बैंक की लाइनो मे खड़ा नही करना पड़ेगा. जब यह लाइने छोटी हो जायेंगी तो जनता अपने पुराने नोटों को सहूलियत के साथ बैंको मे जमा करा सकेगी.

विश्वस्त सूत्रों के हवाले से यह खबर भी आ रही है कि आयकर विभाग के उच्च अधिकारियों को यह स्पष्ट रूप से बता दिया गया है कि इन सभी माननीय विपक्षी नेताओं को नोटिस भेजना तो दूर, उनकी तरफ आंख उठाकर भी ना देखें.

जानकर लोग यह बताते हैं कि सरकार को यह फैसला राष्‍ट्रीय पर्यावरण आयोग की उस फटकार के बाद लेना पड़ा जिसमे आयोग ने नोट बंदी के बाद विपक्षी नेताओं के असहनीय शोर शराबे और चीख पुकार के चलते देश मे अचानक बढे ध्वनि प्रदूषण की ओर सरकार का ध्यान खींचा था. राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी सरकार को जमकर फटकार लगाई थी कि सरकार इस बात का जबाब जल्द से जल्द दे कि जो लोग सभी तरह के ऐशो आराम से पिछले 70 सालों से रह रहे थे, वे लोग आज सरकार की गलत नीतियों के चलते, दाने दाने के लिये मोहताज़ क्यों हो गये हैं.

लम्बी लाइनो की वजह से देश मे दंगे होने की संभावना के चलते भी सरकार पर इन लम्बी लाइनो को जल्द से जल्द छोटा करने का दबाब था. सरकार के इस कदम को सभी विपक्षी नेता किसी भी सरकार द्वारा लिया गया स्वतंत्र भारत का सबसे अधिक "क्रांतिकारी" फैसला बता रहे हैं.


(इस काल्पनिक व्यंग्य रचना का किसी वास्तविक घटना,व्यक्ति, संस्था या संगठन से कोई लेना देना नही है.)

Sunday, November 20, 2016

नोटबंदी पर सुप्रीमकोर्ट की दंगों की भविष्यवाणी

नोट बंदी के खिलाफ डाली गयी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट खुद ही रद्द कर चुका है. सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले के मद्दे नज़र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से यह गुहार लगाई थी कि देश की अन्य अदालतों मे इस तरह् की याचिकाएं अभी भी डाली जा रही हैं और उन पर भी रोक लगाई जानी चाहिये. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की यह याचिका यह कहते हुये खारिज़ कर दी कि लोगों को नोट बंदी के चलते भारी परेशानी हो रही है और उन्हे अदालतों मे अपनी याचिका डालने के अधिकार से वंचित नही किया जा सकता है. यहाँ तक तो बात हज़म होने लायक लग रही थी. लेकिन अपनी इस दलील मे सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी टिप्पणी भी जोड़ दी जिसके अनुसार बैंकों के बाहर लगी लम्बी लम्बी लाइनों की वजह से देश मे दंगे भी हो सकते हैं. बैंकों मे लगी लम्बी लाइनो की वजह से दंगे होने की भविष्यवाणी माननीय सुप्रीम कोर्ट ने किस आधार पर की, इसके बारे मे तो मीडिया मे कोई खबर नही आई है, लेकिन सोशल मीडिया मे सुप्रीम कोर्ट की इस अनावश्यक भविष्यवाणी को लेकर काफी चर्चा हो रही है. लोगों का यह मानना है कि सर्वोच्च अदालत का काम फैसला करना है और भविष्यवाणी करने का काम हमे भविष्यवक्ताओं और ज्योतिषियों के लिये ही छोड़ देना चाहिये.

यहाँ यह बात भी गौर करने लायक है कि हमारे देश मे आज से पहले कभी भी लम्बी लाइनो की वजह से दंगे नही हुये है. लोग जियो के सिम लेने के लिये, शराब खरीदने के लिये और राशन की लाइनो मे लगने के आदी हो चुके हैं और लम्बी लाइने कभी भी इस देश मे दंगों की वजह नही बनीं हैं. कश्मीर मे पिछले काफी समय से दंगों से भी बदतर हालात बने हुये थे. जब से नोटबंदी का फैसला आया है, कश्मीर के हालात एकदम सामान्य हो गये है. इसका सीधा सा मतलब यह है कि जितने भी दंगे आज तक देश मे हुये हैं, उनके लिये किसी भी जाति, धर्म या समुदाय से ताल्लुक रखने वाली जनता कभी भी जिम्मेदार नही थी. दंगे हमेशा राजनीति से प्रेरित होते हैं और उन्हे प्रायोजित करने के लिये काला धन और जाली धन की बहुत अधिक जरूरत होती है. अगर इस कसौटी पर आज के हालातों को परखा जाये तो देश मे दंगा होने की कोई सूरत दूर दूर तक नज़र नही आती है. आज ना किसी राजनीतिक दल के पास काला धन है और ना ही जाली धन.

सोशल मीडिया पर तो देश की अदालतों मे लम्बित मामलों की जो लाइन लगी हुई है, उसके आकडे भी आ रहे हैं, जो बेहद चौंकाने वाले हैं. देश की निचली अदालतों मे 2,30,79,723 मामले लंबित पड़े हुये हैं, देश के विभिन्न हाइ कोर्ट मे 38,91,076 मामले लम्बित पड़े हुये हैं और खुद सुप्रीम कोर्ट मे 61,436 मामले ऐसे हैं, जिन पर अभी फैसला आना बाकी है. कुल मिलाकर देखा जाये तो 2,70,00,000 मामलों की विभिन्न अदालतों मे लाइन लगी हुई है और आज तक इतनी लम्बी लाइन लगने के बाबजूद भी इन लाइनो की वजह से देश मे कोई दंगा नही हुआ है.

अच्छा तो यह होता अगर सुप्रीम कोर्ट लम्बी लाइनो के लिये जिम्मेदार भ्रष्ट लोगों के खिलाफ सरकार को कडी कार्यवाही का आदेश देता क्योंकि यह बात धीरे धीरे बिल्कुल साफ होती जा रही है कि लाइनो मे लगे हुये लगभग 90 प्रतिशत लोग भ्रष्ट लोगों द्वारा भाड़े पर लिये हुये लोग हैं जो बाकी के 10 प्रतिशत लोगों के लिये परेशानी का कारण बन रहे हैं. पहले इन लोगों ने अपने काले धन को बदलवाने के लिये अपने कार्यकर्ताओं, दिहाड़ी के मजदूरों और अपने कर्मचारियों को 4000 बदलने की लाइन मे लगाकर लाइनो को लम्बा कर दिया और जब सरकार ने कुछ सख्ती दिखाई तो यह लोग आम जनता के जन धन खातों मे 250000 रुपये यह कहकर डलवा रहे हैं कि इन्हे 200000 रुपये निकालकर वह व्यक्ति एक निश्चित समय सीमा मे वापस कर दे. 50000 रुपये के लालच मे इन सभी लोगों के सामने यह बड़ी भारी चुनौती है कि उन्हे ATM  से या बैंक से निकालकर 200000 रुपये एक निश्चित समय सीमा मे वापस भी करने हैं. बैंकों मे लम्बी होती लाइनो का यही मुख्य कारण भी है. 

Thursday, November 17, 2016

देश आपका है- फैसला आपको करना है !

देश मे एक के बाद एक, लगातार दो अलग अलग "सर्जिकल स्ट्राइक" हुई है. दोनो बार की कार्यवाही मे समानता यही है कि दोनो ही बार इनकी घोषणा अचानक की गयी और दोनो ही बार देश के विपक्षी नेता या कहिये कि गैर-भाजपाई नेताओं की समझ मे यह नही आया कि तत्कालिक रूप से इन "सर्जिकल स्ट्राइक्स" पर क्या प्रतिक्रिया दी जाये.

जब जब इन "सर्जिकल स्ट्राइक्स" की सूचना सेना या सरकार द्वारा मुहैया कराई गयी, देश के सम्पूर्ण विपक्ष की हालत ऐसी हो गयी जैसे काटो तो खून नही. लकवा मारा हुआ विपक्ष जब कुछ सोचने समझने लायक होता है तो फिर कुछ काल्पनिक कहानी गढनी शुरु करता है ताकि वर्तमान सरकार को उसके ऐतिहासिक और क्रांतिकारी फैसले का श्रेय ना मिल पाये. विपक्ष इस गलतफ़हमी मे आज तक है कि देश मे सोशल मीडिया का कोई वजूद नही है और जो कुछ भी "दुष्प्रचार" यह विपक्षी नेता सरकार के खिलाफ करेंगे, उसे जनता सच मान लेगी और यह अपने दुष्प्रचार मे उसी तरह कामयाब होते रहेंगे जैसे कि पिछले 60-70 सालों से हो रहे थे.

पहली सर्जिकल स्ट्राइक तो विपक्ष के नेताओं से हज़म ही नही हुई और उन्होने उसे फर्ज़ी करार दे दिया-पाकिस्तान भी यही चाहता था. इन लोगों का यह कहना था कि या तो "सर्जिकल स्ट्राइक" का वीडियो जारी किया जाये (ताकि पाकिस्तान उस वीडियो को देखकर आगे के लिये सतर्क हो जाये ) और अगर सरकार यह वीडियो नही दिखाती है तो यह "सर्जिकल स्ट्राइक" फर्ज़ी मानी जायेगी. यह फैसला जनता करे कि विपक्षी नेता जो कुछ भी बोल रहे थे, उससे ज्यादा फायदा पाकिस्तान को हो रहा था या भारत को ?

अपनी पहली सर्जिकल स्ट्राइक को ही आगे बढ़ाते हुये मोदी सरकार ने 8 नवंबर 2016 की रात को "काले धन पर भी सर्जिकल स्ट्राइक" कर डाली. यह बात सारी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान एक आतंकवादी देश है और अपने आतंकवाद को पालने पोषने के लिये वह भारत के 500-1000 के नकली नोट भारी मात्रा मे छाप छाप कर, अपने आतंकवादी मनसूबों को अंज़ाम देता रहा है. आज जो लोग विपक्ष मे हैं, वे लोग पहले सत्ता मे थे और उन लोगों ने पाकिस्तान की इस बेज़ा हरकत को रोकने के लिये अगर कोई उपाय किये होते तो हज़ारों सैनिकों और देशवासियों की जान बचाई जा सकती थी. लेकिन पिछली "सेक्युलर" सरकारों का पाकिस्तान-प्रेम, देश-प्रेम पर हमेशा ही भारी पड़ता रहा. इसीलिये जब मोदी सरकार ने अचानक ही पाकिस्तानी-आतंकवाद का "सोर्स ऑफ फंडिंग" ही बंद कर दिया तो हमारे विपक्षी नेताओं को यह बात बहुत नागवार गुज़री.

लेकिन हमारे विपक्षी नेताओं मे थोड़ी बहुत शर्म अभी भी बाकी है या वे लोग जनता को आज भी सन 1950-60 के दशक की जनता समझ रहे हैं, इसलिये उन्होने यह बहाना बनाना शुरु कर दिया कि हम लोग "काले धन पर की गयी सर्जिकल स्ट्राइक" का पुरजोर विरोध इसलिये कर रहे हैं, क्योंकि जनता को उससे बड़ी तकलीफ हो रही है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलावा किसी और विपक्षी नेता ने यह बताने की जरूरत नही समझी, कि जिस जनता के दर्द की चिंता इन लोगों को पिछले 60-70 सालों मे नही हुई, अचानक इनका दिल इतना कैसे पसीज़ गया और यह दयावान होकर "जनता के हमदर्द" बनने की नौटंकी कब से करने लगे ?

गौर करने लायक बात यह है कि दीपावली से पहले लगभग हर घर मे रँगाई-पुताई का काम होता है और इसीके बहाने साफ-सफाई भी हो जाती है. जितने दिन तक यह काम घर मे चलता है, घर की सारी व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है, लेकिन उससे हम लोग हाहाकार मचाना शुरु नही कर देते हैं. ठीक उसी तरह से जब देशहित मे एक ऐसा फैसला लिया गया है, जिससे ना सिर्फ पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का, बल्कि भ्रष्टाचार के लिये जिम्मेदार काले धन का भी सफाया होने वाला है, तो हमारे कुछ मुट्ठी भर विपक्षी नेताओं के पेट मे दर्द क्यों हो रहा है ? कोई विपक्षी नेता अपने पिछले कमाये हुये काले  धन को सफेद करने के लिये बैंक की लाइन मे लगने की नौटंकी कर रहा है और कोई विपक्षी नेता पाकिस्तान से आये नकली नोटों को ठिकाने लगाने के लिये आज़ादपुर सब्जी मंडी जाकर बैठ गया है.

देश इस समय एक ऐसे निर्णायक  मोड पर खड़ा है, जहाँ एक ओर भ्रष्ट लोग पूरी तरह बेनकाब होकर जनता के सामने खड़े हुये हैं-वहीं दूसरी ओर ईंमानदार लोग अपने फैसले पर अडिग और अटल खड़े हुये है और उनके फैसले को सुप्रीम कोर्ट के साथ साथ देश के राष्ट्रपति और 125 करोड़ देशवासियों का भी पूरा समर्थन प्राप्त है.  भ्रष्ट लोगों की संख्या मुट्ठी भर है और वे लोग अपनी पूरी बेशर्मी के साथ इस ऐतिहासिक फैसले का पुरजोर विरोध  संसद के बाहर और संसद के अंदर भी कर रहे हैं.

लेकिन  देश इन नेताओं का नही है !
देश आपका है !!
फैसला आपको करना है !!!

Sunday, November 13, 2016

लगा दिया मोदी ने उनको आज बैंक की लाइन मे

काले धन पर पड़ी चोट तो भ्रष्ट दरिंदे चिल्लाये
जनता का ये करें बहाना, चोट को अपनी सहलाएं

जनता का कर रहे बहाना, परअपनी पीड़ा भारी है
जनता को तो खूब ठग चुके,अब खुद इनकी बारी है

लूट रहे थे 60 साल से, देश को दोनो हाथों से
मोदी ने औकात दिखा दी, इनको अपनी बातों से.

नकली नोटों के सौदागर करते इनकी रखवाली
उनका धंधा बंद हुआ तो ये देते मोदी को गाली

"अन्ना का चेला" बन बैठा, काले धन का सौदागर
इसकी काली करतूतों पर मोदी की है कडी नज़र

धनकुबेर लगते थे जिनके घर पर आकर लाइन मे
लगा दिया मोदी ने उनको आज बैंक की लाइन मे

-राजीव गुप्ता
(C) सर्वाधिकार सुरक्षित

Thursday, November 10, 2016

4000 के नोट बदलने पर तुरंत रोक लगाये सरकार

8 नवंबर की रात को मोदी सरकार ने काले धन को समाप्त करने का जो ऐतिहासिक और क्रांतिकारी फैसला लिया है, उसके तहत कोई भी सड़क चलता व्यक्ति, जिसके पास बैंक खाता नही है, अपना कोई भी पहचान पत्र दिखाकर देश के किसी भी बैंक की किसी भी शाखा से जाकर 4000 रुपये तक के पुराने नोटों के बदले नये नोट ले सकता है. सरकार ने यह नियम इसलिये बनाया था ताकि जिन लोगों ने अभी तक बैंक मे खाते नही खुलवाये हैं, उन्हे इस योजना के चलते किसी परेशानी का सामना ना करना पड़े, लेकिन बड़े बड़े राजनेताओं, व्यापारियों और उद्योगपतियों ने आम आदमी को राहत पहुंचाने वाली इस योजना का भी जमकर दुरुपयोग करना शुरु कर दिया है और इसी दुरुपयोग के चलते बैंकों के बाहर लम्बी लम्बी लाइने लगी हुई हैं.

दरअसल इस योजना का दुरुपयोग करते हुये भ्रष्ट नेता अपने कार्यकर्ताओं को रुपये बदलने का फॉर्म और पहचान पत्र की फोटोकॉपी के सैंकड़ों सेट देकर अलग अलग बैंकों की अलग अलग शाखाओं मे भेज रहे हैं. उदाहरण के लिये, अगर कोई भी व्यक्ति एक दिन मे दस बैंक शाखाओं से भी रुपये बदलने मे कामयाब हो जाता है, तो वह दिन भर मे 40000 रुपये आसानी से बदलवा सकता है. हर राजनीतिक पार्टी और नेता के पास कार्यकर्ताओं की जो फ़ौज़ है, अगर सभी लोग इसी काम पर लग जाएं तो 30 दिसंबर 2016 तक रोजाना 40000 के हिसाब से भी यह लोग करोड़ों रुपये बदलने मे कामयाब हो सकेंगे.

मजे की बात यह है कि जिन लोगों का बैंक मे खाता है, वे तो पूरे सप्ताह मे सिर्फ 20000 रुपये ही निकाल पायेंगे लेकिन जिनका खाता नही है, उनके लिये ऐसी कोई सीमा नही है और वे लोग जितनी मर्ज़ी बैंक शाखाओं मे जाकर 4000 रुपये के हिसाब से जितना चाहे पुराना धन नये धन से बदल सकते हैं. भ्रष्ट राजनेताओं की तर्ज़ पर भ्रष्ट सरकारी अधिकारी और व्यापारी भी इसी रास्ते को अपना रहे हैं. बहुत से व्यवसायिक प्रतिष्ठानो ने तो अपने सभी कर्मचारियों को सिर्फ इसी काम पर लगाया हुआ है और जो दिन भर मे सबसे अधिक रुपये बदलवाकर ला रहा है, उसे कुछ इनाम भी दिया जा रहा है.

इससे पहले कि जनता को दी गयी इस रियायत का और अधिक दुरुपयोग हो, इस योजना को तुरंत प्रभाव से बंद करना चाहिये ताकि बैंकों के आगे लगी हुई लम्बी लाइने खत्म हों और बैंक अपना समय असली खाताधारकों को दे सकें. वैसे भी जिन सड़क चलते लोगों ने (जिनके पास बैंक खाता नही है), अपने नोट बदलवाने थे, अब तक बदलवा ही लिये होंगे. मज़े की बात यह है कि बैंकों के पास यह चेक करने का भी कोई तरीका नही है कि जो लोग लाइन मे लगकर 4000 रुपये यह कहकर बदलवा रहे हैं कि उनके पास कोई बैंक खाता नही है, वे सच बोल रहे हैं या झूठ. आज सुबह कांग्रेस नेता राहुल गाँधी भी ४००० के नोट बदलवाने के लिए एक बैंक की लाइन में खड़े दिखे. क्या राहुल गाँधी का बैंक खाता  नहीं है ? अगर राहुल गाँधी बैंक की लाइन में खड़े होकर बैंक को चकमा देने की कोशिश कर सकते हैं तो कोई और क्यों नहीं कर सकता?

Tuesday, November 8, 2016

काले धन पर पी एम मोदी की "सर्जिकल स्ट्राइक"

500 और 1000 के नोटों का विमुद्रीकरण करते हुये पी एम मोदी ने अपनी सरकार का अब तक का सबसे अधिक साहसी कदम उठाते हुये  काले धन के खिलाफ एक ऐसा प्रहार किया है, जिसके वार से जहाँ एक ओर ईमानदारी से पैसा कमाने वाली जनता खुशी से फूली नही समा रही है,वहीं उन लोगों के चेहरे पर मातम छाया हुआ है, जिन्होने जनता को लूट लूट कर काले धन को अपनी तिजोरियों मे इकट्ठा किया हुआ था. काले धन के खिलाफ छेड़े गये इस युद्ध की मार किस पर सबसे ज्यादा पड़ी है, आइए उन लोगों के बारे मे विचार करते हैं :

1. पाकिस्तान की सरकार खुद 500 रुपये और 1000 रुपये के नकली नोट छाप-छापकर उन्हे आतंकवादियों के मार्फत हमारे देश मे भेज रही थी और पाकिस्तान का सारा का सारा आतंकवादी तामझाम इन्ही नकली नोटों के गोरखधंदे पर चल रहा था. पाकिस्तान सरकार को और उसकी आतंकवादी गतिविधियों को इससे बहुत बड़ा झटका लगा है.

2. जिन राजनेताओं ने पिछले 70 सालों मे जनता को लूट लूटकर प्रचुर मात्रा मे काला धन इकट्ठा किया हुआ था, उनकी हालत सिर्फ देखने लायक है- जिन लोगों ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की "सर्जिकल स्ट्राइक" पर भी सवाल उठा दिये थे, फिलहाल तो वे लोग भी इस बार् की "सर्जिकल स्ट्राइक" पर चुप्पी साधे हुये है और अभी तक कोई बहुत बड़ा हो-हल्ला नही किया है.

3. सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों ने भी पिछले 60-70 सालों मे काफी मात्रा मे जनता को प्रताडित कर करके रिश्वत के माध्यम से काला धन इकट्ठा किया हुआ था, यह सब लोग भी रातों-रात सड़क पर आ गये हैं और अपने दुष्कर्मों का जीते जी फल भुगतने के लिये तैयार हो रहे हैं.

4. काले धन पर की गयी सर्जिकल स्ट्राइक की मार उन व्यापारियों पर भी पड़ी है, जिनका धंधा ही काले धन पर टिका हुआ था. मुम्बई स्टॉक एक्सचेंज का संवेदी सूचकांक आज लगभग 1600 अंक नीचे खुला, यह इस बात का जीता जागता प्रमाण है कि काले धन का हमारी अर्थव्यवस्था पर कितना गहरा प्रभाव है. जिन व्यापारियों और उद्योगपतियों ने काले धन को इकट्ठा किया हुआ था, निश्चित रूप से , उन सब के लिये भी यह संकट की घड़ी है.

आम आदमी और मध्यम वर्ग जो अब तक काले धन की कमाई करने वालों से त्रस्त रहता था, उसे सबसे अधिक खुशी हुई है क्योंकि आज जाकर उसे यह मालूम पड़ा है कि ईमानदारी से धन कमाने का सुख क्या होता है. ऐसा भी नही है कि यह सब कुछ अचानक हो गया है. जब 30 सितंबर 2016 को काले धन को घोषित करने की स्कीम बंद हुई थी, उसके तुरंत बाद सरकार की तरफ से यह वक्तव्य आया था कि जिन लोगों ने अपना काला धन इस स्कीम मे भी घोषित नही किया है, आने वाले दिनो मे उन्हे चैन से सोने नही दिया जायेगा. कल 8 नवंबर 2016 की रात तो काफी ऐसे लोग नही सो पाये होंगे. आगे और कितनी रातें इनकी बिना सोये कटेंगी, यह देखने वाली बात है.

क्या मोदी टिक पायेंगे केजरीवाल के सामने ?

भ्रष्टाचार को खत्म करने की नीयत से राजनीति मे आये और दुनिया के सबसे भ्रष्ट राजनीतिक दल के साथ दिल्ली मे गठबंधन सरकार चला रहे केजरीवाल जी को लोकसभा चुनावों मे जाने की इस कदर हड़बड़ी मची हुई है कि वह सही और गलत का फर्क ही नही कर पा रहे हैं. अब तो उनकी चौकड़ी इतनी शातिर हो चुकी है कि उन्होने जनता से एस एम एस करके राय लेना भी बंद कर दिया है.

आम आदमी पार्टी का आत्मविश्वाश केजरीवाल जी को प्रधान मंत्री बनाने को लेकर किस हद तक बढ़ा हुआ है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि यह पार्टी दूसरी राजनीतिक पार्टियों से अपने आपको कई मायनों मे अलग दिखाने की नाकाम कोशिश कर रही है. दिल्ली विधान सभा के चुनाव नतीजे 8 दिसंबर को घोषित हुये थे जिसमे 28 विधायक आम आदमी पार्टी के भी चुने गये थे-दल बदल कानून के हिसाब से अगर 28 के एक तिहाई विधायक यानी कि 10 विधायक अपने आप को अलग करके किसी दूसरी पार्टी को समर्थन दे देते है तो उनकी विधान सभा की सदस्यता भी बनी रहेगी और आम आदमी पार्टी का कानूनी तरीके से विभाजन भी हो जायेगा.

आम आदमी पार्टी के नेताओं के पस कुछ ऐसी दिव्य शक्ति भी मौजूद है जो उन्हे 8 दिसंबर के पहले ही इस बात का आभास करा देती है कि 8 दिसंबर को नतीजे आयेंगे उसमे उनकी पार्टी को कम ना ज्यादा बिल्कुल 28 सीटें मिलेंगी- इसीलिये उनके विधायक मदन लाल को 7 दिसंबर की रात को ही "विदेश मे बैठे भाजपा के शीर्ष नेताओं"का फोन भी आ जाता है कि मदन लाल जी आप खुद को मिलाकर 10 विधायक लेकर अपनी पार्टी से अलग हो जाओ और भाजपा की सरकार बनबा डालो.

भाजपा मे हालांकि राजनीति के जानकiर तो कई नेता हैं लेकिन इस तरह की दिव्य शक्ति( जो आने वाले चुनाव नतीजों का एकदम सही पूर्वाभास करा सके) से युक्त तो एक भी नेता नही है. मोदी जी तो हर्गिज़ भी यह काम नही कर पायेंगे- लिहाज़ा जहां तक प्रधान मंत्री की कुर्सी की दौड़ का सवाल है, वह यहाँ केजरीवाल जी से पिछड़ते दिखाई दे रहे हैं.

चलिये अब दिव्य शक्तियों के अलावा और योग्यताओं की भी बात कर लेते हैं- हो सकता है यहाँ मोदी जी हाथ मार ले जाएं. लेकिन हमे यहाँ भी निराशा ही हाथ लगी है- दरअसल हमारे केजरीवाल जी तो भारतीय राजस्व सेवा से आये अधिकारी हैं और मोदी जी का बॅकग्राउंड चाय बेचने का रहा है- तो मोदी जी यहाँ भी मात् खा गये. आखिर मोदी जी क्या सोचकर पी एम की दौड़ मे शामिल हुये है ? उन्हे शायद केजरीवाल जी और उनकी पार्टी की दिव्य शक्तियों का अंदाज़ा नही है. क्या खाकर मोदी जी केजरीवाल जी के आगे टिक पायेंगे ?
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rajeevg@hotmail.com
Published on 6/2/2014

बहुत मंहगी पड़ेगी ये "मोदी ब्रांड" चाय !

जी हाँ यहाँ किसी पांच सितारा होटल मे 100-200 रुपये मे एक कप मिलने वाली घटिया चाय की बात नही हो रही है. यहाँ उस चाय की बात हो रही है जिसके सपा नेता नरेश अगरवाल से लेकर कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर तक दीवाने हैं और उस चाय का एक घूँट पीने के लिये ये दोनो नेता और इनकी पार्टियाँ युगों युगों से तरस रही हैं.

कांग्रेस के प्रमुख सहयोगी राजनीतिक दल और उत्तर प्रदेश मे गुंडा राज की स्थापना करने वाली पार्टी सपा के नेता जब यह बोले कि मोदी तो चiय बेचने वाले हैं और वह क्या खाकर पी एम बनेंगे, तो किसी को बहुत ज्यादा हैरानी नही हुई- दरअसल उत्तर प्रदेश को पूरी तरह से जंगल राज मे तब्दील कर चुके सपा के नेताजी की योजना यह थी कि धीरे धीरे इस गुंडा राज और जंगल राज की स्थापना  प़ूरे   भारत मे की जाये क्योंकि सभी देशवासियों का यह पूरा अधिकार है कि उन्हे भी इस अभूतपूर्व गुन्डाराज और जंगलराज का आनन्द मिले-यह आनन्द सिर्फ उत्तर प्रदेश के लोगों की बपौती थोड़े ही है-लेकिन सपा के मनसूबों पर तब पानी फिरने लगा जब सब तरफ से यह चुनाव सर्वे आने लगे कि मोदी जी उत्तर प्रदेश मे भी जंगल और गुंडा राज को समाप्त करने का मन बना चुके है और अभूतपूर्व बहुमत के साथ जीत हासिल करने वाले हैं.

नरेश अगरवाल ने ऐसे तो खिसियाहट मे मोदी को लताड़ने की नीयत से यह बयानबाज़ी की थी लेकिन जब कांग्रेस पार्टी मे बैठे उनके आकाओं को लगा कि मोदी पर उनकी इस लानत मलानत का कोई असर नही पड रहा है और उल्टा मोदी तो इस बयानबाज़ी के बाद और भी अधिक आक्रामक होकर उत्तर प्रदेश की तरफ अपना विजय रथ लेकर बढते जा रहे हैं तो कांग्रेस ने इस काम का जिम्मा अपने ऊपर ही ले लिया और अपने एक वरिष्ठ नेता श्री मणिशंकर अय्यर को इस काम को अंज़ाम देने की जिम्मेदारी सौंपी.

अय्यर भी कोई कच्चे खिलाड़ी तो हैं नही जो इस बात को मामूली तरीके से अंज़ाम देते-उन्होने उस समय बयानबाज़ी की जब उनकी पार्टी का अखिल भारतीय स्तर का जलसा चल रहा था और सारे मीडिया कैमरों की निगाहे उनकी तरफ ही थीं- अय्यर साहब ने आव देखा ना ताव-कह दिया  कि मोदी अगर चाहें तो हम उनके लिये चाय बांटने की व्यवस्था यहाँ पर करवा सकते हैं-दरअसल अय्यर साहब वह काम करना  चाह रहे थे जो उनके चहेते नरेश अग्रवाल नही कर सके थे-यानी कि अपनी खिसियाहट को छिपाने के लिये मोदी को लताड़ने का काम.

अय्यर साहब को लगा होगा कि उनके इस साहसिक कार्य के लिये उनकी पार्टी का आलाकमान बहुत खुश होगा और क्या पता जैसे मनमोहन सिंह की लॉटरी निकल आई, कभी उनके भी अच्छे दिन आ जाएं.

लेकिन हाय इन नेताओं का दुर्भाग्य, मोदी जी ने पलटकर जब इन लोगों को चाय पिलाने की ठान ली और जगह जगह् चाय बांटने और बंटवाने का काम शुरु करवा दिया तो इन लोगो को यकायक लगा कि यह चाय तो इन नेताओ और उनकी पार्टियों के लिये बहुत मंहगी पड़ने वाली है. खबर यह भी है कि जितने भी मोदी विरोधी गद्दार हैं, उन लोगों ने अपने लिये चाय बेचने के लिये खोके वगैरा की जगह का बन्दोबस्त करना शुरु कर दिया है ताकि 2014 के चुनावों के बाद कम से कम चाय बेचकर तो अपना बाकी का जीवन यापन कर सकें.
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rajeevg@hotmail.com
Published on 10/2/2014

तीसरे मोर्चे की अंतिम यात्रा निकलेगी इस बार ?

हिन्दी मे एक बड़ी ही मशहूर कहावत है-धोबी का कुत्ता, न घर का ना घाट का ! हमारे बड़े बुजुर्गों ने पता नही क्या सोचकर यह कहावत बनाई होगी लेकिन उन्हे क्या मालूम था कि उनकी बनाई हुई यह कहावत आज की तथाकथित राजनीति मे समय समय पर बनने वाले "थर्ड फ्रंट " यानि कि तीसरे मोर्चे पर बखूबी लागू हो जायेगी !

पहले तो यह समझने की कोशिश करते हैं कि यह तीसरा मोर्चा है किस चिड़िया का नाम ? दरअसल कुछ ऐसे नेता और राजनीतिक दल हमारी व्यवस्था मे अपने आप पैदा हो गये हैं जिनका मुख्य कार्य ही देश, समाज और सरकार के अंदर "अव्यवस्था" पैदा करना है ! यह वे लोग हैं जो गलती से किसी तरह जीत कर विधान सभा या संसद मे पहुंच तो जाते हैं लेकिन उसके बाद क्या करें, उसका पता ना तो इन्हे होता है और ना ही उस जनता को जो इनको चुनकर भेजती है.

ये वह राजनीतिक दल या नेता होते हैं जो चुनावों से पहले तो जनता से यही कहते रहते हैं कि हम किसी भी दूसरे दल के साथ किसी भी तरह का कोई गठबंधन नही करेंगे और सभी 545 सीटों पर चुनाव लडकर किसी ना किसी तरह प्रधान मंत्री बन जायेंगे, लेकिन जैसे जैसे चुनावों का समय नज़दीक आता है और इन्हे कोई राष्‍ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी अपने मुंह नही लगाती है तो यह अपनी ही खिचडी पकानी शुरु कर देते है और उस खिचडी को यह लोग कभी कभी खुद और कभी कभी मीडिया वाले बड़े चाव से " तीसरा मोर्चा " या फिर अंग्रेज़ी मे थर्ड फ्रंट कहकर संबोधित करते हैं.

चुनाव जीतने के शुरु के चार सालों मे तो यह लोग किसी ऐसी राजनीतिक पार्टी को अपना शिकार बनाने की कोशिश करते है जिसके पास सरकार बनाने के लिये कुछ सदस्यों की सँख्या कम पड रही होती है और अपना "समर्थन" देकर उस पार्टी की सरकार बनबा कर यह अपने आपको धन्य महसूस करते हैं-बदले मे इन्हे क्या मिलता है ? इन्हे एक तो "कांग्रेस बचाओ इन्वेस्टिगेशन" यानि की सी बी आई की तरफ से अभयदान की प्राप्ति हो जाती है और इनके एक आध नेता को भ्रष्टाचार करने के लाइसेंस के साथ मंत्री बना दिया जाता है-इस तरीके से इन लोगों की दुकानदारी बिना किसी खास परेशानी के पिछले कई दशकों से चल रही है

पाँचवे साल मे यह लोग अगले लोकसभा चुनावो की रणनीति बनाने मे लग जाते है और जिस सरकार के साथ चार साल गुजार दिये उसे भी मौका देखकर कोसना शुरु कर देते है.

तीसरे मोर्चे के नाम पर जो नरपिशाची ताकतें समय समय पर इकट्ठा होने की नौटंकी करती हैं, उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि वे उत्तर प्रदेश,बिहार और पश्चिम बंगाल सहित देश के कई राज्यों मे गुन्डाराज और जंगल राज्य की स्थापना करने मे कामयाब रही हैं.

सवाल यह है कि इस बार यानि कि 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले ये लोग काफी घबराये और बौखलाये हुये क्यों हैं ? उसका प्रमुख कारण यही समझ मे आ रहा है कि इस बार इनको लग रहा है कि मोदी के नेत्रत्व मे भाजपा की सरकार बननी लगभग तय है और क्योंकि वह सरकार पूर्ण बहुमत के साथ बनेगी तो इन लोगों का कोई "नामलेवा" और "पानीदेवा" नही होगा. साथ ही इन लोगों ने जो दुष्कर्म आज तक किये है उनके चलते पहले तो जनता इनकी जमानत जब्त कराकर दंडित करेगी- इस दंड को तो ये बेचारे किसी तरह झेल भी जाते लेकिन दुष्कर्मों का कानूनी दंड जो मोदी के द्वारा इन लोगों को दिया जायेगा, बह इन लोगों को दिन रात आतंकित किये जा रहा है !

इस तीसरे मोर्चे के नेताओं की बौखलाहट का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पहले तो यह लोग अपने राज्य मे साम्प्रदायिक दंगों का आयोजन करते है और जब लगता है कि पोल खुल खुलकर जनता के सामने आ रही है तो अपना गम गलत करने के लिये नाच गाने का रंगरेलियों युक्त कार्यक्रम का भी फटाफट आयोजित कर डालते हैं.
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rajeevg@hotmail.com
 Published on 14/2/2014

केजरीवाल को पी एम बनने से कोई नही रोक सकता !

दिल्ली के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के  अभूतपूर्व  नेता अरविन्द केजरीवाल जी को पिछले कुछ दिनो से इस बात का खूब शौक चर्राया हुआ है कि वह बिना मांगे ही लोगों को ईमानदारी और बेईमानी का प्रमाण पत्र दे देकर खुद को धन्य समझ रहे हैं-मीडिया ने भी एकता कपूर के सास बहू के धारावाहिकों को छोड़कर इस चटपटी नौटंकी पर अपना सारा ध्यान केन्द्रित करने मे ही अपनी भलाई समझ ली है.

खबर तो यह भी आ रही है की खुद एकता कपूर ने अपनी बदहाली से परेशान होकर यह फैसला किया है कि अब वह सिर्फ एक ही सीरियल पर अपना ध्यान केन्द्रित करके मनचाहा पैसा कमाएँगी. सीरियल का नाम होगा-"केजरीवाल को पी एम बनने से कोई नही रोक सकता." यह धारावाहिक लोगों को तब तक झेलना पड़ेगा जब तक केजरीवाल जी का पी एम के रूप मे राज्याभिषेक नही हो जाता. इशारा सॉफ है कि या तो केजरीवाल को पी एम बनाओ या फिर 24 घंटे हर चैनल पर यह सीरियल देखो-इस सीरियल को बनाने मे कलाकारों का खर्चा कोई नही आयेगा-यह भी एक बहुत बड़ी बचत होगी,क्योंकि कलाकारों की तो केजरीवाल साहब के पास कोई कमी नही है. सर्वगुण संपन्न और अनोखी प्रतिभा से युक्त ये कलाकार  चारों पहर इतनी रोचक बयानबाजी करते रहते है कि कैमरे उनका पीछा ही नही छोड़ते.

 केजरीवाल जी भी अपनी तरफ से हालांकि पूरी कोशिश कर रहे हैं कि सास बहू के सीरियल बनाने वालों को उनकी वज़ह से जो नुकसान हुआ है, उसकी किसी तरह से भरपाई अपनी जान देकर भी करवा दें-एक निष्ठावान और ईमानदार नेता की यही तो सबसे बड़ी पहचान है कि वह किसी का नुकसान होते नही देख सकता. अब देखो दिल्ली के ऑटो वालों को पुलिस परेशान करके उन्हे नुकसान पहुँचा रही थी तो केजरीवाल जी ने ऐसी व्यवस्था कर दी कि अब पुलिस दिल्ली के ऑटो वालों का बॉल भी बांका नही कर सकती चाहे ये ऑटो वाले दिल्ली की जनता के साथ जितनी मर्ज़ी   बदसलूकी और गुंडागर्दी करे- ईमानदारी का तकाज़ा तो यही कहता है कि जिन ऑटो वालों ने आड़े वक्त पर केजरीवाल जी का मुफ्त का प्रचार करके उनका साथ दिया, उनकी सहायता हर हालत मे की जाये-जनता जहां कांग्रेस के कुशासन को 15 साल झेल गयी, क्या 49 दिनो के कुशासन को याद रख पायेगी ?

कहानी को रोचक और सस्पेन्स से भरपूर बनाने मे तो खुद केजरीवाल जी बहुत माहिर हैं-तभी तो वह मोदी पर आरोप लगाते समय यह बिल्कुल भूल जाते हैं कि पिछले दस साल से प्रधानमंत्री मोदी नही मनमोहन जी हैं- लेकिन अगर दोषी आदमी पर ही दोष  मढ दिया तो सीरियल मे रोचकता  कहाँ से आयेगी- उसके लिये तो यही करना पड़ेगा कि मोदी और भाजपा को इस तरह दिन रात लताड़ो मानो देश मे पिछले दस सालों से मनमोहन की अगुयायी मे कांग्रेस की नही, मोदी की अगुयायी मे भाजपा की सरकार चल रही हो ! जनलोकपाल बिल नही बना तो वह भी मोदी और भाजपा की वजह से नही बना और दिल्ली मे गैरक़ानूनी "जनलोकपाल" उपराज्यपाल ने पास नही होने दिया तो वह भी मोदी और भाजपा की वजह से.


दरअसल मोदी और भाजपा हैं ही इतने शक्तिशाली कि सब लोगों के सारे काम मोदी और भाजपा की वज़ह से रुक जाते हैं- लोग तो राजनीति मे जनसेवा की भावना से आये है और इन बेचारे लल्लू,नीतीश,ममता, माया ,मुलायम,केजरीवाल और मनमोहन जैसे जनसेवकों को मोदी और भाजपा कोई काम ही नही करने देते-अगर मोदी और भाजपा नही होते तो इन सब जनसेवकों ने पिछले 66 सालों मे इस देश को स्वर्ग से भी सुन्दर बना दिया होता,इसमे कोई शक नही है.

"मीठा हप हप, कड़वा थू थू" की तर्ज़ पर, जनसेवकों की यह अनोखी टोली यह साबित करने की भरसक कोशिश कर रही है कि इस देश मे जहां कहीं भी कुछ गलत हो गया तो उसके लिये मोदी और भाजपा जिम्मेदार है, और जो कुछ अच्छा हुआ उसका पूरा श्रेय जनसेवकों की इस अदभुत टोली को जाता है.
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Published on 17/2/2014

चंदा वसूलने के लिये किये जा रहे हैं अंबानी पर हमले ?

मुकेश अंबानी ने देश को लूट लिया-अनिल अंबानी ने भी देश को लूट लिया ! अब हम लुटे पिटे मरे कुचले लोग जाएं तो जाएं कहाँ ? यह लोग सभी राजनीतिक दलों को दिल खोलकर चंदा देते हैं क्योंकि इस चंदे से सभी राजनीतिक दल अपना चुनाव प्रचार करते हैं-लेकिन यह लुटेरे इतने अजीब है कि अभी तक इन लोगों ने राजनीति मे हमारी उपस्थिति का संज्ञान ही नही लिया ! अगर बाकी के राजनीतिक दल राजनीति कर रहे हैं तो हम राजनीति मे क्या जनसेवा करने के लिये आये है
जो चंदा बाकी के राजनीतिक दलों को मिलता है-एक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल होने के नाते उस चंदे पर हमारा भी तो उतना ही हक है- देखा जाये तो हमारा हक कुछ ज्यादा ही है क्योंकि हम राजनीति मे नये नये आये हैं और हमारी जरूरतें भी कुछ ज्यादा ही है क्योंकि चुनाव प्रचार के अलावा हमे एक और भारी खर्चे का सामना भी करना पड सकता है

दरअसल हम लोगों ने अपनी राजनीति चमकाने के लिये लोगों पर भ्रष्टाचार के अनाप शनाप मनगढ़ंत और झूठे आरोप लगा तो दिये है-सब लोगों के पास तो मानहानि का दावा ठोंकने के लिये समय नही है लेकिन अगर कुछ लोगों ने भी हमारे ऊपर मानहानि का दावा ठोंक दिया तो हमारी बची खुची साख तो मिट्टी मे मिलेगी ही, हमारी अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह चरमरा सकती है-लिहाज़ा चंदे की हमे बहुत सख्त और जल्द आवश्यकता है-अगर हमारी इस जायज़ मांग का अभी भी देश के बड़े बड़े व्यापारियों और उद्योगपतियों ने संज्ञान नही लिया तो हम लोगों को विवश होकर उन लोगों के लिये " चोर लुटेरे " के अलावा अन्य  भडकाऊ शब्दावली तलाशनी होगी !

दरअसल यह बड़े बड़े उद्योगपति इतने अधिक ढीठ हैं कि हमारी लाख कोशिशों के बाबजूद हमारे चंगुल मे फंसने को तैयार नही है- हम लोग इस बात को अपनी सबसे बड़ी अवमानना मानते हैं कि देश के इतने बड़े बड़े व्यापारी हमे कुछ समझ ही नही रहे और हमे कुछ   भाव ही नही दे रहे ! इन व्यापारियों और उद्योगपतियों द्वारा लगातार की जा रही हमारी उपेक्षा से परेशान होकर हमारे एक बड़े नेता और प्रवक्ता ने तो खुले तौर पर कह भी दिया की भई हमे चंदा बंदा लेने मे कोई ऐतराज़ नही है- आओ और हमे चंदा दो और बदले मे हमसे अभयदान और ईमानदारी का अकाट्य प्रमाण पत्र भी लेकर जाओ !

हम लोगों ने अपना मुख्य राजनीतिक विरोधी मोदी को माना हुआ है और उस लिहाज़ से हमारा स्टॅंडर्ड काफी ऊँचा करके देखा जाना चाहिये और हमारे चंदे का रेट भी उसी अनुसार तय होना चाहिये !

हमारी तरफ से इसे अंतिम चेतावनी के रूप मे देखा जाना चाहिये क्योंकि अगर अभी भी इन ढीठ व्यापारियों और उद्योगपतियों के ख़ज़ाने हमारे लिये नही खुले तो इन लोगों का हम जीना दूभर कर देंगे !
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 Published on 19/2/2014

इस तरह बनेंगे केजरीवाल पी एम !

अन्ना हज़ारे यकायक भारत की राजनीति मे पूरी तरह से सक्रिय होकर कूद पड़े है और राजनीति मे एक एक कर करके जितने भी खोटे सिक्के हैं, उनको आज़माकर उन पर अपना दाव खेलने के चक्कर मे हैं !

इस सारी कवायद मे यह भी सॉफ हो गया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ किये गये अपने तथाकथित आन्दोलन से उन्होने जनता की जितनी भी सहानुभूति और सम्मान पाया था, उसकी भी उन्होने लगभग बलि चढ़ाने का फैसला कर लिया है !

आजकल अन्ना हज़ारे महाराज पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी की वकालत करते घूम रहे हैं ! पश्चिम बंगाल मे सरकार किस तरह चल रही है यह सभी को    मालूम है- पश्चिम बंगाल के जंगल राज को देखकर लल्लू द्वारा किसी जमाने बिहार मे फैलाये गये गुन्डाराज और जंगल राज की याद ताज़ा हो जाती है- शायद पश्चिम बंगाल के कुशासन की सही तुलना उत्तर प्रदेश मे बसपा और सपा के गुन्डाराज और जंगल राज से ही की जा सकती है-ऐसे मे सवाल यह पैदा होता है कि अपने पुराने चेले केजरीवाल तो अराजकता मे धकेलने के बाद क्या अन्ना हज़ारे अब ऐसे नेताओ के समर्थन का बीड़ा उठाने चले है, जो अपनी राजनीतिक विश्वसनीयता पूरी तरह खो चुके हैं ? 

लल्लू जिस जंगल राज को बिहार मे छोड़ गये थे, नीतीश ने पूरी मुस्तैदी के साथ उसे जारी रखा है- बीच मे भाजपा के साथ गठबंधन के समय कुछ हालात सुधरे, लेकिन नीतीश जंगल राज से अपने मोह  को ज्यादा समय अलग रख नही पाये और भाजपा ने उनसे नमस्ते करने मे ही अपनी भलाई समझी ! अब अगर अन्ना इन्ही राज्यों के ऐसे खोटे सिक्कों को पी एम बनाने के सपने देख रहे है तो इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा !

हो सकता है अन्ना हज़ारे यह सोच रहे हों कि पूरी तरह से मरणासन्न पड़े थर्ड फ्रंट मे वह ज़ान डालकर ममता,माया,नीतीश या मुलायम मे से किसी को अगली सरकार का मुखिया बना सकें  या फिर कोई ऐसा तुक्का फिट हो जाये कि ना ना करते हुये दिल्ली की तर्ज़ पर केजरीवाल जी ही पीं एम बन जाएं! अन्ना हज़ारे क्योंकि राजनीति मे केजरीवाल की तरह नये नये आये है और जो भी नये खिलाडी इस मैदान मे आये हैं उन्हे यह पूरा अधिकार मिल जाता है कि वह दिन के उजाले मे जागते हुये प्रधान मंत्री बनने और बनाने के सपने देख देख कर प्रफुल्लित होते रहें. 

अन्ना हज़ारे की इस नयी कवायद से यह बात भी सॉफ हो गयी है कि केन्द्र द्वारा लोकपाल बिल पास करने के बाद अब भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नही रहा-अब आज की तारीख मे सबसे बड़ा मुद्दा यही है की किस तरह से देश मे किसी ऐसे दल या गठबंधन की सरकार बनवाकर ऐसे व्यक्ति को जनता के सर पर बिठा दिया जाये जिसे इस देश की जनता ने जनादेश ही नही दिया हो-अगर ऐसा हुआ तो पहली बार नही होगा ! ऐसी अराजक स्थिति हम पहले भी देख चुके है जब चंद्रशेखर और देव गौड़ा को जबरन इस देश की जनता के ऊपर प्रधानमंत्री के तौर पर थोप दिया गया था ! चंद्रशेखर और देव गौड़ा को प्रधानमंत्री बनाने मे कांग्रेस ने जितनी भूमिका तब निभाई थी,उतनी उम्मीद लेकर तो अन्ना चल ही रहे होंगे ! देश की राजनीति मे पूरी तरह से नकार दिये गये वामपंथियों को भी अगर पूरे देश मे एक आध सीट मिल जाये, तो वे भी ऐसी अवांछित सरकार बनाने की कवायद मे अपना सहयोग देने का नाटक जारी रख सकते हैं.

मोदी से घबराये और बौखलाये हुये ये लोग सिर्फ इस डर से केजरीवाल को प्रधानमंत्री के रूप मे स्वीकार कर लेंगे कि कम से कम अब इन लोगों को अपने किये गये दुष्कर्मों का दंड तो नही मिलेगा क्योंकि केजरीवाल जी का पिछला रिकार्ड इस मामले मे बिल्कुल सॉफ है और उन्होने दिल्ली के मुख्यमंत्री रहते हुये शीला दीक्षित पर आँच तक नही आने दी थी ! इसी मनोविज्ञान और रंणनीति पर बहरूपियों यह चौकड़ी अब इकट्ठा होनी शुरु हो गयी है.

इस सारी अराजक कोशिश मे सिर्फ संतोष इस बात से किया जा सकता है कि अब इन लोगों की मक्कारियाँ जनता के सामने खुल चुकी हैं और देश को खंडित जनादेश की तरफ धकेलने की नापाक साज़िश  का जबाब जनता ऐसे लोगों की चुनावों मे जमानत जब्त कराकर देगी !
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Published on 22/2/2014

"मोदी का रास्ता रोको" अभियान !

भ्रष्ट कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली मे 49 दिनों तक गठबंधन सरकार चलाने मे पूरी तरह से नाकाम होने के बाद   केजरीवाल जी आजकल मीडिया पर बुरी तरह बरस रहे है ! जिस मीडिया ने उन्हे एक सड़कछाप आन्दोलनकारी से उठाकर मुख्य मंत्री की कुर्सी तक पहुँचाया, वही मीडिया आज उन्हे बिका हुआ लगने लगा है ! उनकी इस अपराधिक सोच का समर्थन उनके आका यानि कि हमारे गृह मंत्री सुशील कुमार शिन्दे भी करते नज़र आ रहे है जो मीडिया को धमकाते हुये उसकी आई बी से जांच कराकर उसे कुचलने की बात कहते है !

दरअसल 1975 मे एमर्जेन्सी की आग मे देश को झोंकने वाली कांग्रेस अपनी बौखलाहट के जुनून मे किसी भी हद तक जा सकती है ! अपने राजनीतिक विरोधियों को नीचा दिखाने के लिये कांग्रेस कुछ भी कर सकती है यह तो शिन्दे के बयान से साफ हो ही चुका है- पहले भी कांग्रेस के इशारे पर एक तथाकथित पत्रिका "तहलका" के संपादक तरुण तेजपाल के जरिये  भाजपा पर हमला साधने की नाकाम कोशिस की गयी थी ! तरुण तेजपाल महोदय कांग्रेस पार्टी के इशारों पर नाच नाचकर लगातार दुष्कर्म करते रहे और अपने सभी दुष्कर्मों को उन्होने "तहलका" का नाम दे दिया ! अपने आखिरी दुष्कर्म मे तेजपाल महाराज रंगे हाथों पकड़े गये और फिलहाल गोआ की जेल मे चक्की पीस रहे हैं.

भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुये उसे रोकने के लिये पहले कांग्रेस ने तेजपाल का इस्तेमाल किया और जब जब कांग्रेस को लगा कि उसका अंतिम समय निकट आ गया है और मोदी और भाजपा की लोकप्रियता दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही है तो यह पार्टी केजरीवाल महाराज को लेकर मैदान मे आ गयी- यह बात किसी को मालूम भी नही पड़ती लेकिन दिल्ली मे सरकार बनाते समय इनकी पोल खुल कर सामने आ गयी ! कांग्रेस ने बड़ी शान से अपनी गठबंधन सरकार बनाकर दिल्ली मे 49 दिन तक मौज ली और जब लगा कि केजरीवाल महाराज अगर दिल्ली मे ही फंसे रहे तो बाकी देश मे मोदी की लहर को कैसे रोक पायेंगे ! लिहाज़ा किसी  ना किसी बहाने से दिल्ली की नौटंकी का पटाक्षेप करके केजरीवाल जी का रास्ता साफ कर दिया -" जाओ जहां तक जा सकते हो और मोदी और भाजपा का रास्ता रोको !"


कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री मणि शंकर सी एन एन आइ बी एन को दिये गये एक इंटरव्यू मे यह बात खुद ही कबूल चुके है कि उन्हे उम्मीद है कि मोदी का रास्ता रोकने मे आम आदमी पार्टी देश भर मे दिल्ली की तर्ज़ पर कामयाब रहेगी ! लेकिन उनकी तरफ से अगर यह कबूल नामा नही भी आता तो यह बात तो जग जाहिर ही है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी, दोनो का एक ही मकसद है और इस मकसद को हासिल करने के लिये दोनो ही पार्टियाँ एक दूसरे का भरपूर सहयोग कर रही हैं.


जो लोग आज केजरीवाल के समर्थक हैं,कमोबेश यही लोग तेजपाल के भी समर्थक थे और उसके हर जायज़ नाज़ायज़ खुलासे पर तालियाँ पीटा करते थे ! यह बाद मे मालूम पड़ा कि तेजपाल खुलासे कम "नौटंकी" ज्यादा कर रहा था और जब उसका अपना खुलासा हुआ तो सबसे पहले उसके मुंह से यही आवाज़ आई-"यह सब भाजपा की साज़िश है !" यानि कि मोदी या भाजपा ने उससे कहा था कि तेजपाल जी जाओ और अपनी महिला सहकर्मी के साथ दुष्कर्म करो ! केजरीवाल जी भी कांग्रेस का सारा विरोध भूलकर आजकल सिर्फ भाजपा और मोदी को निशाने पर लिये हुये है- बाकी के राजनीतिक दलों की आलोचना भी केजरीवाल जी इसलिये नही करते क्योंकि वह सभी राजनीतिक दल संख्याबल पूरा ना होने पर कांग्रेस सरकार की कभी अंदर से तो कभी बाहर से मदद करते है ! कांग्रेस के खिलाफ तो केजरीवाल जी कभी कभार शर्मा शर्मी कुछ थोड़ा बहुत बोलकर अपनी औपचारिकता पूरी करने का नाटक भी बड़ी मुश्किल से कर पा रहे हैं.

केजरीवाल जी को तेजपाल बनने मे कितनी सफलता मिलेगी और कब मिलेगी और वह मोदी का कब,कितना और कैसे रास्ता रोके पायेंगे, यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा !
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Published on 26/2/2014

मोदी से 7 तीखे सवाल !

मोदी से लोग पहले भी बहुत सवाल कर चुके हैं- आजकल आम आदमी पार्टी को भी मोदी से सवाल करने का चस्का लग गया है ! ठीक भी है, अब दिल्ली का काम काज़ तो देखना नही है, वक़्त गुजारने के लिये सबके पास कुछ ना कुछ काम तो होना ही चाहिये- सो मोदी से सवाल पूछ पूछकर ही अपना वक़्त काटते रहो !

सवाल पूछने की इसलिये भी जल्दी रहती है कि पिछले 65 सालों से जुबां पर ताले पड़े हुये थे- इसलिये जो सवाल पिछले 65 सालों मे नही  पूछ पाये वह फटाफट मोदी से  पूछ लिये जाएं- कहीं ऐसा ना हो कि कल को हमारे ना चाहते हुये भी मोदी जी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ जाएं और फिर मामला उल्टा पड जाये और मोदी जी हम लोगों से ही सवाल पूछने शुरु कर दे और 65 सालों मे हम लोगों ने जो भयंकर दुष्कर्म किये है, उनका हिसाब किताब ना चाहते हुये भी देना पड जाये !
क्योंकि सवाल पूछने का मौसम चल रहा है इसलिये हमने सोचा कि हम भी एक दो सवाल मोदी जी से कर ही डालें ! हमारे मोदी जी से यह सवाल हैं :

1. प्रधानमंत्री बनने के बाद उन लोगों के लिये किस प्रकार के दंड का प्रावधान किया जायेगा जो लोग "देशद्रोह" नामक वस्तु को "सेकुलरिज्म" कहकर पिछले 65 सालों से अपनी दुकानदारी चला रहे हैं ?

2. ऐसे तथाकथित राजनीतिक दलों के खिलाफ कौन सा कानून बनाया जायेगा जो ज्यादातर समय चुनावों मे एक दूसरे के विरोधी होने की नौटंकी कर करके जनता को बेबकूफ बनाते रहते है और चुनावों से ठीक पहले इकट्ठा होकर उस अनैतिक जमावड़े को कभी "थर्ड फ्रंट" या फिर कभी "तीसरे मोर्चे" का नाम देकर जनता को एक बार फिर से बरगलाने की नाकाम कोशिश करते हैं ?

3. ऐसे तथाकथित राजनेताओं को कितने समय मे फांसी की सज़ा दी जायेगी जो  जब देखो आतंकवादियों, देशद्रोहियों और अलगाववादियों की वकालत करते रहते हैं ?

4. ऐसे लोगों के रामलीला मैदान मे कितने कोड़े लगाये जायेंगे जो जनता से "भ्रष्टाचार मुक्त " शासन का वादा करते है, और सत्ता को पाने के लिये खुद "भ्रष्टाचार युक्त" शासन मे लिप्त हो जाते हैं ?

5. ऐसे लोगों का क्या हश्र किया जायेगा जो कश्मीर को जनमत संग्रह के आधार पर पाकिस्तान को सौंपने की वकालत करते हैं ?

6. ऐसे लोगों को कितने साल की सज़ा सुनाई जायेगी जो कांग्रेस के भ्रष्टाचार  और जबरदस्त निकम्मेपन से लोगों का ध्यान बँटाने के लिये रोज रोज तरह तरह की "नौटंकी" करके जनता  और मीडिया का ध्यान अपनी तरफ खींचकर रखते है ताकि लोग 65 साल मे किये गये दुष्कर्मों को पूरी तरह भूल जाएं और इनकी प्रायोजित नौटंकी देख देखकर तालियाँ पीटते रहें ?

7. आपके प्रधान मंत्री बनने के बाद जो "सेक्युलर " लोग इस देश को छोड़ना चाहें, उन्हे देश छोड़ने की इज़ाज़त कितने दिनो मे दे जायेगी ताकि वे लोग दूसरे देशों मे जाकर अपना प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने का सपना साकार कर सकें ?

ऐसी उम्मीद की जाती है कि अगर मोदी जी ने इन 7 सवालों के जबाब दे दिये तो उनसे बाकी के लोग सवाल पूछना अपने आप ही बंद कर देंगे !
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rajeevg@hotmail.com

Published on 28/2/2014

किन मुददों पर लड़े जायेंगे 2014 के चुनाव ?

आम आदमी पार्टी के समर्थकों को इस बात से कुछ निराशा हो सकती है और कांग्रेस के समर्थकों को इस बात से कुछ राहत मिल सकती है कि पहले की तरह ही 2014 के लोकसभा चुनावों मे भी भ्रष्टाचार कोई बहुत बड़ा मुद्दा नही बन सकेगा ! इस आकलन के पीछे मुख्य कारण यही है कि भ्रष्टाचार एक राजनीतिक समस्या नही है जैसा कि इसे प्रचारित किया जा रहा है, बल्कि यह एक सामाजिक समस्या है और जिस देश मे संतरी से लेकर मंत्री तक सभी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हों, वहां सिर्फ यह मान लेना कि सिर्फ हमारे राजनेता ही भ्रष्ट है,बिल्कुल गलत होगा !

हम लोग वही नेता चुनकर संसद या विधान सभा मे भेजते है, जो हमे पसंद होते है और हम उन्ही को चुनकर भेजते है जो हमारी विचारधारा से मेल खाते है ! पिछले 65 सालों के शासन मे भी अगर हम देखें कि जब जब किसी राजनीतिक दल ने भ्रष्टाचार से लड़ने की कोशिश की, उसे वहा की जनता ने चुनावी शिकस्त देकर भ्रष्ट या फिर ज्यादा भ्रष्ट लोगों के हाथ मे सत्ता सौंप दी ! कर्नाटक, उत्तराखंड और हिमाचल मे विधान सभा चुनावों मे हुई भाजपा की हार को इसी संदर्भ मे लेकर देखा जाना चाहिये ! कर्नाटक मे भाजपा ने भ्रष्ट येदुरप्पा पर तुरंत कार्यवाही करते हुये उसे जेल का रास्ता दिखाया तो वहा की जनता ने भाजपा को दंडित करने मे जरा भी देरी नही लगाई और भाजपा को वहा की सत्ता से फटाफट बेदखल कर दिया !

यही हाल उत्तराखंड मे हुआ-उत्तराखंड ऐसा पहला राज्य था जहां के लोकपाल कानून की ना सिर्फ अन्ना हज़ारे ने बल्कि केजरीवाल ने भी तारीफ की थी, लेकिन इससे पहले कि वहा पर उस कानून पर अमल हो और कुछ लोग जेल मे चक्की पीसें, वहा भी चुनावों मे जनता ने भाजपा को सत्ता से बेदखल करके दंडित किया और उसके बाद जब कांग्रेस की सरकार विजय बहुगुणा जी ने बनाई तो सबसे पहला काम उन्होने यही किया की उस सख्त लोकपाल कानून को रद्द करके अपने मन माफिक लोकपाल कानून बनाया !

हिमाचल की कहानी भी कमोबेश कुछ इसी तरह की है जहां भ्रष्टाचार मे लिपटे वीरभद्र सिंह के नेत्रत्व मे कांग्रेस सत्ता मे आने मे कामयाब रही और भाजपा को बहा भी जनता ने कम भ्रष्ट होने के लिये दंडित किया ! इसके विपरीत जो राजनीतिक दल भरपूर मात्रा मे भ्रष्टाचार कर रहे है उनकी सरकारें पूरी तरह से सुरक्षित रहती है- शायद यही कारण है कि जिस पूर्ण बहुमत के लिये भाजपा और कांग्रेस जैसी पार्टियाँ उत्तर प्रदेश मे तरसते रहते है, वह सपा और बसपा जैसी पार्टियों को बड़ी आसानी से सुलभ हो जाता है क्योंकि यह लोग जियो और जीने दो के सिद्धांत पर चल रहे है ! कांग्रेस ने काफी अधिक समय तक इस देश पर अगर शासन किया है तो उसका सबसे बड़ा कारण यही है कि यह लोग जमकर भ्रष्टाचार करने मे पारंगत है ! जिसको सत्ता मे टिकना है उसे समय की धारा के साथ ही बहना होगा-जब तक भाजपा वाले भी केजरीवाल की तरह ईमानदार रहे उनकी भी लोकसभा मे 2 सीटे हुआ करती थी!

राजनीतिक दलों को ईमानदार रहना है या नही, यह दिशा निर्देश तो आखिर जनता जनार्दन के दरबार से ही आना होता है और लोग राजनेताओं और राजनीतिक पार्टियों को वेवजह दिन रात कोसते रहते हैं !शायद यही वजह है कि सुशासन और विकास ही इस बार के चुनावों मे असली मुद्दा बनकर उभरेगा और सभी राजनीतिक दल इन्ही दोनो मुद्दों पर अपना ध्यान केन्द्रित किये हुये हैं ! दिल्ली मे 49 दिनो तक अपनी सरकार चला चुके केजरीवाल जी ने भी अंतत: स्वीकार कर ही लिया कि "साम्प्रदायिकता" भ्रष्टाचार से भी बड़ा मुद्दा है, लिहाज़ा वह अब उसे दूर करने पर ही ज्यादा ध्यान देंगे !
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 Published on 3/3/2014

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