Sunday, December 18, 2016

क्या हो सकता है मोदी सरकार का अगला कदम ?

नोट बंदी की समय सीमा  समाप्त होने मे अब कुछ ही दिन बाकी रह गये है. 30 दिसंबर 2016 को नोट बंदी का यह अभूतपूर्व जन आन्दोलन समाप्त होने वाला है. लेकिन जैसा कि खुद पी एम मोदी यह बात कई बार कह चुके हैं कि काले धन, भ्रष्टाचार और सामाजिक अन्याय के प्रति जो कुछ भी किया जाना बाकी है, नोट बंदी उसकी एक शुरुआत भर है. दूसरे शब्दों मे कहा जाये तो नोट बंदी या विमुद्रीकरण उस प्रक्रिया की पहली किश्त है, जिसके जरिये पिछले 70 सालों की गंदगी को साफ किया जाना बाकी है. नोट बंदी के साथ साथ मोदी सरकार ने चुप चाप बेनामी प्रॉपर्टी के कानून को भी 1 नवंबर 2016 से लागू कर दिया है, जिसे कांग्रेस सरकार के समय 1988 मे लाया गया था लेकिन कांग्रेस क्या, मोदी सरकार से पहले किसी भी सरकार की इतनी हिम्मत नही हुई कि वह इस कानून को लागू कर पाती. बेनामी प्रॉपर्टी से सम्बंधित कानून लागू करने का विरोध विपक्षी दलों ने दो कारणो से नही किया. पहला तो यह कि विपक्षी दल नोट बंदी से ही इतने अधिक सदमे मे थे कि उन्हे कुछ और सूझ नही रहा था. दूसरे, बेनामी प्रॉपर्टी के कानून को कांग्रेस के शासनकाल मे  ही पास किया गया था-मोदी सरकार ने उसे सिर्फ लागू करने का काम किया है.

काले धन और भ्रष्टाचार को समाप्त करने के रास्ते पर चलते हुये, मोदी सरकार निकट भविष्य मे कुछ और कड़े कदम उठा सकती है, जिनका उल्लेख नीचे किया गया है :

(1) आयकर कानून की धारा 13A के अंतर्गत सभी राजनीतिक पार्टियों की सभी तरह की आय और मिलने वाले चंदे पर बिना किसी रोकटोक और बिना किसी सीमा के आयकर की पूरी छूट मिली हुई है. गौर करने वाली बात यह है कि राजनीतिक दलों की ना सिर्फ सभी तरह् की आय पर कोई आयकर नही है, उन्हे मिलने वाले चन्दों पर भी कोई आयकर नही है. 20000 रुपये से ऊपर मिलने वाले चन्दों का तो राजनीतिक पार्टियों को हिसाब किताब रखने की भी जरूरत नही है. आयकर अधिनियम की यह धारा देश की जनता के साथ धोखा है- जहाँ देश की जनता को सरकार अपना आयकर समय पर और सही तरीके के भरने का उपदेश देती रहती है, वहीं, सभी राजनीतिक पार्टियों को सभी तरह की आय और चन्दों से होने वाली आय को आयकर के दायरे से बाहर रखना, काले धन और भ्रष्टाचार को बढाने जैसा ही है. मोदी सरकार इस धारा को पूरी तरह समाप्त करके देश की जनता को एक और "सरप्राइज" दे सकती है.

(2) नोट बंदी के बाद डाले गये सभी छापों मे भरी मात्रा मे नये नोट और सोना बरामद हुआ है. अपराधियों को पकड़कर पूछताछ भी की जा रही है. लेकिन जो मौजूदा कानून हैं, उनके तहत इस तरह के अपराधियों को रोक पाना संभव नही है. आज यह बात आम तौर पर कही जाती है कि -"रिश्वत लेते हुये पकड़े जाओ और रिश्वत देकर छूट जाओ." देश भर मे जितने भी सरकारी अधिकारी और कर्मचारी हैं, चाहे वे राज्य सरकार के अंतर्गत आते हों या केन्द्र सरकार के, उनमे से ज्यादातर, तभी तक ईमानदार है, जब तक उन्हे भ्रष्ट होने का मौका ना मिले. पिछले दिनो नोट बंदी के दौरान बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों की काली करतूतें इसका जीता जागता उदाहरण है. अभी हाल ही मे जो नये नोट और सोना पकड़ा गया है, अगर उसकी ईमानदारी से जांच की जाये, तो यही सामने आयेगा कि बरामद किये गये नये नोटों और सोने मे से ज्यादातर हिस्सा किसी ना किसी सरकारी अधिकारी की रिश्वत के लिये ही था. भारत सरकार का एक ऐसा विभाग जिसकी छवि रिश्वत लेने के मामले मे सबसे ज्यादा खराब है, वहां बड़ी संख्या मे मामले हर साल निपटाये जाते हैं और उन्हे निपटाने की आखिरी तारीख हर साल 31 दिसंबर होती है. 8 नवंबर को नोट बंदी का फैसला हुआ तो इस विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने भी रिश्वत की मांग नये नोटो और सोने के रूप मे ही की होगी. इतने बड़े पैमाने पर नये नोटों और सोने की बरामदगी कम से कम इसी बात की ओर संकेत करती है. मजे की बात यह है कि जिस तरह से मोदी सरकार को बैंक अधिकारियों पर बहुत भरोसा था, उसी तरह मोदी सरकार को इस विभाग के अधिकारियों पर भी आने वाले समय मे भरोसा करना है. यह लोग मोदी सरकार के भरोसे पर खरे उतरें, इसे सुनिश्चित करने के लिये, सरकार कुछ ऐसे सख्त कदम उठा सकती है, जिससे इन लोगों के भ्रष्टाचार पर लगाम लगे. किसी भी व्यक्ति के पास रखे जाने वाले अधिकतम सोने और नक़दी की सीमा तय करना और 100 रुपये से ऊपर के नये नोटों पर 3 से लेकर 5 वर्षों तक की "एक्सपाइरी डेट" लिखा जाना, जैसे कुछ फैसले भी निकट भविष्य मे लिये जा सकते हैं. सरल शब्दों मे कहें तो जब तक रिश्वत लेना और देना बंद पूरी तरह से बंद नही होगा, काले धन और भ्रष्टाचार को पूरी तरह समाप्त नही किया जा सकता और सभी सरकारी विभागों मे रिश्वत के इस लेन-देन पर लगाम लगाने के लिये मोदी सरकार कोई बड़ा कदम उठा सकती है.
( लेखक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और टैक्स मांमलों के एक्सपर्ट है.)

Tuesday, December 13, 2016

नोट बंदी से केजरीवाल बेचैन क्यों ?

जब से पी एम मोदी ने काले धन के खिलाफ अपनी निर्णायक जंग का एलान करते हुये, पुराने 500-1000 के नोट बंद किये हैं, केन्द्र की भाजपा सरकार और पी एम मोदी खुद केजरीवाल समेत सभी विपक्षी नेताओं के निशाने पर हैं. केजरीवाल जो खुद अन्ना हज़ारे के साथ एक भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन करने की सफल नौटंकी कर चुके हैं, उनकी बेचैनी विपक्ष के बाकी सभी नेताओं से काफी ज्यादा लग रही है. नोट बंदी से केजरीवाल इतने बेचैन क्यों हैं, इस पर सभी लोग अपने अपने ढंग से कयास लगा रहे हैं लेकिन असली कारण कोई भी खुलकर नही बताना चाहता है.

केजरीवाल की बेचैनी का विश्लेषण करने से पहले हमे उन बातों पर ध्यान देना होगा, जिनके ऊपर इस नोट बंदी का सबसे ज्यादा असर पड़ा है.

(1) नोट बंदी से सबसे ज्यादा मार उन लोगों पर पड़ी है, जो लोग 500 और 1000 के नकली नोटों के कारोबार मे लिप्त थे. जैसा कि सभी को मालूम है कि नकली नोटो की छपाई का सारा काम पाकिस्तान मे होता था और व़हाँ से इन नकली नोटों को भारत मे जारी किया जाता था. पाकिस्तान से भारत मे फैलाया जा रहा आतंकवाद इसी नकली नोटों के कारोबार की बदौलत ही पिछले कई दशकों से बे रोक टोक चल रहा था. हमारे अपने देश मे ऐसे लोगों की कमी नही है जो खाते हिन्दुस्तान का हैं और गाते पाकिस्तान का हैं-दूसरे शब्दों मे कहें तो इनकी वफादारी अपने देश के प्रति ना होकर पाकिस्तान के प्रति ज्यादा है. नोट बंदी से पाकिस्तान को जो झटका लगा है, उसे यह आतंकी देश कभी भूल नही पायेगा. अभी हाल ही मे पाकिस्तान मे नकली नोटों को छापने वाले सरगना ने नोट बंदी की वजह से खुदकशी भी कर ली है.

(2) नोट बंदी से आतंकवादियों के साथ साथ नक्सली लोगों को भी गहरा झटका लगा है. काफी नक्सली लोगों ने नोट बंदी के बाद अपनी नक्सली गतिविधियों को बंद करने का एलान करते हुये अपने आपको देश की मुख्यधारा के हवाले कर दिया है.


(3) नोट बंदी का तीसरा सबसे बड़ा झटका उन लोगों को लगा है, जिन्होने देश और जनता को लूट लूट कर टैक्स की चोरी करके अपने पास काले धन का भंडार एकत्रित किया हुआ था.

(4) नोट बंदी से जिस आम जनता पर असर पड़ा है, उसे हम चौथे नंबर पर रख सकते हैं. यह वे लोग हैं जिन्हे तकलीफ तो खूब हो रही है, लेकिन देश हित मे इन्होने इस तकलीफ को अस्थायी रूप से सहने का मन बना लिया है. विपक्षी नेताओं और न्यायालय के उकसाने के बाबजूद आम जनता ने जिस सहनशीलता और परिपक्वता का परिचय दिया है, उसे विपक्षी नेताओं के मुंह पर एक तमाचा ही समझा जाना चाहिये.


कुल मिलाकर हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं, कि जो कोई भी नोट बंदी से बहुत ज्यादा परेशान है और उसे वापस लेने की मांग भी कर रहा है, वह ऊपर लिखी हुई किसी ना किसी केटेगरी मे आता है और केजरीवाल किस केटेगरी मे आते हैं, इसका बेहतर जबाब वह खुद ही दे सकते हैं. इससे पहले कि सोशल मीडिया मे केजरीवाल के बारे मे कुछ मनगढ़ंत कयास लगाये जाएं, उन्हे खुद आगे बढ़कर यह बताना चाहिये कि वह ऊपर लिखी हुई  केटेगरी मे से किस केटेगरी मे आते हैं.

Saturday, December 10, 2016

नोटबंदी: सरकार पास, बैंक फेल !!!

नोट बंदी के ऐतिहासिक और क्रांतिकारी फैसले की जहाँ एक तरफ हर व्यक्ति, तकलीफ़ें उठाने के बाबजूद भी तारीफ कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ हमारे भ्रष्ट बैंक अधिकारियों और निकम्मे बैंक कर्मचारियों की वजह से देश की जनता को ऐसी तकलीफों का भी सामना करना पड रहा है, जिनसे बचा जा सकता था. दरअसल पिछले 70 सालों मे बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों को जबरदस्त कामचोरी की आदत पड चुकी है और ऐसा लग रहा है मानो उन्हे पहली बार काम करना पड रहा है. बैंक की शाखाओं मे किस तरह से आधे-अधूरे मन से काम होता आया है, वह इस देश की जनता से छिपा हुआ नही है. ग्रामीण इलाकों की बैंक शाखाओं मे तो यह हालत और भी अधिक खराब है.

नोट बंदी से एक तो आम आदमी पहले से ही परेशान है क्योंकि जिन लोगों ने पुराने नोट बैंक मे जमा कराये हैं, उन्हे नये नोट बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों के भ्रष्टाचार के चलते नही मिल रहे हैं. अभी हाल ही मे चेन्नई मे आयकर के छापे मे 70 करोड़ रुपये के नये नोट पकड़े गये हैं- ऐसे और भी मामले सामने आ रहे हैं. यह रुपया बैंक अधिकारियों की मिलीभगत के बिना तो बैंको से बाहर नही गया होगा. कायदे मे यह सभी रुपया अगर भ्रष्ट बैंक अधिकारियों ने इस तरह से अपने चहेतों को नही दिया होता तो यह सारा का सारा रुपया बैंको के पास जनता को बांटने के लिये उपलब्ध रहता और बैंको मे उतनी लम्बी लाइने नही लगतीं, जितनी कि आज लग रही हैं. अब तो बैंकों ने रुपये बदलने का काम भी बंद कर दिया है और बैंकों के आगे लगी हुई लाइने उनके अपने खाताधारकों की ही हैं-अगर बैंक वाले इन लोगों को भी नये नोट उपलब्ध नही करवा पा रहे हैं तो उसका कारण यह नही है कि नये नोट पीछे से नही आ रहे हैं, उसका मुख्य कारण यही है कि बैंकों के पास जो रुपये खाताधारकों को बांटने के लिये आ रहे हैं, उनका जबरदस्त ढंग से दुरुपयोग किया जा रहा है.

अभी हाल ही मे बैंकों की एक नयी मूर्खता सामने आई है जिसके चलते आम जनता को काफी परेशानी से दो चार होना पड रहा है. बैंकों मे आजकल "कोर बॅंकिंग सिस्टम" यानी CBS  है, जिसमे आपका खाता किसी भी बैंक शाखा मे हो, आप उसी बैंक की देश मे स्थित किसी भी दूसरी शाखा मे रुपये जमा भी कर सकते है और निकाल भी सकते हैं. लेकिन ज्यादातर बैंको ने अभूतपूर्व बेशर्मी का प्रदर्शन करते हुये, यह कहना शुरु कर दिया है कि वे सिर्फ उन्ही लोगों का पैसा जमा करेंगे या उन्ही को पैसा निकालने देंगे, जिनका उनकी शाखा मे खाता होगा. इसका मतलब हुआ कि अगर किसी का बैंक खाता स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की फ़रीदाबाद ब्रांच मे है और इस समय अगर वह गाज़ियाबाद मे रह रहा है या काम कर रहा है, तो उसे अपने रुपये जमा करवाने या रुपये निकालने के लिये गाज़ियाबाद मे अपना काम धंधा छोड़कर फ़रीदाबाद जाना पड़ेगा और फ़रीदाबाद जाने के बाद भी अगर वहाँ पर उस ब्रांच ने उसे पैसा नही दिया तो उसे अपना सा मुंह लेकर वापस आना पड़ेगा क्योंकि इस बात की भी पूरी संभावना है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की फ़रीदाबाद ब्रांच के अधिकारी भी नये नोटो को इधर उधर कर दें और जनता के लिये "नो कैश" का बोर्ड बैंक के बाहर लगाकर अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा पा जाएं.

सरकार और वित्त मंत्रालय ने हालांकि कुछ भ्रष्ट बैक अधिकारियों पर कार्यवाही की है लेकिन वह हालात को देखते हुये नाकाफी लगती है. सभी भ्रष्ट बैंक अधिकारियों और निकम्मे बैंक कर्मचारियों को यह सख्त हिदायत देने की जरूरत है कि जो नये नोट जनता मे बांटने के लिये भेजे जा रहे हैं, उनका दुरुपयोग किसी भी हालत मे ना हो. जो बैंक अधिकारी और कर्मचारी सरकार की पकड मे आ भी रहे हैं, उन्हे सिर्फ सस्पेंड करने की औपचारिकता निभाई जा रही है-जिससे इन लोगों का गलत काम करने का हौसला और भी बढ रहा है. जरूरत इस बात की है कि जो बैंक कर्मचारी या अधिकारी इस तरह के अपराध मे लिप्त पाये जाएं, उन्हे तुरंत नौकरी से बर्खास्त करके हवाला कानून के अंतर्गत जेल की हवा खिलाई जाये. बैंकों को यह हिदायत भी तुरंत दी जानी चाहिये कि वे किसी भी खाताधारक को सिर्फ इसलिये रुपये जमा करने या निकालने के लिये मना नही करें, क्योंकि उसका खाता उस ब्रांच मे ना होकर किसी दूसरी ब्रांच मे है. रिजर्व बैंक की तरफ से ऐसा कोई नियम नही है-बैंक वाले यह किसके कहने पर कर रहे हैं, इसकी गहन जांच होनी चाहिये,.

Wednesday, December 7, 2016

इस दशक के नेता नरेन्द्र मोदी




हाल ही में राजीव गुप्ता की लिखी हुईं पुस्तक "इस दशक के नेता नरेन्द्र मोदी" प्रकाशित हुईं है. इस पुस्तक में लेखक ने नरेन्द्र मोदी के राजनीतिक जीवन के इर्द गिर्द घूमती हुईं घटनाओं को आधार बनाकर जो रचनाएँ (लेख, व्यंग्य और कवितायेँ आदि) लिखी थीं और जो समय समय पर लेखक के "नवभारत टाइम्स ब्लॉग" पर प्रकाशित हुईं थीं, उन्ही में से कुछ चुनी हुईं रचनाओं को इस पुस्तक में शामिल किया गया है. 

यह पुस्तक सभी ऑनलाइन पोर्टल्स पर उपलब्ध है. पुस्तक के बारे में सुझाव और प्रतिक्रियाएं भेजने के लिए  rajeevg@hotmail.com   पर संपर्क करें.


Follow Rajeev Gupta on Twitter @RAJEEVGUPTACA

Monday, December 5, 2016

#नोटबंदी पर अब तक का सबसे बड़ा खुलासा !!!

नोट बंदी की घोषणा हुये तीन दिन हो चुके थे. सभी टी वी चैनल अपनी टी आर पी बढाने के चक्कर मे इस बात की होड़ मे लगे हुये थे कि देश मे जहाँ कही भी किसी की भी मौत किसी भी वजह से हुई हो, उसे किसी भी तरह से नोट बंदी से जोड़कर दिखलाया जाये. "खबरदार" टी वी चैनल अभी तक इस दौड़ मे शामिल नही हुआ था और लिहाज़ा इस टी वी चैनल की टी आर पी का बैंड बज़ा हुआ था. टी वी चैनल की संपादक मंडली के लोग गंभीर सोच विचार मे ही थे कि अचानक ही चैनल के चीफ एडिटर ने अपने प्राइम टाइम शो को पेश करने वाले एँकर-पत्रकार को  एक सुझाव दिया-"भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई शुरु करने की नौटंकी करने वाले क्रेजीवाल आजकल जरूरत से ज्यादा बैचेन नज़र आ रहे हैं- उनकी अद्भुत चीख पुकार का हम अपने चैनल की टी आर पी बढाने के लिये उपयोग कर सकते हैं." संपादक जी के इशारे को समझते हुये पत्रकार महोदय ने क्रेजीवाल जी को फोन लगा दिया और उन्होने उछलते हुये "खबरदार" चैनल के प्राइम टाइम शो मे शामिल होने के लिये हामी भर दी. 

प्राइम  टाइम शो के कार्यक्रम का नाम भी धमाकेदार रखा गया -"नोट बंदी पर अब तक का सबसे बड़ा खुलासा !!!" प्राइम टाइम शो रात 9 बजे शुरु होना था. लेकिन क्रेजीवाल जी व्यस्त होने के बाबजूद पूरे आधा घंटा पहले ही स्टूडियो मे पधार चुके थे. उनकी बेचैनी और हैरानी परेशानी को देखकर प्राइम टाइम शो को एँकर करने वाले पत्रकार भी बेहद हैरान थे लेकिन उन्होने अपनी हैरानी वाले सवाल को भी प्राइम टाइम शो के लिये ही बचा कर रख लिया.

शो शुरु होते ही पत्रकार ने अपना पहला सवाल क्रेजीवाल जी के ऊपर दागा-" क्रेजीवाल जी, आप जरूरत से ज्यादा व्यस्त होने के बाबजूद भी, हमारे स्टूडियो मे पूरे आधा घंटा पहले पहुंच गये, इसके पीछे भी कोई खास राजनीतिक चाल है या कोई और वजह है ?"

क्रेजीवाल : नही इसके पीछे कोई खास वजह नही है- मैं दरअसल अपने घर से आपके स्टूडियो तक पैदल ही चलकर आया हूँ और इसलिये शाम को 6 बजे ही चल दिया था, इसी चक्कर मे आधा घंटा पहले ही पहुंच गया.

पत्रकार : क्रेजीवाल जी, आपकी गाड़ी क्या खराब हो गयी है, जिसके चलते आपको पैदल आने की जरूरत पड गयी ?

क्रेजीवाल : नही पत्रकार महोदय, अब नोट बंदी के बाद हमारे पास इतने पैसे ही कहाँ बचे हैं कि हम लोग कहीं कार से आ जा सकें.


पत्रकार (हैरान होते हुये) : क्रेजीवाल जी, आपके पास तो पुराने 500 और 1000 के नोटों का अपार भंडार हुआ करता था-उसे बैंक मे जमा करवाकर आप नये नोट निकलवा सकते थे या फिर ई-पेमेन्ट कर सकते थे.

क्रेजीवाल : पहले तो में आपकी जानकारी दुरुस्त कर दूं कि मेरे पास सिर्फ 500 के नोटों का भंडार था-1000 के नोटो का भंडार मेरे पास नही था. दूसरी बात यह है कि बैंको मे सिर्फ वही नोट जमा हो रहे हैं जिन्हे रिजर्ब बैंक ऑफ इंडिया ने जारी किया है-मेरे पास जो नोट हैं उन्हे पाकिस्तान सरकार ने छापा है.

पत्रकार एकदम सन्न रह गया और अपनी सीट से उठकर खड़ा हो गया: इसका मतलब क्रेजीवाल जी, आप पाकिस्तान से भेजे गये नकली नोटों के सौदागर हैं ?

क्रेजीवाल (अपना मफलर कसकर लपेटते हुये) : हाँ जी, मैं सिर्फ 500 के नकली नोटों मे ही डील करता हूँ लेकिन इस नोट बंदी से मेरा सारा धंधा चौपट कर दिया है मोदी ने .

पत्रकार (बेहद हैरानी के साथ) : क्रेजीवाल जी, आप बार बार यह कह रहे हैं कि आप सिर्फ 500 रुपये के नकली नोटों के भारत मे अधिकृत सौदागर है तो फिर यह बताएं कि पाकिस्तान से जो 1000 के नकली नोट छपकर देश मे आते हैं, उनका भारत मे होलसेल डिस्ट्रीब्यूटर कौन है ?

क्रेजीवाल : अपनी मनता दीदी.........मेरे कहने का मतलब मनता सनर्जी . 1000 के नकली नोटो की इस देश मे वे इकलौती अधिकृत सौदागर हैं.

पत्रकार : फिर तो क्रेजीवाल जी, सिर्फ आपका ही नही, मनता दीदी का भी नकली नोटों का धंधा पूरी तरह चौपट हो गया ?

क्रेजीवाल : हाँ जी, अब आप बिल्कुल सही समझे हैं- हम दोनो का का ही नकली नोटों का धंधा मोदी ने पूरी तरह चौपट कर दिया है. काले धन के सौदागर तो बैंकों मे अपने पैसे को जमा करा रहे हैं और उसे टैक्स देकर सफेद कर रहे हैं लेकिन हमारे जैसे नकली नोटों के सौदागार आखिर कहाँ जाएं ?

पत्रकार : क्रेजीवाल जी, मैं आपकी परेशानी और चीख पुकार को अच्छी तरह समझ चुका हूँ और हमारे दर्शक भी यह जान गये हैं कि नोट बंदी की सबसे ज्यादा मार सिर्फ आप दोनो पर ही क्यों पड़ी है. हम इस चर्चा को कल भी जारी रखेंगे. आज प्राइम टाइम शो का वक्त अब खत्म होता है. स्टूडियो मे पधारने के लिये आपका धन्यवाद. कल इसी वक्त आपका इस स्टूडियो मे एक बार फिर से स्वागत किया जायेगा.

पत्रकार की बात सुनते ही क्रेजीवाल ने अपने चिर परिचित ढंग से खाँसना शुरु कर दिया.
इससे पहले कि क्रेजीवाल जी कुछ और बोल पाते, टी वी पर कामर्शियल ब्रेक शुरु हो गया.

(इस काल्पनिक व्यंग्य रचना मे वर्णित सभी पात्र, घटनाएं एवं संवाद पूरी तरह से काल्पनिक हैं और उनका किसी जीवित या मृत व्यक्ति,संस्था या संगठन से कोई लेना देना नही है.)

Thursday, November 24, 2016

विपक्ष पर लागू नहीं होगी नोटबंदी

नोट बंदी के अचानक आये फैसले से जिन राजनेताओं के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गयी थी और जिनकी रातों की नींद और दिन का चैन गायब हो गया था, उनके लिये एक राहत की खबर आ रही है. संसद के शीतकालीन सत्र मे चल रहे गतिरोध को दूर करने के लिये, सरकार ने यह फैसला लिया है कि पी एम मोदी ने जिस नोट बंदी की घोषणा 8 नवंबर 2016 को की थी, उससे देश के सभी विपक्षी राजनेताओं को मुक्त रखा जायेगा. यह सभी नेता अपनी गतिविधियों को पहले की तरह उसी तरह से जारी रखने के लिये आज़ाद होंगे, जिस तरह से यह लोग पिछले 70 सालों से थे.दुश्मन देश पाकिस्तान से जितने नकली नोट 8 नवंबर 2016 तक देश मे आ चुके है, उनके इस्तेमाल की भी पूरी छूट 30 दिसंबर तक रहेगी, ताकि हमारे माननीय नेताओं को उन्हे चलाने मे किसी तरह की तकलीफ ना हो.

सरकार के इस कदम से जहाँ विपक्षी नेताओं की चाँदी हो जायेगी, वहीं जनता के लिये भी इस फैसले से जबरदस्त राहत मिलने की संभावना है, क्योंकि अब जब विपक्षी नेताओं को अपने पुराने नोट बदलवाने या जमा करवाने के लिये अपने कार्यकर्ताओं को या भाड़े पर लिये गये दिहाड़ी के मजदूरों को बैंक की लाइनो मे खड़ा नही करना पड़ेगा. जब यह लाइने छोटी हो जायेंगी तो जनता अपने पुराने नोटों को सहूलियत के साथ बैंको मे जमा करा सकेगी.

विश्वस्त सूत्रों के हवाले से यह खबर भी आ रही है कि आयकर विभाग के उच्च अधिकारियों को यह स्पष्ट रूप से बता दिया गया है कि इन सभी माननीय विपक्षी नेताओं को नोटिस भेजना तो दूर, उनकी तरफ आंख उठाकर भी ना देखें.

जानकर लोग यह बताते हैं कि सरकार को यह फैसला राष्‍ट्रीय पर्यावरण आयोग की उस फटकार के बाद लेना पड़ा जिसमे आयोग ने नोट बंदी के बाद विपक्षी नेताओं के असहनीय शोर शराबे और चीख पुकार के चलते देश मे अचानक बढे ध्वनि प्रदूषण की ओर सरकार का ध्यान खींचा था. राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी सरकार को जमकर फटकार लगाई थी कि सरकार इस बात का जबाब जल्द से जल्द दे कि जो लोग सभी तरह के ऐशो आराम से पिछले 70 सालों से रह रहे थे, वे लोग आज सरकार की गलत नीतियों के चलते, दाने दाने के लिये मोहताज़ क्यों हो गये हैं.

लम्बी लाइनो की वजह से देश मे दंगे होने की संभावना के चलते भी सरकार पर इन लम्बी लाइनो को जल्द से जल्द छोटा करने का दबाब था. सरकार के इस कदम को सभी विपक्षी नेता किसी भी सरकार द्वारा लिया गया स्वतंत्र भारत का सबसे अधिक "क्रांतिकारी" फैसला बता रहे हैं.


(इस काल्पनिक व्यंग्य रचना का किसी वास्तविक घटना,व्यक्ति, संस्था या संगठन से कोई लेना देना नही है.)

Sunday, November 20, 2016

नोटबंदी पर सुप्रीमकोर्ट की दंगों की भविष्यवाणी

नोट बंदी के खिलाफ डाली गयी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट खुद ही रद्द कर चुका है. सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले के मद्दे नज़र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से यह गुहार लगाई थी कि देश की अन्य अदालतों मे इस तरह् की याचिकाएं अभी भी डाली जा रही हैं और उन पर भी रोक लगाई जानी चाहिये. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की यह याचिका यह कहते हुये खारिज़ कर दी कि लोगों को नोट बंदी के चलते भारी परेशानी हो रही है और उन्हे अदालतों मे अपनी याचिका डालने के अधिकार से वंचित नही किया जा सकता है. यहाँ तक तो बात हज़म होने लायक लग रही थी. लेकिन अपनी इस दलील मे सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी टिप्पणी भी जोड़ दी जिसके अनुसार बैंकों के बाहर लगी लम्बी लम्बी लाइनों की वजह से देश मे दंगे भी हो सकते हैं. बैंकों मे लगी लम्बी लाइनो की वजह से दंगे होने की भविष्यवाणी माननीय सुप्रीम कोर्ट ने किस आधार पर की, इसके बारे मे तो मीडिया मे कोई खबर नही आई है, लेकिन सोशल मीडिया मे सुप्रीम कोर्ट की इस अनावश्यक भविष्यवाणी को लेकर काफी चर्चा हो रही है. लोगों का यह मानना है कि सर्वोच्च अदालत का काम फैसला करना है और भविष्यवाणी करने का काम हमे भविष्यवक्ताओं और ज्योतिषियों के लिये ही छोड़ देना चाहिये.

यहाँ यह बात भी गौर करने लायक है कि हमारे देश मे आज से पहले कभी भी लम्बी लाइनो की वजह से दंगे नही हुये है. लोग जियो के सिम लेने के लिये, शराब खरीदने के लिये और राशन की लाइनो मे लगने के आदी हो चुके हैं और लम्बी लाइने कभी भी इस देश मे दंगों की वजह नही बनीं हैं. कश्मीर मे पिछले काफी समय से दंगों से भी बदतर हालात बने हुये थे. जब से नोटबंदी का फैसला आया है, कश्मीर के हालात एकदम सामान्य हो गये है. इसका सीधा सा मतलब यह है कि जितने भी दंगे आज तक देश मे हुये हैं, उनके लिये किसी भी जाति, धर्म या समुदाय से ताल्लुक रखने वाली जनता कभी भी जिम्मेदार नही थी. दंगे हमेशा राजनीति से प्रेरित होते हैं और उन्हे प्रायोजित करने के लिये काला धन और जाली धन की बहुत अधिक जरूरत होती है. अगर इस कसौटी पर आज के हालातों को परखा जाये तो देश मे दंगा होने की कोई सूरत दूर दूर तक नज़र नही आती है. आज ना किसी राजनीतिक दल के पास काला धन है और ना ही जाली धन.

सोशल मीडिया पर तो देश की अदालतों मे लम्बित मामलों की जो लाइन लगी हुई है, उसके आकडे भी आ रहे हैं, जो बेहद चौंकाने वाले हैं. देश की निचली अदालतों मे 2,30,79,723 मामले लंबित पड़े हुये हैं, देश के विभिन्न हाइ कोर्ट मे 38,91,076 मामले लम्बित पड़े हुये हैं और खुद सुप्रीम कोर्ट मे 61,436 मामले ऐसे हैं, जिन पर अभी फैसला आना बाकी है. कुल मिलाकर देखा जाये तो 2,70,00,000 मामलों की विभिन्न अदालतों मे लाइन लगी हुई है और आज तक इतनी लम्बी लाइन लगने के बाबजूद भी इन लाइनो की वजह से देश मे कोई दंगा नही हुआ है.

अच्छा तो यह होता अगर सुप्रीम कोर्ट लम्बी लाइनो के लिये जिम्मेदार भ्रष्ट लोगों के खिलाफ सरकार को कडी कार्यवाही का आदेश देता क्योंकि यह बात धीरे धीरे बिल्कुल साफ होती जा रही है कि लाइनो मे लगे हुये लगभग 90 प्रतिशत लोग भ्रष्ट लोगों द्वारा भाड़े पर लिये हुये लोग हैं जो बाकी के 10 प्रतिशत लोगों के लिये परेशानी का कारण बन रहे हैं. पहले इन लोगों ने अपने काले धन को बदलवाने के लिये अपने कार्यकर्ताओं, दिहाड़ी के मजदूरों और अपने कर्मचारियों को 4000 बदलने की लाइन मे लगाकर लाइनो को लम्बा कर दिया और जब सरकार ने कुछ सख्ती दिखाई तो यह लोग आम जनता के जन धन खातों मे 250000 रुपये यह कहकर डलवा रहे हैं कि इन्हे 200000 रुपये निकालकर वह व्यक्ति एक निश्चित समय सीमा मे वापस कर दे. 50000 रुपये के लालच मे इन सभी लोगों के सामने यह बड़ी भारी चुनौती है कि उन्हे ATM  से या बैंक से निकालकर 200000 रुपये एक निश्चित समय सीमा मे वापस भी करने हैं. बैंकों मे लम्बी होती लाइनो का यही मुख्य कारण भी है. 

Thursday, November 17, 2016

देश आपका है- फैसला आपको करना है !

देश मे एक के बाद एक, लगातार दो अलग अलग "सर्जिकल स्ट्राइक" हुई है. दोनो बार की कार्यवाही मे समानता यही है कि दोनो ही बार इनकी घोषणा अचानक की गयी और दोनो ही बार देश के विपक्षी नेता या कहिये कि गैर-भाजपाई नेताओं की समझ मे यह नही आया कि तत्कालिक रूप से इन "सर्जिकल स्ट्राइक्स" पर क्या प्रतिक्रिया दी जाये.

जब जब इन "सर्जिकल स्ट्राइक्स" की सूचना सेना या सरकार द्वारा मुहैया कराई गयी, देश के सम्पूर्ण विपक्ष की हालत ऐसी हो गयी जैसे काटो तो खून नही. लकवा मारा हुआ विपक्ष जब कुछ सोचने समझने लायक होता है तो फिर कुछ काल्पनिक कहानी गढनी शुरु करता है ताकि वर्तमान सरकार को उसके ऐतिहासिक और क्रांतिकारी फैसले का श्रेय ना मिल पाये. विपक्ष इस गलतफ़हमी मे आज तक है कि देश मे सोशल मीडिया का कोई वजूद नही है और जो कुछ भी "दुष्प्रचार" यह विपक्षी नेता सरकार के खिलाफ करेंगे, उसे जनता सच मान लेगी और यह अपने दुष्प्रचार मे उसी तरह कामयाब होते रहेंगे जैसे कि पिछले 60-70 सालों से हो रहे थे.

पहली सर्जिकल स्ट्राइक तो विपक्ष के नेताओं से हज़म ही नही हुई और उन्होने उसे फर्ज़ी करार दे दिया-पाकिस्तान भी यही चाहता था. इन लोगों का यह कहना था कि या तो "सर्जिकल स्ट्राइक" का वीडियो जारी किया जाये (ताकि पाकिस्तान उस वीडियो को देखकर आगे के लिये सतर्क हो जाये ) और अगर सरकार यह वीडियो नही दिखाती है तो यह "सर्जिकल स्ट्राइक" फर्ज़ी मानी जायेगी. यह फैसला जनता करे कि विपक्षी नेता जो कुछ भी बोल रहे थे, उससे ज्यादा फायदा पाकिस्तान को हो रहा था या भारत को ?

अपनी पहली सर्जिकल स्ट्राइक को ही आगे बढ़ाते हुये मोदी सरकार ने 8 नवंबर 2016 की रात को "काले धन पर भी सर्जिकल स्ट्राइक" कर डाली. यह बात सारी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान एक आतंकवादी देश है और अपने आतंकवाद को पालने पोषने के लिये वह भारत के 500-1000 के नकली नोट भारी मात्रा मे छाप छाप कर, अपने आतंकवादी मनसूबों को अंज़ाम देता रहा है. आज जो लोग विपक्ष मे हैं, वे लोग पहले सत्ता मे थे और उन लोगों ने पाकिस्तान की इस बेज़ा हरकत को रोकने के लिये अगर कोई उपाय किये होते तो हज़ारों सैनिकों और देशवासियों की जान बचाई जा सकती थी. लेकिन पिछली "सेक्युलर" सरकारों का पाकिस्तान-प्रेम, देश-प्रेम पर हमेशा ही भारी पड़ता रहा. इसीलिये जब मोदी सरकार ने अचानक ही पाकिस्तानी-आतंकवाद का "सोर्स ऑफ फंडिंग" ही बंद कर दिया तो हमारे विपक्षी नेताओं को यह बात बहुत नागवार गुज़री.

लेकिन हमारे विपक्षी नेताओं मे थोड़ी बहुत शर्म अभी भी बाकी है या वे लोग जनता को आज भी सन 1950-60 के दशक की जनता समझ रहे हैं, इसलिये उन्होने यह बहाना बनाना शुरु कर दिया कि हम लोग "काले धन पर की गयी सर्जिकल स्ट्राइक" का पुरजोर विरोध इसलिये कर रहे हैं, क्योंकि जनता को उससे बड़ी तकलीफ हो रही है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलावा किसी और विपक्षी नेता ने यह बताने की जरूरत नही समझी, कि जिस जनता के दर्द की चिंता इन लोगों को पिछले 60-70 सालों मे नही हुई, अचानक इनका दिल इतना कैसे पसीज़ गया और यह दयावान होकर "जनता के हमदर्द" बनने की नौटंकी कब से करने लगे ?

गौर करने लायक बात यह है कि दीपावली से पहले लगभग हर घर मे रँगाई-पुताई का काम होता है और इसीके बहाने साफ-सफाई भी हो जाती है. जितने दिन तक यह काम घर मे चलता है, घर की सारी व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है, लेकिन उससे हम लोग हाहाकार मचाना शुरु नही कर देते हैं. ठीक उसी तरह से जब देशहित मे एक ऐसा फैसला लिया गया है, जिससे ना सिर्फ पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का, बल्कि भ्रष्टाचार के लिये जिम्मेदार काले धन का भी सफाया होने वाला है, तो हमारे कुछ मुट्ठी भर विपक्षी नेताओं के पेट मे दर्द क्यों हो रहा है ? कोई विपक्षी नेता अपने पिछले कमाये हुये काले  धन को सफेद करने के लिये बैंक की लाइन मे लगने की नौटंकी कर रहा है और कोई विपक्षी नेता पाकिस्तान से आये नकली नोटों को ठिकाने लगाने के लिये आज़ादपुर सब्जी मंडी जाकर बैठ गया है.

देश इस समय एक ऐसे निर्णायक  मोड पर खड़ा है, जहाँ एक ओर भ्रष्ट लोग पूरी तरह बेनकाब होकर जनता के सामने खड़े हुये हैं-वहीं दूसरी ओर ईंमानदार लोग अपने फैसले पर अडिग और अटल खड़े हुये है और उनके फैसले को सुप्रीम कोर्ट के साथ साथ देश के राष्ट्रपति और 125 करोड़ देशवासियों का भी पूरा समर्थन प्राप्त है.  भ्रष्ट लोगों की संख्या मुट्ठी भर है और वे लोग अपनी पूरी बेशर्मी के साथ इस ऐतिहासिक फैसले का पुरजोर विरोध  संसद के बाहर और संसद के अंदर भी कर रहे हैं.

लेकिन  देश इन नेताओं का नही है !
देश आपका है !!
फैसला आपको करना है !!!

Sunday, November 13, 2016

लगा दिया मोदी ने उनको आज बैंक की लाइन मे

काले धन पर पड़ी चोट तो भ्रष्ट दरिंदे चिल्लाये
जनता का ये करें बहाना, चोट को अपनी सहलाएं

जनता का कर रहे बहाना, परअपनी पीड़ा भारी है
जनता को तो खूब ठग चुके,अब खुद इनकी बारी है

लूट रहे थे 60 साल से, देश को दोनो हाथों से
मोदी ने औकात दिखा दी, इनको अपनी बातों से.

नकली नोटों के सौदागर करते इनकी रखवाली
उनका धंधा बंद हुआ तो ये देते मोदी को गाली

"अन्ना का चेला" बन बैठा, काले धन का सौदागर
इसकी काली करतूतों पर मोदी की है कडी नज़र

धनकुबेर लगते थे जिनके घर पर आकर लाइन मे
लगा दिया मोदी ने उनको आज बैंक की लाइन मे

-राजीव गुप्ता
(C) सर्वाधिकार सुरक्षित

Thursday, November 10, 2016

4000 के नोट बदलने पर तुरंत रोक लगाये सरकार

8 नवंबर की रात को मोदी सरकार ने काले धन को समाप्त करने का जो ऐतिहासिक और क्रांतिकारी फैसला लिया है, उसके तहत कोई भी सड़क चलता व्यक्ति, जिसके पास बैंक खाता नही है, अपना कोई भी पहचान पत्र दिखाकर देश के किसी भी बैंक की किसी भी शाखा से जाकर 4000 रुपये तक के पुराने नोटों के बदले नये नोट ले सकता है. सरकार ने यह नियम इसलिये बनाया था ताकि जिन लोगों ने अभी तक बैंक मे खाते नही खुलवाये हैं, उन्हे इस योजना के चलते किसी परेशानी का सामना ना करना पड़े, लेकिन बड़े बड़े राजनेताओं, व्यापारियों और उद्योगपतियों ने आम आदमी को राहत पहुंचाने वाली इस योजना का भी जमकर दुरुपयोग करना शुरु कर दिया है और इसी दुरुपयोग के चलते बैंकों के बाहर लम्बी लम्बी लाइने लगी हुई हैं.

दरअसल इस योजना का दुरुपयोग करते हुये भ्रष्ट नेता अपने कार्यकर्ताओं को रुपये बदलने का फॉर्म और पहचान पत्र की फोटोकॉपी के सैंकड़ों सेट देकर अलग अलग बैंकों की अलग अलग शाखाओं मे भेज रहे हैं. उदाहरण के लिये, अगर कोई भी व्यक्ति एक दिन मे दस बैंक शाखाओं से भी रुपये बदलने मे कामयाब हो जाता है, तो वह दिन भर मे 40000 रुपये आसानी से बदलवा सकता है. हर राजनीतिक पार्टी और नेता के पास कार्यकर्ताओं की जो फ़ौज़ है, अगर सभी लोग इसी काम पर लग जाएं तो 30 दिसंबर 2016 तक रोजाना 40000 के हिसाब से भी यह लोग करोड़ों रुपये बदलने मे कामयाब हो सकेंगे.

मजे की बात यह है कि जिन लोगों का बैंक मे खाता है, वे तो पूरे सप्ताह मे सिर्फ 20000 रुपये ही निकाल पायेंगे लेकिन जिनका खाता नही है, उनके लिये ऐसी कोई सीमा नही है और वे लोग जितनी मर्ज़ी बैंक शाखाओं मे जाकर 4000 रुपये के हिसाब से जितना चाहे पुराना धन नये धन से बदल सकते हैं. भ्रष्ट राजनेताओं की तर्ज़ पर भ्रष्ट सरकारी अधिकारी और व्यापारी भी इसी रास्ते को अपना रहे हैं. बहुत से व्यवसायिक प्रतिष्ठानो ने तो अपने सभी कर्मचारियों को सिर्फ इसी काम पर लगाया हुआ है और जो दिन भर मे सबसे अधिक रुपये बदलवाकर ला रहा है, उसे कुछ इनाम भी दिया जा रहा है.

इससे पहले कि जनता को दी गयी इस रियायत का और अधिक दुरुपयोग हो, इस योजना को तुरंत प्रभाव से बंद करना चाहिये ताकि बैंकों के आगे लगी हुई लम्बी लाइने खत्म हों और बैंक अपना समय असली खाताधारकों को दे सकें. वैसे भी जिन सड़क चलते लोगों ने (जिनके पास बैंक खाता नही है), अपने नोट बदलवाने थे, अब तक बदलवा ही लिये होंगे. मज़े की बात यह है कि बैंकों के पास यह चेक करने का भी कोई तरीका नही है कि जो लोग लाइन मे लगकर 4000 रुपये यह कहकर बदलवा रहे हैं कि उनके पास कोई बैंक खाता नही है, वे सच बोल रहे हैं या झूठ. आज सुबह कांग्रेस नेता राहुल गाँधी भी ४००० के नोट बदलवाने के लिए एक बैंक की लाइन में खड़े दिखे. क्या राहुल गाँधी का बैंक खाता  नहीं है ? अगर राहुल गाँधी बैंक की लाइन में खड़े होकर बैंक को चकमा देने की कोशिश कर सकते हैं तो कोई और क्यों नहीं कर सकता?

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